रोज  इसी समय वह काम से लौटती थी. उस के चारों बच्चे वहीं खेलते हुए मिलते थे. उसे ध्यान आया कि हो सकता है कि उस का पति मंगल आज बच्चों को उस की मां के घर छोड़ कर काम पर चला गया हो. वह कराहते हुए उठी और अपनेआप को घसीटते हुए मां के  घर की ओर चल पड़ी, जो उस के घर से मात्र एक फर्लांग की दूरी पर था. वहां पहुंच कर उस ने पाया कि मां अभी तक काम से नहीं लौटी थीं. उन के घर में भी ताला लगा हुआ था. निराश हो कर वह वापस लौटी और घर के सामने जमीन पर बैठ कर पति और बच्चों का इंतजार करने लगी.

वह रोज सवेरे 4 बजे सो कर उठती. घर का कामकाज निबटा कर पति व बच्चों के लिए दालभात पका कर काम पर निकल जाती थी. पति व बच्चे देर से सो कर उठते थे. मंगल बच्चों को खिलापिला कर उन्हें खेलता छोड़ कर काम पर निकल जाता. जब वह दोपहर में लौट कर आती तो उस के बच्चे घर के सामने गली के बच्चों के साथ खेलते मिलते. आज पहला मौका था कि सुगना को घर बंद मिला और बच्चे नहीं मिले. आसपास पूछताछ करने पर पता चला कि किसी ने भी मंगल व बच्चों को नहीं देखा था. ऐसा लगता था कि मंगल बच्चों को ले कर भोर होते ही कहीं चला गया था. सुगना को बाहर बैठेबैठे 2 घंटे हो गए थे. वह धीरेधीरे सुबकने लगी. आसपास औरतों व बच्चों की भीड़ जमा हो गई.

उस की पड़ोसिन केतकी, ईर्ष्यावश उस से बात नहीं करती थी पर सुगना की दयनीय स्थिति देख कर केतकी  को भी उस पर दया आ गई. उस ने उसे अपने घर के अंदर आ कर कुछ खा लेने व आराम करने को कहा पर सुगना नहीं मानी. उस ने रोतेरोते कहा कि जब तक वह मंगल व बच्चों को नहीं देख लेगी तब तक न तो वहां से कहीं जाएगी और न ही कुछ खाएगी.

केतकी का पति, बसंत अकसर सुगना को निहारा करता था, जिस के कारण वह मन ही मन उस से जलती थी और उस से बात नहीं करती थी. बसंत ही नहीं, बस्ती के सभी पुरुषों की नजरों का केंद्रबिंदु थी सुगना. वह 6 धनी परिवारों में मालिश का काम करती थी. उन घरों की मालकिनों को कुछ काम नहीं था. खाली बैठेबैठे उन के बदन में दर्द होता रहता. सुगना उन के हाथपैरों में मालिश करती. साथ ही, इधरउधर की बातें नमकमिर्च लगा कर सुना कर उन का मनोरंजन करती.

ये रईस स्त्रियां प्रसन्न हो कर सुगना को अपनी उतरी हुई पुराने फैशन की साडि़यां दे देतीं. सुगना जब जार्जेट, रेशम, शिफान, टसर व नायलोन की साडि़यां पहन कर निकलती तो बस्ती की स्त्रियों के सीनों पर सांप लोट जाते और पुरुष आहें भरने लगते. सभी उसे पाना चाहते, उस से बातें करने को लालायित रहते.

शाम घिरने लगी थी. धीरेधीरे बस्ती के पुरुष काम से लौैटने लगे थे. आते ही सभी मंगल और बच्चों की खोज में लग गए. वास्तव में उन्हें खोजने से ज्यादा उन की दिलचस्पी सुगना की कृपादृष्टि पाने में थी.

जब मंगल व बच्चों का कहीं पता नहीं चला तो सब ने सोचा कि शायद वह पास वाले गांव में अपने मातापिता के पास चला गया होगा. इस विचार के आते ही बस्ती के दारूभट्टी के नौजवान मालिक केवल सिंह ने सुगना की सहायता के लिए अपनेआप को पेश कर दिया. बस्ती के सभी पुरुषों के पास वाहन के नाम पर पुरानी घिसीपिटी साइकिलें ही थीं. केवल सिंह ही ऐसा रईस था जिस के पास एक पुरानी खटारा फटफटी थी.

केवल सिंह ने अपनी फटफटी पर एक और नौजवान को बैठाया और मंगल का पता लगाने पास वाले गांव में चला गया. केवल सिंह का सुगना के घर खूब आनाजाना था. मंगल जब दारू पी कर उस की दुकान में लुढ़क जाता तो वह उसे अपनी गाड़ी में लाद कर घर छोड़ने आता. हर रात ऐसा ही होता.

उसे मंगल से कोई लगाव नहीं था, बल्कि सुगना को आंख भर देखने तथा नशे में बेहोश मंगल की सेवा करने के बहाने सुगना के पास बैठने और उस से देर रात तक बतियाने का मौका पाने के लिए वह ऐसा करता था. मंगल का जब नशा टूटता तो वह आधी रात को सुगना को जगा कर खाना मांगता. जरा भी नानुकुर या देर होने पर वह सुगना को बुरी तरह पीटता. रात के सन्नाटे में सुगना की दर्दभरी चीखें महल्ले वाले सुनते पर क्या करते, पतिपत्नी का मामला था.

धुंधलका गहरा होने लगा था. केवल सिंह लौट आया था. मंगल सिंह अपने बच्चों के साथ अपने गांव भी नहीं गया था. इतना बड़ा ताला लगा कर आखिर गया कहां वह?  सब इस गुत्थी को सुलझाने में लगे हुए थे कि तभी किसी को घर के अंदर से बच्चों की दबीदबी सिसकियां सुनाई दीं. सब के कान खड़े हो गए. तुरंत 2 हट्टकट्टे नौजवानों ने दरवाजा तोड़ डाला.

अंदर का मंजर दिल दहलाने वाला था. मंगल का शरीर छत की मोटी बल्ली से लटका हुआ था. गले में बंधी थी सुगना की नाइलोन की साड़ी. वह मर चुका था. चारों बच्चे डरे हुए, सुबक रहे थे. देखते ही सुगना पछाड़ खा कर जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई. स्त्रियों ने उस के ऊपर पानी डाला. होश में आते ही वह बच्चों से लिपट कर दहाड़ मार कर रोने लगी.

भीड़ में से ही किसी ने पुलिस को शिकायत कर दी. पुलिस ने आते ही जांचपड़ताल शुरू कर दी. ऐसा लगता था कि शराब के नशे में मंगल ने आत्महत्या कर ली थी. कमरे की एकमात्र खिड़की अंदर से बंद थी. बस्ती वाले मंगल की बुरी आदतों से परेशान तो थे ही. सभी ने उस के विरोध में बयान दिया. किसी पर भी शक की सुई नहीं घूम रही थी. पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि मंगल ने बाहर से ताला लगाया तथा खिड़की से कूद कर अंदर आ गया. अंदर से दरवाजा बंद कर के उस ने आत्महत्या कर ली. उस ने बच्चों को भी मारने की कोशिश की थी. पतीली में बचेखुचे दालभात की जांच से पता चला कि उस में अफीम मिलाई गई थी. मात्रा कम होने के कारण बच्चे बच गए थे.

आत्महत्या का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था. एक नशेड़ी इतने ठंडे दिमाग से योजनाबद्ध काम करेगा यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. बच्चे कुछ भी बताने में असमर्थ थे. कई दिन तक गहन पूछताछ और जांचपड़ताल के बाद भी पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला. सभी के बयान समान थे और केवल मंगल की ओर इशारा करते थे. पुलिस ने भी इस गरीब बस्ती के एक नशेड़ी की मौत के मामले में ज्यादा  सिर खपाने की जरूरत नहीं समझी और आत्महत्या का मामला दर्ज कर तुरंत फाइल बंद कर दी.

मिसेज दिवाकर के यहां सुगना काम करती थी. उन्हें घर के अन्य नौकरों से मंगल की मौत के बारे में पता चला तो उन्हें शराब की भट्ठी के मालिक केवल सिंह पर शक हुआ, क्योंकि वही ऐसा व्यक्ति था जिस का सुगना के यहां अधिक आनाजाना था. वह उस में जरूरत से ज्यादा रुचि भी लेता था. पर उन्होंने इस मामले में अपनी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा.

मंगल की मौत को 1 माह ही बीता था कि केवल सिंह ने सुगना को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया. एक दिन की अनुपस्थिति के बाद सुगना सजीसंवरी, नई चूडि़यां खनकाती काम पर आई तथा मिसेज दिवाकर को अपने विवाह की सूचना दी. सुनते ही मिसेज दिवाकर भड़क गईं और बोलीं, ‘‘हाय मरी, तुझे तो रोज रात की मारपीट से मुक्ति मिल गई थी. फिर से क्यों जा पड़ी नरक में उसी मुए के साथ, जिस ने तेरे मंगल को मारा?’’

अनजाने में उन के मुख से उन के अंदर का दबा हुआ शक उजागर हो गया, पर अविचलित सुगना बोली, ‘‘अपने आदमी की मार भी कोई मार होती है. इस से बस्ती में इज्जत बढ़ती है. रही शादी की बात, तो महल्ले के सब बदमाशों से बचने के लिए किसी एक का हाथ थामना अच्छा है. आप क्या जानो, एक औरत का अकेले रहना कितना मुश्किल होता है. बिना आदमी के बस्ती के मनचले दारू पी कर मेरा दरवाजा पीटते थे. रात को सोने नहीं देते थे.’’

मिसेज दिवाकर को कुछ अटपटा सा लगा कि केवल सिंह पर उन के द्वारा लगाए हत्या के इल्जाम को सुन कर भी कोई प्रतिक्रिया उस ने व्यक्त नहीं की थी.

एक वर्ष बीत गया था. सुगना के पांव भारी थे. जच्चगी के लिए अस्पताल जाने से पहले उस ने अपनी छोटी बहन फागुन को घर व बच्चों की देखभाल के लिए बुलवा लिया. जब वह अस्पताल से नवजात बेटे के साथ घर लौटी तो उसे यह देख कर जबरदस्त धक्का पहुंचा कि उस के पति केवल सिंह ने उस की अनुपस्थिति में उस की बहन को चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया है.

क्रोधित हो सुगना ने फागुन को बालों से पकड़ कर घसीटा और खदेड़ कर बाहर निकाल दिया. केवल सिंह के ऊपर फागुन का जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था. उसे अपनी नईनवेली पत्नी का अपमान सहन नहीं हुआ. उस ने कोने में  पड़ी हुई  कुल्हाड़ी उठा कर सुगना की टांग पर दे मारी. कुल्हाड़ी मांस फाड़ कर हड्डी के अंदर तक धंस गई. सुगना बेहोश हो कर गिर पड़ी. टांग से बहते खून की धार तथा रोते हुए नवजात शिशु को देख केवल सिंह के मन में पश्चाताप होने लगा. शोरगुल सुन सब पड़ोसी इकट्ठे हो गए. जिस अस्पताल से सुगना थोड़ी देर पहले वापस आई थी फिर वहीं दोबारा भरती हो गई.

केवल सिंह बड़ी लगन से तब तक उस की सेवा करता रहा जब तक वह पूरी तरह स्वस्थ व समर्थ नहीं हो गई. सुगना उस की सेवा से खुश कम थी और दुखी ज्यादा थी क्योंकि केवल सिंह ने फागुन को घर से नहीं निकाला था.

बेचारी दुखी सुगना क्या करती. उस ने अपनी पूरी आशाएं अपने नवजात बेटे पर टिका दी थीं. उस ने निश्चय किया कि वह बेटे को सेना में भरती कराएगी. जब वह लड़ाई में मारा जाएगा तो उसे सरकार लाखों रुपया देगी और उन रुपयों से वह अपनी मालकिनों की तरह ऐशोआराम से रहेगी. इसलिए उस ने अपने बेटे का नाम कारगिल रख दिया.

सुगना की विचित्र निष्ठुर कामना सुन कर मिसेज दिवाकर के रोंगटे खड़े हो गए. बड़ा ही क्रूर लगा उन्हें नवजात शिशु को बड़ा कर उस की मौत की कल्पना करना और अपने ऐशोआराम के लिए उसे भुनाना.

थोड़े ही दिन बीते थे कि एक दिन केवल सिंह अपनी नई  पत्नी फागुन के साथ हमेशा के लिए कहीं चला गया. साथ में ले गया अपना नन्हा पुत्र कारगिल. सुगना का धनपति बनने का सपना धरा रह गया. 2 बार ब्याही सुगना फिर से अकेली रह गई थी.

वर्षा के दिन थे. सुगना की टांग का घाव भर गया था, पर दर्द की टीस अब भी उठती थी. पति और उस की सगी बहन ने मिल कर जो छल उस के साथ किया था उस ने उसे अंदर से भी घायल कर दिया था. एक दिन वर्षा में भीगती सुगना जब मिसेज दिवाकर के यहां पहुंची तो उसे तेज बुखार था. अपनी साइकिल बाहर खड़े उन के ड्राइवर को थमा बड़ी मुश्किल से वह बरामदे तक पहुंची ही थी कि गिर कर बेहोश हो गई. जब वह होश में आई तो मिसेज दिवाकर ने अपने ड्राइवर से उस को कार में ले जा कर डाक्टर गर्ग से दवा दिलवा कर घर छोड़ आने को कहा.

आगे की सीट पर बैठी सुगना का सिर निढाल हो कर ड्राइवर गोपी के कंधे पर लुढ़क गया तो उस ने उसे हटाया नहीं. उसे बड़ा भला सा लग रहा था.

डाक्टर से दवा दिलवा कर गोपी उस को घर पहुंचाने गया. वहां उस को सहारा दे कर अंदर तक ले गया. इस के बाद भी उस का मन नहीं माना. वह उसे देखने उस के घर बराबर जाता तथा यथासंभव उस की सहायता करता. 3 दिन के बुखार में गोपी और सुगना बहुत करीब आ गए थे. चौथे ही दिन गोपी ने सुगना के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. सुगना सहर्ष तैयार हो गई. गोपी ने उसे चूडि़यां पहना कर अपनी पत्नी बना लिया.

मिसेज दिवाकर को सुगना का पुनर्विवाह तनिक भी नहीं भाया. वह गुस्से से चीखीं, ‘‘कुदरत तुझे बारबार खराब  पुरुषों से मुक्ति दिलाती है, फिर चैन से अकेले क्यों नहीं रहती? अपनी मां के साथ रहने में तुझे क्या तकलीफ है?’’

सुगना बड़ी सहजता से बोली, ‘‘अकेली औरत जात को कोई तो रखवाला चाहिए.’’

मिसेज दिवाकर ने सुगना की समस्या से अपने को अलग रखने की ठान ली.

एक दिन मिसेज दिवाकर ने सुगना से धुले कपड़ों का गट्ठर इस्तरी वाले के ठेले तक अपनी साइकिल पर रख कर पहुंचाने को कहा. गट्ठर बड़ा होने के कारण साइकिल के कैरियर पर ठीक से नहीं बैठ रहा था. यह देख कर मिसेज दिवाकर बोलीं, ‘‘सुगना, तुझे ठीक से गांठ बांधनी भी नहीं आती. कपड़े बाहर निकल रहे हैं.’’

‘‘मांजी, चिंता मत कीजिए. गांठ लगानी मुझे खूब आती है. मंगल के लिए कैसी मजबूत गांठ लगाई थी मैं ने,’’ अकस्मात सुगना के मुंह से निकला.

ऐसा कहते हुए उस ने आंखें ऊपर उठाईं. उस की आंखों में शैतानी चमक देख कर मिसेज दिवाकर सहम उठीं. अंदर दबा हुआ शक उभर कर ऊपर आ गया था. उन्होंने सोचा, ‘तो मेरा शक सही था. मंगल ने आत्महत्या नहीं की थी. सुगना ने ही उसे मारा था.’

स्तब्ध मिसेज दिवाकर अपना सिर दोनों हाथों में थाम कर सोफे पर धम्म से बैठ गईं.

‘सुगना, हत्यारिन मेरे घर में, और मुझे पता ही नहीं चला.’ सोचसोच कर वह हैरान व परेशान थीं.

उन के शरीर में भय से सिहरन दौड़ गई. अब इतने अरसे बाद किस से कहें और किस से शिकायत करें. अपराधी को अपने दुष्कर्म की सजा मिलनी ही चाहिए. पर उन के पास कोई सुबूत भी नहीं था. था केवल शक. कौन सुनेगा उन के शक को? अगर सुगना को सजा दिलवा भी दी तो उस के बच्चों का क्या होगा? सोचते सोचते उन के सिर में दर्द होने लगा.

और सुगना, अनजाने में अपना अपराध प्रकट कर बैठी थी. अपने अपराध के प्रकटीकरण से बेखबर मिसेज दिवाकर के हृदय की हलचल से अनभिज्ञ बढ़ी चली जा रही थी अपने गंतव्य की ओर.

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