आज से तकरीबन 15 साल पहले मीनाक्षी की शादी लक्ष्मण के साथ हुई थी. उन दिनों लक्ष्मण एक फैक्टरी में काम करता था.

जब लक्ष्मण के फैक्टरी से घर आने का समय होता, तब मीनाक्षी बड़ी बेसब्री से दरवाजे पर उस का इंतजार करती थी.

कभीकभार इंतजार करतेकरते थोड़ी देर हो जाती, तब घर के भीतर घुसते ही मीनाक्षी लक्ष्मण की छाती पर मुक्का मारते हुए कहती थी, ‘‘इतनी देर क्यों हो गई?’’

तब लक्ष्मण चिढ़ा कर उसे कहता था, ‘‘आज वह मिल गई थी.’’ फिर वे दोनों खिलखिला कर हंस पड़ते थे.

धीरेधीरे समय पंख लगा कर उड़ता रहा. पहले बेटी, दूसरा बेटा, फिर तीसरा बेटा होने से मीनाक्षी परिवार में मसरूफ हो गई थी. परिवार बढ़ने की वजह से घर का खर्चा भी बढ़ गया था. तब लक्ष्मण चिड़ाचिड़ा सा रहने लगा था. 5 साल पहले एक घटना हो गई थी. जिस फैक्टरी में लक्ष्मण काम करता था, वह फैक्टरी घाटे में चलने की वजह से बंद कर दी गई.

लक्ष्मण भी बेरोजगार हो गया. वह कोई दूसरा काम तलाशने लगा, मगर शहर में फैक्टरी जैसा काम नहीं मिला.

घर में रखा पैसा भी धीरेधीरे खर्च होने लगा. घर में तंगी होने के चलते लक्ष्मण के गुस्से का पारा चढ़ने लगा.

आखिरकार एक दिन तंग आ कर मीनाक्षी ने कहा, ‘‘अब मैं भी आप के साथ मजदूरी करने चलूंगी…’’

‘‘तू औरत जात ठहरी, घर से बाहर काम करने जाएगी?’’ लक्ष्मण बोला.

‘‘इस में हर्ज क्या है? क्या आजकल औरतें मजदूरी करने नहीं जाती हैं? क्या औरतें दफ्तरों में काम नहीं करती हैं?’’ मीनाक्षी ने अपनी बात रखते हुए कहा, ‘‘इस बस्ती की दूसरी औरतें भी तो काम पर जाती हैं.’’

मीनाक्षी की बात सुन कर लक्ष्मण सोच में पड़ गया. मीनाक्षी ने जो कहा, सही कहा था. मगर जब औरत घर की दहलीज से बाहर निकलती है, तब वह पराए मर्दों से महफूज नहीं रह पाती है. बस्ती की कितनी ही औरतों के संबंध दूसरे मर्दों से थे.

लक्ष्मण को चुप देख कर मीनाक्षी बोली, ‘‘तो क्या सोचा है?’’

‘‘मेरी मीनाक्षी बाहर काम करने नहीं जाएगी,’’ लक्ष्मण ने कहा.

‘‘क्यों नहीं जा सकती है?’’

‘‘इसलिए कि यह मर्दों की दुनिया बड़ी खराब होती है.’’

‘‘खराब से मतलब?’’

‘‘मतलब…’’ कह कर लक्ष्मण के शब्द गले में ही अटक गए. वह आगे बोला, ‘‘मैं ने कहा न कि मेरी मीनाक्षी काम करने बाहर नहीं जाएगी.’’

‘‘देखिए, आप की भी नौकरी छूट गई. आप मजदूरी के लिए इधरउधर मारेमारे फिरते हो, ऐसे में घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है. जब हम दोनों काम करने जाएंगे, तब मजदूरी भी दोगुनी मिला करेगी.

‘‘मैं अकेली कहीं नहीं जाऊंगी, बल्कि आप के साथ चलूंगी,’’ कह कर मीनाक्षी लक्ष्मण का चेहरा देखने लगी.

शायद लक्ष्मण इस बात से सहमत हो गया था. लिहाजा, अब मीनाक्षी भी लक्ष्मण के साथ ठेकेदार के यहां काम करने लगी.

उस ठेकेदार का नाम मांगीलाल था. मीनाक्षी को देख कर वह उस पर लट््टू हो गया था. उसे जहां भी मकान का ठेका मिलता था, वह लक्ष्मण और मीनाक्षी को वहीं रखता था.

ठेकेदार मांगीलाल के पास मोटरसाइकिल थी, इसलिए वह कई बार मीनाक्षी को उस पर बैठा कर ले जाता था.

मीनाक्षी का ठेकेदार के इतना करीब रहना लक्ष्मण को पसंद नहीं था, मगर वह कुछ बोल नहीं पाता था.

एक दिन एक अधेड़ औरत ने मीनाक्षी से पूछा, ‘‘तुम ने ठेकेदार पर क्या जादू कर रखा है?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ मीनाक्षी उस से जरा नाराज हो कर बोली.

‘‘मतलब यह है कि ठेकेदार तु झे इतना क्यों चाहता है?’’

‘‘मगर तुम यह क्यों पूछ रही हो?’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘इसलिए कि ठेकेदार किसी औरत को घास नहीं डालता है. उस ने तु झे ही घास क्यों डाली?’’ वह अधेड़ औरत ऊपर से नीचे तक उसे देख कर बोली, ‘‘लगता है कि तेरी इस खूबसूरत अदा में जादू है, इसलिए वह तुम पर लट्टू हुआ है.’’

‘‘तुम्हारी सोच गलत है.’’

‘‘अरे, मैं ने ये बाल धूप में सफेद नहीं किए हैं. मैं इन मर्दों को अच्छी तरह जानती हूं. तू उसे अपने साथ सुलाती होगी.’’

‘‘तुम्हें यह कहते हुए शर्म नहीं आती है,’’ मीनाक्षी बोली.

‘‘बुरा मत मानो बहन. मैं ने अच्छीअच्छी औरतों को पराए बिस्तर पर देखा है. तुम्हारे बीच कोई रिश्ता जरूर है,’’ आगे वह अधेड़ औरत कुछ न बोल सकी, क्योंकि ठेकेदार मांगीलाल वहां आ गया था.

‘‘क्या बात है मीनाक्षी, तुम सुस्त क्यों दिख रही हो?’’ मांगीलाल ने पूछा.

‘‘नहीं तो…’’ कह कर उस ने होंठों पर बनावटी मुसकान बिखेर दी.

ठेकेदार को भी उसे भांपते देर न लगी, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि किसी ने कुछ कह दिया है.’’

‘‘मीनाक्षी को कुछ कहने की किस में हिम्मत है. अगर किसी ने कुछ कह भी दिया न, तो मैं उस की चमड़ी उधेड़ दूंगी,’’ उस औरत की ओर देख कर मीनाक्षी ने ताना कसा.

अब लोगों में कानाफूसी होने लगी थी कि मीनाक्षी ठेकेदार की रखैल है.

वैसे, शुरुआत के दिनों में ठेकेदार ने एक बार मीनाक्षी के बदन से खेलने की कोशिश की थी. उस दिन वह ठेकेदार के घर पर अकेली थी. ठेकेदार की पत्नी मायके गई थी.

उस दिन वह मीनाक्षी के कंधे पर हाथ रख कर बोला था, ‘‘मीनाक्षी, बहुत दिनों से इस पके फल को खाने की इच्छा थी. क्या आज मेरी इच्छा पूरी करोगी?’’

‘‘आप के सामने जो पका फल है, उस पर सिर्फ लक्ष्मण का ही हक है, आज के बाद कभी मेरे बदन से खेलने की कोशिश मत करना.’’

मीनाक्षी का गुस्से से भरा चेहरा देख कर ठेकेदार सहम गया था, इसलिए वह प्यार से बोला था, ‘‘तू तो बुरा मान गई मीनाक्षी.’’

‘‘बात ही ऐसी करता है तू,’’ मीनाक्षी आप से तू पर आ गई थी. फिर वह आगे बोली थी, ‘‘तेरे पास औरत है. तू उस से चाहे जिस तरह से खेल.’’

‘‘देख मीनाक्षी, मैं अब कभी तु झे बुरी नीयत से नहीं देखूंगा. मगर तू वचन दे कि मु झे छोड़ कर नहीं जाएगी.’

लेकिन जब से बाकी मजदूरों में उन दोनों के संबंध की अफवाह फैली, तो लक्ष्मण के मन में भी शक घर कर गया.

एक दिन लक्ष्मण का गुस्सा फट पड़ा और बोला, ‘‘मीनाक्षी, तू उस ठेकेदार के घर में जा कर क्यों नहीं बैठ जाती?’’

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो?’’ मीनाक्षी ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं, सारी बस्ती वाले कह रहे हैं कि तुम उस की रखैल हो.’’

‘‘बस्ती वाले कुछ भी कह देंगे और तुम उसे सच मान लोगे?’’

‘‘जो बातें आंखों के सामने हो रही हों, उन्हें सच मानना ही पड़ेगा.’’

‘‘आखिर तुम्हारे भीतर भी शक का वही कीड़ा बैठ गया, जो बस्ती वालों के भीतर बैठा है.’’

‘‘मैं ने खुद तुम्हें कई बार ठेकेदार की मोटरसाइकिल पर चिपक कर बैठे देखा है,’’ लक्ष्मण ने जब यह बात कही, तब मीनाक्षी जवाब देते हुए बोली, ‘‘ठीक है, जब तुम मु झे ठेकेदार की रखैल मानते हो, तब मैं भी कबूल करती हूं कि मैं हूं उस की रखैल. अब बोलो क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘मैं जानता हूं कि ठेकेदार तेरा यार है और अपने यार को कोई औरत कैसे छोड़ सकती है.’’

‘‘ठीक है, ठेकेदार मेरा यार है. मैं उस की रखैल हूं. तब तुम मु झे घर से निकाल क्यों नहीं देते?’’ जवाबी हमला करते हुए मीनाक्षी बोली.

‘‘हां…हां, तेरी भी यही इच्छा है, तो बैठ क्यों नहीं जाती उस के घर में जा कर?’’ यह कहते हुए लक्ष्मण की सांस फूल गई.

मीनाक्षी चिल्लाते हुए बोली, ‘‘हांहां बैठ जाऊंगी उस के घर में. ऐसे निखट्टू मर्द को पा कर मैं भी कहां सुखी थी. यह तो ठेकेदार मिल गया, जो खर्चा चल रहा था. अब रहना अकेले ही,’’ कह कर मीनाक्षी अपने कपड़े समेटने लगी.

थोड़ी देर में मीनाक्षी अपनी बेटी को ले कर  झोंपड़ी से बाहर निकल गई. दोनों बेटे उसे टुकुरटुकुर देखते रहे.मीनाक्षी ठेकेदार के घर पहुंच गई और उसे सारा किस्सा कह सुनाया. ठेकेदार ने उस के लिए अपने पड़ोस में ही किराए का एक मकान दिला दिया.

एक रात को किसी ने मीनाक्षी के घर का दरवाजा खटखटाया. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा कि बाहर ठेकेदार मांगीलाल खड़ा था.

वह बोली, ‘‘मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूल सकती. आप ने मु झे रहने को मकान दिया, मेरा खर्चा उठाया. मैं आप के एहसान तले दब कर रह गई हूं.

‘‘याद है न, जिस दिन हमारी दोस्ती हुई थी, तब आप मेरे बदन से खेलना चाहते थे, लेकिन मैं ने मना कर दिया था. लेकिन आज लक्ष्मण ने मु झे आप की रखैल सम झ कर घर से निकाल दिया. अब यह शरीर आप का है.’’

ठेकेदार बोला, ‘‘नहीं मीनाक्षी, यह शरीर अब भी लक्ष्मण का ही है,’’ कह कर उस ने बाहर अंधेरे में खड़े लक्ष्मण को बुला लिया. लक्ष्मण किसी अपराधी की तरह सामने आया.

ठेकेदार बोला, ‘‘लक्ष्मण, संभालो अपनी मीनाक्षी को. अब भी तुम्हारी मीनाक्षी पाकसाफ है. दरवाजा बंद कर लेना,’’ कह कर ठेकेदार बाहर चला गया.

लक्ष्मण ने दरवाजा बंद कर लिया. उस की मीनाक्षी उस के सामने खड़ी थी. लक्ष्मण ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बांहों में भर लिया.

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