आज मंगलवार है और राज के आने का दिन भी. सरोज कल रात से ही अपनी आंखों में अनगिनत सपनों को संजोए सो नहीं पाई थी. राज के नाम से ही उस के जिस्म में एक अनछुई हलचल हिलोरें मार रही थी. वह अपनेआप को 18 बरस की उस कमसिन कली सा महसूस कर रही थी, जिसे पहली बार किसी लड़के ने छुआ हो.

सरोज ने आज बहुत ही जल्दी काम निबटा लिया था. विकास को भी टिफिन दे कर बहुत ही अच्छे मन से विदा किया था. विकास के साथ सरोज की शादी 10 साल पहले हुई थी. उन्होंने सरोज को 2 प्यारेप्यारे बच्चे उस उपहार के रूप में दिए थे, जिस का मोल वह कभी नहीं चुका सकती थी.

विकास बहुत ही सीधे स्वभाव के इनसान हैं. वे सरोज की हर बात में सिर्फ और सिर्फ अपनी रजामंदी ही देते हैं. कभी भी उन्होंने सरोज के फैसले पर अपने फैसले की मुहर नहीं लगाई है. सच कहें, तो सरोज अपने गरीबखाने की महारानी है.

इस सब के बावजूद बस एक यही बात सरोज को बेचैन कर देती है कि विकास को तो बच्चे हो जाने के बाद उस से दूर होने का बहाना मिल गया था. वह जब भी रात में उन के करीब जा कर अपनी इच्छा जाहिर करने की कोशिश करती, तो वे ‘आज नहीं’, ‘बच्चे उठ जाएंगे’, ‘फिर कभी’ कह कर सरोज को बड़ी ही सफाई से मना कर देते थे. वह भी अपने अंदर उठते ज्वारभाटे के तूफान को दबाते हुए आंखों में आंसुओं का सैलाब ले कर सोने का नाटक करती थी.

इसी तरह महीने, फिर साल बीतने लगे. सरोज उस मछली सा तड़पने लगी, जिस के पास समुद्र तो है, फिर भी वह प्यासी ही है. इसी प्यास को अपने गले में भर कर सरोज भी नौकरी करने लगी. समय अपनी रफ्तार से चलता रहा और वह और ज्यादा प्यास से तड़पने लगी.

राज सरोज के सीनियर थे और अपनी हर बात उस से शेयर करने लगे थे. वह भी जैसे उन के मोहपाश में बंध कर अपनी सीमाओं को पार कर उन के साथ चलते हुए सात घोड़े के रथ पर सवार आकाश में बिन पंख के उड़ने लगी थी.

धीरेधीरे राज और सरोज कब एक होने को उतावले हो गए, सच में पता ही नहीं चला और आखिरकार आज वह दिन भी आ गया, जब राज को अपने घर आने का न्योता देते हुए उस ने अपनी आंखों से रजामंदी भी दे दी थी.

आज सरोज ने छुट्टी ले ली थी और राज आधे दिन की छुट्टी ले कर उस के घर आ जाएंगे. बस उसी पल के इंतजार में वह न जाने कितनी बार खुद को आईने में निहारती रही. उसे आज एक अजीब सी सिहरन महसूस हो रही थी.

सरोज आज उस कुएं में खुद को विलीन करने जा रही थी, जिस के पनघट पर उस का कोई हक नहीं था. पर वह आज जी भर कर उस कुएं का पानी पीना चाहती थी. बस यही सोचते हुए वह एकएक पल गिन रही थी.

अचानक दरवाजे की घंटी ने सरोज का ध्यान हटा दिया. आज अपने बैडरूम से मेन दरवाजा खोलने तक का सफर उसे कई मीलों सा लग रहा था. उस के कदम शरीर का साथ नहीं दे रहे थे. वे उस के दिल में उठे उस तूफान को शांत करने में लगे थे, जो उस के और राज के बीच एक कमजोर से धागे को बांध कर उस से विश्वास की मजबूती की चाहत करने की सोच रहे थे.

बड़ी ही जद्दोजेहद से सरोज दरवाजे तक पहुंच पाई. आज पहली बार दरवाजे को खोलने में वह अपनी नजरों को नीचे किए हुए थी. वह पापपुण्य के बीच अपनी उस प्यास को महसूस कर रही थी, जिस की बेचैनी उसे जीने नहीं दे रही थी.

सरोज ने धड़कते दिल से दरवाजा खोला. देखा कि सामने विकास हाथ में गजरा लिए मुसकराते हुए खड़े थे.

‘‘क्या सरोज, इतनी देर से घंटी बजा रहा था. क्या कर रही थी?’’

सरोज कुछ बोल पाती, इस के पहले ही विकास ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस के बालों को गजरे से सजातेसजाते वे धीरे से कानों में फुसफुसाने लगे, ‘‘अच्छा हुआ, जो तुम ने आज छुट्टी कर ली. मैं कल से ही तुम्हें सरप्राइस देने की सोच चुका था. आज मैं पूरा दिन सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे मुताबिक जीना चाहता हूं और तुम्हारी सारी शिकायतें भी तो दूर करनी हैं.’’

सरोज सपनों की दुनिया से बाहर आ गई और अपने उस फैसले पर पछताने लगी, जो आज उस के और विकास के विश्वास को तोड़ते हुए उसे उस पलभर के सुख के बदले आत्मग्लानि के अंधे और सूखे कुएं में गिराने वाला था.

सरोज विकास की बांहों से खुद को मुक्त कर के उस अंधेरे को फोन करने जाने लगी, जो उसे अपने खुशहाल परिवार की रोशनी से दूर करने वाला था और वह अंधकार भी सरोज ने ही तो चुना था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...