पोस्ट मास्टर ने डाकिए रामजी पांडे को बुलाया और कहा, ‘‘आज से आप को इलाका नंबर 25 में चिट्ठियां बांटनी होंगी. उस इलाके का डाकिया जयदीप छुट्टी पर गया है.’’
इलाका नंबर 25 का नाम सुनते ही डाकिए रामजी पांडे को झटका लगा, क्योंकि उस पूरे इलाके में कोठेवालियां रहती हैं.
रामजी पांडे बेमन से अपने इलाके में जाने के लिए चिट्ठियों को थैले में रखने लगा. इस के बाद वह उस इलाके की तरफ चल पड़ा.
वह महल्ला कच्चेपक्के मकानों का था. पतली और संकरी गलियां थीं. नुक्कड़ पर पान की दुकान थी, जहां रसिक लोग पान खाते नजर आते थे.
रामजी पांडे गली में एक मकान के पास रुका. मकान पर नामपट्टी लगी थी, ‘रंजूबाई’.
रामजी पांडे ने पुकारा, ‘‘रंजूबाई, आप की चिट्ठी आई है.’’
थोड़ी देर बाद एक खूबसूरत तवायफ ने दरवाजा खोला, ‘‘अरे, डाक बाबू… मेरी चिट्ठी है? कहां से आई है?’’
‘‘शेरपुर से,’’ रामजी पांडे ने कहा.
‘‘अंदर आ जाओ और पढ़ कर सुना दो,’’ रंजूबाई ने कहा.
रामजी पांडे ने भीतर जा कर उस तवायफ को चिट्ठी पढ़ कर सुना दी.
‘‘एक चिट्ठी थी… इसे आप अपने साथ ले जाएं,’’ रंजूबाई ने कहा.
रामजी पांडे ने वह चिट्ठी डाकघर में छोड़ने के लिए ले ली.
यह काम अकसर डाकियों को करना होता था. वजह, तवायफें कोठे से बाहर जो नहीं निकलती थीं.
उस तवायफ के कमरे में फर्श पर दरी बिछी थी. कोने में हारमोनियम और तबला रखा था. दीवार पर 2-3 जोड़ी घुंघरुओं वाली पाजेब टंगी थीं. दरवाजे और खिड़कियों पर रेशमी परदे हवा के ?ोंके से ?ाल रहे थे.
तभी रंजूबाई ने शरबत का गिलास रामजी पांडे के हाथों में थमा दिया.
रंजूबाई की खूबसूरती ने रामजी पांडे को एकटक निहारने पर मजबूर कर दिया.
‘‘ये 2 हजार रुपए इस पते पर भेज दीजिएगा,’’ रंजूबाई ने कहा.
‘‘जी, मैं भेज दूंगा,’’ कह कर रामजी पांडे वहां से चला गया.
धीरेधीरे रामजी पांडे रंजूबाई के हुस्न का मुरीद बन गया.
‘‘रंजूबाई, यह मनीऔर्डर की रसीद रख लो,’’ रामजी पांडे ने कहा.
‘‘डाक बाबू, आज तो तुम बड़े छैलछबीले लग रहे हो,’’ रंजूबाई बोली.
‘‘तुम्हारे हुस्न के आगे मैं कुछ भी नहीं,’’ रामजी पांडे ने प्यार जताया.
‘‘जाओ डाक बाबू, यह भी कोई बात हुई,’’ रंजूबाई ने इठला कर कहा.
‘‘बिलकुल सच, मेरे दिल में ?ांक कर तो देख लो,’’ रामजी पांडे ने कहा.
यह सुन कर रंजूबाई के होंठों पर प्यार भरी मुसकान खिल उठी.
‘‘डाक बाबू, कल लिफाफा लेते आना. एक चिट्ठी भेजनी है.’’
‘‘ठीक है,’’ कह कर रामजी पांडे कोठे से बाहर निकल गया.
दूसरे दिन तेज हवाएं चल रही थीं. दरवाजे पर रामजी पांडे ने आवाज लगाई, ‘‘रंजूबाई, यह लो लिफाफा.’’
‘‘डाक बाबू अंदर आ जाओ. बाहर तेज हवाएं चल रही हैं,’’ रंजूबाई बोली.
रामजी पांडे मौसम का लुत्फ उठाता हुआ बोला, ‘‘रंजूबाई, कुदरत ने तुम्हें बेपनाह हुस्न से नवाजा है.’’
‘‘यह हुस्न तो आप की चाहत का दीवाना है,’’ रंजूबाई ने कहा.
इतना सुन कर रामजी पांडे रंजूबाई का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मेरा दिल तुम्हें पाने को बेकरार है.’’
इतना कह कर उस ने रंजूबाई के नाजुक होंठों को चूम लिया. वह भी रामजी पांडे की बांहों में सिमट गई.
इस के बाद तो जैसे रंजूबाई की जिंदगी में बहार आ गई थी, क्योंकि सालों से उसे जिस हमसफर की तलाश थी, वह उसे मिल गया था.
रामजी पांडे एक ब्राह्मण का बेटा था और रंजूबाई एक तवायफ थी. लेकिन उस ने दकियानूसी समाज को धता बता कर मुहब्बत की खिलाफत में उठने वाली सारी ऊंचीऊंची दीवारें गिरा दी थीं.
प्यार का सिलसिला चल निकला. अब रामजी पांडे को हरदम रंजूबाई का खयाल रहने लगा. वह डाकघर का काम खत्म कर के उस के कोठे पर जाना नहीं भूलता था.
‘‘रंजूबाई, आज बहुत खूबसूरत लग रही हो. मु?ो सरेआम लूटने का इरादा है क्या?’’ रामजी पांडे ने उसे बांहों में भरते हुए कहा.
वह उस की बांहों में कसमसाती हुई बोली, ‘‘रामजी, मु?ो जीने का मकसद मिल गया है. मेरे जिस्म में प्यार की प्यास भड़क उठी है.’’
इस के बाद दोनों जवानी की हद पार करते हुए दो जिस्म एक जान हो गए थे.
एक दिन डाकघर का काम खत्म करने के बाद रामजी पांडे शाम को रंजूबाई के कोठे पर आया. रंजूबाई ने आज गजब का मेकअप किया था. जब उस ने देखा, तो देखता ही रह गया.
‘‘रंजूबाई, आज तो तुम्हारे साथ कोठे से बाहर घूमने का इरादा है,’’ रामजी पांडे ने अपने मन की बात कह दी.
‘‘चलो, चलते हैं कहीं,’’ रंजूबाई ने कहा.
वे दोनों बातें करते हुए बाजार में घूम रहे थे कि अचानक रंजूबाई का हाथ एक शख्स ने पकड़ लिया.
रंजूबाई चौंक उठी, ‘‘अरे, यह तो राजू है. इस शहर का नामी बदमाश.’’
‘‘कोठे पर तो बहुत नाच ली. अब चल मेरे साथ. आज की रात मैं तेरे संग रंगीन कर लूं,’’ राजू ने बेशर्मी से कहा.
तभी रामजी पांडे ने राजू की बांह पकड़ कर एक जोर का ?ाटका दिया.
‘‘रास्ता चलते मेरी बीवी को छेड़ता है,’’ रामजी पांडे ने कहा.
रंजूबाई का हाथ ?ाटके से छूट गया. राजू गुर्राया, ‘‘अच्छा, एक तवायफ तेरी बीवी हो गई. खबरदार, आज के बाद कभी इस के साथ दिखा, तो मैं तु?ो जान से मार दूंगा.’’
राजू धमकी दे कर चला गया. रामजी पांडे खून का घूंट पी कर रह गया. रंजूबाई बेहद डर गई.
‘‘रामजी, यह गुंडा इस शहर में हम लोगों को जीने नहीं देगा. मु?ो किसी दूसरे शहर में ले चलो,’’ रंजूबाई ने घबराई हुई आवाज में कहा.
दोनों एकदूसरे का हाथ थामे एक मंदिर में आ गए थे. मंदिर में रामजी पांडे ने रंजूबाई की मांग एक चुटकी सिंदूर से भर दी थी. उस ने एक ही पल में जमाने की सारी दीवारें गिरा दी थीं.
कुछ ही दिनों में रामजी पांडे ने अपना तबादला दूसरे शहर में करा लिया और वह रंजूबाई को वहां ले गया.