रजिया और आफताब का खातापीता और सुखी परिवार था. आज उन की शादी की 25वीं सालगिरह थी. आफताब और रजिया ने केक काटने के बाद सब से पहले अशोक बाबूजी को खिलाया. अशोक बाबूजी भी इसी परिवार का हिस्सा थे. रजिया और आफताब की 20 साल की बेटी आसमां आज भी अशोक बाबूजी से 5 साल की बच्ची की तरह लाड़ दिखाती है. आफताब के एक स्कूटर हादसे पर अशोक बाबूजी ने किसी फरिश्ते की तरह इस परिवार की मदद की थी. उस हादसे में अपनी टांग गंवाने के बाद आफताब की निर्भरता अशोक बाबूजी पर और ज्यादा बढ़ गई थी. इधर आसमां की शादी की बात चल रही थी. वह बहुत खूबसूरत और पढ़ीलिखी थी. उस के लिए एक से बढ़ कर एक परिवारों के रिश्ते आ रहे थे. आफताब की खाला की सख्त हिदायत थी कि उन के समाज में ज्यादा दूर के लोगों से रिश्ते नहीं किए जाते और उन्हें अपनी बेटी का निकाह अपने ही किसी एक परिचित परिवार में करना चाहिए.

खाला के सुझाव को दरकिनार कर रात को खाने की टेबल पर आफताब ने अपनी बेटी से कहा, ‘‘बेटा, हम तुम्हारे ऊपर अपनी पसंद नहीं थोपेंगे. तुम अपनी पसंद के लड़के से शादी कर सकती हो, भले ही वह किसी भी मजहब या जाति का हो, हमें फर्क नहीं पड़ता है.’’ इसी बातचीत के दौरान आफताब ने रजिया की अधूरी लवस्टोरी का जिक्र कर दिया. रजिया बातचीत का मसला बदलने को कह कर बगैर पूरा खाना खाए उठ गई. अपने अधूरे इश्क का जिक्र आते ही रजिया असहज हो जाती थी. वह अपने पुराने प्यार को पूरी तरह भूल चुकी थी और अब उस के लिए टोकना उसे बुरा लगता था. आफताब ने रजिया के कालेज के लड़के के साथ अफेयर की अनदेखी कर उस से शादी की थी. आफताब ने रजिया की प्रेम कहानी को पूरी होने से पहले ही खत्म कर दिया था. आफताब को इस बात का अफसोस था. आफताब रजिया की खूबसूरती और ऊंचे खानदान से होने के चलते इस कदर उतावला था कि उस ने रजिया की प्रेम कहानी को सांप्रदायिक रंग दे कर खत्म करा दिया और खुद उस का शौहर बन बैठा.

आफताब ने रजिया का शरीर और उस का शौहर होने का हक तो हासिल कर लिया था, लेकिन रजिया की रजामंदी हासिल करने में उसे जमाना लग गया. जबरदस्ती रजिया का प्यार हासिल कर लेने के बाद आफताब को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. आसमां के जन्म के बाद रजिया ने मन से आफताब को अपना पति मान लिया था और अब जा कर उन के रिश्ते मधुर हुए थे. इस परिवार की हंसीखुशी इसी तरह जारी थी. आज उन के परिवार के दोस्त अशोक बाबूजी का जन्मदिन था. पूरा परिवार इस आयोजन को एकसाथ मनाता था. अशोक बाबू ने पता नहीं किस वजह से शादी नहीं की थी. इलाके में उन की एक छोटी सी कपड़ों की दुकान थी. अशोक बाबूजी से इस परिवार का नाता दिनोंदिन और गहरा हो गया था. आफताब को अशोक बाबूजी ने ही दिया था. आसमां को जन्म के बाद सब से पहले अपनी बांहों में उठाने वाले अशोक बाबूजी ही थे. कहते हैं कि इनसान के कर्म इसी जिंदगी में कभी न कभी उस के आने वाले कल को जरूर चोट पहुंचाते हैं. किसी छोटी सी बात पर नाराज हो कर एक दिन दंगाइयों ने आफताब के घर में आग लगा दी.

रजिया और आसमां तो किसी तरह से परदों और चादरों की रस्सी बना कर बाहर निकल आईं, लेकिन आफताब के साथ उन का खुशियों का आशियाना जल कर खाक हो चुका था. अशोक बाबूजी एक बार फिर इस परिवार के लिए फरिश्ता साबित हुए. भयानक अग्निकांड के बाद जब उन का किसी रिश्तेदार ने सहयोग नहीं दिया, तो अशोक बाबूजी ने ही उन्हें अपने घर में पनाह दी. रजिया के अपने ही सगेसंबंधी और समाज के लोग आफताब की जगह रजिया को सरकारी नौकरी नहीं मिलने दे रहे थे, बीमा की रकम मिलने में भी मुश्किलें डाल रहे थे. पूरा शहर मानो इस परिवार की जान का दुश्मन बना हुआ था. अशोक बाबूजी को इस परिवार के लिए कईकई दिनों तक दुकान बंद रखनी पड़ी, पूरे शहर से लड़ना पड़ा,

लेकिन अब 8 महीने बाद समस्याएं दुरुस्त होने लगी थीं. आसमां का एक कालेज में प्रोफैसर के लिए चयन हो गया था. आज उस का पहला दिन था. आसमां सुबहसुबह अशोक बाबूजी के कमरे में फूलों का गुलदस्ता ले कर गई. पर वहां उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई. आसमां की मां रजिया अशोक बाबूजी के साथ उन के बिस्तर में थी. आप समझ सकते हैं कि आसमां के दिल पर क्या गुजरी होगी. आसमां ने फूलों को एक तरफ फेंक कर रोते हुए बेबसी में अशोक बाबूजी से कहा, ‘‘आह, तो यह है आप के एहसानों की वजह.’’ अभी उस के प्यारे अब्बूजान को गुजरे हुए पूरा एक साल भी नहीं हुआ था और उस की मां गिरगिट की तरह रंग बदल लेगी, आसमां ने यह सपने में भी नहीं सोचा था. आज रजिया को अपनी जिंदगी का वह गहरा राज आसमां से साझा करना पड़ गया जिसे वह गलती से भी जबान पर लाना नहीं चाहती थी. अशोक बाबूजी ही रजिया के बचपन का वह प्यार था, जो परवान नहीं चढ़ सका था. आफताब द्वारा रजिया को बेबस कर शादी के बाद, रजिया ने इसे ही जिंदगी मान लिया था.

रजिया ने पूरी वफादारी से आफताब के साथ अपने रिश्ते को निभाया था. अपनी पूरी शादीशुदा जिंदगी में उस ने अशोक बाबूजी की ओर मुड़ कर नहीं देखा था. अशोक बाबूजी का उन के घर आनाजाना था, लेकिन रजिया ने हर समय उन से परदा किया था. यहां तक कि चायपानी के लिए भी वह आसमां से कह कर या परदे की आड़ से पूछती थी. उधर अशोक ने अपने अधूरे प्यार के गम में जिंदगी में कभी शादी न करने का फैसला लिया था. आज जब हालत बदल चुके थे, तो रजिया इनकार नहीं कर सकी. आसमां को यह दलील, यह सफाई पसंद नहीं आई. उस ने अपनी मां के चेहरे पर थूक दिया. आसमां को रजिया और अशोक का रिश्ता किसी कीमत पर मंजूर नहीं था. वह नहीं चाहती थी कि उस के अब्बा, जिन को खाक में मिलना नसीब नहीं हुआ था, की बेवा किसी दूसरे धर्म के आदमी से जिस्मानी रिश्ता बनाए. अग्निकांड की उस भयानक रात ने आसमां की सोच को कट्टरपंथी बना दिया था. रजिया का जला हुआ मकान फिर से बन चुका था. आसमां को भी तनख्वाह मिलने लगी थी. तुरंत ही वे दोनों अपने नए मकान में शिफ्ट हो गए.

रजिया और अशोक बाबूजी के रिश्ते को जानने के बाद आसमां को अपना जन्म नाजायज लगने लगा था. आसमां ने रजिया को घर में बंदी बना दिया और अशोक बाबूजी से बोलचाल बंद कर दी. रजिया का कोई भी तर्क और कोई भी सुबूत आसमां को संतुष्ट न कर सका. आसमां की खातिर एक बार फिर रजिया और अशोक के मिलने का सपना अधूरा रह गया. आसमां की शादी करने के बाद रजिया ने अपनी सारी जायदाद बेटी और दामाद के नाम कर दी. अगले दिन रजिया बगैर किसी को बताए अशोक बाबूजी के साथ घर से भाग गई. जो काम अशोक और रजिया को आज से 30 साल पहले पूरा कर लेना चाहिए था, 50 साल की उम्र में वही काम कर उन्होंने अपनी अधूरी प्रेम कहानी को पूरा कर लिया था.

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