यह सब अचानक नहीं हुआ है और न ही प्रवेश शुक्ला नाम का ब्राह्मण नौजवान सिर्फ शराब के नशे में था, बल्कि उस के दिलोदिमाग पर तो सनातन धर्म, धर्मग्रंथों और हिंदू राष्ट्र का नशा ज्यादा था, जिसे बेइंतिहा नफरत की शक्ल में एक वीडियो के जरीए अब दुनिया देख रही है. इस पर भी हैरत की बात यह है कि इस घटिया हरकत पर एतराज भी एक सियासी रस्म के तौर पर जताया जा रहा है मानो विश्वगुरु बनने का रास्ता दलितों, आदिवासियों, औरतों और मुसलमानों से नफरत करने और उन्हें सताते रहने के ‘धर्म टोल’ से हो कर ही जाता है.

मध्य प्रदेश के आदिवासी जिले सीधी के वायरल हुए इस वीडियो में एक नौजवान दूसरे नौजवान के चेहरे पर पेशाब करता नजर आ रहा है. कुबरी गांव के रहने वाले इस ब्राह्मण नौजवान का नाम प्रवेश शुक्ला है, जो पेशाब करते समय एक हाथ कमर पर रखे हुए है और दूसरे हाथ से बड़ी बेफिक्री से सिगरेट भी फूंक रहा है.

पीड़ित नौजवान कोई खिलाफत नहीं कर पा रहा है. हालांकि वह प्रवेश शुक्ला की पेशाब को चरणामृत की तरह भी नहीं ले रहा है, इसलिए उसे मानसिक रूप से विक्षिप्त यानी पागल भी कहा जा रहा है.

इस वीडियो पर बवाल मचना कुदरती बात थी, क्योंकि इस तरह की हैवानियत वाली हरकत अब कम देखने में आती है, नहीं तो दबंग सवर्ण अभी भी पुराने तरीकों से ही नीची जाति वालों को सताने में ज्यादा भरोसा करते हैं, क्योंकि उन में पकड़े जाने, जुर्म साबित होने और कानूनन सजा होने का जोखिम कम रहता है. इस के बाद भी कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जिस में वंचित समाज को सताने की 2-4 खबरें न आती हों.

सीधी के वीडियो को सभ्य समाज पर कलंक और भोलेभाले आदिवासियों की बेइज्जती बताने और मानने वालों को इस कट्टर और घटिया सोच की वजह या जड़ पहले समझ लेनी चाहिए कि वह दरअसल ‘रामचरितमानस’ है, जो बिना किसी लिहाज या लागलपेट के छोटी जाति वालों से नफरत करने का संदेश देती है. प्रवेश शुक्ला जैसे कई नौजवान तो उसे अमल में लाते हैं, परवाह उन्हें भी समाज, संविधान या कानून की नहीं रहती.

कौन हैं कोल आदिवासी

पीड़ित नौजवान कोल आदिवासी समुदाय का है. इस जाति के आदिवासी आमतौर पर भूमिहीन हैं और लोहे को गलाने और उस का सामान बनाने का काम करते रहे हैं. कुछ लोग बांस के आइटम भी बनाने लगे हैं.

विंध्य इलाके के रीवा जिले का बरदीजादा इलाका इन का उत्पत्ति या मूल स्थान माना जाता है. यहां से होते ये लोग झारखंड और ओडिशा तक फैल गए हैं.

झारखंड में संथाली और मध्य प्रदेश में कोली भाषा बोलने वाले इस मेहनती समुदाय की माली हालत कभी ठीक नहीं रही. खाली समय में ये मजदूरी करने विदेश यानी बड़े शहरों की तरफ पलायन कर जाते हैं. झारखंड के गिरिडीह और देवधर के अलावा दुमका जिले में इन की आबादी सब से ज्यादा है.

इन लोगों के हिंदुओं से अलग रीतिरिवाज और खुद के अपने देवीदेवता हैं. ये देवीदेवता हैं काली माता और सिंगबोगा. अब कुछ पढ़ेलिखे कोल हिंदू मंदिरों में भी जाने लगे हैं, क्योंकि इन के पास चढ़ाने को पैसा होता है, इसलिए इन्हें यह सहूलियत पंडेपुजारियों ने दे रखी है.

कोल समुदाय के 12 गोत्र होते हैं, जिन में मुर्मू के अलावा सोरेन, मरांडी, किस्कू खास हैं. धर्मग्रंथों में भी इन का जिक्र मिलता है, लेकिन किस अंदाज और हैसियत से, इसे इस दोहे से समझिए, जिस से प्रवेश शुक्ला ने समझा और ज्यादातर सवर्ण भी इस तरीके से ही समझते हैं.

तुलसीदास द्वारा लिखी गई ‘रामचरितमानस’ के ‘उत्तरकांड’ के दोहा संख्या 99 (3) में कहा गया है :

‘जे बरनाधम तेलि कुम्हारा. स्वपच किरात कोल कलवारा.’

मतलब तेली, कुम्हार, चांडाल, भील और कोल, कलवार आदि बेहद नीच वर्ण के लोग हैं.

गरमाई सियासत

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. ऐसे में भाजपा को प्रवेश शुक्ला की इस मनुवादी हरकत से तगड़ा झटका लगा है, क्योंकि वह उस के विधायक केदार शुक्ला का प्रतिनिधि रहा है. हालांकि केदार शुक्ला सरासर झूठ बोलते हुए इस बात को नकारते रहे, लेकिन जल्द ही उन का आरोपी को दिया नियुक्तिपत्र भी वायरल हो गया. यह भी सामने आया कि वह भाजपा का पदाधिकारी भी है.

जब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ सहित दूसरे छोटेबड़े कांग्रेसियों ने इस पर हल्ला मचाया, तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रवेश शुक्ला के खिलाफ एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए. गिरफ्तारी के बाद थाने जाते समय भी प्रवेश शुक्ला के चेहरे और चालढाल की ठसक देखने के काबिल थी मानो उस ने इनसानियत को शर्मसार करने वाला गुनाह नहीं, बल्कि ‘रामचरितमानस’ में लिखे मुताबिक पीड़ित को नीच वर्ण का साबित कर दिया है. इस बाबत तो उसे सजा के बजाय इनाम मिलना चाहिए, क्योंकि भगवा गैंग के हिंदू राष्ट्र में होना यही है.

मध्य प्रदेश के आदिवासी इलाकों में भाजपा की सक्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस ने पूरा जोर 30 फीसदी आदिवासी वोटों को लुभाने में लगा रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद मोदी 1 जुलाई, 2023 को शहडोल के आदिवासियों के बीच खाट लगा कर बैठे हुए आदिवासियों की बदहाली के बाबत कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए कोस रहे थे. और तो और उन्होंने आदिवासी इलाकों की जानलेवा बीमारी सिकल सैल एनीमिया का जिम्मेदार भी कांग्रेस को ठहरा दिया, जबकि डेढ़ साल का अरसा छोड़ दें, तो पिछले 20 साल से भाजपा सत्ता में है और उस ने आदिवासियों और सिकल सैल एनीमिया के लिए क्या किया, यह सवाल अब इस पेशाब कांड के बाद पूछना बेमानी है.

यह हुआ भाजपा राज में भाजपा राज में दलित, आदिवासियों पर जोरजुल्म के मामले लगातार बढ़े हैं, जिस से अदिवासी समुदाय उस से खफा है. इस ताजा मामले ने तो उस आग में घी डालने का ही काम किया है.

छिंदवाड़ा के एक भाजपा कार्यकर्ता का नाम न छापने की शर्त पर कहना है कि सीधी पेशाब कांड ने मोदी और शिवराज के किएधरे पर पेशाब फेर दिया है. अब हम आदिवासियों से क्या खा कर और किस मुंह से वोट मांगेंगे? क्या यह कह कर कि आओ हमें वोट दो, हम तुम्हें पेशाब देंगे?

यह हकीकत राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े भी बयां करते हैं कि साल 2018 में दलित, आदिवासियों के साथ हुई प्रताड़ना के 4,753 मामले दर्ज किए गए थे, जिन की तादाद साल 2019 में 5,300 हो गई थी और फिर साल 2021 में ऐसे दर्ज मामलों की तादाद 6,899 हो गई थी. इस तरह दलितआदिवासी समाज को सताने के मामले में मध्य प्रदेश टौप पर बना हुआ है.

हिंदुत्व है वजह

उम्मीद है कि मध्य प्रदेश में यह जगह शायद ही कोई दूसरा प्रदेश छीन पाएगा, क्योंकि यहां खासतौर से आदिवासियों पर जोरजुल्म करने की छूट और लाइसैंस मिले हुए हैं. ज्यादातर मामलों में हिंदूवादी ही आरोपी पाए गए हैं. सिवनी जिले के गांव सिमरिया की मौब लिंचिंग इस की बड़ी मिसाल है. इस कांड में बजरंगियों ने गौमांस की तस्करी के शक में 2 आदिवासियों संपत्त बट्टी और धानशाह को लाठियों से पीटपीट कर मार डाला था.

दरअसल, यह लड़ाई आदिवासियों के हिंदू होने और न होने की है. हिंदूवादी आदिवासियों में इतनी दहशत फैला देना चाहते हैं कि वे खुद को हिंदू धर्म का मानते हुए पूजापाठ और दानदक्षिणा करने के अलावा उन की गुलामी भी करें. लेकिन आदिवासी समुदाय उन की ज्यादतियों के सामने झुक नहीं रहा है.

जय आदिवासी युवा संगठन यानी जयस के मुखिया डाक्टर हीरालाल अलावा ने बताया, “हम ने आदिवासी समुदाय की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से इस घटिया कांड पर दखल देने की मांग की है. रही बात हम आदिवासियों पर अत्याचार की तो हमारी खामोशी अब वोटिंग के दिन टूटेगी, जिसे आप नतीजे के दिन सुनेंगे कि भाजपा मध्य प्रदेश में कर्नाटक की तरह 65 सीटों पर सिमट गई.

पैर धोने का पाखंड

हल्ला और आदिवासी समुदाय का बढ़ता गुस्सा देख कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी कुरसी खिसकती लगी तो वे इतना घबरा गए कि उन्होंने 6 जुलाई, 2023 की सुबहसुबह पीड़ित दशमत रावत को भोपाल सीएम हाउस बुला कर उस के पैर धोए. उन्होंने इस घटना पर दुख जताते हुए दशमत को फूलमाला पहनाई, उस की आरती उतारी और उसे गणेश की एक तसवीर भी तोहफे में दी. सीएम हाउस का माहौल बड़ा ही पौराणिक और घर वापसी सरीखा था.

इस थूक कर चाटने से न तो दशमत के साथ हुई ज्यादती की भरपाई होनी है और न ही आदिवासियों को समाज में इस से कोई इज्जत मिलने वाली है. मुख्यमंत्री के एक आदिवासी के पूजापाठ और आरती से तुलसीदास का लिखा मिट नहीं जाना है, बल्कि यह और गहरा सकता है. कहने का मतलब यह नहीं है कि पेशाब का बदला पेशाब ही होना चाहिए, लेकिन दिखावे के इस पछ्तावे का मतलब हर कोई खूब समझ रहा है कि यह एक सियासी और धार्मिक पाखंड ही है.

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