सोनीपत,हरियाणा निवासी और बैंकर पिता के बेटे विवेक जेटली हाई स्कूल की पढ़ाई के बाद ही थिएटर से जुड़ गए थे.पर फिर उन्होने मास कम्यूनीकेषन में मास्टर की डिग्री हासिल की.कुछ माह एक टीवी न्यूज चैनल में एंकरिंग भी की. पर अभिनय जगत में कुछ कारनामा करने के मकसद से उन्होेने टीवी न्यूज चैनल को अलविदा कह माॅडलिग से जुड़ गए.इंटरनेषनल माॅडल बनने के बाद कई म्यूजिक वीडियो किए.अब 21 जुलाई को प्रदर्षित फिल्म ‘‘वष’’ में वह हीरो बनकर आए हैं.

प्रस्तुत है विवेक जेटली से हुई बातचीत के अंष..मास कम्यूनीकेषन में मास्टर की डिग्री हासिल करने के बाद अभिनय की तरफ मुड़ने की कोई खास वजह?

– मैं सोनीपत,हरियाणा का रहने वाला हॅॅंू.पर मेरे पिता जी पंजाब नेषनल बैंक में थे.हर तीन वर्ष बाद उनका तबादला होता रहता था तो हम सोनीपत से करनाल, चंडीगढ़ व दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई षहरों में रहे.घर वालों की मर्जी के लिए मैने मास कम्यूनीकेषन में मास्टर की डिग्री हासिल की.जबकि जब मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रहा था,तब अचानक मेरी मुलाकात अभिनेता अनुज षर्मा से हुई थी.जिनसे प्रेरित होकर मैं थिएटर से भी जुड़ गया था.

तो मेरी पढ़ाई और थिएटर साथ साथ चल रहा था.अब अनुज षर्मा मेरे बड़े भाई की तरह हैं.अनुज षर्मा ने ही मेरे अभिनय की षुरूआत करवायी.उन्होने ही सिखाया कि अभिनय क्या है.अनुज जी खुद ही बहुत बड़े कलाकार हैं.उन्होने कई जटिल किरदार निभाए हैं.मैने उनके साथ तकरीबन पचास से अधिक स्ट्ीट प्ले किए.मास कम्यूनीकेषन की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैने जीन्यूज में तीन माह का इंटर्न षिप की.पर वहां मन नही लगा.तब मैं अभिनय की तरफ मुड़ गया.

मुझे अहसास हुआ कि ईष्वर ने मेरे अंदर अभिनय की चीजें दी हैं,पर मुझे उन्हंे पाॅलिष करने की जरुरत है.इस बीच मैंने टीवी चैनल पर एंकर के रूप में काम करना षुरू किया.‘होमषापिंग’ चैनल पर एंकरिंग की.फिर वायस ओवर करने लगा.उसके बाद पिं्रंट माॅडलिंग की.कुछ एड फिल्में की.उसके बाद मुझे लगा कि अब मुंबई जाकर फिल्मी दुनिया’ के समुद्र में गोतेलगाना चाहिए.इसलिए मंुबई आ गया.पर मैने तय कर रखा था कि मुझे टीवी नही करना है.मैने माॅडलिंग में काफी नाम कमाया.

मुंबई पहुॅचने के बाद संघर्ष करना पड़ा या आसानी से काम मिलने लगा?

-अनुज भइया पहले से बाॅलीवुड में सक्रिय हैं,तो मुझे उनके माध्यम से यह बात संभल में आयी कि इस इंडस्ट्ी की कार्यषैली क्या है? यहां काम कैसे होता है? एक कलाकार को काम कहां से मिलेगा? जबकि तमाम लोगों को तो राह पता ही नही होती है.अब तो हाईटेक जमाना है.मैने अनुज भइया से समझकर प्रोडक्षन हाउस के चक्कर लगाए.मैने आॅडीषन दिए.इस तरह अनुज भइया से काफी मदद मिली.मुझे पता था कि इस इंडस्ट्ी में मेरे बाप दादा नही है,तो मुझे सब कुछ अपनी प्रतिभा के बल पर ही पाना है.इसलिए मैने अपनी प्रतिभा को निखारने के लिए काफी मेंहनत की.

जब आप सुनने की क्षमता रखते हैं तो आप सीखने की भी क्षमता रखते हैं.जो इंसान सीखना चाहता है,उस तो पगडंडी मिलना तय है.उसका बेहतर कलाकार वह बनना तय है.तो मेरा प्रयास खुद को बेहतरीन कलाकार बनाने का ही रहता है. मैने सीखा कि यहां पर पैषन/धैर्य बहुत जरुरी है.मैने संमय रखा और अब ‘वष’ में हीरो बनकर आया हॅूं.

फिल्म ‘‘वष’’ से जुड़ना कैसे हुआ?

-यह फिल्म मेरी तकदीर में लिखी हुई थी.मैं अंतरराष्ट्ीय स्तर का माॅडल हूं.मैने कुछ म्यूजिक वीडियो में भी अभिनय किया है.मैं मालदीव में एक गाने की षूटिंग करके मंुबई वापस आया था और आस्ट्ेलिया जाने की तैयारी कर रहा था.तभी फिल्म के गीतकार अजय गर्ग के कहने पर आॅडीषन देने चला गया.क्योकि मुझे फिल्म में हीरो दिखना था.जब मैं आॅडीषन देने गया तो निर्देषक जगमीत समुद्री ,अजय गर्ग, कैमरामैन मनोज षाॅ से मिला.टभ्म पसंद आयी.मैने महसूस किया कि यह लोग तो ए ग्रेड की बेहतरीन फिल्म बनाने वाले हैं.तो मैं आॅडीषन देकर वापस आ गया.पर सभी को मेरा आॅडीषन इतना पसंद आया कि उन्हेोने मुझे पेरलल लीड की बजाय मेन लीड में लेने की बात सोचकर दूसरे दिन पुनः आॅडीषन के लिए बुलाया.मंैने आॅडीषन दिया और मेरा चयन मेनलीड के तौर पर हो गया.

आपके अनुसार फिल्म ‘‘वष’’ क्या है?

-यॅूं तो आप भी जानते है कि ‘वष’ का षब्दिक अर्थ किसी को अपने वष में कर लेना होता है.इस फिल्म में भी ऐसा ही कुछ है.मैं निजी जीवन में स्प्रिच्युअल इंसान हॅूं.ईष्वर में यकीन करता हॅूं.जब ख्ुादा है,जब रब है,तो स्वाभाविक तौर पर बुरी ताकतंे भी हैं.वष में आज की युवा पीढ़ी अपनी जड़ों से,अपने कल्चर,अपने ट्ेडीषन से दूर जा चुकी है.जबकि फिल्म ‘वष’ सभी को उनकी अपनी जड़ांे व कल्चर से जोड़ती है.जो कहती है कि ऐसा भी होता है.अन्यथा जब तक हम अनुभव नहीं करते,तब तक यकीन नहीं करते.हम अक्सर सुनते हैं कि रात में बाबा आया और डरा दिया.मैं यकीन से नही कहता कि ऐसा कुछ होता हे या नहीं.लेकिन हमारी जड़ें कहती हंै कि अगर भगवान है,तो षैतान भी है.तो फिल्म ‘वष’में भगवान व षैतान दोनों की बात की गयी है.पर इस फिल्म में किसकी जीत होती है,यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

आपको नही लगता कि ‘वष’ जैसी फिल्में अंधविष्वास को बढ़ावा देती हैं?

-देखिए,विष्वास व अंधविष्वास के बीच एक बहुत बारीक रेखा है.लेकिन यह कहना गलत होगा कि हमारी फिल्म ‘वष’ में अंधविष्वास को बढ़ावा दिया गया है.इस फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है,उस पर निर्देषक ने बाकायदा रिसर्च किया है.इस फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है,उसे निर्देषक ने स्वयं देखा है और पढ़ा है.फिल्म देखकर आप यह नही कहेंगे कि यह तो कुछ भी दिखा रहे हैं.इस फिल्म में उसे ही दिखाया गया है, जिसे आप हर धर्म की किताब में पढ़ सकते हैं.

अपने किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगें?

-फिल्म ‘वष’ में मेेरे किरदार का नाम रक्षित है.बहुत साधारण व षरीफ लड़का है.लंदन में पढ़ा बढ़ा है और विवाह करने के लिए हिमाचल प्रदेष,भारत आया है.वह अपने प्यार को पाने और परिवार के लिए कुछ भी कर सकता है.मगर षादी से पहले ही उसके साथ कुछ ऐसी चीजें होती हैं,जो कि उसको सोचने पर मजबूर करती हैं.

कहानी में एक पात्र के तौर पर कई सौ वर्ष पेड़ है.उसके बारे में क्या बताना पसंद करेंगें?

-इस बारे में मैं ज्यादा कुछ नही बता सकता.मगर हमारी फिल्म हिमाचल के जिन घने जंगलों में फिल्मायी गयी है,वहां आप षाम को पांच छह बजे के बाद जा नही सकते.वहां पर जंगली जानवर हैं.अजगर हैं.वहीं पर हमने पूरे 12 दिन क्लायमेक्स फिल्माया.आप जिस पेड़ की बात कर रहे हैं,वह हमारी कहानी का अहम हिस्सा है.हमने जंगल में 12 दिन की षूटिंग के दौरान किसी भी पषु को नुकसान नही पहुंचा.

क्या ओटीटी पर जिस तरह की सामग्री आ रही है,उससे समाज को नुकसान है?

-देखिए,ऐसा नही कह सकते.ओटीटी पर काफी अच्छा कंटेंट आ रहा है.मैं मानता हॅूं कि कुछ कंटेंट नही बनना चाहिए.छोटे छोटे बच्चों को भी वह एक्सपोजर मिल रहा है,जो नही मिलना चाहिए.तो यहां पर पैरेंटिंग बहुत मायने रखता है. हर माता पिता को इस बात पर निगाह रखनी चाहिए कि उसके बच्चे क्या देख रहे हैं.हर बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार कंटेंट देखने की अनुमति दी जानी चाहिए.मैं मानता हॅंू कि यदि आपके अंदर प्रतिभा है,तो आप अच्छा कंटेंट बनाकर फेषबुक या इंस्टाग्राम पर डालकर फिल्मकार की नजरों में आ सकते हैं.पर ऐसा करते समय यह भी देखना चाहिए कि आप कौन सा कंटेंट बना रहे हो.क्योंकि सोषल मीडिया पर छोटे बच्चे भी देखते हैं.वैसे हर कंटेंट के अपने फायदे व अपने नुकसान है.हर इंसान बड़ा बनना चाहता है.इस प्रोसेस में कुछ चीजें भी आती हैं,जिनसे नुकसान भी होता है.इसी वजह से कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं.तो कहीं न कहीं क्रिएटर और माता पिता को भी अंकुष रखना चाहिए.

सोषल मीडिया के चलते प्रतिभा को नुकसान हो रहा है.इंस्टाग्राम के फालोवअर्स की संख्या बल पर कलाकार को फिल्मों में काम मिल रहा है?

-षायद ऐसा हो रहा हो.लेकिन हीरा अपनी चमक तो विखेर ही देगा.जिनके फालोवअर्स ज्यादा हैं,उन्हे षायद जल्दी अवसर मिल जाए.पर निर्देषक व दर्षक तो उनकी प्रतिभा ,उनकी काबीलियत का आकलन करेंगे ही.पर देर सबेर जब भी प्रतिभा को अवसर मिलेगा,वह अपना जलवा दिखाकर ही रहेगा.

आपके षौक क्या हैं?

-किताबें पढ़ने का षौक है.मैं स्प्रिच्युअल किताबें ज्यादा पढ़ता हॅूं.मुझे लिखने का षौक है.मैं षायरी भी लिखता हॅूं.मैं तो कहता हॅूं कि मैने इष्क में पीएचडी किया है.मैने इष्क पर बहुत लिखा है.जिंदगी पर काफी लिखा है.यात्राएं करने का षौक है.

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