निकला. साल भर होने को आया लेकिन अब भी जब पुरवा हवा चलती है तो चरनदास की नाक की हड्डी में दर्द होने लगता है.

इंस्पेक्टर इसरार खान अपनी खिजाब लगी दाढ़ी खुजलाते हुए लखनवी अंदाज व अदब के साथ अम्मांजी की मातमपुर्सी कर रहे थे, ‘‘खुदा जन्नत बख्शे मरहूम को. क्या नायाब मोहतरमा थीं जनाब, अल्ला को भी न जाने क्या सूझी कि ऐसी पाकीजा और शीरीं जबान खातून को हम से छीन लिया.’’

पिछले 5 सालों से आमों की फसल पर मलीहाबादी दशहरी आमों की पेटियों का नजराना पेश करने की जिम्मेदारी खान साहब पर ही थी. अम्मांजी एकएक पेटी गिन कर अंदर रखवातीं. 2 साल पहले जब कीड़े के प्रकोप से मलीहाबादी आमों की पूरी फसल ही चौपट हो गई थी तब बेचारे खान साहब कहां से आम लाते. फिर भी बाजार से ऊंचे दामों में 2 पेटियां खरीद कर अम्मांजी की खिदमत में पेश कीं.

‘‘पूरे सीजन में सिर्फ 2 पेटियां?’’ यह कहते हुए अम्मांजी आगबबूला हो उठीं और फिर तो अपनी निमकौड़ी जैसी जबान से ऐसीऐसी परंपरागत तामसिक गालियों की बौछार की कि बेचारे खान साहब की रूह फना हो गई. लोग खामखाह पुलिस मकहमे को गालियों की टकसाल कहा करते हैं.

धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. जख्म भरने लगा और ठाकुर अभयप्रताप भी आफिस जाने लगे. इस बीच उन्हें यह खबर लग चुकी थी कि उन के चोरी हुए सामान समेत चोर पकड़ा जा चुका है. सामान की शिनाख्त भी उन के मातहत कर्मचारियों ने कर ली थी. तकरीबन सारा सामान उन्हीं मातहतों के खूनपसीने की कमाई का ही तो था जिन्हें उन्होंने तोहफों की शक्ल में अम्मांजी को भेंट किया था. चोर के साथ पुलिस वाले बेहद सख्ती से पेश आए थे.

ठाकुर अभयप्रताप के सामने भी चोर की पेशी हुई. आखिर वह पुलिस के आला अफसर थे, वह भी देखना चाह रहे थे कि किस बंदे में इतनी हिम्मत थी जिस ने उन के घर में सेंध लगाई. बेडि़यों में जकड़ कर चोर को हाजिर किया गया. साहब की ओर देखते ही चोर चौंका. इन्हें तो पहले भी कहीं देखा है. कहां देखा है? वह याद कर ही रहा था कि सिपाही रामभरोसे ने एक जोरदार डंडा यह कहते हुए उस की पीठ पर जमा दिया, ‘‘ऐसे भकुआ बना क्या देख रहा है बे. यही वह साहब हैं जिन के घर घुसने की तू ने हिम्मत की थी. अब देख, साहब ही तेरी खाल में भूसा भरेंगे.’’

बेचारा चोर मार खाए कुत्ते जैसा कुंकुआने लगा. तभी उस के दिमाग में एक बिजली कौंधी. वह ठाकुर अभयप्रताप के सामने बैठ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मुझे बचा लीजिए माई बाप, मैं तो मामूली उठाईगीर हूं. मैं ने चोरी जरूर की है माई बाप, पर आप का सब सामान तो मिल गया है हुजूर. थोड़ी सजा दे कर मुझे छोड़ दीजिए साहब.’’

‘‘अबे, तेरी तो ऐसी की तैसी,’’ और सिपाही रामभरोसे ने दूसरा डंडा ठोंका, ‘‘सवाल तेरी चोरी का नहीं है ससुरे, सवाल है तू ने हमारे साहब के घर घुसने की हिम्मत कैसे की?’’

बेचारा चोर फिर कुंकुआने लगा और तेजी से ठाकुर का पैर पकड़ कर बोला, ‘‘साहब, उस रात जब मैं आप के घर घुसा था तब आप ही थे न जो रात में जीने के ऊपर केले के छिलके बिछा रहे थे?’’

‘‘अयं, यह क्या आंयबांय बक रहा है बे. एक ही हफ्ते की मार से दिमाग फेल हो गया है क्या तेरा,’’ सिपाही रामभरोसे ने जूता उस के सिर पर जोर से ठोंका.

लेकिन अभयप्रताप सिंह का सिंहासन तो डोल गया था. फौरन सिपाही रामभरोसे को यह कहते हुए बाहर भेज दिया कि मुझे इस चोर से अकेले में कुछ बात करनी है.

फिर तो चोर ने पूरा खुलासा किया, ‘‘साहब, उस रात जीने पर जब साहब आप 3 जगह झुक कर केले के छिलके रख रहे थे तो यह खुशकिस्मत इनसान वहीं परदे के पीछे छिपा था. बाद में हवालात में ही मुझे पता चला कि साहब की सास की मौत केले के छिलके पर फिसल कर हुई थी.’’

अब क्या था. पासा पलट चुका था. साहब ने आननफानन में आदेश दे दिया कि चोरी का सामान तो मिल ही चुका है, फिर बेचारे गरीब चोर को क्यों सजा हो. पूरा का पूरा महकमा इस अजीब फैसले से सकते में आ गया. लेकिन जब साहब ने खुद ही उस का गुनाह माफ कर दिया तो फिर केस ही नहीं बनता न.

वह दिन और आज का दिन. महीने की पहली तारीख को वह चोर अपनी मूंछ पर ताव देता हुआ  ठाकुर अभयप्रताप के घर के दरवाजे के सामने खड़ा उन का इंतजार करता है. उस के हाथ में 2-4 केले रहते हैं. इंतजार करतेकरते वह पट्ठा सामने की पुलिया पर बैठ कर केले खाता जाता है और उस के छिलके पास में जमा करता जाता है. जैसे ही साहब बाहर निकलते हैं वह एक हाथ में केले का छिलका हिलाते हुए दूसरे हाथ से उन्हें सलाम ठोंकता है.

ठाकुर अभयप्रताप इधरउधर नजर दौड़ा कर धीरे से उस के पास जाते हैं और जेब से कुछ रुपए निकाल उस के हाथ पर रख कर झट से गाड़ी में बैठ जाते हैं. गेट पर खड़ा गार्ड और ड्राइवर सब उस चोर की हिमाकत और ठाकुर साहब की दरियादिली देख कर सिर खुजलाते रह जाते हैं.

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