मा नस नदी के किनारे एक गांव बसा था राजपुरा. उस में आबाद 30 में से 25 घर छोटे किसानों और खेतिहर मजदूरों के थे. 2 घर दस्तकारों के और 3 खातेपीते किसानों के थे. वे खातेपीते किसान थे, रामसुख, हरदेव और सुखराम.
एक दिन उस गांव में एक नई और अजीब बात हुई. रामसुख शहर से ट्रैक्टर खरीद कर लाया था. नीले रंग का चमचमाता ट्रैक्टर जब गांव में आ कर रुका तो बच्चे खुशी के मारे उस के चारों ओर घेरा बना कर खड़े हो गए.
रामसुख ट्रैक्टर से नीचे उतरा ही था कि खेतों से लौटते हुए हरदेव से उस की मुलाकात हो गई.
रामसुख ने उसे ट्रैक्टर दिखाया और पूछा, ‘‘आप को कैसा लगा दादा?’’
‘‘बहुत अच्छा है, कितने में खरीदा?’’
‘‘तकरीबन साढ़े 6 लाख रुपए में पड़ा है.’’
कीमत सुन कर हैरानी से हरदेव की आंखें फैल गईं.
‘‘ऐसा है दादा कि 2 लाख रुपए तो मैं ने नकद दिए हैं, बाकी बैंक से कर्ज मिल गया है,’’ रामसुख ने बताया.
हरदेव की हैरानी फिर भी कम न हुई. उस की बराबर की हैसियत के रामसुख के पास 2 लाख रुपए नकद कहां से आ गए? उस के पास तो 50,000 रुपए भी जमा नहीं थे.
‘‘2 लाख रुपए क्या साहूकार से लिए हैं?’’
‘‘नहीं, मैं ने जमा किए हैं.’’
हरदेव को रामसुख की बात पर यकीन तो नहीं हुआ, किंतु उसी वक्त सारी बातें पूछना ठीक न समझ वह चुप हो गया.
रात में हरदेव ठीक से सो नहीं पाया. रामसुख के घर सारी रात मेला सा लगा रहा. गांव में लड्डू बांटे गए. हरदेव सवेरे उठा तो रात में ठीकसे सो न पाने के चलते उस का सिर भारी था. नहाने के लिए वह नदी की ओर जा ही रहा था कि रामसुख मिल गया. वह जुताई के लिए ट्रैक्टर लिए जा रहा था.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप
- 24 प्रिंट मैगजीन
डिजिटल

सरस सलिल सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- सरस सलिल मैगजीन का सारा कंटेंट
- 1000 से ज्यादा सेक्सुअल हेल्थ टिप्स
- 5000 से ज्यादा अतरंगी कहानियां
- चटपटी फिल्मी और भोजपुरी गॉसिप