बदनाम बस्ती के मोड़ पर पहुंचते ही सुमित का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. उस ने चोर निगाहों से इधरउधर देखा. आसपास किसी को न देख उस ने एक रिकशा वाले से धीमी आवाज में पूछा, ‘‘बदनाम बस्ती चलोगे?’’

‘‘चलूंगा, पर 20 रुपए लूंगा,’’ रिकशा वाला बोला.

‘‘अरे भाई, रुपए की तुम चिंता क्यों करते हो? पहले जल्दी यहां से चलो तो सही,’’ सुमित रिकशा पर बैठता हुआ बोला.

कुछ पल बाद ही रिकशा बदनाम बस्ती की तरफ चल पड़ा. तकरीबन 15 मिनट बाद रिकशा रुका.

‘‘उतरिए साहब,’’ रिकशा वाला गमछे से पसीना पोंछते हुए बोला.

सुमित जल्दी से नीचे उतरा. रिकशा वाले को 20 रुपए का नोट थमाया और तेजी से बदनाम बस्ती में चला गया. कच्ची सड़क के दोनों किनारों पर कई झोंपडि़यां थीं. उन के बाहर लड़कियां सजधज कर बैठी थीं.

कभीकभी सुमित चोर निगाहों से उन लड़कियों की तरफ देख लेता. नजर मिलते ही लड़कियां उस को इशारे से अपने पास बुलातीं, पर सुमित उन के मनमोहक इशारों को नजरअंदाज करता हुआ आगे बढ़ता रहा. वह सीधा सुचित्रा की झोंपड़ी के पास रुका. झोंपड़ी के बाहर सुचित्रा को न देख हौले से आवाज दी.

अगले ही पल मामूली साड़ी अपने जिस्म पर लपेटे एक जवान लड़की उस झोंपड़ी से बाहर निकली. सुमित पर नजर पड़ते ही उस के होंठों पर मुसकान बिखर गई.

सुचित्रा बला की खूबसूरत थी. गोरा, लंबा चेहरा, बड़ीबड़ी आंखें और लंबाई भी अच्छी. उस की देह में एक कशिश थी. बड़े उभार, पतली कमर जैसे तराशा हुआ बदन.

‘‘तुम आ गए सुमित, तुम्हारे इंतजार में मैं बेकरार हो जाती हूं,’’ सुचित्रा वापस अपनी झोंपड़ी में घुसते हुए बोली.

झोंपड़ी में घुसते ही फूलों की भीनीभीनी खुशबू सुमित के दिलोदिमाग में समाती चली गई.

‘‘देखो सुमित, आज मैं ने तुम्हारे लिए अपनी झोंपड़ी को फूलों से सजाया है,’’ सुचित्रा चारपाई पर बैठते हुए बोली.

सुमित उस के पास बैठ गया. सुचित्रा की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर वह एकटक उस के चेहरे को देखने लगा.

‘‘आज तुम मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो?’’ सुचित्रा चेहरे पर आ गई लटों को समेटती हुई बोली.

‘‘पिछले कई दिनों से मैं तुम से एक बात पूछना चाहता था, पर पूछ नहीं पाया,’’ सुमित बोला.

‘‘क्या पूछना चाहते थे? पूछो न हिचकिचाहट कैसी? तुम तो जानते ही हो कि तुम से मिलने के बाद मैं सिर्फ तुम्हारी हूं… और तुम्हारी ही रहूंगी.’’

‘‘मैं यह पूछना चाहता था कि तुम इस बस्ती में कैसे आ गई? तुम्हारी क्या मजबूरियां थीं, जो तुम्हें यहां खींच लाईं? क्या तुम शौक से…?’’ सुमित ने बात अधूरी छोड़ दी.

‘‘नहीं सुमित, कोई लड़की शौक से अपना जिस्म नहीं बेचती, इस पेशे से जुड़ने के पहले मैं भी एक भोलीभाली और शरीफ लड़की थी. मेरा गांव नदी के किनारे बसा था. मेरे पिताजी एक अच्छे किसान थे. एक बार अचानक मेरा गांव बाढ़ की चपेट में आ गया और हमारा सबकुछ बह गया.

‘‘मेरे मांबाप भी बाढ़ के पानी में हमेशा के लिए बह गए. किसी तरह मैं बच गई, पर मैं अनाथ हो चुकी थी. मांबाप के गुजरने के बाद मुझे किसी ने सहारा नहीं दिया.

‘‘मैं सड़कों पर भटकने लगी. पढ़ीलिखी तो थी नहीं कि कोई नौकरी ढूंढ़ लेती. फिर भी कई लोगों से मैं ने काम मांगा, पर किसी ने भी मुझे काम नहीं दिया. हर कोई मेरे जिस्म को ही घूरता, मानो मैं कोई खूबसूरत पंछी हूं और वे लोग शिकारी.

‘‘मैं ने इज्जत की रोटी खाने की बहुत कोशिश की, पर कामयाब न हो सकी. हवस के पुजारियों ने मुझे इज्जत से जीने नहीं दिया. मेरी खूबसूरती, मेरी जवानी, मेरी इज्जत नीलाम हो गई. मैं कुछ न कर सकी. घायल पंछी की तरह सिर्फ फड़फड़ा कर रह गई.

‘‘अब जिंदा रहने के लिए रोटी की जरूरत तो होती ही है न. जब मेरी इज्जत ही खत्म हो गई, तो इज्जत की रोटी खाने कौन देता? मैं मजबूर हो कर इस बस्ती में आ गई,’’ सुचित्रा की आंखों में आंसू भर आए थे.

सुचित्रा की दर्दभरी कहानी सुन कर सुमित की आंखें भी डबडबा आईं. कुछ देर तक झोंपड़ी में खामोशी छाई रही.

‘‘सुचित्रा, मैं तुम्हें ऐसी घटिया जिंदगी नहीं जीने दूंगा. मैं तुम से शादी करूंगा. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’ सुमित ने खामोशी तोड़ी.

सुचित्रा कुछ न बोली, सुमित ने फिर पूछा, ‘‘बोलो सुचित्रा, क्या तुम मुझ से ब्याह करोगी?’’

‘‘नहीं सुमित, मैं तुम्हारे काबिल नहीं. मैं तो अपना सबकुछ गंवा बैठी हूं. मैं तो कोयले की तरह काली हो चुकी हूं. उस पर कितना ही साबुन रगड़ो, कालिख धुल नहीं सकती,’’ सुचित्रा मायूस हो कर बोली.

‘‘पर सुचित्रा, फूल तो आखिर फूल ही होता है. उस की खूबसूरती को कोई नहीं छीन सकता. उस की खुशबू को कोई खत्म नहीं कर सकता. जानती हो, जब मैं तुम से पहली बार मिला था तो उसी दिन मैं ने तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाने का फैसला कर लिया था. पर बारबार मेरे मन में यही सवाल उठता था कि तुम इस बस्ती में क्यों आई? कैसे आई? आज मुझे उन सवालों के जवाब मिल गए हैं.’’

‘‘पर, क्या तुम्हारे घर वाले इस शादी के लिए राजी हो जाएंगे? क्या तुम्हारा समाज यह बरदाश्त कर सकेगा?’’

‘‘मुझे उन सब की परवाह नहीं. कोई कुछ भी कहे, मेरा फैसला बदलने वाला नहीं. सिर्फ तुम ‘हां’ कर दो. बस, नौकरी मिलते ही मैं तुम्हें डोली में बैठा कर यहां से हमेशाहमेशा के लिए ले जाऊंगा. हमारा अपना घर होगा. वहां सिर्फ हम दोनों होंगे और होगा हमारा प्यार,’’ सुमित खयालों में खो गया.

‘‘मुझे ऐसे सपने न दिखाओ सुमित. मैं खुशी से पागल हो जाऊंगी,’’ सुचित्रा उस से लिपट गई.

‘‘यह सपना नहीं है पगली. मैं सचमुच तुम से ब्याह करूंगा,’’ सुमित ने सुचित्रा को अपनी बांहों में कस लिया.

‘‘सुमित, देखो बाहर कैसी चांदनी छिटकी हुई है? कितना खूबसूरत नजारा है,’’ सुचित्रा सुमित की बांहों से निकल कर झोंपड़ी के बाहर देखती हुई बोली.

‘‘तेरे चेहरे से तो नजर ही नहीं हटती, बाहर का नजारा मैं क्या देखूं? अच्छा, अब मैं चलता हूं,’’ कह कर सुमित चारपाई से उठ खड़ा हुआ और झोंपड़ी से बाहर निकल कर तेजी से कच्ची सड़क पर आगे बढ़ने लगा.

सुचित्रा मुसकराते हुए सुमित को जाते हुए देखती रही. कुछ ही मिनटों में सुमित उस की आंखों से ओझल हो गया.

समय अपनी रफ्तार से सरकता रहा. सुमित रोज सुचित्रा से मिलने आता. सबकुछ भूल कर दोनों प्यार के सागर में खो जाते.

फिर एक दिन सुमित को नौकरी भी मिल गई. वह बहुत खुश हुआ. सुचित्रा को यह खुशखबरी देने वह तेजी से बदनाम बस्ती की तरफ चल पड़ा. खुशी के मारे उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. वह बदनाम बस्ती कब पहुंच गया, उसे कुछ पता ही न चला.

सुचित्रा की झोंपड़ी के पास लड़कियों की भीड़ देख कर वह सकपका गया. तकरीबन दौड़ता हुआ वह झोंपड़ी के भीतर घुस गया. वहां का नजारा देखते ही उस का दिल दहल गया. सुचित्रा खून से लथपथ पड़ी थी. पास ही खून से सनी शराब की टूटी हुई बोतल पड़ी थी. आसपास कांच के टुकड़े बिखरे पड़े थे. वह मौत से लड़ रही थी.

सुमित सुचित्रा के सिरहाने बैठ गया. उस के सिर को अपनी गोद में रख कर उस के माथे पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘यह क्या हो गया सुचित्रा? आज तो मैं तुम्हें अपनी नौकरी की खुशखबरी देने आया था, पर…’’ उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.

सुचित्रा आखिरी सांसें गिन रही थी. वह टूटे हुए शब्दों में बोली, ‘‘मुझे… माफ… कर देना सुमित. मैं… तुम्हारे सपनों को… पूरा… न कर…’’ अचानक सुचित्रा की आवाज बंद हो गई और उस का सिर सुमित की गोद में लुढ़क गया.

सुमित फफकफफक कर रो पड़ा. कभी वह इधरउधर बिखरे कांच के टुकड़ों को देखता तो कभी खून के धब्बों कोे. घूमफिर कर उस की नजर सुचित्रा के मासूम चेहरे पर अटक जाती. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभालते हुए एक लड़की से पूछा, ‘‘सुचित्रा की यह हालत कैसे हुई?’’

वह लड़की बोली, ‘‘अभी कुछ देर पहले नशे में झूमता हुआ एक आदमी यहां आया था. उस के हाथ में शराब की बोतल थी. सुचित्रा की झोंपड़ी में घुस गया. फिर हम लोगों को झोंपड़ी से शोरगुल सुनाई दिया.

‘‘शायद सुचित्रा उसे अपना जिस्म सौंपने से इनकार कर रही थी. धीरेधीरे आवाज तेज होती चली गई. फिर अचानक सुचित्रा की चीख गूंज उठी. जब हम लोग यहां पहुंचे, तो सबकुछ खत्म हो चुका था. सुचित्रा खून से लथपथ पड़ी थी. शराबी का कहीं पता न था.’’

सुचित्रा का अंतिम संस्कार कर के सुमित जब श्मशान से लौटा, तो उस के कदम शराब की दुकान की तरफ बढ़ चले. दुकान के पास पहुंचते ही वह अचानक ठिठक गया, ‘नहींनहीं, मैं अपना गम भुलाने के लिए कभी भी शराब नहीं पीऊंगा. इसी शराब के नशे में उस जालिम ने मेरी सुचित्रा को मार डाला. अगर वह नशे में न होता तो शायद…? नहीं, मैं कभी भी शराब को हाथ नहीं लगाऊंगा,’ मन ही मन फैसला कर के सुमित वापस मुड़ गया.

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