संगीता और नगीना का परिचय एक यात्रा के दौरान हुआ था. उस से पहले वे कभी नहीं मिली थीं. एक ही दफ्तर में काम करने के कारण उन दोनों के पति ही एकदूसरे के घर आतेजाते थे. इसीलिए वे दोनों एकदूसरे की पत्नियों से भी परिचित हो गए थे, लेकिन दोनों की पत्नियों का मिलन पहली बार इस यात्रा में ही हुआ था.

हुआ यों कि संगीता के पति दीपक ने दफ्तर से 15 दिन की छुट्टी ली. दीपक के साथ काम करने वालों ने सहज ही पूछलिया, ‘‘क्या बात है, दीपक, इतनी लंबी छुट्टी ले कर कहीं बाहर जाने का विचार है क्या?’’

दीपक ने सचाई बता दी, ‘‘हां, हमारा विचार राजस्थान के कुछ ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करने का है. पत्नी कई दिनों से घूमनेके लिए चलने का आग्रह कर रही थी, इसीलिए मैं ने इस बार 15 दिन की यात्रा का कार्यक्रम बना डाला.’’

सभी ने दीपक के इस निश्चय की सराहना करते हुए कहा, ‘‘हो आओ. घूमनेफिरने से ताजगी आती है. आदमी को साल दो साल में घर से निकलना ही चाहिए. इस से मन की उदासी दूर हो जाती है.’’

तभी नगीना के पति रमेश ने दीपक से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे साथ और कोई भी जा रहा है?’’

‘‘नहीं, बस, श्रीमतीजी और मैं ही जा रहे हैं. बच्चे भी साथ नहीं जा रहे हैं, क्योंकि इस से उन की पढ़ाई में हर्ज होगा. वे अपने दादादादी के पास रहेंगे.’’

‘‘यह तो तुम ने बड़ी समझदारी का काम किया.’’

‘‘हां, मगर उन के बिना हमें कुछ अच्छा नहीं लगेगा. बच्चों के साथ रहने से मन लगा रहता है.’’

‘‘भई, मेरी पत्नी भी कहीं चलने के लिए जोर डाल रही है, पर सोचता हूं…’’

‘‘इस में सोचने की क्या बात है? अगर राजस्थान में घूमने की इच्छा हो तो हमारे साथ चलो.’’

‘‘तुम्हें कोई असुविधा तो नहीं होगी?’’

‘‘हमें क्या असुविधा होगी, भई, हनीमून मनाने थोड़े ही जा रहे हैं.’’

दफ्तर के सभी लोग ठठा कर हंस पड़े. सभी ने रमेश से आग्रह किया, ‘‘जाओ,भई, ऐसा मौका मत छोड़ो. सफर में एक से दो भले. पर्यटन में अपनों का साथ होना बहुत अच्छा रहता है.’’

रमेश को यह सलाह जंच गई. उस ने उसी समय छुट्टी की अरजी दे डाली. बड़े बाबू ने अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए उस की छुट्टी की भी स्वीकृति दे दी. इसीलिए दोनों दंपतियों का साथ हो गया.

रेलवे स्टेशन पर दोनों जोड़ों का जब मिलन हुआ तो संगीता ने नगीना से कहा, ‘‘देखिए, एक ही शहर में रहते हुए भी हम अभी तक नहीं मिल पाईं?’’

नगीना ने मोहक मुसकान के साथ जवाब दिया, ‘‘अब हम लोग खूब मिला करेंगी, पिछली सारी कसर पूरी कर लेंगी.’’

इस यात्रा में संगीता औैर नगीना का बराबर साथ रहा. रेल और मोटर में तो उन का साथ रहता ही था. वे लोग जहां ठहरते थे, वहां भी कमरे पासपास ही होते थे. एक बार तो एक ही कमरे में दोनों जोड़ों को रात बितानी पड़ी. लिहाजा, इस सफर में नगीना और संगीता को एकदूसरे को देखनेसमझने के खूब मौके मिले.

इस अवधि में संगीता ने यह जाना कि रमेश पत्नी का खूब खयाल रखता है. वह दिनरात उस की सुखसुविधा के लिए चिंतित रहता है. वह नगीना की पसंद की चीजें नजर आते ही ले आता है. आग्रह करकर के खिलातापिलाता. पत्नी को जरा सा उदास देखते ही वह प्रश्नों की झड़ी लगा देता, ‘‘क्या हो गया? तबीयत ठीक नहीं है क्या? सिरदर्द तो नहीं हो रहा है? क्या हाथपैर ही दर्द कर रहे हैं?’’

नगीना के मुंह से अगर कभी यह निकल जाता कि तबीयत कुछ ठीक नहीं है तो रमेश भागदौड़ मचा देता. पत्नी के सिर पर कभी बाम मलता तो कभी हाथपैर ही दबाने लगता. जरूरत होती तो डाक्टर को भी बुला लाता.

नगीना मना करती रह जाती, ‘‘घबराने की कोईर् बात नहीं. साधारण बुखार है.’’

मगर रमेश घबरा जाता. नगीना जब तक पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती थी, तब तक वह बेहद परेशान रहता. जब नगीना हंसहंस कर बातें करने लगती तब कहीं उस की जान में जान आती.

पत्नी को यों खिलीखिली सी रखने के लिए वह सतत प्रयत्नशील रहता.सब से बड़ी बात तो यह थी कि उस अवधि में वह अपनी पत्नी पर न तो कभी झल्लाता, न ही नाराज होता. कई बार नगीना ने उस की इच्छा के खिलाफ भी काम किया. फिर भी उस ने कुछ नहीं कहा.

रमेश के इस व्यवहार से संगीता बड़ी प्रभावित हुई. उसे नगीना से ईर्ष्या होने लगी. वह मन ही मन अपने पति दीपक और रमेश में तुलना करने लगती.

जिन बातों की ओर संगीता का पहले कभी ध्यान नहीं जाता था उस ओर भी उस का ध्यान जाने लगा था. एक टीस सी उस के मन में उठने लगी थी, ‘एक मेरा पति है और एक नगीना का. दोनों में कितना अंतरहै. दीपक तो मेरा कभी खयाल ही नहीं रखता. 15 वर्ष से अधिक अवधि बीत गई हमारे विवाह को, फिर भी कोई जानकारी ही नहीं है.

‘दीपक तो बस अपनेआप में ही डूबा रहता है. हां, कुछ कह दूं तो भले ही ध्यान दे दे. मगर मेरे मन की बात जानने की उसे स्वयं कभी इच्छा ही नहीं होती. मन की बात छिपाना ही उसे नहीं आता. जो मन में आता है, वह फौरन जीभ पर ले आता है. उस का चेहरा ही बहुत कुछ कह देता है. कठोर से कठोर बात भी उस के मुंह से निकल जाती है. ऐसे क्षणों में उसे इस बात का भी ध्यान नहीं रहताकि किसी को बुरा लगेगा या भला? वह तो बस अपने मन की बात कह के हलके हो जाते हैं. कोई मरे या जिए उस की बला से.

‘दीपक की सेवा करकर के भले ही कोई मर जाए, फिर भी प्रशंसा के दो बोल उस के मुंह से शायद ही निकलते हैं. बीमारी तक में उसे खयाल नहीं रहता कि मेरी कुछ मदद कर दे. जाने किस दुनिया में रहता है वह. उस के जीवन से कोई और भी जुड़ा हुआ है, इस का उसे ध्यान ही नहीं रहता. पत्नी का उसके लिए जैसे कोई महत्त्व ही नहीं है. न जाने किस मिट्टी का बना है वह. अच्छा बनेगा तो इतना अच्छा कि उस से अच्छा कोई और हो ही न शायद. बुरा बनेगा तो इतना बुरा कि वैरी से भी बढ़ कर. सचमुच बहुत ही विचित्र प्राणी है दीपक.’

संगीता के मन के ये उद्गार एक दिन नगीना के सामने प्रकट हो गए. उस दिन दोनों के पति यात्रा से वापस लौटने के लिए आरक्षण कराने गए थे. वे दोनों बैठी इधर- उधर की बातें कर रही थीं. तभी नगीना ने अपने पति की आलोचना शुरू कर दी. बच्चों के लिए खरीदे गए कपड़ों को ले कर पतिपत्नी में शायद खटक चुकी थी.

संगीता कुछ देर तक तो सुनती रही, किंतु जब नगीना रमेश के व्यवहार की तीखी आलोचना करने लगी तो वह अपनेआप को रोक नहीं पाई. उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नहीं, तुम्हारे पति तो ऐसे नहीं लगते. इन 12-13 दिनों में मैं ने जो कुछ देखा है, उस के आधार पर तो मैं यही कह सकती हूं कि तुम्हें अच्छा पति मिला है. वह तुम्हारा बड़ा खयाल रखते हैं. तुम्हारी सुखसुविधा के लिए वह हमेशा चिंतित रहते हैं. आश्चर्य है कि तुम ऐसे आदर्श पति की बुराई कर रही हो.’’

नगीना ने बड़ी तल्खी से जवाब दिया, ‘‘काश, वह आदर्श पति होते?’’

संगीता ने साश्चर्य पूछा, ‘‘फिर आदर्श पति कैसा होता है?’’

नगीना ने बड़े दर्द भरे स्वर में कहा, ‘‘संगीता, तुम मेरे पति को सतही तौर पर ही जान पाई हो, इसीलिए ऐसी बातें कर रही हो. हकीकत में वह ऐसे नहीं हैं.’’

‘‘तो फिर कैसे हैं?’’

‘‘जैसे दिखते हैं वैसे नहीं हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

नगीना ने फर्श पर बिछे गलीचे की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘वह इस गलीचे की तरह हैं.’’

संगीता का आश्चर्य बढ़ता ही जा रहा था. उस ने हैरानी से पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी बात समझ नहीं पाई?’’

फर्श पर बिछे हुए गलीचे के एक कोने को थोड़ा सा उठाती हुई नगीना बोली, ‘‘संगीता, गलीचे के नीचे छिपी हुई यह धूल, यह गंदगी, किसी को नजर नहीं आती. लोगों को तो बस यह खूबसूरत गलीचा ही नजर आता है. इसे ही अगर सचाई मानना हो तो मान लो. मगर मैं तो उस नंगे फर्श को अच्छा समझती हूं जहां ऐसा कोई धोखा नहीं है. संगीता, मुझे तुम से ईर्ष्या होती है. तुम्हें कितने अच्छे पति मिले हैं. अंदरबाहर से एक से.’’

संगीता मुंहबाए नगीना को देखती रह गई. उस से कुछ कहते ही नहीं बना. ंिकंतु दीपक के प्रति उसे जैसे नई दृष्टि प्राप्त हुई थी. अपने सारे दोषों के बावजूद वह उसे बहुत अच्छा लगने लगा. संगीता के मन में उस के प्रति जैसे प्यार का ज्वार उमड़ पड़ा.

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