मोबाइल फोन लगातार बज रहा था. गहरी नींद सोई मीरा आवाज सुन घबराते हुए उठी. इतनी सुबह सुबह कौन हो सकता है? कहीं कोई बुरी खबर तो नहीं? भय की एक लहर उस के अंदर दौड़ गई. उस ने सामने लगी घड़ी पर नजर डाली. 6 बजे थे. अभी तो बाहर रोशनी भी नहीं हुई थी. वैसे भी सर्दियों की सुबह में 6 बजे अंधेरा ही होता है. इस से पहले कि वह फोन उठाती, फोन कट गया.

झुंझलाते हुए उस ने टेबल लैंप औन किया. मिस्ड कौल चैक करने पर पाया सासूमां का फोन था. उस के मन में अनेक तरह की शंकाएं उठने लगीं. जरूर कोई गंभीर बात है तभी तो इतनी सुबहसुबह फोन किया है मां ने सोच उस ने पराग को उठाना चाहा. तभी फिर से मोबाइल बजा.

‘‘हैलो मां, नमस्ते. आप कैसी हैं? सब ठीक है न?’’ मीरा के स्वर में घबराहट थी. देर रात तक जगे रहने के बावजूद उस की नींद पूरी तरह खुल गई थी. ‘‘सदा खुश रहो,’’ मीरा के नमस्ते के जवाब में अनुराधा ने उसे आशीर्वाद दिया, ‘‘यहां सब ठीक है. मैं ने तो यह जानने के लिए फोन किया था कि तुम उठीं कि नहीं. आज तुम दोनों की ही छुट्टियां खत्म हो रही हैं. औफिस जाने की तैयारी करनी होगी. अच्छा पराग को भी समय से उठा देना. मेड को टाइम से आने के लिए कह दिया था न? नई नई गृहस्थी है. मुझे पूरी उम्मीद है कि धीरेधीरे तुम सब संभाल लोगी. अब तक चाय तो पी ही ली होगी. पराग से भी बात करा दे. उसे भी समझा दूं कि वह काम में तेरा हाथ बंटाए. अब वह अकेला नहीं है. तेरी जिम्मेदारी भी उस पर है. दोनों मिल कर ही तो गृहस्थी जमाओगे. वैसे बेटा, आदमियों को कहां इतनी समझ होती है. घर तो औरत को ही संभालना होता है. तुम्हारे ससुर तो खुद एक गिलास पानी भी नहीं ले कर पीते. मैं ही करती हूं उन के सब काम. हालांकि पराग तो नए जमाने का लड़का है और इतने समय से अकेले रहतेरहते घर के कामकाज भी सीख गया है. फिर भी. घर तो तुम्हें ही संभालना होगा,’’

अनुराधा लगातार हिदायतें दे रही थीं. मीरा को उन की बातें और लगातार दी जाने वाली हिदायतें सुन बड़ी हैरानी हुई पर वह उन की बातों की अवहेलना नहीं कर सकती थी अत: बोली, ‘‘आप चिंता न करें मां, मैं सब संभाल लूंगी. पराग अभी सो रहे हैं, उठते हैं तो बात कराती हूं,’’ मीरा ने बहुत ही ठहरे हुए स्वर में कहा. कहीं सासूमां को बुरा न लग जाए, इस बात का भी उसे ध्यान रखना था. पराग की नींद डिस्टर्ब न हो, इसलिए वह बाहर ड्राइंगरूम में आ गई थी. फोन कट गया तो मीरा ने चैन की सांस ली.

उन की शादी हुए अभी 1 महीना ही हुआ था. दोनों ही दिल्ली में नौकरी करते थे और यहीं रहते थे. इसलिए शादी के बाद वे यहीं रहेंगे, यह तो पहले से ही तय था. पराग के मम्मीपापा और बाकी रिश्तेदार लखनऊ में रहते थे. पराग की बहन सुधा की शादी हो चुकी थी और वह देहरादून में रहती थी. पराग और मीरा की वैसे तो यह लव मैरिज नहीं थी, पर उन के कुछ दोस्त कौमन थे जिन के कारण उन का परिचय हुआ था. संयोग की बात है जब मीरा के पापा उस की जौब लग जाने के बाद उस के लिए लड़के की तलाश कर रहे थे तो मम्मी की एक सहेली ने जो लखनऊ में रहती थीं और पराग के परिवार से परिचित थीं, पराग का रिश्ता सुझाया था. दोनों परिवारों को एकदूसरे का परिवार भी पसंद आया और पराग व मीरा भी. वे दोनों तो इस तरह खुद को आमनेसामने खड़े देख हंसे बिना न रह सके थे. उन्हें क्या पता था कि एक दिन वे दोनों पतिपत्नी बन जाएंगे. हालांकि उन के दोस्तों ने तो यही कहा कि ये अवश्य ही प्यार करते होंगे और इस तरह चक्कर चला कर अपने परिवार वालों करे मना लिया होगा. शादी बेशक संयोग से हुई थी, पर इस समय तो दोनों ही एकदूसरे का साथ पा कर बेहद खुश थे.

कुछ दिन लखनऊ अपने ससुराल व कुछ दिन हनीमून में बिता कर वे दिल्ली वापस आ गए थे. उन्हें काम पर वापस जाने से पहले घर भी सैट करना था. पर जब से उन की शादी हुई थी, मीरा की सास दूर बैठ कर भी हर बात में दखलंदाजी करती थीं. जैसे कि टाइम से सोते हो कि नहीं, खाना बनाती हो या होटल में खाते हो, घर के लिए कैसा और क्याक्या सामान लेना चाहिए, पराग को क्या पसंद है क्या नहीं… कई बार मीरा को लगता कि साथ न रहते हुए भी उस की सास उन के बीच हमेशा रहती है.

सुबहशाम न जाने कितनी बार फोन करतीं. कुछ दिन तो उन का इस तरह चिंता दिखाना उसे अच्छा लगा था, पर फिर जब वे हर बात खोदखोद कर पूछने लगीं तो उसे बहुत अटपटा लगा. ठीक है कि वे अपने बेटे और बहू की खुशी चाहती हैं, उन्हें कोई तकलीफ न हो, इसलिए हिदायतें देती रहती हैं, पर वह भी तो अपनी तरह से कुछ करने की आजादी चाहती है, वह भी निर्णय लेने में सक्षम है. उन का बातबात पर टोकना उसे खलने लगा था. लेकिन वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेती कि अभी उन की शादी हुए दिन ही कितने हुए हैं. शुरूशुरू की बात है, फिर सासूमां खुद ही ज्यादा टोकना छोड़ देंगी.

‘‘जल्दी कैसे उठ गईं?’’ पराग ने सोफे पर बैठते हुए उबासी लेते हुए पूछा. उसे अभी भी नींद आ रही थी. ‘‘नहीं, मां का फोन आ गया था. तुम बात कर लेना,’’ और फिर चाय बनाने के लिए किचन में चली गई. ‘‘इतनी सुबह? मां को भी चैन नहीं,’’ किचन में उस के पीछे आ खड़े हुए पराग ने मीरा की झूलती लटों से खेलते हुए कहा. ‘‘हां, दूर बैठी भी मिसाइल छोड़ती रहती हैं. बेटे की चिंता में परेशान रहती हैं. क्या पता मैं तुम्हारा ठीक से खयाल रख पा रही हूं या नहीं,’’ मीरा के स्वर में थोड़ा व्यंग्य का पुट था.

‘‘मैं अपना खयाल खुद रख सकता हूं मां यह बात अच्छी तरह जानती हैं. पिछले 2 सालों से अकेला रह रहा हूं. सब मैनेज कर ही रहा था. मैडम, हम तो खाना भी बनाना जानते हैं, यह बात तो आप को भी पता है. तो बताइए नाश्ते और लंच के लिए क्या बनाया जाए? पराग का यों हर चीज को लाइटली लेना उसे बहुत रिलैक्स फील कराता. किसी भी बात को प्रौब्लम बनाने के बजाय तुरंत हल करने में यकीन रखता है. दोनों मिल कर किचन का काम खत्म कर तैयार हो औफिस के लिए निकल गए.

मीरा का औफिस पहले पड़ता था, इसलिए पराग उसे छोड़ कर गया. वह इस बात से खुश थी कि औफिस आनेजाने में उसे अब कोई परेशानी नहीं होगी. पहले वह चाटर्ड बस पर निर्भर थी, पर अब आराम से पराग के साथ कार में जा सकती थी. दिल्ली में ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक की समस्या इतनी भीषण है कि इंसान की आधी जिंदगी तो इसी आपाधापी में निकल जाती है. इन दोनों की जिंदगी मजे से गुजर रही थी. औफिस हो या फ्रैंड सर्कल, सब मीरा से यही कहते, ‘‘यार तुम कितनी खुशहाल हो. सास दूर रहती हैं, ननद की शादी हो चुकी है. तुम ही घर की बौस हो वरना हम तो सास-ननद की टोकाटाकी में ही उलझे रहते हैं.’’

‘‘ट्रैजेडी तो यह है कि आजकल की सासें हैं तो बहुत मौर्डन, एजुकेटेड भी हैं, नौकरी भी करती हैं, पर जब बात बहू की आती है तो अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए उस के हर काम में कमियां निकालने में पीछे नहीं रहती हैं. मेरी ही सांस को देख लो. टीचर हैं, पर बहू से कैसे व्यवहार करना चाहिए, इस की ट्रेनिंग कभी नहीं ली है,’’ बहुत ही नाटकीय अंदाज में बेला ने एक सांस लेते हुए जब कहा तो सब हंस पड़े. औफिस में बेला का बिंदासपन और हाजिरजवाबी सभी को पसंद थी. हमेशा खिलखिलाती रहती थी, लेकिन केवल औफिस में या घर से बाहर निकलने पर.

‘‘सास के सामने ज्यादा खुश रहो तो उन्हें एक तरह की जलन होती है, मेरा तो ऐक्सपीरियंस यही कहता है. इसीलिए यार घर पहुंचते ही मैं दुखी सा चेहरा बना लेती हूं. अब तो मेरा पति भी इस ट्रिक को समझ गया है, इसलिए इस सिचुएशन को हम ऐंजौय करते है,’’ बेला की बात सुन सब दांतों तले उंगली दबा लेते. उस की फिलौसफी से सब सहमत थे, पर हरकोई ऐसा करने की हिम्मत नहीं रखता, इसलिए सह रही थीं सास की दखलंदाजी.

‘‘अरे यार, मैं कोई खुशहाल नहीं हूं. बेशक मेरी सास यहां नहीं रहतीं, लेकिन वे तो दूर बैठे भी मिसाइलें चलाती रहती हैं. दिन में कईकई बार फोन कर डिटेल में सबकुछ पूछती हैं, राय देती हैं और हिदायतों का पुलिंदा भी फोन पर ही पकड़ा देती हैं’’ मीरा ने मेज पर रखी फाइलों को समेटते हुए कहा. उस के चेहरे पर शिकन साफ दिखाई दे रही थी, ‘‘औफिस में कई बार जब मैं फोन नहीं उठा पाती तो व्हाट्सऐप मैसेज की झड़ी लग जाती है. म्यूट कर के रखा है उन का नंबर वरना सारा दिन मैसेजों की आवाज ही सुननी पड़ती.’’ मीरा की बात सुन सब चौंक गए. ‘‘सच?’’ रमा ने माथे पर हाथ मारते हुए पूछा. ‘‘क्या वे यह भी पूछती हैं कि तुम लव कैसे करते हो आई मीन सैक्स..’’ बेला ने मीरा को कुहनी मारते हुए कहा. ‘‘यार कभी तो सीरियस हो जाया करो,’’ मीरा ने उस के गालों पर चिकोटी काटी,

‘‘जब भी वे वीडियो कौल करती हैं तो मुझे नाइटी बदल सूट या साड़ी पहननी पड़ती है. कई बार पराग उन्हें टालना भी चाहते हैं तो कहती हैं बहू से बात किए बगैर, उस की शक्ल देखे बगैर चैन नहीं पड़ता, मीरा ने सास की नकल उतारी. औफिस से निकलते हुए मीरा सोच रही थी कि शुक्र है पराग इस बात को समझ रहे हैं कि मां जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप करती हैं. अक्सर कहते भी हैं, ‘‘मां अगर हमारे साथ रह रही होतीं तो न जाने क्या होता. मैं तो तुम दोनों के बीच सैंडविच ही बन जाता. दूर बैठ कर भी पलपल की खबर रखना चाहती हैं तो मैं तो उस स्थिति के बारे में सोच कर ही सहम जाता हूं.’’ ‘‘तुम्हें ले कर शायद मां बहुत ज्यादा पजैसिव हैं.’’ मीरा की बात सुन पराग खिलखिला कर हंस पड़ा. ‘‘इकलौता होने का परिणाम है. पजैसिव तो वे सुधा को ले कर भी हैं.’’

‘‘फिर तो उस की लाइफ में भी दखल देती होंगी…’’ मीरा की बात सुन पराग फिर हंसा, ‘‘वहां मुमकिन नहीं है, क्योंकि सुधा की सास बैलिस्टिक मिसाइल हैं, सीधे टारगेट पर गिरती हैं, मां की साधारण मिसाइलें वहां नहीं चल पातीं. उस की सास के सामने तो मां के होंठ ही सिल जाते हैं.’’ ‘‘फिर तो सुधा की सास से ट्रेनिंग लेनी पड़ेगी, ताकि तुम्हारी मां के वारों से बचा जा सके,’’ मीरा ने भी हंसतेहंसते जवाब दिया. ‘‘अरे चलने दो न मिसाइलें, अगर उन्हें खुशी मिलती है तो… कब तक चलाएंगी… शुरुआती दिनों की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा,’’ पराग ने समझाया. ‘‘तो फिर चलने दो,’’ मीरा ने पराग की बांहों में झूलते हुए कहा. लौटते वक्त अक्सर पराग उसे तब नहीं ले पाता था, जब वह फील्ड में होता था. उस दिन भी ऐसा ही हुआ. इसलिए उस दिन उसे घर पहुंचते-पहुंचते 7 बज गए. पराग भी तभी लौटा. कपड़े चेंज कर मीरा कोल्ड कौफी बनाने जैसे ही किचन में घुसी कि तभी उस का मोबाइल बज उठा.

जब सासूमां को पता चला कि वह अभी आई है तो बोली, ‘‘इतनी देर घर से बाहर रहोगी तो घर की व्यवस्था बिगड़ जाएगी. टाइम से आ जाया करो. अब खाना घर पर बनाओगी या बाहर से और्डर करोगी… आजकल तो यह फैशन ही बन गया है कि रेस्तरां से खाना मंगवा लो.’’ मीरा की सास उसे कुछ बोलने का मौका ही नहीं दे रही थीं. उस ने स्पीकर औन कर दिया कि पराग भी बात कर सके, पर वह तो कौफी पीते-पीते उन की बातों का जैसे मजा ले रहा था.

‘‘मैं इतनी दूर बैठी हूं वरना आ जाती. तुम्हें थोड़ी मदद हो जाती. फिर तुम्हारे ससुर भी तो ज्यादा ट्रैवल नहीं कर सकते. उन्हें छोड़ कर मैं कहीं नहीं जाती. इधर सुधा की भी डिलीवरी होने वाली है. उस की सास का कहना है कि पहला बच्चा है, इसलिए परंपरा के अनुसार वह मायके में ही होना चाहिए… अब तुम लोग भी प्लान करो… 6 महीने हो गए हैं… लेकिन तब नौकरी छोड़ देना… बच्चे पालना कोई हंसीखेल नहीं है. मैं तुम्हें सब समझा दूंगी कि बच्चे की परवरिश कैसे की जाती है…’’

मीरा की सास लगातार मिसाइल छोड़ रही थीं और वह चुपचाप बैठी धीरेधीरे कौफी के सिप लेते हुए सोच रही थी कि कहां से लाए वह बैलिस्टिक मिसाइल.

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