मीनाका चेहरा देख कर शोभाजी हैरान रह गईं. वे 1-2 मुलाकातों में ही समझ जाती थीं कि सामने खड़ा इंसान कितने पानी में है. मगर मीना को ले कर उन की आंखें धोखा खा गईं.

‘‘जो चीज आंखों के बहुत ज्यादा पास हो उसे भी ठीक से पहचाना नहीं जा सकता और जो ज्यादा दूर हो उस की भी पहचान नहीं हो सकती. हमारी आंखें इंसान की आंखें हैं. हमारे पास गिद्ध की आंखें नहीं हैं,’’ सोमेश ने मां को समझाया था, ‘‘आप इतनी परेशान क्यों हो रही हैं? आजकल का युग सीधे व सरल इंसान का नहीं है. भेष बदलना पड़ता है.’’

दिल्ली वाले चाचाजी के किसी मित्र की बेटी है मीना और यहां लुधियाना में एक कंपनी में काम करती है. कुछ दिन उन के पास रहेगी. उस के बाद अपने लिए कोई ठिकाना देख लेगी. यही कह कर चाचाजी ने उसे उन के पास भेजा था.

3 महीने होने को आए हैं इस लड़की ने पूरे घर पर अपना अधिकार जमा रखा है. कल तो हद हो गई जब एक मां और बेटा उस की जांचपरख के लिए घर तक चले आए. मीना का उन के सामने जो व्यवहार था वह ऐसा था मानो वह इसी घर की बेटी है.

‘‘घर बहुत सुंदर सजाया है तुम ने बेटा… तुम्हारी पसंद का जवाब नहीं है. सोफा, परदे सब लाजवाब… यह पेंटिंग भी तुम ने बनाई है क्या? इतना समय कैसे निकाल लेती हो?’’

‘‘बस आंटी शौक है… समय निकल ही आता है.’’

शोभाजी यह सुन कर हैरान रह गईं कि उन की बनाई कलाकृति पर अपनी मुहर लगाने में इस लड़की को 1 मिनट भी नहीं लगा. फिर 3 महीने की सेवा पर कहीं पानी न फिर जाए, यह सोच वे चुप रहीं. मगर उसी पल तय कर लिया कि अब और नहीं रखेंगी वे मीना को अपने घर में. सामनेसामने उन्हीं को बेवकूफ बना रही है यह लड़की.

‘‘आप मीना की आंटी हैं न… अभी कुछ दिन और रुकेंगी न… घर आइए न इस इतवार को,’’ जातेजाते उस महिला ने अपना कार्ड देते हुए.

शोभाजी अकेली रहती हैं. बेटा सोमेश बैंगलुरु में रहता है और पति का देहांत हुए 3 साल हो गए हैं. शोभाजी ने अपने फ्लैट को बड़े प्यार से सजाया है.

शोभाजी इस हरकत पर सकते में हैं कि कहीं यह लड़की कोई खतरनाक खेल तो नहीं खेल रही. फिर चाचा ससुर को फोन किया.

‘‘तो क्या अब तक वह तुम्हारे ही घर पर है… पिछली बार घर आई थी तब तो कह रही थी उस ने घर ढूंढ़ लिया है. बस जाने ही वाली है.’’

इस बात को भी 2 महीने हो गए हैं. अब तक तो उसे चले जाना चाहिए था.

हैरान थे चाचाजी. शोभाजी ने पूरी बात सुनाना उचित नहीं समझा. बस इतना ही पता लगाना था कि सच क्या है.

‘‘तुम्हें कुछ दिया है क्या उस ने? कह रही थी पैसे दे कर ही रहेगी. खानेपीने और रहने सब के.’’

‘‘नहींनहीं चाचाजी. अपना बच्चा खापी जाए तो क्या उस से पैसे लूंगी मैं?’’

हैरान रह गए थे चाचाजी. बोले, ‘‘यह लड़की इतनी होशियार है मैं ने तो सोचा भी नहीं था. जैसा उचित लगे वैसा करो. मेरी तरफ से पूरी छूट है. मैं ने तो सिर्फ 8-10 दिनों के लिए कहा था. 3 महीने तो बहुत लंबा समय हो गया है.’’

‘‘ठीक है चाचाजी,’’ कहने को तो शोभाजी ने कह दिया देख लेंगी, मगर देखेंगी कैसे यह सोचने लगीं.

पड़ोसी नमन परिवार से उन का अच्छा मेलजोल है. मीना की भी दोस्ती है

उन से. शोभाजी ने पहली बार उन से इस विषय पर बात की.

‘‘वह तो कह रही थी आप को क्10 हजार महीना देती है.’’

चौंक उठी शोभाजी. डर लगने लगा… फिर उन्होंने पूरी बात बताई तो नमनजी भी हैरान रह गए.

‘‘नहींनहीं शोभा भाभी, यह तो हद से

ज्यादा हो रहा है… क्या आप उन मांबेटे का पता जानती हैं?’’

‘‘उस महिला ने कार्ड दिया था अपना… रविवार को अपने घर बुलाया है.’’

‘‘इस लड़की को डर नहीं लगता क्या? वे मांबेटा किस भुलावे में हैं… यहां आए थे तो यह तो समझना पड़ेगा न कि क्या देखनेसुनने आए थे,’’ नमनजी ने कहा.

शोभाजी ने कार्ड ढूंढ़ कर फोन मिलाया, ‘‘जी मैं मीना की आंटी बोल रही हूं.’’

‘‘हांहां कहिए शोभाजी… आप आईं ही नहीं… मीना कह रही थी आप जल्दी वापस जाने वाली हैं, इसीलिए नहीं आ सकतीं… सुनाइए बच्चे कैसे हैं? दिल्ली में सब ठीक है न?’’

‘‘माफ कीजिएगा मैं कुछ समझी नहीं… दिल्ली   में मेरा क्या काम मैं तो यहीं रहती हूं लुधियाना में और जिस घर में आप आई थीं वही मेरा घर है. मीना तो मेरे चाचा ससुर के किसी मित्र की बेटी है जो 3 महीने पहले मेरे पास यह कह कर रहने आई थी कि 8-10 दिनों में चली जाएगी. मैं तो इस से ज्यादा उसे जानती तक नहीं हूं.’’

‘‘लेकिन उस ने तो बताया था कि वह फ्लैट उस के पापा का है,’’ हैरान रह गई थी वह महिला, ‘‘कह रही थी उस के पापा दिल्ली में हैं. मेरे बेटे को बहुत पसंद आई है मीना. उस ने कहा यहां लुधियाना में उस का अपना फ्लैट है. सवाल फ्लैट का भी नहीं है. मुझे तो सिर्फ अच्छी बहू चाहिए,’’ परेशान हो उठी थी वह महिला, ‘‘यह लड़की इतना बड़ा झूठ क्यों बोल गई? ऐसी क्या मजबूरी हो गई?’’

दोनों महिलाएं देर तक बातें करती रहीं. दोनों ही हैरान थीं.

शाम 6 बजे जब मीना घर आई तब तक उस का सारा सामान शोभाजी ने दरवाजे पर रख दिया था. यह देख वह हैरान रह गई.

‘‘बस बेटा अब तमाशा खत्म करो… बहुत समय हो गया… मुझे छुट्टी दो.’’

रंग उड़ गया मीना का. ‘‘सच बोल कर भी तुम्हारा काम चल सकता था. झूठ क्यों बोलती रही? पैसे बचाने थे उस के लिए चाचाजी से झूठ कहा. अपना रोब जमाना था उस के लिए नमनजी से कहा कि हर महीने मुझे क्व10 हजार देती हो. अच्छे घर का लड़का भा गया तो मेरा घर ही अपने पिता का घर बता दिया. तुम पर भरोसा कौन करेगा?’’

‘‘अच्छी कंपनी में काम करती हो… झूठ पर झूठ बोल कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली तुम ने.’’

‘‘आंटी आप… आप क्या कह रही हैं… मैं कुछ समझी नहीं.’’

‘‘बस करो न अब… मुझे और तकलीफ मत दो. अफसोस हो रहा है मुझे कि मैं ने

3 महीने एक ऐसी लड़की के साथ गुजार दिए जिस के पैरों के नीचे जमीन ही नहीं है. बेवकूफ तो मैं हूं जिसे समझने में इतनी देर लग गई. मिट्टी का बरतन बबनो बच्ची जो आंच पर रखरख कर और पक्का होता है. तुम तो काठ की हांड़ी बन चुकी हो.’’

‘‘रिकशा आ गया है मीना दीदी,’’ नमनजी के बेटे ने आवाज दी. मीना हैरान थी कि इस वक्त 6 बजे शाम वह कहां जाएगी.

‘‘पास ही बीवी रोड पर एक गर्ल्स होस्टल है. वहां तुम्हें आराम से कमरा मिल जाएगा. तुम्हें इस समय सड़क पर भी तो नहीं छोड़ सकते न…’’

रो पड़ी थी मीना. आत्मग्लानि से या यह सोच कर कि अच्छाखासा होटल हाथ से निकल गया.

‘‘आंटी मैं आप के पैसे दे दूंगी,’’ कह मीना ने अपना सामान रिकशे में रखा.

‘‘नहीं चाहिए… समझ लूंगी बदले में तुम से अच्छाखासा सबक ले लिया.

भारी मन से बिदा दी शोभाजी ने मीना को. ऐसी ‘बिदा’ भी किसी को देनी पड़ेगी, कभी सोचा नहीं था.

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