रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता: टाॅम हैंक्स और रीटा विल्सन
लेखकः डेविड मैगी
निर्देषकः मार्क फोस्र्टर
कलाकार: टाॅम हैंक्स, ट्यूमैन,राहेल केलर, मारियाना ट्रेविएना व अन्य…
अवधिः दो घंटे सात मिनट
प्रदर्षनः दस फरवरी से भारतीय सिनेमाघरो में,हिंदी,अंग्रेजी,तमिल ,तेलगू भाषाओ में

‘एवरीथिंग पुट टुगेदर’,‘द काइट रनर’,‘क्रिस्टोफर रौबिन’ सहित तेरह फिल्में निर्देषित कर चुके स्वीडिष फिल्मकार मार्क फोस्र्टर मानवीय रूचि वाली भावनाआंे से सराबोर फिल्म ‘‘ए मैन काल्ड ओटो’’ लेकर आए हैं.यह फिल्म स्वीडिष किताब ‘ए मैन काल्ड ओवे’’ पर आधारित है.इस किताब पर एक स्वीडिष फिल्म भी बन चुकी है.यह स्वीडिष फिल्म अपने ेदेष की सर्वाधिक कमायी करने वाली तीसरी फिल्म साबित हो चुकी है.
फिल्म इस बात को भी रेखंाकित करती है कि नियति अटल है.तो वहीं यह फिल्म परिस्थितिवष बदलते इंसानी स्वभाव और इस सवाल का जवाब भी देती है कि हर इंसान अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जी सकता है या नहीं…? फिल्म यह संदेष भी देती है कि वह जिस इंसान के पास अच्छे दोस्त हों,उसे कोई हरा नही सकता.

कहानीः

यह कहानी एक सफलतम इंजीनियर एंडरसन उर्फ ओटो की हैं,जो कि अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं.इस उम्र में वह काफी खूसट हो गए हैं.खुद को नियमों का पहरेदार मान बैठे हैं.ओटो अपने ऊपर अपने ही पूर्व अधीनस्थ इंसान को पदोन्नत देखकर नौकरी से त्यागपत्र दे देते हैं.फिर वह बाजार से रस्सी खरीदकर लाते हैं,जिससे फांसी का फंदा बनाकर वह उस पर लटककर अपनी जिंदगी को खत्म करना चाहते हैं.पर रस्सी टूट जाती है.वह बच जाते हैं.
अपने आस पास के लोगों से वह ढंग से बात नही करते हैं.कुछ लोग इनसे तंग आ चुके हैं.उनके सामने वाले फ्लैट में एक मैक्सिन औरत मैरिसोल (मारियाना ट्रेविएनो) अपने पति टाॅमी(मैनुअल गार्सिया रुल्फो) व दो बेटियों के साथ रहने आती है.जबकि वह तीसीर बार मां बनने वाली है.एंडरसन उर्फ ओटो,मैरिसोल के साथ भी रुखा व्यवहार करते हैं.पर मैरिसोल किसी न किसी बहाने एंडरसन के करीब आने व उनसे बातें करने की कोषिष करती रहती है.मैरिसोल ,ओटो को अपने मेक्सिको के व्यंजन और कुकीज पेश करती रहती है.बार बार ओटो से मदद मांगती रहती है.ओटो ,मेरिसोल को कार चलाना भी सिखाते हैं.
बीच बीच में ओटो अपनी पत्नी सोनिया (राहेल केलर) कब्र पर जाकर फूल चढ़ते रहते हैं.इसी के साथ उनकी अतीत की जिंदगी के कुछ पन्ने सामने आते रहते हैं.
जब ओटो,मैरिसोल से उनके फोन से किसी को फोन करना चाहते हैं,तब ओटो को अपनी कहानी बतानी पड़ती हैं.तब ओटो की जिंदगी की प्रेम कहानी पता चलती है.युवावस्था में ओटो(ट्यूमैन)े की पहली मुलाकात सोन्या (राहेल केलर) से ट्ेन में एक किताब को देने से होती है,जो कि सोन्या के हाथ से सड़क पर गिर गयी थी.फिर दोनों में प्यार हो जाता है.जब सोन्या मां बनने वाली होती है,तो छठे मांह मंे दोनो नागरा फाल्स घूमने जाते हेै,वापस आते हुए बस दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है.सोन्या अस्पताल पहुॅचती है,वह अपने बच्चे को खोने के साथ ही अपाहिज हो जाती है.उन्हे एक अलग जगह पर रखा जाता है.पर छह माह पहले ही सोन्या की मौत हो गयी थी.तब से ओटो आत्महत्या कर सोन्या के पास जल्द से जल्द पहुंचने का असफल प्रयास करते रहते हैं.इन्ही प्रयासो के बीच मारिसोल भी आती हैं.तो वहीं ट्ांस युवक के अलावा एक अन्य पड़ोसी व दोस्त रूबेन की भी कहानी चलती रहती है.

लेखन व निर्देषनः

फिल्म की धीमी गति वाली षुरूआत इसकी कमजोर कड़ी है. स्क्रिप्ट लेखन बहुत अच्छा है.इसमेंभरपूर मनोरंजन है.काॅमेडी का टच भी है.तो वहीं भावनाओं का सैलाब भी है.फिल्म में क्रोधी वभाव के बुजुर्ग इंसान की जिंदगी को सही तरीके से उकेरा गया है.फिल्म में कहीं कोई मेलोड्ामा नही है. साधारण कहानी पर जबरदस्त व प्रभावषाली पटकथा लिखी गयी है.निर्देषक ने अपनी कमाल की निर्देषकीय प्रतिभा कमाल की हैं.यह लेखन व निर्देषन की खूबी के चलते हुए ओटो की जिंदगी में बदलाव नजर आता है,जिसमें कहीं कोई मेलोड्ामा,हंगामा या संवाद बाजी नही है.पड़ोसी से रिष्तों को भी खूबसूरती से रेख्ंााकित किया गया है.फिल्म का क्लायमेक्स दर्षक की आॅंखों में आंसू आ ही जाते हैं.
यॅॅंू तो भारत में सलमान खान स्वयं ‘य हो’ व ‘बजरंगी भाईजान’ जैसी दो तीन फिल्मों मे मानवता व लोगो की मदद करने का संदेष देने वाली घटिया व अप्रभावषाली तरीके से परोस चुके हैं.मगर यहां फिल्मकार मार्क फोस्टर बिना उपदेष झाड़े मानवता व लोगों की मदद करने का संदेष पहुॅचाने मंे सफल रहते हैं.वह मनोरंजक तरीके से इस बात को भी लोगों के दिलों में उतारते हंै कि इंसान हमेषा अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी नही जी सकता.कोई अदृष्य षक्ति उन्हे जिंदगी जीना सिखाती है.

अभिनयः

क्रोधी बुजुर्ग इंसान के किरदार में टाॅम हैंक्स ने का अभिनय दिल को छू जाता है.वह खड़ूस होने के साथ साथ लोगों की मदद करने से पीछे नहीं रहते.हर तरह के भाव उनके चेहरे पर पढ़ा जा सकता है.खड़ूस मगर अच्छे दिल वाले ओटो के चरित्र में टाॅम हैंक्स ने मानवता व इंसानियत का सबक बिना किसी प्रयास के दर्षकांे तक पहुॅचाने में ेसफल रहे है.हैंक्स ने अपने अभिनय से यह बताने में सफल रहते हैं कि ओटो का दुख लगभग उनके नियंत्रण से बाहर है और क्रोध उनकी निराशा का विकल्प है.उनके युवा वस्था के किरदार में उनके निजी जीवन के बेटे व अभिनेता ट्यूमैन ने भी कमाल का अभिनय किया है.ट्ांस किषोर के छोटे किरदार में ट्रांस अभिनेता मैक बायडा अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं.मैरीसोल के किरदार में ट्रेविनेओ मैरिसोल भी अपनी छाप छोड़ जाती हैं. टाॅमी के किरदार में मैनुअल गार्सिया रुल्फो के हिस्से करने को कुछ खास रहा ही नहीं.अन्य कलाकारों का अभिनय ठीक ठाक है.
षान्तिस्वरुप त्रिपाठी

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