ट्रेन धीरेधीरे प्लेटफार्म पर पहुंच रही थी. वह एसी कोच में अपने छोटे से सूटकेस के साथ गैलरी में खड़ी ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रही थी. जैसे ही गाड़ी ठहरी, वह झटके से नीचे उतरी.
गोरा रंग, चेहरे पर बिखरी कालीकाली जुल्फें मानो कोई छोटी सी बदली चांद को ढकने की कोशिश कर रही हो.
स्टेशन से बाहर निकली तो सवारियों की तलाश में आटोरिकशा वालों की भीड़ जमा थी. शहर में अनजान सी लग रही अकेली जवान लड़की को देख कर 10-12 आटोरिकशा वालों ने उसे घेर लिया और अपनेअपने लहजे से पूछने लगे, ‘बहनजी, कहां चलोगी…’, ‘मैडम, किधर को जाना है…’
वह खामोशी से खड़ी रही. सिर्फ कहीं न जाने का गरदन हिला कर इशारा करती रही. कुछ ही देर में भीड़ छंट सी गई.
उस ने अपनी सुराहीदार गरदन को इधरउधर घुमा कर देखा. थोड़ी ही दूरी पर एक आटोरिकशा वाला एक किताब ले कर ड्राइवर सीट पर पढ़ता हुआ दिखाई दिया. वह छोटेछोटे कदमों से उस की ओर बढ़ी.
‘‘लोक सेवा आयोग चलोगे…?’’ उस ने पूछा.
‘‘जी… जी… जरूर…’’ उस ड्राइवर ने अपनी किताब बंद करते हुए जवाब दिया.
‘‘क्या लोगे… मतलब, किराया कितना लगेगा…?’’ उस ने सूटकेस आटोरिकशा में रखते हुए पूछा.
‘‘80 रुपए…’’ उस ने बताया.
वह झट से आटोरिकशा में बैठ गई और बोली, ‘‘जल्दी चलो…’’
आटोरिकशा शहर की भीड़ से बाहर निकला ही था कि ड्राइवर ने पूछा, ‘‘आरएएस का इंटरव्यू देने के लिए आई हैं शायद आप?’’
‘‘जी…’’ उस ने छोटा सा जवाब दिया, फिर अगले ही पल उस ने पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि मैं इंटरव्यू देने आई हूं?’’
‘‘जी, आप पहले तो लोक सेवा आयोग जा रही हैं. दूसरे, इन दिनों इंटरव्यू चल रहे हैं… और…’’
‘‘और क्या?’’ उस ने पूछा.
वह नौजवान ड्राइवर बोला, ‘‘आप का पहनावा बता रहा है कि आप किसी बड़े पद के लिए ही इंटरव्यू देने आई हैं. काश, आज मैं भी…’’
‘‘काश, आज मैं भी… क्या तुम भी…?’’ उस ने थोड़ा हैरानी से पूछा.
‘‘जी मैडम, मैं ने भी मेन ऐग्जाम दिया था… सिर्फ 2 नंबरों से रह गया,’’ उस ने उदास मन से आटोरिकशा को लोक सेवा आयोग की तरफ घुमाते हुए कहा.
‘‘आप तो बड़े होशियार हो… मैं पहली ही नजर में पहचान गई थी कि आटोरिकशा में किताब ले कर पढ़ने वाला कोई साधारण ड्राइवर नहीं हो सकता… फिर तुम्हारा लहजा भी आम ड्राइवरों जैसा नहीं है…’’ अपने पर्स से 100 रुपए का नोट निकालते हुए उस ने कहा.
आटोरिकशा लोक सेवा आयोग के मेन गेट के सामने खड़ा था.
‘‘यह लीजिए…’’ लड़की ने पैसे देते हुए कहा.
‘‘मैडम, बैस्ट औफ लक,’’ 20 रुपए लौटाते हुए उस ड्राइवर ने कहा.
‘‘थैंक्स… तुम मैडम मत कहो मुझे… मेरा नाम सपना है. और हां… मुझे शाम को वापस स्टेशन छोड़ने के लिए आ सकते हो क्या? आनेजाने का भाड़ा दे दूंगी तुम्हें,’’ सपना ने चेहरे से बालों को हटाते हुए कहा.
‘‘ठीक है सपनाजी, आप को मैं यहीं मिल जाऊंगा. वैसे, लोग मुझे विकास कहते हैं…’’ आटोरिकशा वाले ने जवाब दिया.
‘‘ओके…’’ इतना कह कर सपना चल दी.
शाम को ठीक 5 बजे विकास अपना आटोरिकशा ले कर लोक सेवा आयोग के सामने अपनी अजनबी सवारी को लेने पहुंच गया.
कुछ लड़केलड़कियां बाहर निकल रहे थे. किसी का चेहरा उतरा हुआ था, तो किसी का फूलों की माफिक खिला हुआ था. विकास की निगाहें मेन गेट पर लगी थीं.
‘‘आ गए… तुम,’’ पीछे की तरफ से आवाज आई.
विकास एक झटके से पलटा और बोला, ‘‘आप… मैं तो कब से मेन गेट की तरफ देख रहा था…’’
‘‘अरे, मैं पीछे वाले गेट से निकल आई.’’
‘‘कैसा हुआ आप का इंटरव्यू?’’
‘‘बहुत ही बढि़या. मुझे पूरा भरोसा है कि मेरा सिलैक्शन हो जाएगा…’’ सपना ने आटोरिकशा में बैठते हुए कहा.
सपना ने अपना मोबाइल खोला और बोली, ‘‘अरे, यह क्या हुआ अब…
‘‘क्या हुआ सपनाजी?’’
‘‘जोधपुर वाली मेरी ट्रेन तकरीबन
5 घंटे लेट है…’’
विकास मुसकराते हुए बोला, ‘‘सपनाजी, चिंता मत करो. आप मेरे
घर ठहर जाना. मेरा भी घर जाने का समय हो गया… और फिर रात को मुझे आटोरिकशा चलाने के लिए स्टेशन ही आना है.’’
‘‘अरे नहीं, आप को बेवजह तकलीफ होगी…’’
‘‘कैसी तकलीफ…? इस बहाने भविष्य के एक प्रशासनिक अधिकारी की सेवा करने का हमें भी मौका मिल जाएगा,’’ विकास ने हंसते हुए कहा.
सपना के पास अब मना करने का कोई ठोस बहाना नहीं रह गया था.
‘‘मां, देखो कौन आया है हमारी झोंपड़ी में…’’ विकास ने सपना को मिलवाते हुए कहा.
बूढ़ी मां ने पहले तो पहचानने की कोशिश की, पर अगले ही पल वह बोली, ‘‘बेटी, मैं ने तुम्हें नहीं पहचाना?’’
‘‘अरे, पहचानोगी भी नहीं… ये सपनाजी हैं…’’ विकास ने सारी कहानी बता दी.
3-4 घंटे में ही सपना विकास के परिवार से घुलमिल गई. विकास गरीब जरूर था, लेकिन होशियार बहुत था.
सपना को स्टेशन ले जाने के लिए विकास घर से बाहर आने लगा, तो सपना ने उस से कहा, ‘‘मुझ से एक
वादा करो…’’
‘‘कैसा वादा?’’ विकास एक पल के लिए ठहर सा गया.
‘‘यही कि तुम फिर से इम्तिहान
की तैयारी करोगे और तुम्हें भी
कामयाब होना है,’’ सपना ने हिम्मत देते हुए कहा.
‘‘ठीक है, मैं पूरी कोशिश करूंगा.’’
‘‘कोशिश करने वालों की हार नहीं होती,’’ सपना ने हंसते हुए जवाब दिया.
स्टेशन पर सपना को छोड़ने के बाद विकास में भी फिर से तैयारी करने की इच्छा जाग गई. अब वह आईईएस की तैयारियों में जीजान से जुट गया.
तकरीबन एक महीने बाद आरएएस का नतीजा आया. सपना पास ही नहीं हुई थी, बल्कि टौप 10 में आई थी.
‘‘सपनाजी… बधाई…’’ विकास ने फोन मिलाते ही कहा.
‘थैंक्स… यह सब मां की दुआओं और तुम्हारी शुभकामनाओं का नतीजा है,’ सपना ने चहकते हुए कहा.
तकरीबन 2 साल तक उन दोनों के बीच फोन पर बातचीत होती रही. सपना एसडीएम बन चुकी थी. अब विकास की जिंदगी में बहुत बड़ा दिन आया. उस का आईईएस में चयन हो गया.
‘‘हैलो विकास, मैं तुम से एक
चीज मांगूं….’’
‘‘सपना, मुझ गरीब के पास तुम्हारे लायक देने के लिए कुछ नहीं है… और अभी मेरी ट्रेनिंग भी शुरू नहीं हुई है.’’
‘‘क्या एक आईईएस किसी आरएएस लड़की से शादी कर सकता है?’’ सपना ने अजीब सा सवाल किया.
‘‘क्यों नहीं… अगर दोनों में प्यार हो तो…’’ विकास ने कहा.
‘‘तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’ सपना ने साफसाफ पूछा.
कुछ पलों के लिए विकास चुप रहा.
‘‘बोलो विकास, क्या तुम मुझ से प्यार नहीं करते?’’ सपना ने धीरे से पूछा.
‘‘जी… करता हूं,’’ विकास हकलाते हुए बोला. दरअसल, विकास का दूसरा सपना भी सच हो गया. कभी उस का पहला सपना प्रशासनिक अधिकारी बनना था और दूसरा सपना था सपना को पाना.