अमित अख्तर ने जब परचा मेरे आगे रखा, तो मैं हैरान हो उठा, ‘‘तुम एमएलए का चुनाव लड़ोगे?’’
‘‘हां, वकील बाबू, लेकिन आप को हैरानी क्यों हुई?’’
‘‘दरअसल…’’ मैं थोड़ा हिचकिचाया, ‘‘तुम तो हिस्ट्रीशीटर हो… क्या तुम्हें कोई पार्टी टिकट देगी? क्या तुम चुनाव जीत जाओगे? क्यों अपनी जिंदगीभर की कमाई मुफ्त में गंवाना चाहते हो?’’
‘‘वकील बाबू, इसी को तो राजनीति कहते हैं. अगर आप को राजनीति के हथकंडे मालूम होते, तब चुनाव हम नहीं आप लड़ रहे होते. और रही हमारे हिस्ट्रीशीटर होने की बात, तो आप को बता दें, हमारे प्रदेश के एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री हैं, उन पर 38 मुकदमे चले हैं, जबकि हम पर तो अभी 22 ही चल रहे हैं.’’
मैं ने अमित अख्तर का परचा भर कर दे दिया. फिर शाम को उस के घर भी पहुंच गया.
अमित अख्तर के घर पर उस के चेलेचपाटों की महफिल जमी थी. शहर के नामीगिरामी गुंडे वहां मौजूद थे.
मुझे देखते ही अमित अख्तर ने हाथ मिलाया और अपने बराबर में ही एक कुरसी पर बैठा लिया, फिर मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘वकील बाबू, अब आप हमारे हथकंडे देखिए.’’
फिर उस ने अपने एक चेले को आवाज दी, ‘‘मुकीम, तुम अपने साथ बब्बू, राम सिंह, राजू और अनीस को ले कर सेठ जहांगीरी के यहां चले जाओ और उस से कहो कि अमित दादा ने 50 हजार रुपए मंगवाए हैं.’’
‘‘जैसा हुक्म दादा…’’ मुकीम ने किसी पालतू कुत्ते की तरह गरदन हिलाई, ‘‘अगर सेठ रुपए देने से मना करे, तो उस का काम तमाम कर दूं?’’
‘‘नहीं, अगर वह मना करे, तो मुझे टैलीफोन करना. मैं उस से खुद बात कर लूंगा. और हां, एक बात और सुन… तुम और तुम्हारे सभी साथी आज से मुझे दादा नहीं, बल्कि नेताजी कह कर पुकारा करेंगे.’’
‘‘जैसा हुक्म, नेताजी.’’
कुछ ही पलों में 2 मोटरसाइकिलें स्टार्ट हुईं और तेज रफ्तार से दूर होती चली गईं.
करीब 15 मिनट बाद टैलीफोन की घंटी बजी, तो अमित अख्तर ने चोंगा उठा कर कान से लगाया, ‘‘मुकीम, क्या कहा सेठ ने?’’
‘‘सेठ पैसा देने से मना कर रहा है.’’
‘‘तुम सेठ को फोन दो.’’
अगले ही पल सेठ की आवाज सुनाई दी, ‘‘अमित बाबू, हम पर दया कीजिए. 2-4 हजार की बात हो तो दे देता हूं, लेकिन 50 हजार रुपए मेरे बस की बात नहीं है.’’
‘‘सेठ, हमारी बात गौर से सुनो, हम चुनाव लड़ रहे हैं. हमें तलवार पार्टी से टिकट लेना है… हम एमएलए भी बनेंगे और बाद में मंत्री भी.
‘‘अगर हम मंत्री बन गए, तो तेरे सारे लाइसेंस रद्द करवा देंगे, तुझे भिखारी बना देंगे. अगर हम कुछ न बन पाए, तो सुन… हमारे ऊपर 22 मुकदमे चल रहे हैं, इन में से 10 कत्ल के हैं, 23 वां मुकदमा तेरे कत्ल का शुरू हो जाएगा… मैं चोंगा रखूं या तू कुछ बकता है?’’
‘‘मैं 50 हजार रुपए दे रहा हूं… लेकिन तुम मंत्री बनने के बाद हमारा खयाल जरूर रखना.’’
‘‘चिंता मत कर, तू अभी से गेहूं, चावल, चीनी जमा कर ले, चुनाव के बाद मैं मुख्यमंत्री से कह कर सभी चीजों के दाम बढ़वा दूंगा.’’
‘‘क्या आप की मुख्यमंत्री से बात हो गई है?’’
‘‘हां, उन्होंने ही मुझे मंत्री बनने के नुसखे बताए हैं. उन्होंने पार्टी का टिकट देने के लिए 5 लाख का चंदा मांगा
है… यह चंदा मुझे तुम्हारे जैसे लोग ही तो देंगे.’’
चोंगा रख कर अमित अख्तर मेरी तरफ देख कर मुसकराया.
कुछ ही देर में उस के गुंडे सेठ जहांगीरी से 50 हजार रुपए ले आए.
‘‘नेताजी, इन रुपयों का क्या करना है?’’ मुकीम ने नोटों का बैग अमित अख्तर के आगे रख दिया.
‘‘सुनो, 1-1 हजार की 50 गड्डियां बनाओ. हर मंदिरमसजिद को हमारी तरफ से चंदा दे दो. जो रुपया बचे, उस की हरिजन बस्ती में शराब और गरीब मुसलमानों में बिरयानी बांट दो.’’
मुकीम और उस के साथियों के जाने के बाद मैं ने अमित अख्तर को घूरा, ‘‘तुम यह हराम की दौलत मंदिर, मसजिद को दान दे रहे हो?’’
‘‘अरे वकील बाबू, यह हराम… हलाल क्या होता है… रुपया तो रुपया होता है… इस पर हराम या हलाल कुछ नहीं लिखा होता. फिर मंदिर, मसजिद वालों को क्या मालूम, यह रुपया मैं ने कहां से और कैसे कमाया है.’’
‘‘अच्छा, एक बात बताओ, कुछ देर पहले तुम ने टैलीफोन पर मुख्यमंत्री को 5 लाख का चंदा देने की बात कही थी… यह 5 लाख तुम कहां से लाओगे?’’
अमित अख्तर ने जोरदार कहकहा लगाया, ‘‘बताए देता हूं, लेकिन इस बात का खयाल रखना, चुनाव से पहले यह यह बात किसी को बताना नहीं… अगर बताई तो… खैर सुनो, कुछ जगहों पर लूटखसोट होगी और 2-4 अपहरण की घटनाएं…’’
‘‘अगर पकड़े गए, तब क्या होगा?’’
‘‘यह काम मैं थोड़े ही करूंगा, चेले किस काम आएंगे.’’
‘‘अच्छा, एक बात बताओ, तुम अख्तर से अमित अख्तर क्यों बन गए?’’
‘‘यह वोटों की राजनीति है. मैं ने हिंदू व मुसलिम वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए अमित अख्तर नाम रखा है. मुसलमानों से मिलने जाऊंगा, तो सिर पर टोपी लगा लूंगा और हिंदुओं से मिलूंगा, तो माथे पर तिलक लगा लूंगा.’’
‘‘अगर दोनों धर्म वालों से एकसाथ मिले, तब…’’
‘‘तब मैं सिर पर गांधी टोपी लगा कर आदर्शवादी बन जाऊंगा,’’ कहते हुए उस ने जोरदार ठहाका लगाया.
फिर वैसा ही हुआ, जैसा अमित अख्तर ने कहा था. तलवार पार्टी ने अपने पुराने एमएलए को टिकट न दे कर अमित अख्तर को टिकट दे दिया. अमित अख्तर के गुंडों ने कहीं डराधमका कर, कहीं मतपेटियां लूट कर, तो कहीं दौलत लुटा कर चुनाव जीत लिया.
इस के बाद अमित अख्तर ने तलवार पार्टी के अध्यक्ष को सोने की तलवार भेंट की. इस के बदले में पार्टी ने उसे उपमंत्री बना दिया.
मंत्री बनने के बाद अमित अख्तर का नगर में शानदार स्वागत किया गया. जब वह मंच पर भाषण दे रहा था, तब लोगों की भीड़ में खड़े हुए मैं ने कहा, ‘‘अरे, यह तो हिस्ट्रीशीटर अमित अख्तर है, मंत्री कैसे बन गया?’’
लोगों ने मुझे घूर कर देखा. एक आदमी बोला, ‘‘लगता है, तुम पुलिस के आदमी हो… शायद तुम्हें मालूम
नहीं, नेताजी के ऊपर पुलिस द्वारा झूठे मुकदमे चलाए गए थे. नेताजी तो गरीबों के हमदर्द हैं, दयालु हैं और महान देशभक्त हैं.’’
तभी वहां मौजूद भीड़ ‘नेताजी जिंदाबाद’ के नारे लगाने लगी.
मैं हैरान था और साथ ही मुझे गुस्सा भी आ रहा था कि हमारे देश की जनता कितनी जल्दी मुखौटों के पीछे छिपे चेहरों को भूल जाती है.