किशन ने रात के 11 बजे घर की घंटी बजाई. उस के पिता अविनाश ने दरवाजा खोला. साथ में लड़की को देख कर अविनाश का पारा चढ़ गया. वे चिल्लाए, ‘‘कौन है यह लड़की?’’
‘‘बाबूजी, यह मीना है.’’
‘‘मैं नाम नहीं पूछ रहा हूं.’’
‘‘बाबूजी, यह बहुत दुखी थी.’’
‘‘दुखी थी तो? हर दुखी लड़की को अपने साथ ले आएगा? तू इसे जहां से लाया है, वहीं छोड़ कर आ. अभी इसी समय.’’
‘‘इसे घर लाना मेरी मजबूरी थी बाबूजी?’’
‘‘क्या मजबूरी थी…’’
‘‘हमें अंदर तो आने दो, सब बताता हूं,’’ किशन ने जब गुजारिश की तब अविनाश थोड़े पिघले. वे रास्ता छोड़ते हुए बोले, ‘‘हां, आओ.’’
वे तीनों ड्रांइगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गए. कुछ पलों का सन्नाटा पसरा रहा, फिर अविनाश बोले, ‘‘बोल, क्यों ले कर आया है इसे?’’
‘‘बाबूजी, मैं पटनी बाजार से गुजर रहा था. गोपाल मंदिर पार कर ही रहा था कि मेरी गाड़ी के पास आ कर यह बोली, ‘मु झे बचा लो बाबूजी. एक गुंडा मेरे पीछे पड़ा हुआ है.’
‘‘मु झे कुछ नहीं सू झा और मैं ने इसे बिठाने का फैसला कर लिया. इस के बाद का किस्सा आप इसी से सुन लो. मीना, बताओ अपने बारे में.’’
मीना ने जो बताया वह इस तरह था:
मीना की मां तभी गुजर गई थीं
जब मीना 5 साल की थी. उस के पिता भेरूलाल ने समाज के दबाव में आ कर कलावती से शादी कर ली थी.
शुरुआत में तो सौतेली मां ने प्यार दिया, पर जब उस की कोख से 2 बेटियां और एक बेटा जन्म ले चुके थे, तब वह उन पर प्यार लुटाने लगी थी और मीना से नफरत करने लगी थी.
इसी बीच भेरूलाल को कैंसर हो गया. इलाज के लिए पैसा नहीं था. तब सौतेली मां और सौतेली होती गई.
एक दिन पिता मर गए. अब सौतेली मां कई घरों में बरतन मांजने जाने लगी थी. वह अपने साथ मीना को भी ले जाने लगी थी.
मीना कब जवान हो गई, यह उसे तब पता चला जब बस्ती में आवारा लड़कों की कामुक निगाहें उस पर पड़ने लगी थीं. इस बात से सौतेली मां परेशान हो गई.
तब मीना की इच्छा होती थी कि वह घर छोड़ कर चली जाए मगर इस जालिम दुनिया में कहां जाएगी? उस की सगाई के लिए जहां भी बात चलती थी, गरीबी आड़े आ जाती थी.
तब सौतेली मां सारा गुस्सा उस पर निकाल कर कहती थी, ‘आग लगे इस गरीबी को और तेरी जवानी को. तु झ से खेलना तो सब चाहते हैं, मगर शादी कोई नहीं करना चाहता है.
‘न जाने किस मनहूस घड़ी में तेरी मां तु झे पैदा कर गई और सारा बो झ मेरे ऊपर डाल गई. अगर तु झ पर सारा पैसा लुटा दूंगी तो मेरी बेटियों का क्या होगा?’
जब मीना के पिता जिंदा थे तब उन का मुंह लगा दोस्त मांगीलाल अब गंदी नीयत से घर आने लगा था. वह सौतेली मां से घंटों बातें करता और चुपकेचुपके मीना की जवानी को देख कर लार टपकाता रहता था.
आखिरकार एक दिन जब सौतेली मां तंग हो गई, तब मांगीलाल पास आ कर बोला था, ‘भाभी, भैया के जाने के बाद तुम बहुत टूट गई हो. गरीबी के चलते चिड़चिड़ापन भी आ गया है.’
‘हां देवरजी, टूट तो गई हूं. अकेली रह गई हूं. कमाने वाली मैं अकेली, फिर भी पेट नहीं भरता है…’ अफसोस जताते हुई सौतेली मां बोली थी, ‘ऊपर से मीना की चिंता अलग सता रही है.’
‘भाभी, मैं ने एक तरकीब सोची है.’
‘तरकीब… कौन सी तरकीब देवरजी?’ सौतेली मां ने जब यह पूछा, तब आड़ में रह कर मीना सब सुन रही थी. अगली बात मांगीलाल क्या कहेगा, यह सुनने के लिए उस के कान चौकन्ने हो गए थे.
मांगीलाल बोला था, ‘देखो भाभी, मीना जब जवान हो गई है. वह तुम्हारे लिए कमाई का बहुत बड़ा साधन हो सकती है…’
‘मैं तुम्हारी बात बिलकुल नहीं सम झी देवरजी…’
‘इस में सम झना क्या है भाभी. मीना को धंधे पर बिठा दो. पैसे उगलने की मशीन है वह,’ मांगीलाल ने यह बात कही, तब उस का इशारा सौतेली मां सम झ जरूर गई, फिर भी विरोध करते हुए वह बोली थी, ‘नहीं देवरजी, मैं यह घिनौना काम नहीं करा सकती हूं. वह मेरी बेटी है.’
‘बेटी तो है भाभी, पर मगर पेट से पैदा नहीं हुई है,’ सम झाते हुए मांगीलाल बोला था, ‘है तो सौतेली. आज के जमाने में यह सब चल रहा है. अब आप सोचेंगी कि इस का इंतजाम कैसे होगा? यह सब मेरे जिम्मे छोड़ दीजिए…’
‘मगर इस से मेरी बदनामी होगी.’
‘अगर आप बदनामी से डरती रहीं तो कमाने वाली इस मशीन से हाथ धो बैठोगी. जब मीना किसी के साथ भाग जाएगी, तब बदनामी होगी सो होगी. अगर धंधा करेगी तब किसी को पता भी नहीं चलने देंगे. यह सब आप मु झ पर छोड़ दीजिए,’ उस दिन मांगीलाल ने सौतेली मां के दिमाग में यह बात पूरी तरह से बिठा दी थी. वह राजी भी हो गई थी.
आज मांगीलाल मीना को कंचनबाई के कोठे पर ले जाने वाला था. उस के इनकार करने पर सौतेली मां ने उस की चोटी पकड़ कर जबरदस्ती उस के साथ कर दिया था. वह भी साथ थी.
वे तीनों कंचनबाई के कोठे से कुछ ही दूरी पर थे कि मांगीलाल पेशाब करने के बहाने पेशाबघर में घुस गया. मीना समय का फायदा उठाया और तत्काल वहां से भाग गई.
भागने के बाद पहली गाड़ी बाबूजी की मिली. गाड़ी रोकते हुए वह बोली थी, ‘साहब, मु झे बचाइए. एक गुंडा मेरे पीछे पड़ा हुआ है…’
अविनाश ने मीना की यह आपबीती सुनी. घर में सन्नाटा छा गया.
अविनाश बोले, ‘‘क्या तुम अपनी सौतेली मां के पास अब जाना ही नहीं चाहती हो?’’
‘‘मु झे उस से नफरत है?’’ मीना इनकार करते हुए बोली.
तभी दरवाजे की घंटी बजी.
अविनाश थोड़ा घबरा कर बोले, ‘‘कौन आया होगा इतनी रात गए?’’
‘‘मैं देखता हूं,’’ कह कर किशन ने उठ कर दरवाजा खोला.
सामने पुलिस के साथ अधेड़ मर्दऔरत को खड़ा देख कर किशन को हैरानी हुई.
पुलिस वाला बोला, ‘‘हमें किशन से मिलना है.’’
‘‘मैं ही हूं किशन,’’ उस ने कहा.
‘‘इन दोनों ने रिपोर्ट लिखाई है कि आप ने इन की बेटी मीना को अगवा किया है.’’
‘‘यह सरासर झूठ है.’’
‘‘सच झूठ का फैसला तो अदालत करेगी…’’ पुलिस वाले ने कहा, ‘‘चलिए थाने में.’’
‘‘किशन ने कहा, ‘‘आइए, भीतर चल कर बात करते हैं.’’
वे तीनों जब भीतर आए तो वह औरत बोली, ‘‘यही मेरी बेटी मीना
है थानेदार साहब.’’
‘‘चलिए मिस्टर किशन, इन की रिपोर्ट पर मैं तुम्हें गिरफ्तार करता हूं.’’
‘‘मगर मैं बेकुसूर हूं थानेदार साहब. यह औरत इस की सौतली मां है…’’ किशन बोला, ‘‘मु झे भी अपनी बात कहने का मौका दें.’’
‘‘जोकुछ बात कहना है थाने में चल कर कहना,’’ थानेदार फिर गरजा.
‘‘रुकिए थानेदार साहब,’’ मीना बीच आ कर बोली, ‘‘ये मु झे अगवा कर के नहीं लाए हैं.’’
‘‘अरे, तु झे झूठ बोलते शर्म नहीं आती है…’’ मांगीलाल, जो अब तक खामोश था, बोला, ‘‘मु झ से छीन कर यह तु झे गाड़ी में बिठा कर ले गया.’’
‘‘थानेदार साहब, मैं इन के साथ नहीं जाना चाहती हूं,’’ मीना बोली.
‘‘क्यों नहीं जाना चाहती हो?’’ थानेदार ने पूछा.
‘‘यह मेरी सौतेली मां कोठे पर बिठा कर मु झ से धंधा कराना चाहती है. यह आदमी मु झे कंचनबाई के कोठे पर ले जा रहा था. मैं खुद ही इन से पीछा छुड़ा कर भागी थी.’’
थानेदार ने सौतेली मां से पूछा, ‘‘यह जोकुछ कह रही है क्या वह सच है?’’
पहले तो सौतेली मां भीतर ही भीतर डरी, फिर बोली, ‘‘नहीं थानेदार साहब, यह लड़की झूठ बोल रही है. यह इसे अगवा कर के लाया है.’’
‘‘ये बाबूजी मु झे अगवा कर के नहीं लाए हैं. मैं खुद ही अपनी जान बचा कर इन की गाड़ी में बैठी और यहां आई,’’ कह कर मीना ने एक बार फिर किशन का पक्ष लिया.
थानेदार सौतेली मां को डांटते हुए बोला, ‘‘सहीसही बता, क्या तू अपनी बेटी से धंधा कराना चाहती है? बोल, चुप क्यों है? तेरा चुप रहना इस बात का सुबूत है कि यह लड़की सही कह रही है. चलो तुम दोनों थाने में.’’
सौतेली मां घबरा उठी. कुछ बोलते नहीं बना. थानेदार ने फिर धमकी दी, तब हाथ जोड़ते हुए वह बोली, ‘‘हां थानेदार साहब, यह सही कह रही है. मैं इस से धंधा करा कर पैसे कमाना चाहती थी. इस मांगीलाल के चलते ही मैं ने यह सब किया. असली गुनाहगार यह मांगीलाल है. पकड़ लीजिए इसे.’’
‘‘मैं तुम दोनों को झूठी रिपोर्ट लिखाने के आरोप में पकड़ता हूं,’’ थानेदार ने जब गुस्से से यह बात कही, तब सारा सच उगलते हुए सौतेली मां बोली, ‘‘मैं अपनी रिपोर्ट वापस लेती हूं थानेदार साहब. मु झे माफ कर दो. मैं गुनाहगार हूं. अब इसे मैं यह धंधा करने को नहीं कहूंगी… चल बेटी.’’
‘‘जब अपने ऊपर आ गई न तो कैसी सतीसावित्री बन गई. मु झे नहीं चलना तेरे साथ…’’ मीना उसी तरह गुस्से से बोली, ‘‘तुम और तुम्हारा यह मुंहलगा देवर एकजैसे हो.’’
‘‘देख बेटी, अपनी जगह तू सही है. मगर मैं ने कहा न इस ने अपनी गलती का पछतावा कर लिया है. इस के साथ चली जा. अगर यह फिर से तुम्हें कंचनबाई के कोठे पर बिठाने की कोशिश करे, तो मेरे पास चली आना. मैं इसे जेल में बंद कर दूंगा,’’ यकीन दिलाते हुए थानेदार ने जब यह कहा, तो मीना बोली, ‘‘ठीक है थानेदार साहब, आप कहते हैं तो मैं चली जाती हूं.’’
थानेदार मांगीलाल से बोला, ‘‘चल बे थाने. एक लड़की से जबरदस्ती धंधा कराने की सोचने के जुर्म में तुम्हें गिरफ्तार करता हूं.’’
इतना कह कर थानेदार ने एक लात जमा कर मांगीलाल को हथकड़ी पहना दी और उसे ले कर बाहर निकल गया. बाद में मीना भी बाबूजी से माफी मांगते हुए अपनी सौतेली मां के साथ बाहर निकल गई.
कुछ पलों तक घर में सन्नाटा रहा, फिर किशन बोला, ‘‘बाबूजी, चलो, मीना को फिर अपनी मां मिल गई.’’
‘‘यह तुम्हारा भरम है किशन…’’ पिता अविनाश बोले, ‘‘जो चक्रव्यूह उस की मां ने तुम्हारे खिलाफ रचा था, उसी चक्रव्यूह में वह खुद ही फंस गई. मीना को गले लगाना उस की मजबूरी थी.’’
‘‘मगर थानेदार साहब ने भी तो इस में अहम रोल निभाया.’’
‘‘किशन, ये तीनों आपस में मिले हुए थे. थानेदार भी बिका हुआ था. लेकिन मीना ने जब सारा राज उगल दिया, तब उन का दांव उलटा पड़ गया और उन्होंने अपने मोहरे बदल लिए.