इंदौर की एक सरकारी कालोनी के पास वाला मैदान. शाम का समय. एक घने पेड़ के नीचे बैठे हुए बाबा.तभी ‘बचाओबचाओ’ की आवाज आने लगी. एक पेड़ के नीचे ट्यूशन पढ़ते हुए बच्चे और टीचर घबरा गए. बाबा भी घबरा गए. उन्होंने लड़खड़ाते हुए कुरसी से उठने की कोशिश की, तो हड़बड़ा कर गिर गए. बाबा का एक पैर घुटनों के नीचे से कटा जो हुआ था.देखा तो सामने से एक लड़की जलती हुई ‘बचाओबचाओ’ की आवाज लगाते हुए मैदान में यहांवहां भाग रही थी.

खुले मैदान में चलती तेज हवा ने उस आग को भड़का दिया था.मैदान में बचाव का कोई साधन नहीं था. बाबा जोरजोर से चिल्लाने लगे, ‘‘कोई मेरी बैसाखी लाओ रे…

’’टीचर वहीं पास में खड़े थे. उन्होंने बाबा को बैसाखी पकड़ाई. इसी बीच बाबा चिल्लाने लगे, ‘‘कोई मेरी बेटी को बचाओ… बेटी आशु… मेरी बेटी आशु…’’

और वे बैसाखी के सहारे बदहवास से इधरउधर भागने लगे.तभी मैदान के किनारे बने पुलिस थाने से कुछ लोग दौड़ते हुए आए, तब तक आशु जमीन पर गिर चुकी थी.

किसी पुलिस वाले ने उस पर कंबल डाल कर आग बुझाने की कोशिश की…लंबी सुरंग… घुप अंधेरा… मां की हंसी की आवाज… रोने की आवाज… ‘मेरी आशु’… मां की आवाज फिर गूंज रही थी… ‘अगर हम से कोई भूल हुई है और हम उसे बताते नहीं हैं, अगर सुधारते नहीं हैं, तो यह उस से भी बड़ी भूल है…‘ईशा… तुम ऐसी भूल कभी मत करना बेटी. ईशा… सुनो बेटी, मेरी बेटी ईशा…’‘मां…’ मां अचानक उस के नजदीक आईं, फिर एकदम से दूर होती चली गईं.

तभी बाबा की बैसाखी की ‘ठकठक’ नजदीक आती गई. ‘ठकठक’ बढ़ने लगी… और बढ़ने लगी. इतनी बढ़ने लगी कि उस के दिमाग में उस की आवाज गूंजने लगी.‘‘बाबा…’’ ईशा चिल्लाई… चारों तरफ घुप अंधेरा.‘‘मां…’’ ईशा जोर से चिल्लाई.‘‘क्या हुआ ईशा?’’

ईशा की नींद खुल गई. वह पूरी तरह पसीने से भीगी हुई थी. सांसें तेजतेज चल रही थीं. सामने देखा तो बाबा कुरसी पर बैठे थे. उन की बैसाखी पास ही दीवार के सहारे रखी थी. मां ईशा का सिर अपनी गोद में ले कर बैठी थीं. मां घबरा गईं और पूछा, ‘‘क्या हुआ ईशा?

कोई बुरा सपना देखा था क्या, जो डर गई हो?’’ईशा ने देखा कि सुबह के 7 बज रहे थे. मतलब, रात को सपने में वही देख रही थी… आशु को.‘‘मां… मां…’’

कहते हुए ईशा ने मां को कस कर पकड़ लिया और जोरजोर से रोने लगी.मां ने उसे रोने दिया. जब रो कर मन थोड़ा हलका हुआ तो ईशा बोली, ‘‘मां, मैं आशु को नहीं भूल पाती हूं. आज भी रात को मुझे सपने में वह सब दिखा… जलती हुई आशु…’’ ईशा बोली.‘‘ईशा, आशु तेरी बहन थी. हम उसे कैसे भूल सकते हैं… मेरी बेटी थी, तेरी बड़ी बहन थी. उस का दर्द,

उस की तकलीफ हम सब ने अपनी आंखों से देखी है… बाबा को देखो, कैसे हिम्मत से काम लिया उन्होंने. बाबा तो वहीं थे मैदान में.’’तभी ईशा का बड़ा भाई गजेंद्र चाय ले कर आ गया. प्यार से सब उसे गज्जू कहते थे.‘‘नहीं भैया, अभी चाय का मूड नहीं है,’’ ईशा बोली.‘‘चाय पी लोगी, तो मन अच्छा रहेगा. थकीथकी लग रही हो, फ्रैश हो जाओगी,’’ कह कर गज्जू ने चाय का कप ईशा को पकड़ा दिया. ईशा चाय पीने लगी.‘‘ईशा, आज कालेज जाओगी न?

अगर घर पर रैस्ट करने का मूड हो तो रैस्ट करो,’’ मां ने कहा.‘‘जाऊंगी मां…’’ ईशा ने चाय खत्म कर ली थी, ‘‘आज ऐक्स्ट्रा क्लास भी है.’’‘‘तो ठीक है, तू नहा कर तैयार हो जा. मैं तेरे लिए नाश्ता बनाती हूं,’’ कह कर मां किचन में चली गईं.ईशा के गजेंद्र भैया उर्फ गज्जू पुलिस में थे.

नजदीकी थाने में उन की पोस्टिंग थी. वे तैयार हो कर वहां के लिए निकल गए थे.ईशा के बाबा भी पुलिस में थे, पर एक हादसे में एक पैर कटने से उन की नौकरी नहीं रही थी. प्रशासन ने उन के बेटे को पुलिस में नौकरी दे दी थी, इसलिए जो सरकारी मकान बाबा के नाम अलौट था,

वह अब गज्जू के नाम हो गया था.नाश्ता कर के ईशा अपनी सरकारी कालोनी पार कर सड़क पर आटोरिकशा का इंतजार कर रही थी. तकरीबन 18 साल की ईशा देखने में खूबसूरत थी. कदकाठी भी अच्छी थी. रंग गेहुंआ था और उस की मुसकान बड़ी प्यारी थी.

ईशा में एक और बात खास थी, जो उस की खूबसूरती में चार चांद लगाती थी और वह थी उस की घुटनों तक लंबी चोटी. ईशा के बाल बड़े ही काले और घने थे..

. ईशा उन का बड़ा ध्यान रखती थी. उसे जींसटीशर्ट पहनना कम पसंद था, जबकि सूटसलवार चाहे रोज पहनवा लो.ईशा जावरा कंपाउंड के देवी अहिल्या गर्ल्स कालेज में पढ़ती थी. कालेज में उस की सहेली मारिया उस का इंतजार का रही थी. वे दोनों बीएससी की पढ़ाई कर रही थीं.लैक्चर खत्म होने के बाद ईशा मारिया के साथ कालेज के गार्डन मे आ गई.

‘‘चल ईशा, कैंटीन में कुछ खाते हैं…’’ मारिया बोली.‘‘नहीं यार, मैं घर से नाश्ता कर के आई हूं. पेट में बिलकुल भी जगह नहीं है,’’ ईशा बोली.‘‘तेरी मां वक्त की बड़ी पाबंद हैं… रोज टाइम पर नाश्ता,’’ मारिया ने कहा.‘‘मां मेरा बहुत ध्यान रखती हैं.’’

‘‘अच्छा, चाय तो पी सकती है न मेरा साथ देने के लिए?’’ मारिया ने पूछा.‘‘ठीक है, चाय पी लेंगे,’’ ईशा ने कहा और मारिया के साथ कालेज की कैंटीन में आ गई. 2 चाय और एक सैंडविच का टोकन ले कर मारिया काउंटर पर पहुंची. और्डर आने पर ईशा ने उस के हाथ से चाय का गिलास ले लिया.ईशा चाय पीने में बिजी हो गई और मारिया सैंडविच खाने में.

थोड़ी देर बाद मारिया बोली, ‘‘यार ईशा, एक बात पूछूं, अगर बुरा नहीं मानेगी तो?’’‘‘बुरा क्यों मानूंगी…’’ ईशा ने चाय का घूंट भरते हुए कहा.‘‘तेरे घर में सब इतना ध्यान रखते हैं तेरा, पर मेरे घर वालों को फुरसत ही नहीं है. मम्मी किटी पार्टियों में ज्यादा बिजी रहती हैं और डैड अकसर टूर पर.

घर का नाश्ता मिले तो महीनों बीत जाते हैं. नौकरों के हाथ का नाश्ता खाखा कर बोर हो जाती हूं…’’‘‘तू पूछ रही है या बता रही है?’’ ईशा ने टोका.‘‘मेरा मतलब यह था कि तेरे घर वाले इतने अच्छे हैं, फिर तेरी बहन आशु ने सुसाइड क्यों किया था? क्या प्रौब्लम थी? लोग बातें बनाते हैं…’’‘‘देख मारिया, इस टौपिक पर बात मत कर… मुझे पसंद नहीं…’’ कहते हुए ईशा चिढ़ गई.‘‘नहीं यार, तू मेरी फ्रैंड है, इसलिए सोचा कि सीधे तेरे से ही पूछ लूं. इधरउधर की बातों से बेहतर है,’’ मारिया थोड़ी सहम गई.ईशा ने कुछ नहीं कहा और कैंटीन से उठ कर कालेज के मैदान में एक पेड़ के नीचे रखी बैंच पर जा कर बैठ गई.

मारिया ने उस के जख्मों को कुरेदना ठीक नहीं समझा और वह वहीं रह गई.ईशा को आशु के साथ बिताए पल याद आने लगे. फास्ट फूड की तरह आशु ने अपनी जिंदगी को भी फास्ट फूड जैसा बना लिया था. उसे हर बात में जल्दी होती है. उसे हर चीज तुरंत चाहिए होती थी.

सीढ़ी दर सीढ़ी मिली कामयाबी में उसे यकीन नहीं था. पर चूंकि वह एक मिडिल क्लास परिवार की थी, तो सब से बड़ी कमी पैसे की थी.कालेज में अमीर घरों की लड़कियों को कार से आतेजाते देख कर आशु को अपनी किस्मत पर बहुत गुस्सा आता था.

उसे महंगे रेश्मी कपड़े पहनना और महंगे ब्यूटी पार्लर में जाना पसंद था. इन खर्चों को पूरा करने के लिए उस ने सेल्स गर्ल का काम चुन लिया था, वह भी घर पर बताए बिना.एक दिन आशु अपने प्रोडक्ट ले कर एक घर में गई. एक अधेड़ आदमी ने बाहर आ कर पूछा,

‘‘बोलो बेबी, क्या काम है?’’‘‘जी अंकल, मेरे पास किचन में काम आने वाले कुछ प्रोडक्ट हैं… आप देखिए न प्लीज और आंटीजी को भी दिखाइए,’’ आशु ने कहा.‘‘आओ… अंदर आ जाओ…’’ वह अधेड़ बोला, ‘‘अरे, सुनती हो…’’ जैसे उस ने अपनी पत्नी को आवाज लगाई हो.आशु ने जैसे ही घर के ड्राइंगरूम के अंदर कदम रखा, उस आदमी ने दरवाजा बंद कर दिया… आशु घबरा गई और वहां से जाने को हुई कि तभी वह आदमी बोला, ‘‘कहां जा रही हो, प्रोडक्ट तो दिखाओ…’’जब अंदर से उस आदमी की पत्नी वहां आई, तो आशु की जान में जान आई और वह तुरंत सोफे पर बैठ गई.तभी वह आदमी भी आशु के पास सोफे पर आ कर बैठ गया और उस ने आशु के गले में अपनी बांहें डाल दीं.

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