Family Story : सोम एक पढ़ालिखा नौजवान था. उसे इसी साल नौकरी मिल गई थी. उस ने तय किया कि वह अपना 23वां जन्मदिन मनाने के लिए गांव जाएगा.
गांव में अब सोम के लिए अपना कहने को बस एक चाचाजी ही रह गए थे. वह शुक्रवार की शाम को दफ्तर से सीधा बसअड्डे आ गया था. गांव और चाचाजी… इसी खुशी में डूब कर सोम खुशीखुशी गांव की बस में बैठ गया.
4 घंटे का सफर तय कर के सोम गांव में आ चुका था. वहां आ कर उस का मन हराभरा हो गया.
इस बार सोम 7-8 महीने बाद गांव आया था. गांव की सड़क पर उसे कुछ जानेपहचाने से चेहरे दिखाई दिए. सोम ने बहुत इज्जत के साथ उन्हें नमस्ते किया, मगर वे सभी उसे अजीब सी नजरों से घूरते रहे.
उन को नजरअंदाज कर सोम कुछ आगे बढ़ा, तो फिर से वही बात हुई. सोम ने एक परिचित से खुद ही आगे बढ़ कर पूछ लिया कि आखिर माजरा क्या है?
‘‘अपने रंगीनमिजाज चाचाजी के पास जाओ, तब मालूम होगा,’’ उस आदमी ने सोम को टका सा जवाब दिया और आगे बढ़ गया.
सोम हैरत में था. यह कैसी पहेली थी, वह समझ ही नहीं पा रहा था.
यही सोचतेसोचते सोम घर भी आ गया. चाचाजी आराम से नीम की छांव तले खाट पर अखबार पढ़ रहे थे.
चाचाजी को देखते ही सोम का मन अपार स्नेह से भर उठा. उस ने चाचाजी के पैर छुए, तभी एक औरत कमरे से बाहर आई. एकदम चाचाजी की हमउम्र. वह अनजान थी, फिर भी सोम ने उन्हें नमस्ते किया.
सोम सवालिया निगाहों से उस औरत को देखता रहा, तभी चाचाजी ने उस की उत्सुकता को शांत कर दिया, ‘‘बेटे सोम, ये आप की चाची हैं उमा. हम दोनों ने 3 दिन पहले ही मंदिर में ब्याह कर लिया है.’’
अपनी हैरानी को दबा कर सोम ने बहुत ही आदर से उन को दोबारा नमस्ते किया. वे खूब हंसमुख थीं.
आशीर्वाद देती रहीं. सोम अब एकदम खामोश हो गया. पलभर के भीतर ही वह समझ गया कि इतनी देर पहले तक रास्ते में हरेक उसे इस तरह से घूर क्यों रहा था.
मतलब, चाचाजी तो बेचारे बुरे फंस गए. 10 बीघा खेत. अलग से 3 बीघा में आम का बाग. इन नईनवेली चाचीजी ने तो चाचाजी को बेवकूफ बना दिया है.
सोम आगे कुछ और सोचता कि एक मधुर आवाज आई, ‘‘सोम बेटा, यह लो शरबत पी लो.’’
सोम थका हुआ तो था ही, वह उस शरबत को गटागट पी गया. उस ने इतना बेहतरीन और लाजवाब शरबत आज तक नहीं पिया था.
चाचीजी ने एक गिलास और दिया. सोम वह भी पी गया.
‘‘शुक्रिया चाचीजी,’’ सोम ने इस शब्द को चबा कर कहा, मगर वे तो इतनी सरल कि तब भी ‘खुश रहो बेटा’ कह कर भीतर चली गईं.
कुछ पल के लिए एकदम सन्नाटा सा छा गया था. सोम मन ही मन हिसाब लगा रहा था कि चाचीजी ने भी बढि़या हाथ मारा है. करोड़ों के मालिक हैं चाचाजी. उसी पल सोम के मन में एक दूसरा विचार भी कौंध गया. ऐसा विचार जो आज तक सोम के मन में नहीं आया था.
आज जिंदगी में पहली बार सोम इस खेत और बगीचे में अपने हिस्से को भी गिनने लगा था.
मतलबी सोम सब भूल गया था. चाचाजी का इतना त्याग, ऐसा बलिदान, उसे इस समय कुछ याद नहीं रहा. एक कार हादसे में सोम के मातापिता और चाचीजी नहीं रहे थे.
स्कूल से लौट कर आया सोम सब जानने के बाद अपने चाचाजी से लिपट गया था.
‘‘चाचाजी, अब आप एक और चाची तो नहीं लाओगे न…?’’ 10 साल का सोम अपने 40 साल के चाचाजी से भीख मांग रहा था.
‘‘नहीं बेटा, मैं कभी नहीं करूंगा दूसरी शादी,’’ कह कर चाचाजी ने सोम को अपनी गोद में भर लिया था.
उस दिन के बाद से सोम के लिए माता और पिता दोनों चाचाजी हो गए थे. सोम ने होस्टल में पढ़ने की जिद की, तो चाचाजी ने 10वीं जमात के बाद उस की यह तमन्ना पूरी करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी. अब तक भी उस की बेरोजगारी में उस के बैंक खाते में चाचाजी ही रुपए भेजते थे.
मगर, शहर का पानी पी कर सोम मतलबी सा हो गया था. अब वह अपनी यारीदोस्ती में मगन रहता था.
अपनी नौकरी में वह बिजी रहता था. यह सोच कर कि चाचाजी के साथ तो पूरा का पूरा गांव है, अब उन की परवाह क्या करना?
आज सोम को अपने हिस्से की जायदाद भी चाची की झोली में जाती दिख रही थी.
इतनी देर में नई चाजीजी खूब सारा नाश्ता ले कर आ गईं.
‘‘कल आप का जन्मदिन है सोम, आज से ही हम लोग जश्न शुरू करते हैं,’’ कह कर चाचीजी उस की प्लेट
में गुलाबजामुन, पकौड़े रखने लगीं.
सोम को तो इस धोखे से सदमा सा लग गया था कि तभी चाचीजी ने एक फाइल चाचाजी को थमा दी.
‘‘अरे हां सोम बेटा, यह लो जमीन के सारे कागज. सारी जायदाद और मकान, सब तुम को दे दिया है बेटे. मुझे तो उमा ने सहारा दे दिया है. वे एक कारोबारी हैं.
3-4 महीने से गांव में सर्वे कर रही थीं. हम को ऐसा लगा मानो कुदरत ने मिला दिया हो.
‘‘गांव वाले विरोध कर रहे हैं, मगर हम शादी के बंधन में बंध गए हैं,’’ सोम अपने चाचाजी की बात सुन रहा था.
चाचाजी आगे बताने लगे, ‘‘तुम्हारी चाची उमा कन्नड़ हैं और एकदम स्वाभिमानी. अब 3-4 दिन के बाद मैं भी इस के साथ कर्नाटक जा रहा हूं. जिस गांव ने हमें 3 दिन भी सहन नहीं किया, वहां आगे भी कौन सा संबंध रखा जाएगा, यह मैं जानता हूं.
‘‘तुम्हारी चाची ने ही कहा है कि उन के पास अपने कारोबार से कमाया हुआ इतना पैसा है कि एक पाई भी किसी से नहीं चाहिए. यह संभालो अपनी विरासत,’’ कह कर चाचाजी ने सोम को एक गुलाबजामुन खिला दिया.
सोम ने यह सुना, तो वह शर्म से पानीपानी हो गया.
‘उमा चाची, आप तो बहुत महान हो,’ सोम ने मन ही मन कहा.
‘‘बेटा, अभी तो एक मैनेजर है, जो सब देखभाल कर रहा है. आगे भी सब हो जाएगा. अगर चाहो तो नौकरी की जगह अपनी जमीन भी संभाल सकते हो,’’ उमा चाची ने बाहर आ कर सोम से कहा.
उमा चाची की यह बात सुन कर सोम का मन हुआ कि उन के पैरों की धूल को माथे पर सजा ले.
इस के बाद चाचाचाची बैंगलुरु चले गए और वहीं बस गए.
सोम आज भी हर साल 3-4 बार उन से मिलने जरूर जाता है. उस ने उमा चाची से स्वाभिमान और सचाई का अनूठा सबक सीखा है.