Family Story in Hindi: हमारी यह महान परंपरा रही है कि औरतों को बदचलन साबित कर दो. भले ही मर्द ने भी साथ में भोग किया हो, पर बदचलन कहा जाएगा तो सिर्फ औरत को. सफाई कर्मकारों की हमारी नीची जाति में घर चलाने की जिम्मेदारी हम औरतों की है. बाहर जा कर चार पैसे कमाने से ले कर बच्चों को पालने तक. हर जिम्मेदारी औरत की है. मर्द जो कमाते हैं, वह शराब में उड़ा देते हैं और इसी वजह से मेरे समाज में अनेक औरतों का अपने काम की जगह के मर्दों के साथ नाजायज रिश्ता है. इसी के चलते हमारे समाज की अनेक औरतें बदचलन कही जाती हैं. दिन के उजाले में सभ्य समाज के लोग नीची जाति की परछाईं से भी दूर भागते हैं, लेकिन रात के अंधेरे में इन्हीं नीची जाति की औरतों को भींचने, उन के साथ सोने, मुंह में मुंह डाल कर चूमने और उन के जिस्म की खुशबू सूंघने में उन का धर्म नहीं बिगड़ता है.

मुझे बदचलन होने का पहला सबक मेरी चचेरी बहन निक्की ने दिया. मुफ्त राशन पाने के लिए वह दुकानदार को खुश करती थी.

एक बार निक्की मुझे भी राशन बांटने वाले बनिए की दुकान पर ले गई. दुकानदार का लड़का हमें दुकान के पीछे बने बाड़े में ले आया.

तेल के खाली ड्रमों के पीछे वह निक्की दीदी के साथ बहुत देर लगा रहा. मैं दूसरी तरफ मुंह कर के इस तरह खड़ी हो गई कि उन्हें एकांत मिल जाए और साथ ही दूसरी तरफ से किसी के आने की निगरानी कर सकूं.

कुछ देर तक दीदी के सिसकने की आवाज आई और फिर वे अपनी जींस और टौप ठीक करते हुए बाहर आईं.

इस घटना ने मुझे सबक दिया था कि जब दीदी मुफ्त राशन के बदले यह सब कर सकती थीं, तो पैसों के लिए इसे करने में क्या बुराई है?

मुझे भी अपने समाज की शरीफ औरतों की तरह नाक पर रूमाल बांध कर और हाथ में दस्ताने पहन कर किसी माल, रेलवे स्टेशन या बसअड्डे का शौचालय साफ न करना पड़े, इस बात से डर कर मैं ने भी निक्की दीदी के बताए रास्ते पर चलने का फैसला कर लिया था.

मैं खूबसूरत और थोड़ी पढ़ीलिखी थी. अनेक मर्द मुझे अपनी बांहों में लेने के लिए बेताब थे. उस समय मेरे जोबन पर सावन की बहार थी. नएनए खिले हुए उभार पुरानी नाप के कपड़ों को फाड़ कर बाहर निकलने के लिए बेताब थे. रोजरोज मर्दों की छेड़खानी का विरोध करने से अच्छा था कि समझौता कर लिया जाए.

मेरे बनाए हुए कई दोस्त अमीर और सभ्य घरों के थे, जिन की निगाह मेरे बदन पर रहती थी. मेरे ज्यादातर अमीर दोस्त सीनियर सिटीजन थे, जो मुझे चोरीछपे दुकानों के पीछे, पुलिया के नीचे या बन रहे मकानों में नहीं ले जाते थे. मेरे अमीर दोस्त तो मुझे उन महंगे होटलों में ले कर गए, जिन में इस के पहले मेरे समाज की कोई लड़की इन के टौयलैट साफ करने भी न गई होगी.

मैं निक्की दीदी की तरह सिर्फ राशन के लिए अपना शोषण नहीं करा रही थी और इसी वजह से समाज ने मुझे बदचलन करार कर दिया था, जबकि निक्की दीदी एक बेचारी थीं. कुछ भी हो, लेकिन मैं अपनी जिंदगी से संतुष्ट थी.

25 साल की उम्र में जब मैं ने अपने कमाए हुए पैसों से स्मार्टफोन और एक स्कूटर खरीद लिया, तब समाज के ठेकेदारों को यह सहन नहीं हुआ. उन्होंने मुझे आवारा और बदचलन साबित करते हुए मेरा घर से निकलना दूभर कर दिया. परिवार पर दबाव बना कर मेरी शादी करा दी.

मेरा पति राकेश एक प्राइवेट कंपनी में ट्रक ड्राइवर था. सुहागरात के बाद कुछ ही दिन वह मेरे साथ सैक्स कर सका. लोग कहते हैं कि मुझे अमीर और स्मार्ट लड़कों की लत लग चुकी थी. मैं ही बदचलन थी, जबकि असलियत यह थी कि मुझ जैसी खूबसूरत बीवी पा कर मेरा पति राकेश बौरा गया था.

राकेश के औफिस के अमीर दोस्त पार्टी मनाने के लिए अकसर हमारे घर आते थे. जल्द ही मैं उन की नजरों में चढ़ गई. शराबी राकेश से बिस्तर पर कुछ बनता नहीं था और उस के दोस्त मेरे कपड़ों की चीरफाड़ करने और मेरे जिस्म पर सवारी करने को बेताब थे.

एक दिन जब राकेश ने मुझे घरखर्च के पैसे देने में आनाकानी शुरू कर दी तो मेरा सब्र जवाब दे गया. मैं ने राकेश के दोस्तों से समझौता कर लिया. राकेश के सभी दोस्तों द्वारा दर्जनों बार मेरा उपभोग करने के बाद मेरी ससुराल में मुझे आवारा और बदचलन करार दिया. मुझे पैसों का लालची बता दिया.

राकेश की फैक्टरी के मालिक का लड़का संदीप मेरा पहला बौयफ्रैंड था. उसे भी मैं ने बगैर पैसों के कभी अपना शरीर नहीं छूने दिया, लेकिन मेरी जिंदगी का अब तक का वही एकमात्र ऐसा बंदा था, जिस ने मुझे हमेशा इज्जत दी और कभी बदनाम नहीं किया.

मेरे बदचलन होने के चलते राकेश ने अब बहुत ज्यादा शराब पीना शुरू कर दिया था. औरतें अपने पतियों को शराब पीने से रोकती हैं, लेकिन मैं राकेश को ज्यादा से ज्यादा दारू पिला देती थी, ताकि वह मेरे साथ जबरदस्ती जिस्मानी संबंध न बना सके. राकेश मेरे नाम का और संदीप मेरे काम का पति बन चुका था और इन दोनों के बीच राकेश के ढेरों दोस्त भी मुझ से मजे ले रहे थे और उन से मेरा खर्च चल रहा था. जल्द ही मेरी ससुराल में गली का बच्चाबच्चा मुझे मेरी बदचलनी के चलते पहचानने लगा था.

संदीप पहले से शादीशुदा था. मैं ज्यादा दिनों तक उस की रखैल बन कर नहीं रह सकती थी. वह अब मेरे खर्चे उठाने में आनाकानी करने लगा था, लेकिन उस ने मुझे अपने एक दूर के अंकल के स्कूल में नौकरी दिला कर इस अजनबी शहर में मेरी रोजीरोटी का इंतजाम करा दिया था.

स्कूल में मेरी चपरासी की नौकरी थी. स्कूल के 60 साल के विधुर मालिक राघवेंद्र को भी मैं तुरंत पसंद आ गई थी. वह अपनी स्कूल की स्मार्ट टीचरों को छोड़ कर मुझ से फ्लर्ट करना चाह रहा था. एक दिन उस ने मुझे जबरदस्ती अपने कमरे में रोक लिया. वह अपना अकेलापन दूर करने के लिए मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगा.

मैं राघवेंद्र को खुश करने के लिए तुरंत मान गई और उस की हर नाजायज मांग को पूरा करने लगी.

वह बूढ़ा राघवेंद्र मेरी बेबस और बदनाम जिंदगी का एकलौता प्यार था. जल्द ही मैं उस से इमोशनली अटैच हो गई. मेरी उम्र से दोगुनी उम्र के राघवेंद्र से मिलने के बाद मेरी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई थी. उस की पत्नी 5 साल पहले स्वर्ग सिधार गई थी. अमेरिका में सैटल उस के बच्चे कोई खैरखबर नहीं लेते थे.

मेरे बर्थडे के लिए राघवेंद्र ने अपने हाथों से केक सजाया था. बर्थडे मनाने के बहाने उस ने मेरे पूरे शरीर पर केक लगा दिया, फिर अपनी जीभ से साफ किया. मुझे अपने बच्चे की तरह गोद में उठा कर वह अपने बंगले के स्विमिंग पूल में ले आया और घंटों मेरे साथ मस्ती करने के बाद मुझे शैंपेन से नहला दिया.

इस बंदे ने केवल एक महीने में ही मुझे अपनी लग्जरी लाइफ का हिस्सा बना लिया था. कभी मेरी जाति पहचानने की जहमत नहीं उठाई और सबकुछ जानने के बावजूद कभी मेरे चरित्र पर उंगली नहीं उठाई. सिर्फ इस बात का अफसोस था कि वह मुझे मां नहीं बना सकता था.

राघवेंद्र ने मुझे हमेशा अपने साथ रखने के लिए अपना पर्सनल असिस्टैंट बना लिया था. स्कूल और अपनी फैक्टरी में घंटों वह मेरे साथ रहने लगा था. उस ने मुझे अपने स्कूल की मास्टरनियों और फैक्टरी के मैनेजरों का भी बौस बना दिया था.

मेरे चलते अब राघवेंद्र के मुलाजिम घपला नहीं कर पा रहे थे. हमारे बेमेल जोड़े को देख कर पहले तो उन्होंने मुझे फुसलाने की कोशिश की, लेकिन जब वे इस में कामयाब नहीं हुए तो मुझे बदचलन औरत के रूप में बदनाम कर दिया.

बदचलन कहे जाने से अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था, लेकिन अब तो उन्होंने मुझे दौलत की लालची एक फरेबी डायन तक साबित कर दिया था.

इन्हीं उलझनों के बीच एक दिन कच्ची दारू पीते रहने के चलते राकेश मर गया. वह दिन मेरे लिए आजादी की तरह खुशियां ले कर आया था. बाहर कमरे में राकेश का बेजान जिस्म पड़ा हुआ था और अंदर बैडरूम में मैं और संदीप एकदूसरे में गुंथे पड़े थे.

हम देर रात तक खुशियां मनाते रहे. हम ने संदीप की लाई हुई अंगरेजी शराब पी. उस ने मुझे अधनंगा कर के जमीन पर बिठा दिया, फिर मेरे गले में अपनी बैल्ट फंसा कर मेरे साथ संबंध बनाने लगा.

उस रात मैं ने संदीप के साथ दिल खोल कर सैक्स किया. मैं ने उसे कंडोम भी नहीं लगाने दिया. आजाद होने की खुशी में मैं बारबार उस पर चढ़ जाती थी. संदीप की याद को बच्चे के रूप में अपनी कोख में ले कर हम ने अपने अलगअलग रास्तों पर जाने और एकदूसरे को हमेशा के लिए भूल जाने का वादा किया.

मैं आटोरिकशा पकड़ कर राघवेंद्र की बताई जगह पर पहुंच गई. उस ने मेरा इंतजाम करने के अलावा अपना नाम, काम और इज्जत दिलाने का वादा किया. मेरी कोख में बच्चा होने की खबर मेरे लिए खुशियों की सौगात ले कर आई थी.मैं राघवेंद्र को यह यकीन दिलाने में कामयाब हो गई कि यह उस का बच्चा है और उस ने जल्द ही मेरे साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

मैं आज भी एक अमीर घर की इज्जतदार औरत बनना चाहती थी, लेकिन राघवेंद्र के स्कूल और फैक्टरी के मुलाजिम मेरी बेवफाई और बदचलनी को साबित करने में लगे हुए थे.

राघवेंद्र की बीवी बनने के बाद उस के परिवार में भूचाल आ गया था. अभी तक राघवेंद्र की खोजखबर न रखने वाले भतीजे, लड़के और भाई आने लगे. मेरी कुंडली खंगाल ली गई. पहले उन्होंने मुझे राघवेंद्र से बेवफाई करने को मजबूर किया, लेकिन जब वे इस में नाकाम हुए तो एक बार फिर मुझे बदचलन साबित करना शुरू हुआ.

राघवेंद्र को भी मेरे बदचलन होने का यकीन हो गया. अब वह मुझे घर से निकालने और ठुकराने को तैयार था. पर मैं ने कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं. मेरे पास सुबूत है कि उस ने मेरा रेप किया है. यह कार्ड खेलते ही सब आरोप हवा हो जाएंगे.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...