प्लेटफार्म पर गाड़ी लगते ही कामना अपने पिता के साथ डब्बे की ओर दौड़ पड़ी. गरमी से उस के होंठ सूख रहे थे. सूती साड़ी पसीने में भीग कर शरीर से चिपक गई थी, पर उसे होश कहां था. यह गाड़ी छूट गई, तो उस का मकसद पूरा नहीं हो पाएगा. किसी भी कीमत पर इस रेल में जगह बनानी ही होगी. बापबेटी दोनों अपनी पूरी ताकत से रेल में चढ़ने की नाकाम कोशिश करने लगे.

उसी डब्बे में एक सज्जन भी चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. इसी बीच पैर फिसलने के चलते वे औंधे मुंह प्लेटफार्म पर लुढ़क गए. बापबेटी चढ़ना भूल कर उस गिरे हुए मुसाफिर की मदद को लपके.

दूसरे मुसाफिरों का चढ़नाउतरना लगातार जारी था. किसी ने भी मुड़ कर बेहोश पड़े हुए उन सज्जन को नहीं देखा. न किसी के पास समय था और न इनसानियत. कामना ने आव देखा न ताव और झुक कर उन बुजुर्ग को उठाने लगी.

‘‘पानी… पानी…’’ वे बुजुर्ग बुदबुदाए.

अगर कामना ने उन सज्जन के मुंह पर पानी का छींटा मार कर उन्हें भीड़ से उठा कर सीमेंट की बैंच पर लिटा नहीं दिया होता, तो वे मुसाफिरों के पैरों तले कुचले जाते.

ठंडे पानी के छींटों से वे सज्जन कुनमुनाए और ऊपरी जेब की ओर इशारा किया. कामना ने  झट से जेब में हाथ डाला. दवा की शीशी थी. चंद बूंद होंठों पर पड़ते ही वे बुजुर्ग उठ कर बैठने की कोशिश करने लगे.

इधर गार्ड ने हरी  झंडी दिखाई, सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी. बापबेटी हड़बड़ा गए. गाड़ी पकड़ें या अनजान इनसान की मदद करें. मंजिल तक उन का पहुंचना बहुत जरूरी था वे कुछ फैसला लेने ही वाले थे कि उन बुजुर्ग ने कहा, ‘‘बेटी और एक खुराक दवा देना.’’

कामना उन्हें दवा खिलाने लगी. ट्रेन जा चुकी थी. बचे हुए तमाशबीन लोग उन के इर्दगिर्द जमा होने लगे थे.

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘कैसे गिर पड़े?’’

‘‘आप लोगों के साथ हैं क्या?’’

तरहतरह के सवाल बापबेटी के कानों से टकराने लगे. कुछ शोहदे नजदीक आने का प्रपंच करने लगे. गाड़ी खुलने के साथ ही बापबेटी के अरमानों का महल ढह गया. वे ठंडी सांस ले कर रह गए. मंजिल हाथ आ कर एक बार फिर फिसल गई थी.

यह अफसोस करने का समय नहीं था. वे दोनों उन सज्जन की तीमारदारी में लग गए. अनजान शहर में किसी तरह पूछताछ करते हुए एक डाक्टर के पास पहुंचे. डाक्टर भले इनसान थे. मुआयना कर के वे बोल उठे, ‘‘दिल का दौरा था. यह तो अच्छा हुआ कि इन्होंने समय पर दवा खा ली, वरना जान भी जा सकती थी.’’

वे बुजुर्ग सज्जन कामना और उस के पिता के प्रति कृतज्ञ हो उठे. डाक्टर ने उन्हें कुछ दवाएं दीं और खतरे से बाहर बताया. कुछ जरूरी हिदायतों के साथ उन्हें घर तक जाने की इजाजत दे दी.

दिल्ली जाने वाली दूसरी ट्रेन रात के 9 बजे थी. कामना और उस के पापा वापस जाने की सोचने लगे.

‘‘क्यों…? आप वापस किसलिए जा रहे हैं?’’ उन सज्जन ने पूछा.

‘‘अब दिल्ली जाने का कोई मतलब नहीं, क्योंकि रात वाली गाड़ी कल शाम को पहुंचेगी और हमारा काम वहां दिन में 10 बजे तक ही था,’’ पिता की आवाज में उदासी थी.

‘‘ऐसा कौन सा काम था, अगर एतराज न हो तो मु झे बताएं,’’ उन सज्जन की उत्सुकता बढ़ गई.

‘‘एतराज कैसा, वहां एक फर्म में बिटिया का इंटरव्यू था. उम्मीद थी कि नौकरी मिल जाएगी, पर लगता है कि अब ऐसा नहीं हो पाएगा. खैर, आप की जान बच गई, यही इस सफर की उपलब्धि रही.’’

कामना उन बुजुर्ग सज्जन की सेवा में लगी थी, अब वापसी के लिए तैयार हो गई. बुजुर्ग सज्जन ने पहली बार बापबेटी को गौर से देखा.

‘‘कौन सी फर्म?’’

कामना से जानकारी पा कर वे सज्जन चिंता में पड़ गए. एक बेरोजगार के हाथ से नौकरी जाने की वजह अपनेआप को सम झ कर उन्हें आत्मग्लानि होने लगी.

‘‘सुनिए, आप दोनों मेरे साथ रात की गाड़ी से दिल्ली चलिए. वहां फर्म में अपनी समस्या बताएंगे तो शायद वे लोग आप को एक मौका दे दें,’’ उन बुजुर्ग ने कहा.

‘‘वहां कौन हमारी बात सुनेगा. इंटरव्यू तो सुबह 10 बजे ही है,’’ कामना ने कहा.

‘‘आप मेरी बात तो मानिए और दिल्ली चलिए. काम नहीं होगा तो लौट आइएगा. क्यों बिटिया, मैं ठीक कह रहा हूं न? नहीं तो मैं अपनेआप को माफ नहीं कर पाऊंगा,’’ अनायास वातावरण गंभीर हो उठा.

‘‘बाबा, चलिए एक बार हो आते हैं,’’ कामना ने अपने पिता से कहा.

‘‘पर, दिल्ली में आप लोग कहां ठहरेंगे?’’ उन बुजुर्ग ने पूछा.

‘‘दिल्ली में हमारा कोई परिचित नहीं है. उस फर्म में मिल कर स्टेशन आ जाएंगे और वापसी के लिए जो भी गाड़ी मिलेगी, पकड़ लेंगे,’’ कामना ने कहा.

‘‘कहीं रुकना पड़ा तो,’’ उन बुजुर्ग ने कहा, तो कामना के पिता का सब्र जवाब दे गया, ‘‘फर्म वाले हमें क्यों रोकेंगे? देर से जाने पर वैसे ही भगा देंगे.’’

बहरहाल, वे तीनों दिल्ली आ पहुंचे.

‘‘कृपया आप लोग मेरी गाड़ी से चलिए. मु झ पर भरोसा कीजिए,’’ उन बुजुर्ग ने हाथ जोड़ कर कहा. इस प्रस्ताव पर बापबेटी चौंक उठे.

‘‘नहींनहीं, हम आटोरिकशा से चले जाएंगे. आप कष्ट न करें,’’ कामना ने कहा.

‘‘इस में कष्ट कैसा? आप ऐसा न सम झें कि मैं आप के एहसान का बदला चुका रहा हूं. मेरी गाड़ी आई है और मैं दिल्ली का रहने वाला हूं, इसलिए आप की मुश्किल हल करने की छोटी सी कोशिश है.’’

उन बुजुर्ग की बातों ने बापबेटी को ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया. वे इनकार नहीं कर सके. नई चमचमाती विदेशी कार, वरदीधारी ड्राइवर को देख कर वे दोनों हैरान थे.

ज्यादा सोचनेसम झने का वक्त नहीं था. एक फाइवस्टार होटल के सामने कार रुकी. ड्राइवर को कोई जरूरी निर्देश दे कर वे बुजुर्ग कामना के पिता से बोले, ‘‘आप के लिए कमरा बुक है. जब तक चाहें रुकें. मेरा ड्राइवर आ कर उस फर्म तक ले जाएगा. गाड़ी आप के पास ही रहेगी. कामना जैसी आप की बेटी, वैसी ही मेरी.’’

कामना भावुक हो कर उन बुजुर्ग के पैरों पर  झुक गई, ‘‘चाचाजी, होटल का खर्चा हम देंगे. आप ने हमारे बारे में सबकुछ जान लिया है, पर अपने बारे में कुछ नहीं बताया.’’

उन बुजुर्ग सज्जन ने कहा, ‘‘बेटी, बातों में समय मत गंवाओ.’’

थोड़ी देर में गाड़ी फर्राटे से लहराती आगे बढ़ गई. फर्म पहुंच कर धड़कते दिल से वे दोनों सीढि़यां चढ़ने लगे.

‘‘कामना सिंह…’’ उस के पहुंचते ही कटे बाल, मिनी स्कर्ट वाली एक लड़की ने पूछा.

‘‘जी हां,’’ कामना ने कहा.

‘‘अंदर आइए, आप का इंतजार हो रहा है,’’ लड़की ने मधुर आवाज में कहा.

‘‘इंतजार और मेरा?’’ कामना बुदबुदाई.

कामना जब इंटरव्यू दे कर निकली तो उस के पैर जमीन पर नहीं थे. हाथ में पकड़ा हुआ नियुक्तिपत्र हवा में फड़फड़ा रहा था.

‘‘पिताजी, मु झे यह नौकरी मिल गई.’’

‘‘सच…’’ पिता को यकीन ही नहीं हुआ.

‘‘हां पिताजी, अच्छी सैलरी, फ्लैट अपने गांव के निकट वाले शहर में पोस्टिंग.’’

कालेसफेद मोतियों की तरह दिनरात बीतने लगे. आज कामना को नौकरी में आए

3 साल बीत गए. उस की शादी के रिश्ते आने लगे.

आज कामना की छुट्टी थी. वह घरेलू काम में जुटी हुई थी. इतने में दरवाजे की घंटी बजी. आया ने किवाड़ खोल कर उसे आवाज दी. वह अपने आंचल से गीले हाथ पोंछ कर पीठ पर लहराते खुले बालों को समेटती हुई बैठक में पहुंची.

‘‘अरे, आप…’’ कामना को अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हो रहा था.

‘‘हां, मैं. कैसी हो बेटी?’’ वे वही बुजुर्ग थे, जिन की कामना ने जान बचाई थी.

भीतर आने के बाद वे बुजुर्ग देर तक उस के पिता से बातें करते रहे.

बात आईगई हो गई. एक जगह कामना के ब्याह की बात पक्की हो गई. ब्याह का न्योता उन बुजुर्ग सज्जन को देने की हार्दिक इच्छा थी, पर उन का अतापता कामना के पास नहीं था.

बरात आ गई. शहनाई की गूंज तेज हो गई. बैंडबाजे की धुन और फिल्मी गीतों पर लड़केलड़कियां डांस करने लगे. दुलहन बनी कामना का दिल तेजी से धड़कने लगा. वरमाला के लिए सहेलियां उसे मंडप की ओर ले चलीं. जयमाल के समय उस की निगाहें बरातियों की ओर उठी गईं. अगली लाइन में वही बुजुर्ग छींटदार साफा बांधे उस की ओर देख कर मंदमंद मुसकरा रहे थे.

कामना चौंक उठी. उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

‘‘यही मेरे दादाजी हैं. इन की ही फर्म में नौकरी करती हैं आप. और इन्होंने ही मेरे लिए आप को पसंद किया है,’’ दूल्हा शरारत से फुसफुसाया.

‘‘मु झे पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘दादाजी से पूछ लेना.’’

कामना ने हड़बड़ा कर अपने पिता की ओर देखा. उन की आंखों में मौन स्वीकृति थी. तो यह बात है. सभी ने मिल कर यह खूबसूरत नाटक खेला है उस के साथ. एक दिलकश साजिश की शिकार हुई है वह.

शादी के बाद कामना एक दिन दादाजी से पूछ ही बैठी, ‘‘आप ने हमें पहले क्यों नहीं बताया कि वह फर्म आप की है?’’

‘‘बेटी, मैं तुम बापबेटी के अच्छे बरताव से काफी प्रभावित हुआ था. अगर तुम दोनों ने भी मु झे दूसरे मुसाफिरों की तरह तड़पने के लिए प्लेटफार्म पर छोड़ दिया होता, तो निश्चित ही मेरी मौत हो गई होती. मैं तुम दोनों को अच्छी तरह परखना चाहता था, इसीलिए मैं ने 3 साल लिए.

‘‘मेरी जायदाद का एकलौता वारिस मेरा पोता भी तुम्हें जांचपरख ले. कोई जल्दबाजी नहीं. अगर संतुष्ट हो जाए तो तुम्हें अपनी जीवनसंगिनी बना ले. तुम मेरी कसौटी पर खरी उतरी और पोते के सपनों को साकार करने वाली भी.’’

कामना पिछले दिनों की कड़ियों का सूत्र एकदूसरे से जोड़ने की फुजूल की कोशिश करती हुई मन ही मन खुश हो उठी. दादाजी की कसौटी पर खरा उतरने का संतोष उस के चेहरे पर साफ झलक रहा था.

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