• रेटिंगः तीन स्टार
  • निर्माताः सनकाल प्रोडक्षन इंटरनेशनल
  • निर्देशकः प्रवीण मोरछले
  • कलाकारः सीमा बिस्वास,भवन तिवारी,अरियाना सजनानी,अजय चैरे,तनिष्का अठानवले,हेमंत देवलेकर, ज्योति
  • दुबे, शुभांगिनी श्रीवास
  • अवधिः एक घंटा बयालिस मिनट

मानवीय संवेदनाओं और रिष्तों को काव्यात्मक तरीके से सिनेमा में पेश करने के लिए पहचान रखने वाले फिल्मकार प्रवीण मोरछले इस बार वर्तमान सामाजिक व राजनीतिक परिदृष्य के साथ वर्तमान सरकार के समय में पुस्तकों के प्रति सरकारी रैवेए पर कटाक्ष करने वाली फिल्म ‘‘सर मेडम सरपंच’’ लेकर आए हैं,जो कि 14 अप्रैल से हिंदी व अंग्रेजी सहित सात भाषाओं में पूरे देा के सिनेमाघरों में पहुॅचने वाली है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में अमरीका में न्यूकलियर टेक्नोलाॅजी में पीएचडी करने के बाद अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए एना (एरियाना सजनानी) मध्य प्रदेश के बड़गाँव में एक पुस्तकालय खोलने के लिए वापस आती है,जहां उसके चाचा गुरूदेव(हेमंत देवलेकर), दादी (सीमा बिस्वास ),चाची व चचेरी बहन (तनिष्का अठानवले ) रहती है.एना को पता चलता है कि अपने पिता की जिस जगह पर वह पुस्तकालय खोलना चाहती है,उस पर गांव के नेता राजनारायण भइया(भगवान तिवारी) ने कब्जा कर रखा है.राजनारायण की पत्नी सुधा (ज्योति दुबे) गांव की सरपंच है,पर असली सरपंच तो राज नारायण (भवन तिवारी) ही हैं. एना की दादी (सीमा विश्वास) को मोबाइल की लत है,जो अपनी पोती और बहू के साथ मनमुटाव करती है और मोाबइल पर व्हाट्सअप पर व्यस्त रहती है.एना पुस्तकालय की जगह के लिए भैयाजी (भवन तिवारी) से भिड़ जाती है.अब षुरू होता है एना का उसके पिता के सपने को साकार करने के लिए संघर्ष… जी हाॅ!एना अपने नेक काम को पूरा करने के लिए संघर्ष करती है.जबकि नेता भईया जी के इषारे पर स्कूल प्रिंसिपल से लेकर स्थानीय अधिकारियों की हास्यास्पद मांगों के चलते एना पुस्तकालय के लिए दस एनओसी नही जुटा पाती.पर जब एना खुद ही सरपंच का चुनाव लड़ने का ऐलान करती है,तो किस तरह चीजें बदलती है.राज नारायण किस तरह गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं.

लेखन व निर्देशनः

बेहतरीन पटकथा व निर्देशन के चलते फिल्म षुरू से ही कई ज्वलंत मुद्दों को हास्य व्यंग के साथ उठाते हुए दर्षकों को बांधकर रखती है.लेकिन एना के चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद फिल्मकार की फिल्म पर से पकड़ कुछ ढीली पड़ जाती है.‘न्यू इंडिया‘(जब दादी अपनी पोती से सवाल करती है कि ‘न्यू इंडिया का होत है?), ट्रिलियन इकोनॉमी, अमरीका की दबंगई, पाठ्यपुस्तकों में इतिहास को संशोधित करने, जाति और सांप्रदायिक राजनीति, क्राउड- फंडिंग,सोशल मीडिया,गांवों में स्वास्थ्य सेवा,ग्रामीण राजनीति,नेता बनकर गांव वालों की जमीन पर जबरन कब्जा,नारी षोशण से लेकर हर उस बात को व्यंगकार हरिषंकर परसाइ के ही अंदाज में फिल्म मेें पेश करने में फिल्मकार प्रवीण मोरछले सफल रहे हैं.मगर जब इंटरवल के बाद फिल्मकार का ध्यान चुनाव पर आ जाता है,तो वह भटक जाते हैं.फिर वह पुस्तकों को लेकर कोई बात नही करते.उन्होने फिल्म में ग्रामीण परिवेश,वर्तमान सामाजिक व राजनीतिक उथल पुथल आदि को सजीवता प्रदान की है.कई जगह वह सरकार पर हास्यव्यंग षैली में गंभीर चोट भी करते हैं.आठवीं पास नेता जी का षिक्षा को लेकर संवाद-‘‘देश की तरक्की हो रही है,तो हमें पढ़ने की क्या जरुरत.?’सरकार व षिक्षा प्रणाली पर जबरदस्त तमाचा है. स्कूल के प्रिंसिपल एना को पुस्तकालय खोलने के लिए वास्तु विभाग से एनओसी प्राप्त करने के लिए कहते हैं.क्योंकि उनकी राय में कुछ किताबें इतनी शक्तिशाली होती हैं कि वह सरकारों को हिला सकती हैं. फिल्म के कुछ संवाद- मसलन-‘पढ़ाई और नौकरी तलाकषुदा हैं. ’,‘पुस्तकें कई विचारधाराओं की होती हैं.’‘हिंदुस्तान में किताबें भी दान देना आसान नहीं.’,‘गांधी जी एक विचार धारा है,जो मिट नही सकती.’अच्छे बन पड़े हैं.

अभिनयः

पूरी फिल्म में मोबाइल पर व्यस्त रहने के साथ ही समाज व राजनीति पर बेपरवाह मगर सटक बात कह देने वाली अम्मा के किरदार में सीमा बिस्वास ने दमदार परफॉर्मेंस दी है.वह दर्षकों के दिलो दिमाग पर लंबे समय तक छायी रहती हैं. भइया जी के किरदार में भवन तिवारी कुछ जगह खतरनाक नजर आते हैं,मगर कुछ दृष्यों में वह मसत खा गए हैं.अमरीका से वापस आयी एना के किरदार में एरियाना सजनानी अपने अभिनय का जादू नही जगा पायी.हालाँकि,उनका संवाद अदायगी मेें अमरीकी लहजा उनके चरित्र को प्रामाणिक बनाता है.नाई के छोटे किरदार में अजय चैरे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहे हंै.छोटी बच्ची चुटकी के किरदार में अपने अभिनय से तनिष्का अठानवले दर्षकों का मन मोह लेती हैं.कई जगह चुटकी को देखकर समझ में आता है कि वर्तमान समय के राजनीतिक व सामाजिक परिवेश में बच्चे किस तरह समय से पहले ही परिपक्व हो जाते हैं.

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