केंद्र सरकार के हर साल के बजट का आम लोगों को न पता होता है, न उस से उन्हेंकोई फर्क पड़ता है क्योंकि जो चीज महंगी होनी होती है वह तो होगी ही चाहे बजट की वजह से हो या सालभर में कभी हो. बजट तो सरकारी वादा होता है जो पढ़ेलिखों को बताने के लिए होता है कि इस साल आम गरीब किसान, मजदूर, बस आपरेटर, मेकैनिक, इलैक्ट्रिशियन, ब्यूटीशियन, नर्सों, बेलदारों से कितना कैसे वसूलना है. अब हाकिम ने जो लेना है तो लेना है, आम आदमी को तो कहा गया है कि उस के दुख तो उस के पिछले जन्मों के पापों के फल हैं, भोगते रहो.

शुद्ध ब्राह्मण परिवार को निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री और उन के ऊंची जातियों के सलाहकारों ने पूरी तैयारी से गरीबों को लूटने वाला 35 लाख करोड़ रुपए (ये कितने होते हैं, पता करने की कोशिश भी न करें) का सरकारी हिसाब बना दिया है, भारतीय जनता पार्टी के सांसद हाथ खड़ा कर इसे पास कर देंगे और छुट्टी.

आम मजदूर को पानी मिलेगा, ठेकेदारों से नौकरियां मिलेंगी, किसानों की जमीनों पर सड़कें कटेंगी, कच्चे रास्तों पर केबल बिछाने के लिए और पक्के गहरे गड्ढे खोदे जाएंगे, आईटी पंडों की भरमार होगी, इस का इंतजाम कर दिया गया है. सरकार ठेकों पर चलेगी जो कम तनख्वाह पर लोग रखेंगे और रिश्वत में बाबुओं, अफसरों और भगवा नेताओं की जेबें भरेंगे, यह इंतजाम कर लिया गया है.

किसान मजदूर का तो नाम भी नहीं लिया है. अमीरों की चोंचलेबाजी के लिए और्गेनिक खेती गंगा के किनारे की बात जरूर की गई है जिस का आम किसान से कोई लेनादेना नहीं है.

और हां, एक नए तरीके की नोटबंदी की शुरुआत भीकर दी गई है. अब तक बैंक अकाउंट में नोट रहते थे, चाहे सिर्फ कागज पर, अब डिजिटल करैंसी रहेगी जिस का मतलब पढ़ेलिखे भी वर्षों बाद सम?ा सकेंगे. इस दौरान इस के सपने दिखा कर सरकारी लुटेरे अरबों रुपए आम आदमी के ले कर चंपत हो जाएंगे जैसे नोटबंदी में बैंक मैनेजरों ने किया था.

सरकार बारबार यह कहना नहीं भूलती कि कांग्रेस सरकार के दौरान क्याक्या हुआ था, 7 साल बाद भी. यह वैसा ही है जैसा हर साल रामलीला कर के बता दिया जाता है कि पंडों की सेवा करो, राम की पूजा करो वरना रावण आएगा और सीता को ले जाएगा. उस में जोर रावण पर होता है, दशरथ पर नहीं जिस ने राम और सीता को घर छोड़ने को कहा. बारबार कांग्रेस का राज रावण राज कहा जाता है जबकि दशरथ राज में तो राम, लक्ष्मण और सीता तीनों घर से निकले थे. अब तो भाजपा सरकार अपने 7 सालों के काम गिना दे पर किए हों तो गिनाए न.

बजट को ध्यान से पढ़ें तो यही पता चलता है कि सरकार का कौन सा विभाग किस तरह जनता से वसूले पैसे पर मौज कर रहा है. पर जनता क्या कर सकती है. वह तो सदियों से पिसती रही है. एक तरफ पंडेपुजारी, मौलवीपादरी उसे लूटते हैं, दूसरी ओर हाकिम के पुलिस, पटवारी, जज, प्रशासक. उस बेचारी को वोट का हक मिला है, पर उसे जल्लादों में से एक को चुनना होता है, फंदा तो गले में हर कोई डालेगा.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...