‘‘लक्ष्मी, एक अच्छी खबर है.’’ ‘‘क्या…?’’ लक्ष्मी ने पूछा. ‘‘मैं ने अपनी रीना का रिश्ता पक्का कर दिया है.’’ ‘‘अभी वह 14 साल की ही तो है.’’ ‘‘चुप रह. ज्यादा जबान न चलाया कर. 1-1 कर के 4-4 बेटियां पैदा कर दीं और अब मुझे कानून पढ़ा रही है. ‘‘बैजनाथ अपने भतीजे रमेश के लिए अपनी रीना का हाथ मांग रहे थे. मैं ने हां कर दी. शाम को 4-5 लोग रिश्ता पक्का करने के लिए आएंगे. रीना को तैयार कर देना. यह पकड़ मिठाई का डब्बा.’’ ‘‘कैसी बात कह रहे हैं रीना के बापू. कहां हमारी नाजुक सी बेटी और कहां तुम्हारी उमर का दुहाजू रमेश.’’ ‘‘बस, अब आगे जबान मत खोलना. आदमी की उम्र नहीं देखी जाती है, उस की कमाई देखी जाती है. मुंबई में तुम्हारी बेटी राज करेगी.
‘‘पूरीसब्जी बना लेना. खाना अच्छी तरह बनाना, कुछ गड़बड़ मत करना. रमेश वहां टैक्सी चलाता है. 1,000 रुपए तो रोज के आसानी से कहीं गए नहीं हैं. वह बता रहा था.’’ शाम को रमेश अपने काकाकाकी को ले कर आया. लाल चमकीली कढ़ी हुई साड़ी, पायलचूड़ी और सोने की अंगूठी पहना कर रीना की शादी पक्की कर दी. ढोलक पर गीत गाए गए, खानापीना और रात में शराब का पीनापिलाना भी हुआ. रीना के लिए शादी का मतलब केवल सजनासंवरना, बढि़या साड़ी, चूड़ी, पायल, महावर, सिंदूर, पाउडर और लिपिस्टिक था. उस की निगाहें तो उस सामान से हट कर रमेश की तरफ गई ही नहीं. अम्मां आंसुओं से रोई जा रही थीं.
बापू गाली दे कर बोल रहे थे, ‘‘असगुन मना रही है रोरो कर.’’ रीना तो अपनी शादी के बाद मुंबई जाने की खुशी में फूली नहीं समा रही थी. उस ने जल्दीजल्दी चूडि़यां पहन लीं, पाउडर और लिपिस्टिक लगा कर वह खुद को बारबार आईने में देख रही थी. तभी रीना की सहेलियां सोनाली और गौरी आ गईं और उस की साड़ी, पायल और अंगूठी को लालची निगाहों से छूछू कर देखने लगीं. उन लोगों की निगाहों में उस के लिए जलन थी. ‘‘क्या री रीना, अब तू मुंबई में रहेगी?’’ ‘‘और नहीं तो क्या. मैं वहां फिल्म देखने जाऊंगी.’’ रीना दिनरात मुंबई नगरी के ख्वाबों में खोई रहती. कैसा होगा मुंबई शहर? वह तो कभी रेलगाड़ी में भी नहीं बैठी थी. कभी गांव से बाहर ही नहीं गई थी.
यहां तो उसे हर 2-4 दिन के बाद भूखे पेट सोना पड़ता था. बापू को मजदूरी न मिलती तो रोटी कैसे पकती या वह शराब पी कर आते तो अम्मां को मारते और गाली देते थे. रोतेरोते वह डर के मारे कोने में दुबक कर सो जाती. रीना रंगबिरंगे सपनों की दुनिया में खोई हुई थी, तभी उस के मन में खयाल यह आया कि कहीं रमेश भी नशा कर के उसे पीटेगा तो नहीं? लेकिन सुखद भविष्य के बारे में सोच कर उस का मन बोला, ‘नहींनहीं…’ एक दिन शाम को रीना अपनी सहेली गौरी के पास जा रही थी, तभी पीछे से किसी ने उसे बांहों में भर लिया. वह घबरा कर चिल्ला पड़ी, तो उस ने उस के मुंह पर अपनी हथेली रख दी. रमेश को पहचान कर रीना शरमा गई थी. गोराचिट्टा रमेश उसे अच्छा लगा था. टीशर्ट और पैंट पहना हुआ, हाथ में घड़ी बांधे हुए वह किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं लग रहा था.
8-10 दिन के अंदर ही रीना ब्याह कर के रमेश के साथ मुंबई आ गई थी. वह आंखें फाड़फाड़ कर ऊंचीऊंची इमारतों पर सजी हुई रंगबिरंगी रोशनियों को देख कर हैरानी से भर उठी थी. अपनी आंखों में सुनहरे भविष्य के अनगिनत सपने संजोए हुए रीना अपने घर पहुंची थी. वहां सासू मां ने उस का आरती कर के स्वागत किया था. ‘‘रमेश की बहू तो सुंदर है, लेकिन उम्र में अभी छोटी है,’’ किसी ने कहा. आसपास की औरतें, बच्चे रीना को झांकझांक कर देखने की कोशिश कर रहे थे. सासू मां ने उसे खाने के लिए पूरीसब्जी और खीर दी थी.
रीना को तो शादी बड़ा फायदे का सौदा समझ में आ रहा था. बढि़या खाना, बढि़या कपड़े, सजनासंवरना, उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. लेकिन रात में जब रमेश ने उस के तन को घायल किया तो उस का मन भी घायल हो उठा था. वह तड़प कर चीख उठी थी और सासू मां के आंचल में आ कर दुबक गई थी. अगली सुबह रीना देर तक सोती रही थी. जब उस की आंखें खुली थीं, तो दिन चढ़ आया था. सासू मां रमेश को धीरेधीरे कुछ समझा रही थीं. रमेश को देखते ही रीना डर के मारे कांप उठी थी. रात की बातों को याद कर के वह घबरा उठी थी. रमेश अपने काम पर चला गया था. सासू मां ने उस के लिए आलू का परांठा बनाया था, फिर उसे प्यार से समझाने लगीं कि शादी का मतलब ही यही होता है, इसलिए रमेश से डरो नहीं, अब वह तुम्हारा पति है.
रमेश शाम को घर लौट कर आया, तो रीना के लिए रसगुल्ले ले कर आया. उस ने आहिस्ता से रीना की हथेली को चूम लिया था. फिर उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था. धीरेधीरे रीना को रमेश अच्छा लगने लगा था. उस की प्यार भरी छेड़छाड़ से उस के मन में गुदगुदी हो उठती थी. वह रोज ही उस के लिए कुछ न कुछ खाने के लिए ले आता था. सासू मां भी काम पर चली जाती थीं. वे घर का काम करती थीं. झाड़ूबुहार, बरतन, कपड़ा, सब काम उन के लिए नया नहीं था. एक दिन सुबह ही रमेश ने रीना को कह दिया कि शाम को तैयार रहना, आज तुझे घुमाने ले जाऊंगा. रीना सुबह से ही बहुत खुश थी. रमेश उसे अपनी आटोरिकशा में बिठा कर जुहूचौपाटी ले कर गया. वहां लोगों की भीड़ देख ऐसा लग रहा था कि जैसे मेला लगा हो. वहां रीना ‘बर्फ का गोला’ खा कर बहुत खुश हुई थी. सब तरफ लोग कुछकुछ खापी रहे थे. उस ने तो कभी नदी भी नहीं देखी थी, इतना बड़ा समुद्र देख कर वह हैरानी से भर उठी थी. रमेश ने उसे ठंडी बोतल पिलाई, गोलगप्पे खिलाए. वे दोनों घंटों समुद्र के किनारे बैठे रहे थे.
रमेश उस की हथेलियों को पकड़ कर बैठा हुआ मीठीमीठी बातें कर रहा था. रीना सजधज कर अपनेआप को महारानी से कम नहीं समझती थी. अब वह रमेश के लौटने का इंतजार करती, क्योंकि उस की प्यारभरी छेड़छाड़ उसे अच्छी लगती थी. यहां पर रीना के घर में गैस का चूल्हा था, टैलीविजन था और पानी ठंडा करने वाली मशीन भी थी. गांव में तो लकड़ी जला कर रोटी बनाती तो धुएं के मारे रोतेरोते उस की आंखें लाल हो जाती थीं.
जब रीना को अपनी अम्मां की याद आती, तो रमेश अपने फोन से अपने बापू से बात करवा देता था. फिर रीना पेट से हो गई थी. सासू मां भी खुश थीं और रमेश भी बहुत खुश था. वह उस के इर्दगिर्द घूमता रहता. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. कभी उसे फिल्म दिखाने ले जाता, कभी बाजार ले जाता. वह बहुत खुश थी. सासू मां भी कोठी से उस के खाने के लिए कुछ न कुछ जरूर ले कर आतीं. रमेश की एक बात से रीना को गुस्सा आता था कि वह उसे किसी से बात करते हुए नहीं देख पाता था. वह कहीं भी किसी औरत से भी बात करे तो वह नाराज हो जाता था.
रीना ने परेशान हो कर एक दिन सासू मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि रमेश की पहली बीवी किसी दूसरे के चक्कर में पड़ कर उस के साथ भाग गई थी, इसीलिए वह हर समय उसे अपनी आंखों के सामने रखना चाहता था. समय आने पर रीना छोटी सी उम्र में जुड़वां बच्चों की मां बन गई. अस्पताल में आपरेशन और दवा में काफी खर्चा आया. 2 नन्हें बच्चों के दूध, दवा, डाक्टर, रोज के खर्चे बहुत बढ़ गए. वह बच्चों के साथ ज्यादा बिजी रहती. कमजोरी के चलते जल्दी थक जाती थी. अब वह रमेश की ओर ध्यान नहीं दे पाती थी. वह बातबात पर चिड़चिड़ाने लगा था.
रीना समझ गई थी कि रमेश शराब पी कर आने लगा है, क्योंकि वह उस के साथ भी जब जाता था तो कुछ चुपचाप से पी कर आता था. जब वह पूछती, तो कह देता कि यह उस की ताकत की दवा है. लेकिन रीना जानती थी कि रमेश शराब पीता है, क्योंकि नशा करने के बाद वह जानवर की तरह उस पर टूट पड़ता था और अब जबकि वह बच्चों के चलते उस के काबू में नहीं आती तो वह गालीगलौज और उस के कुछ बोलने पर पिटाई करने के लिए हाथ उठाने लगा था. रीना के सपने और खुशियां दफन होने लगी थीं. एक तरफ 2 नन्हें बच्चे तो दूसरी तरफ रमेश का रोजरोज नशा करना. वह कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. पैसे की तंगी होने लगी. घर का माहौल बिगड़ने लगा. लड़ाईझगड़ा, कलह, गालीगलौज और मारपीट रोज की कहानी हो गई थी.
एक दिन रमेश नशा कर के घर आया, तो सासू मां ने उसे डांटा. उस ने बिगड़ कर खाने की थाली उठा कर फेंक दी और जब रीना रोने लगी तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया था, ‘‘टेसुए बहाती है, मेरा पैसा?है, तुम कौन होती हो मुझे रोकने वाली?’’ उस दिन रीना को अपनी अम्मां की बहुत याद आई थी. वह तो कह भी नहीं सकती थी कि अम्मां के घर जाना है. वहां तो खाने का भी ठिकाना नहीं था. तकरीबन महीनाभर हो गया था, रमेश दिनभर घर पर पड़ा रहता और चार समय खाना मांगता. ‘‘काम पर क्यों नहीं जाता है?’’ ‘‘बस… मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ ‘‘नशा करने के समय तबीयत ठीक हो जाती है. एक पैसा दे नहीं रहे हो, चार समय रोटी खाने को चाहिए, कहां से आएगी रोटी?’’ ‘‘मेरी रोटी गिनती है,’’ फिर गाली देते हुए रमेश बोला, ‘‘तेरे चलते ही मैं बरबाद हो गया. बैंक वालों की किस्त नहीं दे पाया तो वे लोग मेरा आटोरिकशा उठा कर ले गए. तुझे खुश करने के लिए कभी सिनेमा ले जाता, तो कभी आइसक्रीम खिलाता. ‘आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया’.
बस अब तो ठनठन गोपाला.’’ रमेश गुस्से में पैर पटकता हुआ घर से चला गया था. बच्चे 4 साल के हो गए थे, उन्हें स्कूल भेजना था. रीना ने मन ही मन काम करने का निश्चय कर लिया. अब वह रमेश की एक भी न सुनेगी. अगले दिन से ही सोसाइटी में उसे 3 घरों में काम मिल गया था. एक अंकल तो बुजुर्ग थे. वे घर में बिलकुल अकेले रहते थे. उन के यहां उसे खाना, झाड़ूबरतन, कपड़ा सब करना था. उन्होंने 10,000 रुपए महीना देने को बोला, तो उस की तो बांछें खिल गई थीं. इसी तरह से 2 घरों में और उसे काम मिल गया. मुंबई के छोटेछोटे घर, साफसुथरे, उन घरों में काम करने में उसे मजा आता. अब रीना जितनी देर घर से बाहर रहती, वहां के झंझट और कलहक्लेश से दूर रहती. वहां जा कर मैडम मान्या के 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन को देख कर, उसे अपने फटेहाल बच्चे आंखों के सामने घूम जाते.
लेकिन रीना चुपचाप अपना काम करती थी. जैसे ही उन्हें पता लगा कि उस के 2 बच्चे हैं, वह चौंक उठी थीं, ‘‘तुम तो लड़की सी लगती हो. तुम्हारे बच्चे हैं?’’ उन्हें बड़ी हैरानी हुई थी. मैडम मान्या ने अपने कई सूट निकाल कर दे दिए थे. जब बच्चे की बात सुनी तो बच्चे के भी कपड़े दे दिए. अंकल के यहां से खाना तय था वह उस के बच्चों के काम आता. महीनेभर में ही रीना की हालत सुधर गई. अब उस ने रमेश की फिक्र करना बिलकुल बंद कर दिया. उन दोनों के बीच बस अब एक ही रिश्ता बचा था. वह नशे में उस के शरीर पर टूट पड़ता और अपनी भूख मिटा कर बेहोशी की नींद सो जाता. अब वह रमेश को एक देह ही समझती, उस के मन के कोने में उस के लिए नफरत बढ़ती जा रही थी.
रमेश का शराब का चसका इतना बढ़ गया था कि बक्से, अलमारी में उस का छिपाया हुआ पैसा, सब चुरा कर ले गया. रीना ने तकिए के अंदर अपनी सोने की अंगूठी और पायल छिपा कर सिल दी थी. वह भी नशे के लिए रमेश चुरा कर ले गया था. शराब के नशे में रमेश कभी नाली में पड़ा मिलता, तो कभी ठेके पर. जब चाल वाले रीना को खबर करते, तो वह पकड़ कर ले आती. लेकिन अब जब वह गाली देता तो वह भी चार सुनाती.
अगर मारने को वह हाथ उठाता, तो वह भी जो हाथ में आता उठा कर मार देती. जिस दिन रीना को पता लगा कि वह उस की अंगूठी, रुपए, पायल चुरा ले गया?है, उस दिन उस ने उसे चुनचुन कर गाली दी और धक्के मार कर घर से निकाल दिया था.
सरिता मैडम बैंक में काम करती थीं, उन्होंने रीना का अकाउंट बैंक में खुलवा दिया. उस की एक रैकरिंग की स्कीम भी चालू करवा दी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी. इस के अलावा कपड़ेत्योहार वगैरह अलग मिल जाते थे. अब वह रमेश से नहीं डरती थी और न ही उस की परवाह करती थी. सोसाइटी में दूसरी बाइयों के साथ खूब बातें होतीं, सब की एक सी परेशानी रहती, लेकिन आपस में हंसीमजाक कर के सब अपना दिल हलका कर लेती थीं. वहीं पर रीना की मुलाकात सुनील से हुई थी.
वह वहां पर प्लंबर था. छोटी सी आपसी मुसकान दोस्ती में बदल गई थी. ‘‘काहे री छम्मकछल्लो, आज बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ सुनील बोला. रीना मुसकरा कर शरमा गई. अभी वह 23-24 साल की ही तो थी. उस के मन में भी तो अरमान थे. इधर रमेश की हालत बिगड़ती चली जा रही थी. उस का लिवर खराब हो रहा था. वह उस के लिए दवा ले आती, लेकिन उस से कोई फायदा नहीं होता.
रीना और सासू मां दोनों मिल कर रमेश को ‘नशा मुक्ति सैंटर’ ले गईं. सुनील ने बताया था कि पहले वह भी शराब पीने लगा था, लेकिन वहां से इलाज करा कर ठीक हो गया. रमेश भी वहां भरती रहा. उस का नशा छूट भी गया था, लेकिन वहां से लौट कर आते ही उस ने फिर से शराब पीना शुरू कर दिया था. अब उस की हालत पहले से ज्यादा बिगड़ गई थी. रीना रमेश की हरकतों से तंग हो चुकी थी, इसलिए वह अपने काम पर खूब सजधज कर जाती.
सुनील उस के लिए चूड़ी ले आया था. वह पहन कर अपने हाथों को निहारती हुई निकल रही थी. तभी रमेश गाली देते हुए चिल्लाया, ‘‘काम पर जाती है कि अपने यार से मिलने जाती है. ऐसे सजधज कर निकलती है, जैसे मेला देखने जा रही हो.’’ ‘‘काहे गाली दे रहे हो. मुझे भरभर हाथ चूड़ी अच्छी लगती है तो पहनती हो. काहे को गुस्सा हो रहे हो. तुम्हारे नाम की ही तो चूड़ी पहनती हूं,’’ इतना कह कर रीना जल्दीजल्दी अपने काम पर जाते के लिए निकल पड़ी थी.
चाल में आतेजाते अखिल मिल जाता था. वह भी देवर बन कर उस से हंसीमजाक करता. पहले तो रमेश के डर से रीना बाहर निकलती ही नहीं थी. अब वह आराम से उस से भी बात करती. ‘‘भाभीजी, बड़ी लाइट मार रही हो,’’ अखिल बोला. तारीफ भला किसे नहीं पसंद. वह भी उस के समय से ही निकलती. वह रमेश के सामने भी कई बार उस के घर चाय पीने आ जाता. ‘‘रमेश भैया, बड़े किस्मत वाले हो, जो ऐसी पत्नी मिली, घर भी संभाल रही है और बाहर भी,’’ अखिल जब यह बोलता, तब रमेश कुढ़ कर रह जाता. रीना खूब सजधज कर अपने काम पर जाया करती, जो रमेश को बहुत नागवार गुजरता, लेकिन अब वह उस की परवाह नहीं करती थी. दूसरा, वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुका था.
रमेश अपनी अम्मां से चुपचाप पैसा ले लेता और शराब पी आता. अब तो डाक्टर ने भी मना कर दिया था. रीना कभी डाक्टर के हाथ जोड़ती, तो अस्पताल भागती. उसे काम से भी छुट्टी लेनी पड़ती, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था. मैडम से रोजरोज छुट्टी मांगती तो वे चार बातें सुनातीं. इधर बच्चों की अलग स्कूल से शिकायत आई थी. रीना तो पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने सुनील के सामने अपनी समस्या रखी तो वह पढ़ाने को राजी हो गया. उस ने पैसे की बात पूछी, तो उस ने मना कर दिया. सुनील रोज सुबहसुबह बच्चों को पढ़ाने के लिए आने लगा. कभी वह तो कभी सासू मां सुबह उस को चायनाश्ता करवा देतीं. यह आपसी तालमेल अच्छा बन गया था.
बच्चों के इम्तिहान में नंबर अच्छे आए, तो उस का मन खुश हो गया था. रमेश की हालत बिगड़ती जा रही थी. वह समझ रही थी कि अब रमेश ज्यादा दिन नहीं रहेगा. एक दिन रीना काम पर गई हुई थी, तभी उस के फोन पर खबर आई कि तेरा रमेश हिचकी ले रहा है. वह भाग कर घर आई थी. पीछेपीछे सुनील भी आ गया था. रमेश सच में इस दुनिया से विदा हो गया था. फिर शुरू हो गया चाल की औरतों का जुड़ना, रिश्तेदारों का आना और रोनाधोना, सासू मां पछाड़ें खा रही थीं. दोनों बच्चे भी ‘पापापापा’ कह कर रो रहे थे.
सब रीना से रोने को बोल रहे थे, लेकिन उसे रोना ही नहीं आ रहा था. कोई रोने को बोल रहा, कोई चूड़ी तोड़ रहा तो कोई मांग से सिंदूर पोंछ रहा था. रीना मन ही मन सोच रही थी, ‘मैं क्यों रोऊं? चला गया तो अच्छा हुआ. मेरी जान का क्लेश चला गया. कभी चैन नहीं लेने दिया, कभी कोठी के अंकल के साथ नाम जोड़ देता तो कभी सुनील तो कभी अखिल के साथ. जिस से भी मैं दो पल बात करती, उसी के साथ रिश्ता जोड़ देता. गाली तो हर समय जबान पर रहती…’ रमेश की अर्थी उठनी थी, इसलिए पैसे की जरूरत थी. उस ने मान्या मैडम को फोन कर के बताया था कि उस का आदमी नहीं रहा है, इसलिए पैसे की जरूरत है.
सुनील जा कर पैसे ले आया था. रीना मन ही मन सोच रही थी ‘वाह रे पैसा, जब बच्चा पैदा हुआ था, तो आपरेशन, दवा के लिए पैसा चाहिए, इनसान की मौत हो गई है तो दाहसंस्कार के लिए भी पैसा.’ रमेश की अर्थी सज चुकी थी. सुनील घर के सदस्य की तरह आगे बढ़ कर सारे काम जिम्मेदारी से कर रहा था. सासू मां और चाल की औरतें चिल्लाचिल्ला कर रो रही थीं. तीसरे दिन हवन और शांतिपाठ हो कर शुद्धि हो गई थी. अगली सुबह जब वह काम पर जाने के लिए निकलने लगी, वैसे ही सासू मां उस पर चिल्ला उठी थीं ‘‘कैसी लाजशर्म छोड़ दी है. शोक तो मना नहीं रही और देखो तो काम पर जा रही है. ऐसी बेशर्मबेहया औरत तो देखी नहीं.’’ बूआ ने नहले पर दहला मारा था, ‘‘कैसी सज के जा रही है, किसी के संग नैनमटक्का करती होगी. इसी बात से रमेश दुखी हो कर शराब पीने लगा होगा.’’
रीना अब किसी की परवाह नहीं करती. वह रंगबिरंगे कपड़े पहनती, हाथों में भरभर चूडि़यां पहनती, पाउडर, लिपिस्टिक और बालों में गजरा भी लगाती. देखने वाले उसे देख कर आह भरते. ‘किस पर बिजली गिराने चल दी.’ ‘अब तो रमेश भी नहीं रहा. किस के लिए यह साजसिंगार करती हो…’ ‘‘मैं अपनी खुशी के लिए सजती हूं.’’ ‘‘रीना कुछ तो डरो. विधवा हो, विधवा की तरह रहा करो,’’ पीछे से सासू मां की आवाज थी, पर वह अनसुनी कर के चली जाती. सुनील उस के लिए चांदी की झुमकी ले आया था. वह पहनने को बेचैन थी. उस ने सासू मां से कहा, ‘‘मैडम ने दीवाली के लिए दी है.’’ हाथ में पैसा रहता, रीना तरहतरह की सजनेसंवरने की चीजें खरीदती और मैडम लोगों के कपड़े भी मिल जाते.
उसे बचपन से शोख रंग के कपड़े पसंद थे. अब वह अपने सारे शौक पूरे कर रही थी. अब उसे न तो सासू मां के निर्देशों की परवाह थी और न ही चाल वालों के तानों की. सासू मां को रमेश का जाना और रीना की मनमानी बरदाश्त नहीं हो रही थी. वे कमजोर होती जा रही थीं. एक दिन वे रात में बाथरूम के लिए उठीं तो गिर पड़ीं.
मालूम हुआ कि उन्हें लकवे का अटैक आ गया है. रात में तो किसी तरह बच्चों की मदद से उन्हें चारपाई पर लिटा लिया, लेकिन सुबह जब डाक्टर बुला कर सुनील लाया तो पता चला कि उन का आधा शरीर बेकार हो गया है. ऐसे मुश्किल समय में सुनील रीना की मदद को आगे आया था. वह भी परेशान था, सोसाइटी की नौकरी छूट गई थी, कहीं रहने का ठिकाना भी नहीं था. उस ने उसे अपने घर में रख लिया. वह रिया और सोम को पढ़ाता. घर के लिए सागसब्जी ले आता.
सब से ज्यादा तो सासू मां के काम में सहारा करता. रीना को उस के रहने से सहूलियत हो गई थी. दोनों के बीच एक अनाम रिश्ता हो गया था. वह पढ़ालिखा था, नौकरी छूटने के चलते वह आटोरिकशा चलाने लगा था. लोग तरहतरह की बातें बनाते. रीना एक कान से सुनती दूसरे से निकाल देती. एक दिन सासू मां सोई तो सोती रह गई थीं. खबर सुनते ही लोगों की भीड़ तरहतरह की कानाफूसी कर रही थी. सासू मां के जाने का गम रीना सहन नहीं कर पा रही थी, इसलिए वह रोरो कर बेहाल थी. सुनील ने ही आगे बढ़ कर सारा काम किया था. रिश्तेदार ‘चूंचूं’ कर रहे थे. ‘‘यह कौन है?
दूसरी बिरादरी का है.’’ ‘‘यह रीना का नया खसम है. इसी के चक्कर में तो रमेश को नशे की लत लग गई थी और सास भी इसी गम में चली गई,’’ कहते हुए रिश्ते की एक ननद रोने का नाटक कर रही थी. रीना के लिए चुप रहना मुश्किल हो गया था, ‘‘इतने दिन से सासू मां खटिया पर सब काम कर रही थीं, तो कोई नहीं आया पूछने को कि रीना अम्मां को कैसे संभाल रही हो. सुनील ने उन की सारी गंदगी साफ की. अम्मां तो उसे आशीर्वाद देते नहीं थकती थीं.
आज सब बातें बनाने को खड़े हो गए.’’ सब तरफ सन्नाटा छा गया था. अब रीना को किसी की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कह रहा है. कई दिनों से सुनील अनमना सा रहता. वह देख रही थी कि वह बच्चों से भी बात नहीं करता. सुबह जल्दी चला जाता और देर रात लौटता. ‘‘क्यों सुनील, कोई परेशानी है तो बताओ?’’ ‘‘नहीं, मैं अपने लिए खोली ढूंढ़ रहा था. पास में मिल नहीं रही थी, इसलिए दूर पर ही लेना पड़ा. आज एडवांस दूंगा.’’ ‘‘क्यों? यहीं रहो, मुझे सहारा है और बच्चों के भी कितने अच्छे नंबर आ रहे हैं.’’ ‘‘लोगों की उलटीसीधी गंदी बातें सुनसुन कर मेरे कान पक गए हैं.
अब बरदाश्त नहीं होता. अब अम्मां भी नहीं रहीं. मेरा यहां क्या काम?’’ ‘‘लोगों का तो काम है कहना. आज एडवांस मत देना. शाम को बात करेंगे,’’ कह कर रीना अपने काम पर चली गई थी. सुनील अभी लौटा नहीं था. बच्चे सो गए थे. उस ने सुहागिनों की तरह अपना सोलह सिंगार किया था. वही लाल साड़ी पहन ली, जो सुनील उस के लिए लाया था. सिंगार कर के जब आईने में अपने अक्स को देखा, तो अपनी सुंदरता पर वह खुद शरमा उठी थी. तभी आहट हुई थी और सुनील उस को देखता ही रह गया था. रीना ने कांपते हाथों से सिंदूर का डब्बा सुनील की ओर बढ़ा दिया. उस रात वह सुनील की बांहों में खो गई थी. अनाम रिश्ते को एक नाम मिल गया था ‘प्यार का रिश्ता’.