सावन की सुबह थी. हलकीहलकी बूंदाबांदी धरती को गीला कर रही थी. बागों में खिले फूलों को छू कर निकली महक भरी हवा दिल के कोनेकोने में टीस सी उठा देती. जवान लड़कियां झूलों पर मतवाली नागिनों की तरह लिपटी हुई थीं. ऐसे समय में मेरे दिमाग में बीते समय की याद किसी किताब के पन्ने की तरह फड़फड़ाने लगी. आंखों में बीते कल के दृश्य झिलमिलाने लगे. क्या चाहने वाले मंजिल तक पहुंच पाते हैं? शायद ऐसा तो कभीकभी ही होता होगा, क्योंकि ज्यादातर प्रेमी प्रेम कर के अपने साथी को पूरी जिंदगी तिलतिल कर मरने के लिए छोड़ जाते हैं.

ऐसे में कुछ लोग जहां बिछुड़न की आग में जल कर अपने जीवन को ही खत्म कर देते हैं, तो कुछ लोग समय से समझौता कर लेते हैं. अकसर प्यार की मंजिल अधूरी क्यों होती है? प्रेम के बंधन में बांध कर कोई पहले तो सहारा देता है, फिर तूफानी थपेड़ों में क्यों छोड़ जाता है? ठीक ऐसा ही किया था मेरी नीलम ने. हम लोगों ने खूब चैटिंग की, खूब रातें साथ बिताईं. प्रेम से पहले उस ने मुझे सहारा दिया, पर 2 साल बाद ही वह मेरा साथ छोड़ कर भाग गई. क्या उस ने मुझे धोखा दिया? क्या वह बेवफा थी? बेवफाई लड़कियां करती हैं, सजा लड़कों को भुगतनी पड़ती है. उस के बाद मैं बड़े डिप्रैशन में रहा था. आज का प्यार नकली है. मैं ने तो नीलम से मुहब्बत की और उस के साथ शादी कर बच्चे करने का वादा किया, मगर वह तो बेवफा निकली.

वह छलिया मुझे छोड़ क्यों गई? एक के बाद एक 6 साल मैं ने अकेले काट दिए, पर मैं नीलम को नहीं खोज पाया. फेसबुक खंगाला. टिकटौक देखा. इंस्टाग्राम देखा. कुछ भी तो पता नहीं था उस का. दुनिया की भीड़ में वह न जाने कहां खो गई. आज फिर सर्दियों की रात थी. चांद को बादलों में छिपतानिकलता देख कर नीलम की याद आई. हम एकदूसरे की बांहों में खोए रहते थे. आज मैं अपने गम के सागर में डूब रहा था, तभी कविता ने आ कर मुझे उबार लिया. कविता सीधीसादी लड़की है. अभी हिंदी में एमए कर रही है. मैं जानता हूं कि भीतर ही भीतर वह मुझ से प्रेम करती है, पर आज तक इसलिए नहीं कह पाई कि मैं नीलम के ब्रेकअप से निकल नहीं पाया हूं. कविता ने आते ही मुझे झिंझोड़ कर प्यार से पूछा, ‘‘क्या बात है राजन डियर, कहां खोए हुए हो?’’

‘‘मैं तो बहुत पहले ही खो गया था कविता. अब खोने के लिए रहा ही क्या है?’’ मैं ने कविता को कविता में ही जवाब दिया. ‘‘जनाब, तुम अब तक उसे नहीं भूल पाए हो, हैरानी है, सब जानते हुए भी,’’ कविता ने मुझ से कहा. ‘‘प्यार अगर भुला दिया जाए, तो उसे प्यार नहीं कहा जाता. प्यार न भूलने का ही तो एक नाम है.’’ ‘‘मैं अभी मां पर बोझ बना हुआ हूं. वे एक अस्पताल में हैड नर्स हैं. उन्होंने मुझे पढ़ाया है. पर जब नीलम याद आती है, तो मानो सबकुछ गायब हो जाता है. वह बहुत ज्यादा फ्लर्ट करती थी… और फिर मुझे याद आने लगे बीते हुए क्षण…’’ जब एक दिन नीलम ने मुझ से कहा था, ‘‘राजन, यहां आओ न. आज तो बड़े खुश नजर आ रहे हो. आखिर ऐसी कौन सी चीज मिल गई है तुम्हें?’’ ‘‘तुम्हें पा लिया?है, अब कुछ नहीं चाहिए नीलू. बस, तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं.’’ इतना सुनते ही नीलम का मुखड़ा लाल हो गया.

वह बोली, ‘‘उस का फैसला कल पर छोड़ दो. अभी ऐसे फैसले लेने का टाइम नहीं है.’’ ‘‘क्यों? क्या हुआ? शादी नहीं करोगी मुझ से?’’ ‘‘ऐसा तो मैं सोच भी नहीं सकती राज. अभी तो मैं आज में जीना चाहती हूं. तुम भी यही सोच कर रहो,’’ वह गंभीरता से बोली. ‘‘ऐसा क्यों?’’ मैं ने पूछा. ‘‘हां राज, कोई भी सिचुएशन हमें दूर कर सकती है.’’ ‘‘तो फिर घर पर बातचीत नहीं करूं?’’ ‘‘नहीं, अभी नहीं. मांपिताजी ने मुझे आजादी दी है, तो कुछ मन की कर लूं,’’ नीलम ने शरारती नजरों से कहा था. उस के बाद आज 7 साल बीत जाने पर भी मैं उस की थाह नहीं पा सका, उसे नहीं खोज सका. उस ने फोन बंद दिया. फेसबुक अकाउंट पर पुरानी तसवीरें पड़ी थीं. ‘‘तुम फिर यादों में खो गए न राजन? अपनेआप को संभालो. मां का खयाल करो. आखिर कब तक ऐसे चलेगा?’’ जब कविता ने कहा, तो मेरा ध्यान टूटा.

‘‘पता नहीं. अच्छा, अब तुम जा कर सो जाओ. रात ज्यादा हो गई?है. मां परेशान होंगी.’’ ‘‘जब मैं तुम्हारे पास आती हूं, तो मुझे कोई कुछ नहीं कहता. फिर मैं तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाना भी नहीं चाहती.’’ ‘‘परेशान न हो कविता, मैं खुद अब सोने जा रहा हूं. सुबह आना, कुछ बातचीत करेंगे. अब जाओ,’’ मैं ने कविता को टाल दिया. जो प्यार और बौंडिंग मुझ में और नीलम में थी, वह कविता से नहीं हो पाई थी. कविता कुछ नहीं बोली. चुपचाप चली गई. मैं भी कुछ समय बाद बिस्तर पर लेट गया. कब मेरी आंखें लग गईं, पता ही नहीं चला. सुबह तकरीबन 10 बजे कविता आई. हम दोनों बैठ गए और नीलम के बारे में बातचीत करने लगे. अचानक कविता को कुछ याद हो आया. उस ने मुझ से कहा, ‘‘तुम्हें मालूम है राजन, शुरूशुरू में यह सुनने में आया था कि नीलम की शादी हो गई और यहां वाला मकान उस के पिताजी ने बेच दिया.

उस के पिताजी कट्टर ब्राह्मण हैं. दूसरी जाति में शादी की तो बात उन्हें मंजूर ही नहीं है.’’ ‘‘पर, उस ने मुझे तो कभी ऐसा नहीं बताया.’’ ‘‘कैसे बताती? तुम्हारा प्यार पाने के लिए तो कोई कुछ भी छिपा सकता है,’’ कविता गंभीर आवाज में बोली. ‘‘हां, तुम शायद ठीक कह रही हो…’’ मेरे मोबाइल पर एक नोटिफिकेशन की आवाज आई. मैं ने ईमेल देखा. ‘‘कविता, मैं रोज फार्म पर असिस्टैंट मैनेजर के पद पर बहाल किया गया हूं. एक सितंबर से जौइनिंग है.’’ कविता बहुत खुश थी. मुझ में खुशी और दुख का मिलाजुला रूप उमड़ रहा था. नौकरी पर जाने में अभी काफी समय था.

यह नौकरी मुझे कविता की बदौलत ही मिली थी. इसी ने ही समयसमय पर आ कर मुझे संभालासमझाया, नहीं तो मैं इस इंटरव्यू की तैयारी कभी भी नहीं कर पाता. मैं ने तय किया कि उस शहर में जा कर अपने रहने का इंतजाम कर आऊं, ताकि बाद में परेशानी न हो. मैं ने कुछ दिनों के बाद वहां जाने का कार्यक्रम बना लिया. जब मैं उस शहर के रेलवे स्टेशन पर उतरा, तो मुझे अजीब सी खुशी हुई. एक अनजाना डर भी मेरे भीतर समाता चला गया. न जाने क्या था उस शहर में, जो मुझे ऐसा लग रहा था. फार्म पर पहुंच कर मैं वहां के मैनेजर कौशलजी से मिला और रहने के बारे में उन से बात की. उन्होंने कहा, ‘‘राजनजी, मेरे मकान में जगह तो खाली है, पर सिर्फ 2 आदमी रह सकते हैं. आप तो बीवीबच्चों वाले होंगे, इसलिए…’’ ‘‘सर, मैं तो बिलकुल अकेला हूं.

अभी तक शादी की नहीं…’’ मैं बीच में ही बोल पड़ा. ‘‘क्या आप ने अभी तक शादी नहीं की… कमाल है? आप फिलहाल गैस्टरूम में रह सकते हैं.’’ मुझे कविता की याद आई. जब चला था, तब उस का चेहरा उदास था. होंठों पर हंसी थी और आंखों में मोती जैसे झिलमिलाते आंसू थे. रेलवे स्टेशन पर मेरे साथ ही आई थी वह. तब गंभीर हो कर मैं ने उस से कहा था, ‘‘कविता, तुम ने मेरी जिंदगी संवारी है, मुझे नया जीवन दिया है. मैं दिनोंदिन तुम्हारे एहसानों से दबता जा रहा हूं. कैसे उतार पाऊंगा इतने सारे एहसान?’’ ‘‘अगर तुम इन सब बातों को एहसान कहते हो, तो मैं कुछ नहीं कहूंगी. वैसे, यह मेरा फर्ज है. हां, अगर यह एहसान है और उतारने की बात है, तो समय आने पर मैं हिसाब मांग लूंगी,’

’ कविता ने रोते हुए कहा था. मैं यादों से बाहर निकला. कुछ दिन के बाद कौशलजी ने कहा, ‘‘राजनजी, अब आप के लिए मैं ने घर के बगल में ही किराए का एक कमरा ले रखा है.’’ ‘‘धन्यवाद सर,’’ मैं इतना ही बोल सका. कौशलजी मुझे कमरे की ओर ले गए. कमरा साफसुथरा व काफी बड़ा था. एक ओर पलंग बिछा था. लगता था कि मेरे आने से पहले ही इस को संवारा गया था. मैं ने अपना सामान जमा लिया. कौशलजी चाय ले कर आए. चाय पीने के बाद कुछ बातचीत हुई, फिर वे चले गए. मैं ने अपना जरूरी सामान ठीक किया. रात के 8-9 बजे कौशलजी खाना ले आए. हम दोनों ने साथ ही खाना खाया. कुछ देर बैठने के बाद कौशलजी चले गए. थका होने के चलते मैं भी जल्दी ही सो गया. सुबह का नाश्ता कौशलजी के घर से ही लाया गया था. हम दोनों साथ ही फार्म गए और साथ ही वहां से लौटे. 15 दिनों तक यह सब चलता रहा. इस बीच मेरी कविता व मां से कई बार बात हुई.

यहां मुझे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं हुई. मैं बहुत खुश था. वहां काम करते हुए मुझे एक महीना हो गया था. कौशलजी की पत्नी पीहर गई थीं, इसलिए हम दोनों साथ ही होटल में खाते. लगातार होटल में खाना खाने की वजह से मैं कमजोर होता जा रहा था. थकान और हलकाहलका बुखार रहने लगा था. उस दिन मुझे तेज बुखार था. मैं छुट्टी ले कर घर पर ही रहा. 3 दिन बीत गए. बुखार नहीं गया. कौशलजी रोज आते थे. एक दिन उन्होंने बताया कि उन की बीवी लौट आई? हैं. उन्होंने कहा, ‘‘आप दवाएं तो ठीक से ले रहे हैं न?’’ ‘‘हां सर, पर हालत तो दिनोंदिन बिगड़ती ही जा रही है.’’ ‘‘यह तो स्वाभाविक ही है. एक तो आप बीमार हैं, ऊपर से खाना खुद बनाते हैं. मैं आज से खाना भिजवा दिया करूंगा.’’ मैं चुप ही रहा. न नहीं कह सका. कुछ देर बाद कौशलजी चले गए. मैं एक बार फिर विचारों में डूब गया. मैं सोचने लगा, ‘‘हर आदमी का बरताव मेरे साथ कितना अच्छा होता है.

पर समझ में नहीं आता कि नीलम ही मेरे जीवन में बेवफा बन कर क्यों आई?’’ अगले दिन दोपहर में कौशलजी की पत्नी खाना ले कर आईं. तब मैं भीतर चादर ओढ़ कर सो रहा था. वे दरवाजे पर दस्तक दे कर अंदर आईं. दरवाजे की ओर मेरी पीठ थी. मैं ने करवट बदली, उन से मेरी आंखें टकराईं. मैं हैरान था. वह तो नीलम थी. कितनी चुस्त लग रही थी वह. कालेज में तो उसे मोटी कह कर चिढ़ाया जाता था. आज तो स्लिमट्रिम थी. चमकता चेहरा, लो कट ड्रैस, जिस में उस के उभार फूट रहे थे. यह कैसे हो गया? उस ने सीधा सवाल किया, ‘‘डियर, शादी क्यों नहीं की तुम ने अभी तक?’’ ‘‘किस से करता नीलम? मैं ने तो अपनी कही हुई बात निभाई है और निभाता ही रहूंगा. वादा तो तुम ने ही तोड़ा है नीलू.’’ ‘‘मुझे माफ कर दो राज. मैं तो आज भी तुम्हें अपने दिल से नहीं निकाल पाई हूं.

मेरे चेहरे को देखो, मेरी आंखों की भाषा पढ़ो. तुम्हें अपनी नीलम से कोई शिकायत नहीं रहेगी.’’ ‘‘ऐसी क्या मजबूरी थी, जो तुम मुझ से मिल भी नहीं पाई? किसी और से अपनी बात कहलवा सकती थी, मैसेज तो भेज सकती थी.’’ ‘‘कैसे कहती? जिस दिन हम आखिरी बार मिले थे, उस दिन घर जा कर मैं ने मां को सबकुछ बता दिया था. तब वे मुझ पर बुरी तरह बिगड़ पड़ीं. मुझे मारापीटा, बुराभला कहा. तब भी मैं नहीं मानी, तो मुझे ले कर वे लोग ननिहाल चले गए. वह घर बेच दिया. ‘‘मुझ पर दबाव डाला गया कि मैं कौशलजी से शादी करूं. मैं नहीं मानी, तब पिताजी ने गुस्से में जहर पी लिया. आखिर मुझे राजी होना पड़ा. मैं ने तुम्हारे पास मैसेज नहीं भेजा कि तुम कुछ… ‘‘मैं उस समय तुम्हें नहीं मिल सकी. पर इतने सालों तक अजीब संकट में पड़ी रही हूं. तुम्हारी तरफ आने पर मैं पति के रूप में कौशलजी को खोती हूं. जो आदमी तो ठीक हैं, पर वे औरत को खुश नहीं रख सकते,

बच्चे नहीं हो सकते उन से. और तुम मेरे आदर्श प्रेमी रहे हो. ‘‘मैं चाहती हूं कि जो मैं ने खोया है, तुम उसे पूरा कर दो. तुम्हारी एजूकेशन मैं ने देख ली थी, क्योंकि कौशलजी के सारे ईमेल मैं ही चैक करती हूं. मैं ने ही तुम्हें यहां बुलवाया, पर यह नहीं मालूम था कि तुम्हारी शादी नहीं हुई है. मुझे तुम जैसा प्रेमी चाहिए, हमेशा के लिए.’’ फिर वह बोली, ‘‘राज, सबकुछ भूल जाओ और शुरू से वही संबंध बना लो, जो शादी से पहले हमारे थे.’’ ‘‘नहीं, मैं अब यह नहीं कर सकता,’’ मैं ने कहा. ‘‘क्यों नहीं राज? शादी करने से मैं अधूरी हो गई क्या? मैं तो रातदिन तुम्हारा इंतजार कर रही हूं. तुम्हें अब मैं नहीं खो सकती. मुझे बच्चे चाहिए, वरना मैं अधूरी रह जाऊंगी.’’ इतना कह कर नीलम चली गई, पर मैं अंधकार में भटक गया. मैं उसे क्या समझ रहा था, पर वह क्या निकली. वह तो बेहद स्वार्थी निकली. शादी से पहले की बात दूसरी थी. अब मैं न खुद को धोखा दे सकता था, न कविता को, जो सबकुछ जान कर भी मुझ पर फिदा है. मुझे मालूम है कि काम निकलने के बाद यह नीलम मुझे अपनी जिंदगी से निकाल देगी. उसी दिन मैं ने वह शहर और नौकरी छोड़ देने की बात तय कर ली,

क्योंकि अगर कौशलजी को हमारे प्रेम के बारे में पता चल गया तो उन के परिवार में जहर घुल जाएगा. हो सकता है कि कौशलजी को सारी बात मालूम हो, पर मैं क्यों उन के प्लान का हिस्सा बनूं. एक दिन मैं कौशलजी की गैरहाजिरी में सबकुछ समेट कर और नीलम से आखिरी बार मिल कर हमेशा के लिए वहां से चला आया. घर पहुंचने के बाद ठीक होने में मुझे 5 दिन लग गए. कविता मेरी खूब सेवा कर रही थी. कुछ दिनों बाद मुझे नीलम का एक मैसेज मिला, जिस में उस ने गुस्सा तो जाहिर किया, पर फिर कहा कि जो मैं ने किया वही सही था. मैं ने फिर कविता से शादी कर ली. आज मैं बहुत खुश हूं और तनिक दुखी भी कि नीलम जैसी स्मार्ट और चुलबुली लड़की मेरे जीवन से निकल गई, पर यह भरोसा भी है कि अब मेरी जिंदगी सही पटरी पर चलेगी. पर इस दुख का बोझ मेरे दिल पर ज्यादा नहीं, क्योंकि नीलम तो बेवफा है. वह दूसरों को इस्तेमाल करने वाली बन चुकी है.

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