शादी के मंडप पर वरवधू सात फेरे और सात वचन लेते हैं जिस का लब्बोलुआब यह रहता है कि वे एकदूसरे के प्रति ताउम्र निष्ठा रखेंगे, एकदूसरे का ध्यान रखेंगे, सात जन्मों तक साथसाथ रहेंगे. यह अलग बात है कि शादी के 7 माह बाद ही उन में खटपट होने लगती है.

दिलचस्प यह है कि इस खटपट को कानून ने ध्यान में रखा है. यदि पहले 7 वर्षों में किसी ब्याहता की मौत किसी भी कारण से होती है तो उस की जांच इस एंगल के आधार पर अवश्य की जाती है कि कहीं उस की मौत का कारण पति या उस की ससुराल वाले तो नहीं हैं.

कानून कित्ता दूरदर्शी होता है. लोग केवल सात फेरों, सात वचनों व सात जन्मों के साथ की ही बात करते हैं, वे असल बात भूल जाते हैं कि पत्नी के पहले ही दिन से सात अधिकार और हो जाते हैं. मूलभूत अधिकार केवल संविधान ने नागरिकों को ही नहीं दिए हैं, हमारा समाज संविधान से भी ज्यादा दूरदर्शी व ताकतवर है. उस ने पत्नी को प्रथम दिवस ही 7 मूलभूत अधिकार दे दिए हैं. इन्हें ब्याह के बाद के डैरिवेटिव अधिकार भी कह सकते हैं. ये पत्नी होने पर उस के बटुए में आए अधिकार हैं और कुलमिला कर इन 7 अधिकारों का आउटकम यह होता है कि पति अधिक अधिकार में हो जाता है केवल पत्नी के.

पहला अधिकार : 

पति अपना दिमाग आले में ताले में रख दें, अब हर छोटीबड़ी बात में दिमाग पत्नी का चलेगा. पति के दिमाग का अब कोई उपयोग नहीं है. हां, यह जड़ न हो जाए, इसलिए 6 माह में एक बार निकाल कर उस का उपयोग करने की अनुमति होगी और यह भी उस की हां में हां मिलाने में. वैसे, अब वह जड़ ही रहे तो ज्यादा बेहतर होगा. हां, आजकल डिजिटल लौकर आ रहे हैं तो पति अपने दिमाग को डिजिटाइज कर के यहां भी रखवा सकता है. मतलब यह है कि आप अपने को बुद्धिमान समझने की गलतफहमी दिमाग से निकाल दें भले ही आप उच्चकोटि के वैज्ञानिक हों या कोई आला अधिकारी. घर में तो अब एक ही महान बुद्धिमान रहेगा.

दूसरा अधिकार :

पत्नी के रिश्तेदार पति से ज्यादा अहम हैं. ब्याह के बाद पति के रिश्तेदारों से ज्यादा बड़े व अहम पत्नी के रिश्तेदार होते हैं, इस पर कोई अन्यथा वहम मन में न पाले. यह अधिकार पत्नी से कोई छीन नहीं सकता है. यदि पति का भाई या पिता घर आएं तो वह काम से छुट्टी न ले वरना उस की छुट्टी हो सकती है? लेकिन उस की छुट्टी यहां भी हो सकती है यदि उस ने यह घुट्टी न पी हो कि साले या उस के ससुरजी के आने पर उसे दफ्तर या अपने कामकाज को तुरंत तिलांजलि दे देनी है वरना उस की इज्जत का फालूदा बन उस की श्रद्धांजलि सभा हो जाएगी. यह पत्नी के मूलभूत अधिकार के तहत पति को निभाना ही है.

तीसरा अधिकार : 

अब आप का बातबात पर अपनी खिंचाई करवाने का अधिकार रहेगा. बात कुछ भी हो सकती है, दफ्तर से आधे घंटे ही सही बिना काम के देर कैसे हुई, सब्जी, फलफूल लाना कैसे भूल गए, दवा कैसे भूल गए. वह बातबात में आप को गरिया भी सकती है और आप को इस का प्रतिकार नहीं करना है. यदि वह गलत है तो भी आप को चुप रहना है और यदि आप सही हैं तो भी आप को चुप ही रहना है. यही दांपत्य जीवन की सफलता का राज है.

चौथा अधिकार :

पत्नी के पांव पांव और पति के पैर, मूड तो पत्नी का ही माने रखेगा. पति को अब इश्क, जब पत्नी का मूड हो, तब करना होगा. उस के मूड का ध्यान रखना होगा. यदि वह बोलेगी कि बैठ जाओ तो बैठ जाना चाहिए, यदि वह बोले कि खड़े हो जाओ तो खड़े हो जाना होगा. मूडीज देशों की अर्थव्यवस्था का मूड बताती है लेकिन पत्नी का मूड इश्क के मूड के बारे में बताता है.

5वां अधिकार : 

सालभर के अंदर आप का कोई ऐसा दोस्त नहीं रहेगा जिसे कि आप जिगरी दोस्त कह सकें. यदि दोस्ती करनी हो तो पत्नी से ही करनी होगी. वही सब से अच्छी दोस्त होगी. बचपन की दोस्ती भूल जाएं, जवानी की भूल जाए, सब भूल जाएं. दोस्तों को एकएक कर के दूध से मक्खी की तरह निकाल दें, इसी में भलाई है. पत्नी तशरीफ लाई हैं तो दोस्त अब जीवन की छांछ हैं और पत्नी मलाई.

छठा अधिकार : 

अब आप गलतियों के पिटारे रहोगे. बातबात में आप की गलतियां ढूंढ़ी जाएंगी और आप को सिर झुका कर सब चुपचाप सहन करना है, जैसे कि गधा सदियों से करता आया है. आप का काम सिर नीचा करना है और उस का अधिकार है कि सिर ऊंचा कर के आप की नुक्ताचीनी कर आप को गधे से भी नीचे ले आए.

7वां अधिकार :

अपनी हौबी को गोली मार दें. यदि आप की कोई ऐसी हौबी है जोकि पत्नी की नहीं है तो आप को पत्नी से पहले कंसल्ट करना पड़ेगा. यदि वह आज्ञा देगी तभी आप उसे जारी रख पाएंगे वरना तो घरगृहस्थी के कारण उसे आप को बायबाय करना होगा, चाहे यह लेख लिखना हो, खेल हो या कुछ भी हो यह उस की हौबी होगी कि वह आप की हौबी के लिए अनुमति देती है कि नहीं. जब सिद्धू राजनीति के लिए कौमेडी शो छोड़ सकता है तो आप खुद की पत्नीजी के लिए अपनी एक सड़ी सी हौबी के लिए काहे को अड़ी का विचार मन में रखते हो, हबी जी.

अब आप ने पत्नी के मूल अधिकार तो सुन ही लिए, तो मैं यह कह सकता हूं कि ये 7 अधिकार, वैसे, आप की कुलमिला कर भलाई के लिए ही हैं. सो, भरसक इन अधिकारों के एबसोल्यूट उपयोग में पत्नी की मदद करें, आप की जिंदगी एक अदद जिंदगी बन कर रह जाएगी. वैसे मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि आप पूरा कोऔपरेट कर रहे हैं तभी तो साथ बने हुए हैं. और आप दफ्तर में भी टोटल सबऔर्डिनेशन के ही कारण अच्छे मातहत माने जाते हैं तभी तो समय पर पदोन्नति मिलती है तो पत्नी का भी मातहत ही तो बनने की बात गंगू कर रहा है. इसी में तो दांपत्य जीवन के नित सुकून, सुख, आनंद रूपी पदोन्नति के अवसर छिपे हैं.

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