“हैलो कैसी हो प्रिया ?”

मेरी आवाज में बीते दिनों की कसैली यादों से उपजी नाराजगी के साथसाथ प्रिया के लिए फिक्र भी झलक रही थी. सालों तक खुद को रोकने के बाद आज आखिर मैं ने प्रिया को फोन कर ही लिया था.

दूसरी तरफ से प्रिया ने सिर्फ इतना ही कहा,” ठीक ही हूं प्रकाश.”

हमेशा की तरह हमदोनों के बीच एक अनकही खामोशी पसर गई. मैं ने ही बात आगे बढ़ाई, “सब कैसा चल रहा है ?”

” बस ठीक ही चल रहा है .”

एक बार फिर से खामोशी पसर गई थी.

“तुम मुझ से बात करना नहीं चाहती हो तो बता दो?”

ये भी पढ़ें- अधिकार- भाग 1 : लक्षिता मायके क्यों चली गई थी

“ऐसा मैं ने कब कहा? तुम ने फोन किया है तो तुम बात करो. मैं जवाब दे रही हूं न .”

“हां जवाब दे कर अहसान तो कर ही रही हो मुझ पर.” मेरा धैर्य जवाब देने लगा था.

“हां प्रकाश, अहसान ही कर रही हूं. वरना जिस तरह तुम ने मुझे बीच रास्ते छोड़ दिया था उस के बाद तो तुम्हारी आवाज से भी चिढ़ हो जाना स्वाभाविक ही है .”

“चिढ़ तो मुझे भी तुम्हारी बहुत सी बातों से है प्रिया, मगर मैं कह नहीं रहा. और हां, यह जो तुम मुझ पर इल्जाम लगा रही हो न कि मैं ने तुम्हें बीच रास्ते छोड़ दिया तो याद रखना, पहले इल्जाम तुमने लगाए थे मुझ पर. तुम ने कहा था कि मैं अपनी ऑफिस कुलीग के साथ…. जब कि तुम जानती हो यह सच नहीं था. ”

“सच क्या है और झूठ क्या इन बातों की चर्चा न ही करो तो अच्छा है. वरना तुम्हारे ऐसेऐसे चिट्ठे खोल सकती हूं जिन्हें मैं ने कभी कोर्ट में भी नहीं कहा.”

ये भी पढ़ें- राह तकी सूनी अंखियां

“कैसे चिट्ठों की बात कर रही हो? कहना क्या चाहती हो?”

“वही जो शायद तुम्हें याद भी न हो. याद करो वह रात जब मुझे अधूरा छोड़ कर तुम अपनी प्रेयसी के एक फोन पर दौड़े चले गए थे. यह भी परवाह नहीं की कि इस तरह मेरे प्यार का तिरस्कार कर तुम्हारा जाना मुझे कितना तोड़ देगा.”

“मैं गया था यह सच है मगर अपनी प्रेयसी के फोन पर नहीं बल्कि उस की मां की कॉल पर. तुम्हें मालूम भी है कि उस दिन अनु की तबीयत खराब थी. उस का भाई भी शहर में नहीं था. तभी तो उस की मां ने मुझे बुला लिया. जानकारी के लिए बता दूं कि मैं वहां मस्ती करने नहीं गया था. अनु को तुरंत अस्पताल ले कर भागा था.”

“हां पूरी दुनिया में अनु के लिए एक तुम ही तो थे. यदि उस का भाई नहीं था तो मैं पूछती हूं ऑफिस के बाकी लोग मर गए थे क्या ? उस के पड़ोस में कोई नहीं था क्या?

“ये बेकार की बातें जिन पर हजारों बार बहस हो चुकी है इन्हें फिर से क्यों निकाल रही हो? तुम जानती हो न वह मेरी दोस्त है .”

“मिस्टर प्रकाश बात दरअसल प्राथमिकता की होती है. तुम्हारी जिंदगी में अपनी बीवी से ज्यादा अहमियत दोस्त की है. बीवी को तो कभी अहमियत दी ही नहीं तुम ने. कभी तुम्हारी मां तुम्हारी प्राथमिकता बन जाती हैं, कभी दोस्त और कभी तुम्हारी बहन जिस ने खुद तो शादी की नहीं लेकिन मेरी गृहस्थी में आग लगाने जरूर आ जाती है.”

“खबरदार प्रिया जो फिर से मेरी बहन को ताने देने शुरू किए तो. तुम्हें पता है न कि वह एक डॉक्टर है और डॉक्टर का दायित्व बहुत अच्छी तरह निभा रही है. शादी करे न करे तुम्हें कमेंट करने का कोई हक नहीं.”

“हां हां मुझे कभी कोई हक दिया ही कहां था तुम ने. न कभी पत्नी का हक दिया और न बहू का. बस घर के काम करते रहो और घुटघुट कर जीते रहो. मेरी जिंदगी की कैसी दुर्गति बना दी तुम ने…”

कहतेकहते प्रिया रोने लगी थी. एक बार फिर से दोनों के बीच खामोशी पसर गई थी.

“प्रिया रो कर क्या जताना चाहती हो? तुम्हें दर्द मिले हैं तो क्या मैं खुश हूं? देख लो इतने बड़े घर में अकेला बैठा हुआ हूं. तुम्हारे पास तो हमारी दोनों बच्चियां हैं मगर मेरे पास वे भी नहीं हैं.” मेरी आवाज में दर्द उभर आया था.

“लेकिन मैं ने तुम्हें कभी बच्चों से मिलने से  रोका तो नहीं न.” प्रिया ने सफाई दी.

“हां तुम ने कभी रोका नहीं और दोनों मुझ से मिलने आ भी जाती थीं. मगर अब लॉकडाउन के चक्कर में उन का चेहरा देखे भी कितने दिन बीत गए.”

चाय बनाते हुए मैं ने माहौल को हल्का करने के गरज से प्रिया को सुनाया, “कामवाली भी नहीं आ रही. बर्तनकपड़े धोना, झाड़ूपोछा लगाना यह सब तो आराम से कर लेता हूं. मगर खाना बनाना मुश्किल हो जाता है. तुम जानती हो न खाना बनाना नहीं जानता मैं. एक चाय और मैगी के सिवा कुछ भी बनाना नहीं आता मुझे. तभी तो ख़ाना बनाने वाली रखी हुई थी. अब हालात ये हैं कि एक तरफ पतीले में चावल चढ़ाता हूं और दूसरी तरफ अपनी गुड़िया से फोन पर सीखसीख कर दाल चढ़ा लेता हूं. सुबह मैगी, दोपहर में दालचावल और रात में फिर से मैगी. यही खुराक खा कर गुजारा कर रहा हूं. ऊपर से आलम यह है कि कभी चावल जल जाते हैं तो कभी दाल कच्ची रह जाती है. ऐसे में तीनों वक्त मेगी का ही सहारा रह जाता है.”

मेरी बातें सुन कर अचानक ही प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ी.

“कितनी दफा कहा था तुम्हें कि कुछ किचन का काम भी सीख लो पर नहीं. उस वक्त तो मियां जी के भाव ही अलग थे. अब भोगो. मुझे क्या सुना रहे हो?”

मैं ने अपनी बात जारी रखी,” लॉकडाउन से पहले तो गुड़िया और मिनी को मुझ पर तरस आ जाता था. मेरे पीछे से डुप्लीकेट चाबी से घर में घुस कर हलवा, खीर, कढ़ी जैसी स्वादिष्ट चीजें रख जाया करती थीं. मगर अब केवल व्हाट्सएप पर ही इन चीजों का दर्शन कराती हैं.”

“वैसे तुम्हें बता दूं कि तुम्हारे घर हलवापूरी, खीर वगैरह मैं ही भिजवाती थी. तरस मुझे भी आता है तुम पर.”

“सच प्रिया?”

एक बार फिर हमारे बीच खामोशी की पतली चादर बिछ गई .दोनों की आंखें नम हो रही थीं.

“वैसे सोचने बैठती हूं तो कभीकभी तुम्हारी बहुत सी बातें याद भी आती हैं. तुम्हारा सरप्राइज़ देने का अंदाज, तुम्हारा बच्चों की तरह जिद करना, मचलना, तुम्हारा रात में देर से आना और अपनी बाहों में भर कर सॉरी कहना, तुम्हारा वह मदमस्त सा प्यार, तुम्हारा मुस्कुराना… पर क्या फायदा ? सब खत्म हो गया. तुम ने सब खत्म कर दिया.”

“खत्म मैं ने नहीं तुम ने किया है प्रिया. मैं तो सब कुछ सहेजना चाहता था मगर तुम्हारी शक की कोई दवा नहीं थी. मेरे साथ हर बात पर झगड़ने लगी थी तुम.” मैं ने अपनी बात रखी.

“झगड़े और शक की बात छोड़ो, जिस तरह छोटीछोटी बातों पर तुम मेरे घर वालों तक पहुंच जाते थे, उन की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते थे, क्या वह सही था? कोर्ट में भी जिस तरह के आरोप तुम ने मुझ पर लगाए, क्या वे सब सही थे ?”

“सहीगलत सोच कर क्या करना है? बस अपना ख्याल रखो. कहीं न कहीं अभी मैं तुम्हारी खुशियों और सुंदर भविष्य की कामना करता हूं क्यों कि मेरे बच्चों की जिंदगी तुम से जुड़ी हुई है और फिर देखो न तुम से मिले हुए इतने साल हो गए . तलाक के लिए कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने में भी हम ने बहुत समय लगाया. मगर आजकल मुझे अजीब सी बेचैनी होने लगी है . तलाक के उन सालों का समय इतना बड़ा नहीं लगा था जितने बड़े लॉकडाउन के ये कुछ दिन लग रहे हैं. दिल कर रहा है कि लौकडाउन के बाद सब से पहले तुम्हें देखूं. पता नहीं क्यों सब कुछ खत्म होने के बाद भी दिल में ऐसी इच्छा क्यों हो रही है.” मैं ने कहा तो प्रिया ने भी अपने दिल का हाल सुनाया.

“कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी है प्रकाश. हम दोनों ने कोर्ट में एकदूसरे के खिलाफ कितने जहर उगले. कितने इल्जाम लगाए. मगर कहीं न कहीं मेरा दिल भी तुम से उसी तरह मिलने की आस लगाए बैठा है जैसा झगड़ों के पहले मिला करते थे.”

“मेरा वश चलता तो अपनी जिंदगी की किताब से पुराने झगड़े वाले, तलाक वाले और नोटिस मिलने से ले कर कोर्ट की चक्करबाजी वाले दिन पूरी तरह मिटा देता. केवल वे ही खूबसूरत दिन हमारी जिंदगी में होते जब दोनों बच्चियों के जन्म के बाद हमारे दामन में दुनिया की सारी खुशियां सिमट आई थी.”

“प्रकाश मैं कोशिश करूंगी एक बार फिर से तुम्हारा यह सपना पूरा हो जाए और हम एकदूसरे को देख कर मुंह फेरने के बजाए गले लग जाएं. चलो मैं फोन रखती हूं. तब तक तुम अपनी मैगी बना कर खा लो.”

प्रिया की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा था. दिल में आशा की एक नई किरण चमकी थी. फोन रख कर मैं सुकून से प्रिया की मीठी यादों में खो गया.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...