शेर को पता होता है कि वह जंगल का राजा है, इसलिए वह किसी से नहीं घबराता है. उसे अपनी ताकत पर घमंड होता है कि वह अपनी एक दहाड़ से सारे जंगल को कंपकंपा सकता है. वह किसी की भी गरदन मरोड़ सकता है.

जटपुर का ग्राम प्रधान मखना भी एक ऐसी ही शख्सियत थी. कितने ही सालों से गांव में उस का दबदबा था. जब भी गांव में ग्राम प्रधान का चुनाव होता था, उस की बैठक ही चुनाव का केंद्र बन जाती थी.

ग्राम प्रधान की सीट पुरुष की होती थी, तो वह खुद प्रधान बनता था और अगर सीट महिला की होती थी, तो उस की पत्नी सुलेखा ग्राम प्रधान बनती थी. आरक्षित सीट पर भी वही प्रधान बनता था, जिसे मखना चाहता था.

गांव में मखना के परिवार के दबदबे की यह परंपरा न जाने कब से चली आ रही थी और टूटने का नाम नहीं ले रही थी.

इस बार ग्राम प्रधान की सीट महिला सीट थी. सब को पता था कि मखना की घरवाली सुलेखा ही ग्राम प्रधान बनेगी. मखना इस ओर से निश्चिंत था. उस ने गांव में विरोधी पार्टियों से बात कर के यह पक्का कर लिया था कि उन में से कोई भी ग्राम प्रधान के लिए दावेदारी नहीं करने जा रहा था. उस के सामने उस के विरोधी हथियार डाल चुके थे और इस तरह सुलेखा प्रधान बनने जा रही थी.

इस बात से गांव के कुछ लोग बड़े परेशान हुए, सुक्खे और राजवीर तो कुछ ज्यादा ही. वे दोनों हमेशा चुनाव की जोड़तोड़ बैठाया करते थे. चुनाव खर्च के नाम पर उम्मीदवार से पैसे भी ऐंठा करते थे और कम से कम 2 महीने तक उम्मीदवार के यहां दावतपानी भी उड़ाया करते थे.

उन्होंने सोचा कि अगर सुलेखा बिना चुनाव के प्रधान बन गई तो चुनाव का मौसम सूखा ही रह जाएगा. न हाथ में पैसा आएगा और न ही दारू पीने को मिलेगी. न दावत होगी और न कोई उन की बात पूछेगा, इसलिए उन की नजर में चुनाव तो जरूर होना चाहिए. गांव में गुटबंदी कराई जाए. गांव में लट्ठ न भी चलें तो विरोधी गुटों में आपसी खींचतान और गालीगलौज तो हो, तभी तो वे पंच बनेंगे.

सुक्खे और राजवीर जानते थे कि मखना के विरोधी तो पस्त हो ही चुके हैं, इसलिए चुनाव में खड़ा करने के लिए कोई नया प्यादा चाहिए. उन की निगाह जगप्रसाद के परिवार पर थी.

जगप्रसाद की बड़ी बेटी सुंदरी अपने बलात्कारियों को खाक में मिलाने के बाद पूरे इलाके में हीरोइन बन गई थी, लेकिन वह थी कहां, इस का कोई अतापता नहीं था. लेकिन उस के कारनामों ने जगप्रसाद का नाम इलाके में चमका दिया था.

इंतकाम तो अपने बलात्कारी ईंटभट्ठे के ठेकेदार रामपाल से जगप्रसाद की मंझली बेटी मुंदरी ने भी लिया था, जब उस ने रामपाल के पिछवाड़े पर लात मार कर उसे खाई में धकेल कर मौत की नींद सुला दिया था. लेकिन इस घटना की किसी को आज तक कानोंकान खबर न थी. अब वह अपनी ससुराल में अच्छे से शादीशुदा जिंदगी गुजार रही थी.

जगप्रसाद की तीसरी बेटी कुंदरी 18 सावन देख चुकी थी. 10वीं जमात पास करने के बाद उस ने 12वीं जमात का प्राइवेट फार्म भरा था. वह पढ़ाई के साथसाथ घर के कामों में मां रामवती का हाथ बंटाती थी, तो खेतों में पिता जगप्रसाद के कंधे से कंधा मिला कर काम करती थी.

सब जानते थे कि जगप्रसाद और मखना के परिवार की आपस में कभी नहीं बनती थी. मखना का परिवार गांव का सत्ताधारी ‘राज परिवार’ था, तो जगप्रसाद का परिवार ‘शोषित दबाकुचला परिवार’.

मखना के साथी और सुंदरी के बलात्कारी टिपलू को जगप्रसाद की बड़ी बेटी सुंदरी ने गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया था. तब से तो मखना और जगप्रसाद के परिवार नदी के दो पाट हो गए थे.

एक ही गांव में रहते हुए भी उन्हें एकदूसरे से कोई मतलब नहीं था, इसलिए सुक्खे और राजवीर को लगा कि मखना की घरवाली सुलेखा के खिलाफ अगर कोई चुनावी परचा भर सकता है, तो वह है जगप्रसाद की पत्नी रामवती.

पूरी योजना बना कर सुक्खे और राजवीर जगप्रसाद की बैठक पर पहुंच गए. मौका ताड़ कर सुक्खे ने कहा, ‘‘भाई जगप्रसाद, इस बार तो ऐसा लगता है कि तुम्हारा विरोधी मखना अपनी जनानी सुलेखा को बिना चुनाव किए ही प्रधान बनवा लेगा. क्यों?’’

जगप्रसाद उन दोनों के आने के मकसद से अनजान था. उस ने कहा, ‘‘भाई सुक्खे, हमारा कैसा विरोधी? हमारा उस का क्या मेल? मखना ठहरा पैसे वाला, हम निहायत गरीब, वह ठहरा बाहुबली, हम कमजोर, दबेकुचले. कौन उस का मुकाबला कर सकता है पूरे गांव में?’’

‘‘जगप्रसाद, यह तो कोई बात न हुई. मुकाबले के लिए तो बस हिम्मत ही काफी होती है. छोटी सी चींटी हाथी को मार देती है,’’ राजवीर ने जगप्रसाद को उकसाते हुए कहा.

‘‘ऐसा तो है राजवीर, पर और भी बहुतकुछ देखना होता है चुनावी जंग में. चुनाव यों ही नहीं लड़े जाते, बहुत सारे पैसे और लोगों के समर्थन की भी जरूरत होती है,’’ जगप्रसाद ने प्रैक्टिकल बात कही.

‘‘तो हम किस दिन के लिए हैं जगप्रसाद? कहो तो पूरा गांव इकट्ठा कर दें तुम्हारी चौखट पर, मखना भी देखता रह जाएगा,’’ सुक्खे ने जगप्रसाद को और चढ़ाते हुए कहा.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसी बातें कर रहे हो, जैसे चुनाव के दंगल में मैं खुद उतरने वाला हूं,’’ जगप्रसाद ने बड़ी हैरानी से कहा.

‘‘क्यों नहीं जगप्रसाद, तुम इस बार रामवती भाभी को चुनाव के मैदान में उतार दो, फिर देखना हम ऐसीऐसी शतरंजी चालें चलेंगे कि पूरा गांव तुम्हारे साथ न हो तो कहना? हम अपने बच्चों की कसम खा कर कहते हैं कि आखिर समय तक तुम्हारा साथ निभाएंगे और रामवती भाभी को प्रधान बनवा कर ही मानेंगे,’’ राजवीर ने अपने बच्चों की कसम खाते हुए पूरे यकीन के साथ कहा.

‘‘न भैया, मुझे इस झमेले में नहीं पड़ना. मुझे चैन की जिंदगी जी लेने दो. मैं किसकिस के हाथ जोड़ते और पैर पकड़ते घूमूंगा?’’ जगप्रसाद ने उन दोनों के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

सुक्खे और राजवीर को लगा कि जगप्रसाद ऐसे नहीं मानेगा. वे भी पूरे तिकड़मी थे. उन्होंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं.

सुक्खे ने सब्जबाग का पासा फेंकते हुए कहा, ‘‘देखो जगप्रसाद, अब तो ग्राम प्रधान को हर महीने सरकार की ओर से खर्चेपानी के लिए एक तय रकम मिलती है. इस के अलावा गांव में विकास के काम करवाने पर ठेकेदार 20 फीसदी कमीशन तो बिना कहे देता है.

‘‘तुम बस ‘हां’ करो जगप्रसाद, फिर देखना, कल से ही रामवती भाभी के पक्ष में जोरशोर से प्रचार शुरू.’’

इस के बाद भी जगप्रसाद रामवती को चुनाव में खड़ा करने के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन सुक्खे और राजवीर भी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे. वे वहां से तो उठ कर चले गए, लेकिन अपना अगला दांव रास्ते में ही खेल गए.

अगले दिन जैसे ही जगप्रसाद घर से निकला, सब उसे ‘प्रधानजी’ कह कर नमस्ते करने लगे, क्योंकि सुक्खे और राजवीर ने गांव में रातोंरात यह अफवाह फैला दी थी कि जगप्रसाद अपनी पत्नी रामवती को सुलेखा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतार रहा है. हर कोई अब जगप्रसाद का रास्ता रोकता और कहता, ‘‘जगप्रसाद, यह तुम ने सही फैसला लिया, हम तुम्हारे साथ हैं.’’

जगप्रसाद उन को बहुत समझाता, लेकिन अब कोई उस की बात मानने को तैयार न था. औरतों का जमघट रामवती के आसपास लगना शुरू हो गया.

मखना के विरोधी खुद तो पस्त थे, लेकिन रामवती भाभी के चुनाव में खड़े होने की बात सुन कर उन की बांछें खिल गई थीं. वे खुद तो मखना के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे, लेकिन वे उस की घरवाली सुलेखा को बिना चुनाव के प्रधान बनते हुए भी नहीं देखना चाहते थे, इसलिए वे भी रामवती भाभी का समर्थन करने लगे.

मखना की सारी विरोधी ताकतों ने एकजुट हो कर आखिरकार रामवती भाभी को चुनावी मैदान में उतरने के लिए मजबूर कर ही दिया. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं था कि रामवती भाभी चुनाव हारेंगी या जीतेंगी, उन्हें तो सिर्फ इस बात से मतलब था कि सुलेखा ऐसे ही प्रधान नहीं बननी चाहिए.

चुनावी राजनीति के भी अपने अजीब मतलब होते हैं. जगप्रसाद को तो ऐसा महसूस हो रहा था मानो पूरा गांव उस के साथ है.

रामवती के चुनावी दंगल की कमान संभाली उस की सब से छोटी बेटी कुंदरी ने. वह चुनाव को ले कर बहुत ज्यादा जोश में थी. वह खूबसूरत थी और पढ़ीलिखी भी. मां तो सिर्फ जरीया थी, असली चुनाव तो वही लड़ रही थी.

कुंदरी के साथ उस की अपनी सहेलियों की टोली थी और जहां लड़कियां हों, वहां लड़के न हों, ऐसा कैसे हो सकता है. इस तरह नौजवानों का एक दल भी उन के साथ हो गया. उन्हें लड़कियों के साथ रोमांस करने का एक अच्छा मौका मिल गया.

सुक्खे और राजवीर समेत मखना के विरोधी भी जीजान से रामवती के प्रचार में लगे थे. जगप्रसाद खुश था. वह भी चुनाव में खूब पैसा बहा रहा था, क्योंकि उसे रामवती के जीतने की पूरी उम्मीद नजर आ रही थी. सुबह से ही दारू और मुर्गमुसल्लम सब शुरू हो जाता था. ऐसा लगता था जैसे आधा गांव नशे में ही जी रहा हो.

मखना ने पहले तो सब चीजों को हलके में ही लिया, लेकिन जिस दिन कुंदरी रामवती को परचा भरवा कर चुनाव दफ्तर से भारी भीड़ के साथ लौटी, तो मखना का दिमाग ठनक गया. उसे लगा कि कहीं बाजी पलट न जाए. अब उस ने सुलेखा को जिताने के लिए कमर कसी.

सब से पहले मखना ने सुक्खे और राजवीर के पेंच कसे. उस ने उन दोनों को बुला कर कमरे में बंद कर के खबर ली. 2-4 घूंसों में ही दोनों रास्ते पर आ गए.

मखना ने उन्हें अपने गुंडों के सामने ही डपटते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हें शराब मुफ्त में पीने का इतना ही शौक था, तो मुझ से कहते, मैं तुम्हारे लिए दारू की नदियां बहा देता.’’

सुक्खे और राजवीर ने मखना के पैर पकड़ कर माफी मांगी और वादा किया कि वे अब रामवती के चुनाव प्रचार में दिखाई भी नहीं देंगे.

इस के बाद मखना ने अपने विरोधियों को साधा, जो बढ़चढ़ कर रामवती के चुनाव प्रचार में भाग ले रहे थे. किसी को प्यार से मनाया, तो किसी को धमकाया और किसी को ललचाया.

मखना के पास चुनाव जीतने का हर हथकंडा था. गरीबों की बस्तियों में मर्दों को शराब पिलाई, औरतों के लिए साड़ी, चांदी के बिछुए, सिंगारदान और चूड़ी के डब्बे भिजवा दिए. बच्चों के लिए कैरम बोर्ड और मिठाई के डब्बे भिजवा दिए.

कुछ ही समय में कुंदरी के पीछे की भीड़ साफ होने लगी. सुक्खे और राजवीर कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. उन की कसमें हवाहवाई हो गई थीं. मखना के विरोधी, जो अभी तक रामवती का चुनाव लड़ाने में जीजान से लगे थे, अब वे खेतों में काम बता कर जगप्रसाद और कुंदरी से नजरें बचा कर निकल जाते.

जगप्रसाद को गांव वालों से ऐसे धोखे की उम्मीद बिलकुल नहीं थी. वह खुद को ठगा सा महसूस कर रहा था. उसे लगा कि सब का ईमान बिक चुका है. एक दिन कुंदरी को मखना के गुंडों ने धमकाया. उसे चुनाव के बाद देख लेने की धमकी दी.

चुनाव होने से पहले ही जगप्रसाद को अपनी गलती का एहसास हो गया. उस ने कितनी आसानी से दूसरों पर भरोसा कर लिया था. चुनाव तो उस के हाथ से निकल ही गया था. चुनाव लड़ने के लिए जो उस ने एक लाख रुपए उधार लिए थे, वे भी गए. गांव वालों की दगा उसे कांटे की तरह चुभी.

मखना ने चुनाव की रात को पूरे गांव में नोट बांट दिए. गांव में आई निर्वाचन अधिकारी और उस की टीम की खूब आवभगत कर उन्हें अपने भरोसे में ले लिया. जगप्रसाद के पास बूथों पर खड़े करने के लिए एजेंट तक का अकाल पड़ गया.

सुलेखा चुनाव में भारी मतों से जीती और रामवती की जमानत जब्त हो गई. सुलेखा का विजयी जुलूस जगप्रसाद के घर के आगे से ढोलनगाड़ों के साथ निकला तो उस का दिल अंदर तक कांप गया.

उस की पत्नी को चुनाव लड़ाने वाले आज कितनी बेशर्मी के साथ सुलेखा के विजयी जुलूस में नशे में चूर हो कर नाच रहे थे. उसे लगा कि दुनिया में यकीन नाम की कोई चीज नहीं रह गई है.

जगप्रसाद की बेटी कुंदरी मखना की आंखों की किरकिरी बनी हुई थी. वह जानता था कि कुंदरी न होती तो यह चुनाव ही न होता. कुंदरी की हिम्मत और उस के पढ़ेलिखे होने की वजह से ही जगप्रसाद उस की मां रामवती को चुनाव में खड़ा कर पाया.

मखना जानता था कि कुंदरी भविष्य में उस के और उस के परिवार के लिए चुनौती बन सकती थी, इसलिए उस के पर काटने जरूरी थे.

एक दिन मखना ने कुंदरी को खेतों पर अकेला देख कर अपने गुंडों के हाथों उसे उठवा लिया. कुंदरी को नलकूप वाली कोठरी में बंद कर उस के बदन से सारे कपड़े उतार दिए गए. मुंह में उस के पहले ही कपड़ा ठूंस दिया गया था. फिर उस के हाथों को ऊपर कडि़यों में बांध दिया गया. उस के पैर जमीन पर टिके रहने दिए गए.

वहां से गुंडों को बाहर भेजने के बाद मखना ने कुंदरी के नंगे बदन पर दारू फेंकते हुए कहा, ‘‘कुंदरी, बहुत आग है न तेरे अंदर चुनाव लड़ाने की. अगर तू न होती तो सुलेखा बिना चुनाव के प्रधान बनती. तेरी वजह से चुनाव में मुझे लाखों रुपए खर्च करने पड़ गए. इज्जत दांव पर लगी वह अलग से. ला, आज तेरी यह गरमी उतारता हूं, जिस से यह गलती दोहराने की जुर्रत तू फिर कभी न कर सके.’’

यह कह कर मखना ने खड़ेखड़े ही कुंदरी की इज्जत तारतार कर दी.

इस के बाद मखना ने उसे आजाद करते हुए कहा, ‘‘जा, अब पूरे गांव को जा कर बता दे कि मखना ने तेरी इज्जत लूट ली है.’’

कुंदरी चुपचाप गांव चली आई. उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. वह पढ़ीलिखी थी. अगले दिन उस ने शहर जा कर सब से पहले गर्भ निरोधक गोली खा कर अपने को सुरक्षित किया. न वह डरी, न सहमी. वह सुंदरी और मुंदरी की बहादुर बहन थी, वह बहादुरी में किसी भी तरह से उन से कम न थी.

कुंदरी की निगाहें अब मखना का पीछा करने लगीं. अपनी इज्जत लुटा कर वह चुप बैठने वालों में से न थी. उस ने देखा कि मखना रोज दोपहर को नलकूप वाली कोठरी में सोने के लिए आता है. कुंदरी ने उस से बदला लेने की एक खतरनाक योजना बना ली.

एक दिन मखना की नलकूप वाली कोठरी पर जब कोई नहीं था, तो कुंदरी ने उस कोठरी का बाहर से अच्छे से मुआयना किया. वह उस कोठरी के निचले हिस्से में कोई सुराख तलाश कर रही थी, जो उसे मिल गया.

उस दिन गोधुली के समय कुंदरी ने पैट्रोल से भरी 2 बोतलें ला कर पास के ईख के खेत में घासफूस में छिपा दीं.

अगले दिन जब मखना दोपहर के समय नलकूप वाली कोठरी पर सोने के लिए आया, तो उसे अंदाजा भी नहीं था कि अपनी इज्जत गंवाने वाली लड़की उस से कितना खतरनाक बदला ले सकती है.

कुंदरी वहीं ईख के खेत में छिपी उस का इंतजार कर रही थी. जब मखना को कोठरी में गए तकरीबन आधा घंटा हो गया और कुंदरी को लगा कि मखना अब सो गया होगा, वह चुपके से अपनी छिपी जगह से बाहर आई, फिर उस ने इधरउधर देखा.

जब कुंदरी को पूरा यकीन हो गया कि वहां आसपास कोई नहीं है, तो उस ने झट से उस कोठरी की कुंडी बाहर से लगा दी.

इस के बाद कुंदरी ने बिजली की तेजी से एक बोतल पैट्रोल एक नलकी की मदद से उस सुराख से उस कोठरी में बहा दिया, जिस में मखना सोया हुआ था. बाकी का बचा एक बोतल पैट्रोल उस ने कोठरी के लकड़ी के दरवाजे पर डाल दिया.

प्लास्टिक की नलकी पैट्रोल से भीगी हुई थी, उस में माचिस की जलती तीली लगते ही कोठरी के अंदर बहते पैट्रोल ने तुरंत आग पकड़ ली.

कोठरी के अंदर आग लगते ही मखना जोरजोर से चीखने और कोठरी के दरवाजे को बेतहाशा पीटने लगा. लेकिन बाहर से तो कुंदरी ने पहले ही कुंडी लगा दी थी.

इतनी देर में कुंदरी ने कोठरी के दरवाजे पर भी कुछ दूरी से माचिस की जलती हुई तीली फेंक दी. वह लकड़ी का दरवाजा भी धूंधूं कर के जलने लगा.

मखना की दर्द भरी चीख सुन कर कुंदरी ने कहा, ‘‘तू जल कर मर. दूसरे की बहनबेटियों की इज्जत से खेलने वाले वहशी तुझ पर कोई रहम नहीं.’’

मखना की मौत निश्चित जान कर कुंदरी किसी के आने से पहले ही ईख के खेतों से होती हुई दूसरे रास्ते से मंडावली थाने पहुंच गई.

थानेदार अशोक मुच्छड़ को सारा वाकिआ बताते हुए कुंदरी ने उस के सामने आत्मसमर्पण करते हुए अपने घर वालों की मखना के परिवार वालों और गुंडों से हिफाजत की गुहार लगाई.

अशोक मुच्छड़ एक सुलझा हुआ और अनुभवी थानेदार था. उस ने जल्दी से जरूरी लिखतपढ़त कर कुंदरी को लौकअप में बंद किया. फिर खुद जटपुर पहुंच कर गांव में ऐलान कराया कि अगर गांव में किसी ने भी शरारत करने की कोशिश की, तो उस के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही होगी.

वह अच्छे से जानता था कि बाहुबली और गुंडे ऐसी हालत में गरीबों पर कैसे जुल्म ढाते हैं. उस ने जगप्रसाद के परिवार की हिफाजत के लिए 2 सिपाही उस के घर पर कुछ दिनों के लिए तैनात कर दिए.

अदालत की कार्यवाही में कुंदरी को 10 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन वह खुश थी कि उस ने एक जुल्मी बाहुबली का खात्मा कर दिया था. वह चुप रहने और बुजदिली दिखाने के बजाय एक सत्ताधारी से हिम्मत दिखाते हुए टकरा गई थी.

वह संतुष्ट थी कि बड़े काम के लिए किसी न किसी को जोखिम उठाना ही पड़ता है. मखना को दी गई सजा ने उस इलाके के बाहुबलियों की रूह कंपा दी थी.

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