नेताओं के साथ यह मजेदार बात है कि वे जब चाहें जहां चाहें जितना मरजी झूठ बोल सकते हैं. गृह मंत्री के रूप में असलियत में शासन चलाने वाले अमित शाह ने दावा किया है कि मोदी राज में 60 करोड़ गरीबों को उबारा गया और उन्हें अच्छी जिंदगी दी है. अब यह 60 करोड़ की गिनती आई कहां से, इस का जवाब देना न अमित शाह का काम है और न ही कोई जिरह करता है.

इस नंबर पर शक इसलिए होता है क्योंकि आज भी मोदी सरकार 84 करोड़ लोगों को भुखमरी से बचाने के लिए मुफ्त खाना दे रही है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में 5 किलो अनाज 80 से 85 करोड़ लोगों को हर महीने मुफ्त दिया जा रहा है.

अगर 80-85 करोड़ भुखमरी से बचाए जा रहे हैं और 60 करोड़ को 2014 के बाद ही गरीबी से उबारा गया है तो क्या इस का मतलब यह है कि 2014 से पहले देश के 130 करोड़ लोग भूखे थे और मर रहे थे? 80-85 करोड़ की गिनती भी असल में इतनी ही झूठी है जितना यह बयान कि 60 करोड़ को मोदी सरकार ने गरीबी से उबारा है.

असल में हर भारतीय अपना खयाल तो रखना जानता ही है, साथ ही वह मंदिरों को दान देता है, सेठों का खजाना भरता है और हमेशा से राजाओं और चुनी सरकार को मोटा टैक्स देता आया है. सात समंदर पार कर के अंगरेज या उस से पहले ग्रीस, पर्शिया, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, मंगोलिया से लुटेरे आते रहते थे तो इसीलिए न कि यहां का आम आदमी इतना अनाज और चीजें तैयार कर लेता था कि लूटे जाने के बाद भी जिंदा रहता था. इस देश का असली इतिहास लुटेरों का है जो आज भी लागू है. आज भी सेठ, सरकार, शासक, नेता, मंदिर, पुजारी मिल कर उसे लूट रहे हैं और फिर भी वह अपनी मेहनत से अपना पेट भी भरता है, अपने पैरों पर खड़ा हो कर सीना तान कर जीना जानता है.

उस की दिक्कत है कि उस के हाथ में ऐसा कोई गुण नहीं है कि वह अपने को लुटने से बचाए. वह पैदा करता है, बनाता है पर उस की पैदा की गई या बनाई चीज उस से छीन ली जाती है और उसी छीनी गई चीज में से कुछ उसे गरीब मान कर मेहरबान बन कर दे दी जाती है.

पुराणों में राजमहलों का बड़ाबड़ा जिक्र है पर वे राजमहल किसान के लिए, हथियार बनाने वालों के लिए, रथ बनाने वालों के लिए, सड़कें बनाने वालों के लिए, सोनाचांदी, रत्न निकालने वालों के लिए, गायों को पालने वालों के लिए कब कहां क्या करते थे, यह कहीं जिक्र नहीं. भाजपा सरकार अपने को लक्ष्मी सा दिखा कर छप्पड़ फाड़ कर धन की वर्षा करने की बात करती है पर यह नहीं बताती कि यह धन आया कहां से, जैसे पुराण नहीं बताते कि लक्ष्मी या विष्णु या राजा राम के पास पैसा आया कहां से?

आम जनता इस बात से खुश रहती है कि हमारी गरीबी या तो वोट देने से कम हो जाएगी या पूजा करने से. पहले वोट मांगने वाला और मंदिर चलाने वाला अलग होते थे, अब एक हो गए हैं. मोदी और शाह केवल सरकार के मुखिया ही नहीं हैं, हिंदू मंदिरों के भी हैं. अब तो कह सकते हैं कि वे 140 करोड़ लोगों के भाग्य विधाता हैं और उस पर भगवानों की भी मुहर है और वोटरों की भी. अब जो चाहे कह दो.

 

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