रात के 2 बजे थे. हलकीहलकी ठंड पड़ रही थी. दशहरा और दिवाली की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. धनबाद स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 पर बहुत भीड़ थी. इस में ज्यादातर विद्यार्थियों की भीड़ थी, जो त्योहार में दिल्ली से धनबाद आए थे. धनबाद, बोकारो और आसपास के बच्चे प्लस टू के बाद आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली पढ़ने जाते हैं. इस एरिया में अच्छे कालेज न होने से बच्चे अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूल के बाद दिल्ली जाना चाहते हैं. दिल्ली में कोचिंग की भी अच्छी सुविधा है. वहां वे इंजीनियरिंग, मैडिकल आदि की कोचिंग भी लेते हैं. कुछ तो टेंथ बोर्ड के बाद ही दिल्ली चले जाते हैं. वे वापस दिल्ली लौट रहे थे.

वे सभी कालका मेल के आने का इंतजार कर रहे थे. अनेकों के पास रिजर्वेशन नहीं था. वे वेटिंग टिकट ले कर किसी भी थ्री टियर में चढ़ने वाले थे. जिस के पास रिजर्वेशन होता, उसी की बर्थ पर 4 या 5 जने किसी तरह एडजस्ट कर दिल्ली पहुंचते. इस तरह के सफर की उन्हें आदत थी. अकसर सभी छुट्टियों के बाद यही नजारा होता. कुछ अमीरजादे तत्काल या एजेंट से ब्लैक में टिकट लेते, तो कुछ एसी कोच में जाते. पर ज्यादातर बच्चे थ्री टियर कोच में जाते थे और सब के लिए रिजर्वेशन मुमकिन नहीं था.

रात के 11 बज रहे थे. अभी भी ट्रेन आने में एक घंटा रह गया था. ट्रेन कुछ लेट थी. रोहित कंधों पर बैकपैक लिए चहलकदमी कर रहा था. उस की निगाहें किसी जानपहचान वाले को तलाश रही थीं, जिस के पास रिजर्व टिकट हो. उस की नजर मनोज पर पड़ी, तो उस ने पूछा, “तुम्हारी बर्थ है क्या?“

“नहीं यार, पर अपने महल्ले वाली सुनीता को जानता है न? S-7 कोच में उस का रिजर्वेशन है. वो देख… आ रही है अपने पापा के साथ.”

प्लेटफार्म पर वे बेटी के साथ खड़े थे. मनोज ने उन से कहा, “अंकल नमस्ते. आप वापस जा सकते हैं. हम लोग हैं न. सुनीता को कोई दिक्कत नहीं होने देंगे.”

तभी अनाउंस हुआ, “कालका मेल अपने निश्चित समय से 45 मिनट की देरी से चल रही है. यात्रियों की असुविधा के लिए हमें खेद है.”

सुनीता ने कहा, “हां पापा, आप जाइए. अभी हमारे पड़ोस की मनीषा भी आ रही होगी. उस की बर्थ भी हमारे ही कोच में है. और भी जानपहचान के फ्रैंड्स हैं. आप परेशान न हों. घर लौट जाइए. हम लोग मैनेज कर लेंगे.”

सुनीता के पापा लौट गए. थोड़ी देर में मनीषा भी आ गई. रोहित, मनोज, सुनीता और मनीषा चारों एक ही कालोनी में रहते थे, पर अलगअलग सैक्टर में. दोनों लड़के इंजीनियरिंग सेकंड ईयर में थे और लड़कियां ग्रेजुएशन कर रही थीं. इन में सुनीता ही सब से ज्यादा धनी परिवार से थी. रोहित और मनोज दोनों के पिता कोल इंडिया में क्लर्क थे. मनीषा के पिता कोल इंडिया में ही लेबर अफसर और सुनीता के पिता ठेकेदार थे. देश के अनेक भागों में कोयला भेजते थे.

रोहित बोला, “मेरे और मनोज के पास रिजर्व टिकट नहीं हैं. तुम लोग मदद करना. तुम दोनों एक बर्थ पर हो लेना और दूसरी बर्थ पर हम दोनों रहेंगे. अगर कोस्ट शेयर करना हुआ तो वो भी शेयर कर लेंगे.”

सुनीता ने कहा, “क्या बेवकूफों जैसी बात कर रहे हो? ऐसा क्या पहली बार हुआ है? इस के पहले भी तुम लोग हमारी बर्थ पर गए हो. क्या हम ने पैसा लिया है कभी? फिर ऐसी बात न करना. मगर, इस बार हम दोनों को लेडीज कोटे से बर्थ मिली है.“

मनीषा बोली, “हां, S-7 में बर्थ नंबर 1 से 8 तक लेडीज कोटा है. हम तो शेयर कर लेंगे, पर बाकी औरतों ने कहीं शोर मचाया तब क्या करोगे? “

मनोज बोला, “हम लोग पहले भी ये सिचुएशन झेल चुके हैं. इस को हम पर छोड़ दो, हैंडल कर लेंगे.”

ट्रेन आने पर सभी कोच में जा बैठे. लेडीज कोटे में एक बुजुर्ग महिला भी थी. उस ने कहा, “तुम दोनों लड़के यहां नहीं बैठ सकते हो.”

सुनीता ने कहा, “आंटी, आप तो इधर की ही लगती हैं. आप को पता होगा इस पीरियड में यहां से दिल्ली स्टूडेंट्स जाते हैं और इतनी भीड़ में हमें एडजस्ट करना पड़ता है.”

“अच्छा ठीक है, चुपचाप बैठो. तुम लोग न खुद सोते हो और न औरों को सोने देते हो.”

थोड़ी देर में टीटी आया. टिकट चेक करने के बाद उस ने लड़कों से कुछ कड़ी आवाज में कहा, “तुम लोग यहां नहीं बैठ सकते हो. एक तो वेटिंग की टिकट और ऊपर से लेडीज कोटा में आ बैठो हो. अगले स्टेशन गोमो में तुम लोग उतर जाना.”

मनोज बोला, “शायद आप हमें नहीं जानते. आप का बेटा भी अगले साल दिल्ली जाएगा पढ़ने. उस की ऐसी रैगिंग करूंगा कि वह रोते हुए वापस इसी ट्रेन से धनबाद आएगा. बाकी आप की मरजी.”

टीटी ने कहा, “तुम लोग तो गजब ही हो. जो चाहे करो, पर मैं तो मुगलसराय में उतर जाऊंगा. उस के बाद तुम जानो.”

“आगे भी हम देख लेंगे. पर, आप अपने रिलीवर को भी हमें तंग न करने को कह देते तो अच्छा होता.”

सुबह के 7 बजे ट्रेन मुगलसराय पहुंची. वहां ट्रेन कुछ देर रुकती है. रोहित और मनोज दोनों प्लेटफार्म पर उतर कर टी स्टाल पर सिगरेट पी रहे थे. उन्हें देख सुनीता और मनीषा भी उतर गईं. सुनीता ने मनीषा से कहा, “चल, 1-2 फूंक हम भी मार लेते हैं.”

दोनों उन के निकटआईं. सुनीता बोली, “क्या अकेलेअकेले पी रहे हो?“

“आओ, तुम भी पीओ,” मनोज ने कहा और चाय वाले से 2 कप चाय ले कर उन की ओर बढ़ा दिया.

सुनीता बोली, “और सिगरेट? “

मनोज ने अपना सिगरेट बढ़ाते हुए कहा, “लो, दो कश तुम भी ले लो. अगर मनीषा को भी चाहिए तो…?“

“नहीं, मुझे नहीं चाहिए” मनीषा बोली.

सुनीता ने कहा, “मैं शेयर नहीं करूंगी. मुझे अलग से नया सिगरेट दो.”

मनोज ने उसे सिगरेट जला कर दिया. दोतीन कश लेने के बाद सुनीता ने सिगरेट फेंक कर उसे सैंडल से बुझा दिया.

यह देख कर मनोज बोला, “तुम्हें पीते देख कर यह नहीं लगा कि तुम पहली बार पी रही हो. फिर तुम ने नाहक ही मेरा सिगरेट बरबाद कर दिया.”

“पैसे चाहिए सिगरेट के?“

“तुम से बहस करना बेकार है.”

खैर, सभी वापस ट्रेन में जा बैठे. रात के करीब 9 बजे ट्रेन दिल्ली पहुंची. चारों एक टैक्सी में बैठे. मनीषा और सुनीता को उन के होस्टल में छोड़ मनोज और रोहित अपने होस्टल पहुंचे. चारों एक ही शहर और कालोनी के रहने वाले थे, इसलिए छुट्टियों में ट्रेन में आनाजाना अकसर साथ होता था.

मनोज और रोहित के ब्रांच अलग थे. मनीषा और सुनीता के कॉम्बिनेशन एक ही थे, इसलिए उन में कुछ दोस्ती थी. सुनीता नेचर से ज्यादा फ्रैंक और डोमिनेटिंग थी. किसी से अनचाहा एनकाउंटर होने से या कोई मनीषा को तंग करता तो वह मनीषा को प्रोटेक्ट किया करती थी. मनीषा अंतर्मुखी थी.

इसी तरह ये चारों कभी ट्रेन में मिलते, तो कभी किसी मौल या मल्टीप्लेक्स में तो देर तक आपस में बातें करते.

मनोज और मनीषा के स्वभाव में अंतर था, फिर भी दोनों एकदूसरे के करीब आए.

रोहित और मनोज दोनों ने बीटैक पूरा किया और मनीषा और सुनीता ने पीजी. मनोज ने नोएडा में नौकरी ज्वाइन किया.

मनोज और मनीषा ने मातापिता की मरजी के विरुद्ध कोर्ट मैरेज किया. रोहित और सुनीता उन की शादी में आए थे.

एक साल बाद दोनों अमेरिका चले गए. मनोज अपने जौब वीजा H 1 B पर गया था और मनीषा उस की आश्रित H 4 वीजा पर. कुछ दिनों बाद मनीषा को भी EAD मिला, जिस से वह भी नौकरी कर सकती थी. उस ने भी नौकरी ज्वाइन की. उन्हें 2 बेटियां थीं. मनीषा का काम वर्क फ्राम होम होता था. यह उस के लिए एक वरदान था, वह अपनी बेटियों का भी ध्यान रख सकती थी. उन दिनों रोहित और मनोज और सुनीता और मनीषा के बीच रेगुलर संपर्क बना रहा, विशेषकर मनीषा और सुनीता के बीच.

इधर रोहित और सुनीता दोनों ने पुणे में नौकरी ज्वाइन किया. कुछ महीने बाद दोनों की शादी हुई. इस शादी में उन के मातापिता की सहमति थी. कुछ दिनों के बाद रोहित और सुनीता कनाडा चले गए. यहां भी मनीषा और सुनीता के बीच अच्छा संपर्क बना रहा.

इधर कुछ समय से मनीषा और मनोज के रिश्ते में कुछ खटास आने लगी थी. मनोज रोज रात को शराब पीता और मनीषा को भी पीने को कहता. पर मनीषा ने उस के लाख कहने के बावजूद शराब को होठों से नहीं लगाया. इस के चलते मनोज उस से बहुत नाराज रहता. कभीकभी वह गालीगलौज पर भी उतर आता. धीरेधीरे उन के बीच कड़वाहट बढ़ती गई, पर मनीषा ने अपना दुख सुनीता के सामने जाहिर नहीं किया.

एक बार तो मनोज ने मनीषा पर हाथ तक उठा दिया था. इसी तरह लड़तेझगड़ते करीब 10 साल गुजर गए.

एक बार जब मनीषा और सुनीता वीडियो चैट कर रही थीं, उसी बीच मनोज ने कालबेल बजाया. मनीषा को दरवाजा खोलने में कुछ वक्त लगा. उस ने फोन हाथ में लिए दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही मनोज उस पर गरज पड़ा, “बिच, तुम को डोर खोलने में इतना टाइम क्यों लगा?“

मनीषा ने झट से फोन काट दिया. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और सुनीता को मामला समझने में देर नहीं लगी.

सुनीता के मन में अपनी सहेली के लिए चिंता हुई. कुछ दिनों बाद वह खुद मनीषा से मिलने अमेरिका आई. वह दो दिनों तक रही. इस बीच मनीषा और मनोज में बातचीत हां, नहीं या यस, नो तक सिमट कर रह गई थी.

जब मनोज औफिस गया था और बच्चे स्कूल, तब सुनीता ने मनीषा से पूछा, “मनोज आजकल कुछ नाराज दिख रहा है. कुछ खास बात है तो मुझे बताओ.“

“नहीं, कुछ ख़ास नहीं. कल से ही हम दोनों एकदूसरे से नाराज हैं और बातचीत करीब बंद है. फिर अपने ही एकदो दिन में ठीक हो जाएगा.“

“आर यू श्योर ? तुम कहो तो मैं मनोज से कुछ बात करूं? “

“नहींनहीं, इस की जरूरत नहीं है. कहीं ऐसा न हो बात और बिगड़ जाए. मैं मैनेज कर लूंगी.“

“ओके. फिर भी देखना, जरूरत पड़ने पर मैं या रोहित अगर तुम्हारे कुछ काम आ सके तो बहुत खुशी होगी हमें.“

सुनीता कनाडा लौट आई. उस ने रोहित को मनोज और मनीषा के बारे में बताया. सुनीता बोली, “मैं मनीषा को बहुत पहले से और अच्छी तरह जानती हूं. वह अंतर्मुखी है, अपने मन की बात जल्द किसी को नहीं बताती है. रोहित क्या हमें उस की मदद नहीं करनी चाहिए.“

“जरूर करनी चाहिए बशर्ते वह मदद मांगे. मियांबीवी के बीच में यों ही दखल देना ठीक नहीं है. फिलहाल लेट अस वेट एंड वाच.“

कुछ दिनों बाद सुनीता ने मनीषा को फोन किया. फोन उस की बेटी ने उठाया. सुनीता को बेटी की आवाज सुनाई पड़ी, “मम्मा, सुनीता आंटी का फोन है. क्या बोलूं ?”

‘बोल दे, मम्मा अभी सो रही है.“

सुनीता ने फोन काट दिया. उसे दाल में कुछ काला लगा. एक तो यह उस के सोने का टाइम नहीं था और दूसरे मनीषा की आवाज रोआंसी थी. उस ने समझ लिया कि जरूर आज फिर मनीषा के साथ कुछ बुरा घटा होगा.

रोहित कभी मनोज को फोन करता, तो रोहित महसूस करता कि उसे बातचीत करने में कोई दिलचस्पी नहीं है. थोड़ी देर इधरउधर की बात कर मनोज कहता, ‘और सब ठीक है, बाद में बात करते हैं,’ पर मनोज कभी काल नहीं करता था, बल्कि रोहित ही 10 – 15 दिनों में एक बार हालचाल पूछ लेता.

कुछ दिनों बाद एक बार सुनीता ने मनीषा को फोन कर पूछा, “कैसी हो मनीषा? तुम तो खुद कभी फोन करती नहीं हो.“

“क्या कहूं…? बस जीना एक मजबूरी हो गई है, इसलिए जिए जा रही हूं.“

“ऐसा क्यों बोल रही हो? अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हुई है? अभी आगे बहुत लंबी जिंदगी पड़ी है. सुखदुख तो आतेजाते रहते हैं.“

“दुख हो तो झेल लूं, पर मेरा जीवन नासूर बन गया है सुनीता,“ मनीषा ने कहा.

“ऐसी कोई बात नहीं. आजकल हर ज़ख्म का इलाज है. तू बोल तो सही.“

मनीषा को कुछ देर खामोश देख कर सुनीता बोली, “तुम चुप क्यों हो गई हो? जब तक बोलोगी नहीं, मुझे तेरी तकलीफ का कैसे पता चलेगा. वैसे, मुझे कुछ अहसास है कि मनोज तुम्हें जरूरत से ज्यादा तंग करता है.“

मनीषा ने सिसकते हुए कहा, “2-2 बेटियां हैं, उन के लिए जीना मेरी मजबूरी है. पहले बात सिर्फ गालीगलौज तक रहती थी, अब तो अकसर बेटियों के सामने हाथ भी उठा देता है. वह भी बिना वजह.“

“आखिर वह चाहता क्या है? “

“तू तो जानती है, मेरा जौब वर्क फ्रॉम होम होता है. मुझे घर से बाहर ज्यादा जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. मुझे ज्यादा तामझाम पसंद नहीं है.“

“तो इस से क्या हुआ?“

“मनोज को चाहिए कि मैं भी जींसशॉर्ट्स पहनूं, स्विमिंग सूट पहन कर स्विम करूं, उस के और उस के दोस्तों के साथ शराब पीऊं और डांस करूं. मुझ से यह सब नहीं होगा. उस के साथ कहीं पार्टी में जाती हूं, तो मैं अपने इंडियन ड्रेस में होती हूं.“

“इस में गलत क्या है, इस के लिए कोई तुम्हें फोर्स नहीं कर सकता है.“

“यह सब किताबों की बात है, प्रैक्टिकल लाइफ में नहीं. अब मनोज को साथ काम करने वाली शादीशुदा क्रिश्चियन औरत अमांडा मिल गई है, जो उस की मनपसंद है. कभी वह घर आती है तो उस के सामने भी मेरा अपमान करता है.“

“तो तुम बरदाश्त क्यों करती हो?“

“नहीं करूं तो रोज मार खाऊं? “

“तुम अमेरिका में रह कर ऐसी बात करती हो? एक काल 911 को कर, उस की सारी हेकड़ी निकल जाएगी.“

“नहीं, मुझ से नहीं होगा.“

“तो तू मर घुटघुट के,“ बोल कर सुनीता ने गुस्से में फोन काट दिया.

इस के कुछ ही दिनों के बाद सुनीता और रोहित अमेरिका गए. वे दोनों दूसरे शहर में होटल में रुके थे. सुनीता ने मनीषा को फोन किया. मनीषा का फोन बेडरूम में था. उस की बड़ी बेटी वहीं थी. उस ने कहा, “वन मिनट, मैं मम्मा को देती हूं.“

फोन वीडियो काल था. बेटी फोन लिए लिविंग रूम में आई, जहां मनोज और अमांडा शराब पी कर म्यूजिक पर डांस कर रहे थे. मनीषा मनोज को अमांडा को घर से बाहर निकालने के लिए बोल रही थी. इस पर मनोज मनीषा को गालियां दे रहा था और बोल रहा था, “यह नहीं जाएगी. तुझे जाना होगा,“ बोल कर वह मनीषा को घसीटने लगा. अमांडा भी उस का साथ दे रही थी. मनीषा को दरवाजे के बाहर निकाल कर मनोज ने दरवाजा बंद कर दिया. उधर सुनीता यह सब देख रही थी और रिकौर्ड कर रही थी.

सुनीता को यह सब सहन नहीं हुआ. उस ने फोन काट दिया और तुरंत 911 पर काल कर पूरी बात बता दी. कुछ ही मिनटों के अंदर मनीषा के घर पुलिस पहुंच गई, “यहां मनीषा कौन है?“

“मैं ही हूं. क्या बात है?“

“हमें सुनीता ने फोन कर आप की मदद करने के लिए कहा है. वैसे, सुनीता ने वीडियो क्लिप भी भेजी है. आप अपना स्टेटमेंट रिकौर्ड करवा दें. मनोज कौन है?“

“वे मेरे पति हैं और अंदर हैं.“

पुलिस के बेल दबाने पर मनोज ने दरवाजा खोला, तो उसे देख कर हक्काबक्का रह गया. पुलिस ने कहा, “आप को मेरे साथ थाने चलना होगा.“

मनोज को पुलिस ले गई. सुनीता ने फोन पर मैसेज भेजा था, “तुम दोनों बेटियों के साथ कनाडा आ जाओ. वहां से अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करना.“

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