जालौर, राजस्थान के भीनमाल थाने में एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल किसी खास मीटिंग के लिए आने वाले थे. इस की सूचना थाने के सभी पुलिसकर्मियों को पहले से थी. लिहाजा सभी अपनीअपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से तैनात थे.

एसपी साहब समय से कुछ पहले आ गए थे. उन के साथ डीएसपी भी थे. उन की अगुवाई थानाप्रभारी दुलीचंद गुर्जर कर रहा था. वह उन के आगेपीछे मंडराता हुआ उन्हें थाने के सभी स्टाफ और बंटी हुई ड्यूटी के बारे में बता रहा था.

एसपी हर्षवर्धन तेजी से चलते हुए रिसैप्शन पर रुके. वहां तैनात लेडी कांस्टेबल से विजिटर्स रजिस्टर में पिछले एक हफ्ते की एंट्री दिखाने को कहा. कांस्टेबल ने रजिस्टर के पन्ने खोल कर एसपी साहब की ओर रजिस्टर घुमा दिया. रजिस्टर के एक खाली पन्ने पर एसपी साहब रुक गए. डांटते हुए पूछा, ‘‘यह पन्ना खाली क्यों है? इस तारीख को जो माल पकड़ा गया था, उस की एंट्री क्यों नहीं हुई है?’’

कांस्टेबल हक्कीबक्की स्थिति में कभी रजिस्टर को तो कभी थानाप्रभारी को देखने लगी. एसपी साहब दुबारा गुस्से में बोले, ‘‘तुम इधरउधर क्या देखती हो. पूरा रजिस्टर और चार्जशीट की सभी फाइलें ले कर में कमरे में आओ.’’ यह कहते हुए एसपी साहब आगे बढ़ गए. कांस्टेबल उदास हो कर वहां साथ खड़े हैडकांस्टेबल तेजाराम को देखने लगी.

‘‘घबराओ नहीं, तुम्हें कुछ नहीं होगा. तुम फाइलें ले कर साहब के पास जाओ,’’ तेजाराम बोला.

‘‘जी सर,’’ कांस्टेबल बोली.

‘‘और हां, मौका देख कर अपनी बात भी बेझिझक कह देना,’’ तेजाराम ने समझाया.

थोड़ी देर में लेडी कांस्टेबल कई फाइलें और रजिस्टर लिए हुए कमरे के दरवाजे पर पहुंच चुकी थी. परदा हटाने को थी कि उन्हें एसपी साहब के गुस्साने की आवाज सुनाई दी. वह सहम गई. इसी बीच डीएसपी साहब भी आ गए. उन्होंने कांस्टेबल को एक नजर देखा और अंदर आने का इशारा कर दिया.

‘‘इतने सारे केस पेंडिंग क्यों है? क्या करते हो इतनी सारी फौज ले कर… तुम ने जुए में पकड़े गए लोगों तक का केस नहीं सुलझाया है. गुमशुदा के कई केस भरे पड़े हैं. …और नारकोटिक्स का जो माल पकड़ा गया था, उस का क्या हुआ? तुम्हारे यहां नैशनल स्पोर्ट्स की खिलाड़ी शूटर अपाइंटेड है. उस से तुम कोई काम ही नहीं लेते हो. उसे रिसैप्शन पर बिठा रखा है…’’

फाइलें लिए लेडी कांस्टेबल एसपी साहब की नाराजगी भरी बातें सुन कर समझ गई कि उस के बारे में भी कुछ बातें हो रही हैं. डांट थानाप्रभारी को पड़ रही थी. डीएसपी साहब एसपी साहब को सलाम ठोकते हुए उन के साथ की कुरसी पर बैठ गए. तभी एसपी साहब की नजर लेडी कांस्टेबल पर पड़ी. उन्होंने फाइलें अपने आगे रख कर उसे जाने को कहा.

लेडी कांस्टेबल वहां से आ कर अपनी ड्यूटी पर तैनात हो गई. करीब आघे घंटे तक एसपी और डीएसपी साहब के कमरे में गहमागहमी बनी रही. थाने के करीबकरीब सभी पुलिसकर्मी कमरे में जा कर वापस आ चुके थे. इस बीच चायबिसकुट का दौर भी चलता रहा.

जो लोग कमरे से बाहर थे, उन्हें चायबिसकुट मिले. एएसआई प्रेम सिंह और हैडकांस्टेबल तेजाराम भी काफी सक्रिय दिखे. प्रेम सिंह एसपी साहब की गाड़ी से एक फाइल ले कर उन्हें दे कर अपनी सीट पर बैठ गए थे. कुछ समय में अधिकतर पुलिसकर्मी अपनीअपनी सीटों पर आ चुके थे. डीएसपी साहब जा चुके थे. कमरे में केवल एसपी साहब और एसएचओ थे.

एक कांस्टेबल लेडी कांस्टेबल को आ कर बोल गया, ‘‘जाओ, अब तुम्हारी बारी है. एक के चलते सब को डांट पड़ रही है.’’

लेडी कांस्टेबल एसपी साहब के पास जा कर खड़ी हो गई. एसपी साहब ने कहा, ‘‘अपनी फाइलें समेट लो.’’  उस के बाद वे एक फाइल में से कुछ पढ़ने लगे.

‘‘सर, उसे भी ले लूं?’’ एसपी साहब के सामने खुली फाइल की ओर उस ने इशारा किया. तब तक थानाप्रभारी भी कमरे से निकल चुके थे.

‘‘नहींनहीं,यह तुम्हारी नहीं है.’’ एसपी साहब यह कह कर उस की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘तो तुम अपना यहां से ट्रांसफर चाहती हो… लेकिन क्यों?’’

‘‘सर, मैं ने कंप्लेन लेटर में लिखा है कारण.’’

‘‘लेकिन, उस कारण पर ट्रांसफर नहीं हो सकता. तुम जहां जाओगी, वहां भी ऐसे सहकर्मी मिल सकते हैं, जिन से तुम्हारी नहीं बनेगी. इस की क्या गारंटी है कि लेटर की शिकायत जैसी बात वहां नहीं होगी.’’ यह सुन कर कांस्टेबल चुप लगा गई.

‘‘निराश होने की बात नहीं है. पहले तुम अपने साथ घटित वाकए के बारे में बताओ,’’ एसपी साहब बोले.

यह सुन कर लेडी कांस्टेबल की जान में जान आई. पिछले कई महीनों से अपने साथ लगातार हो रहे जिस वाकए को ले कर वह परेशान थी, उस बारे में उस ने बताना शुरू किया, ‘‘सर, मैं जानती हूं कि यहां एक छोटा स्टाफ है. लेकिन मेरी भी इज्जत है. समाजपरिवार में लोगों के लिए मैं एक औरत ही हूं. माना कि मैं अविवाहित हूं, लेकिन इस का यह मतलब थोड़े है कि मेरे साथ अभद्रता से पेश आएं…’’

बात करीब 9 महीने पहले 17-18 की अप्रैल है. मैं ने देर रात तक जाग कर पूरी चार्जशीट तैयार कर ली थी. उसे ले कर थानाप्रभारी साहब दुलीचंद गुर्जर के चैंबर में गई थी. थानाप्रभारी साहब टांगे टेबल पर रख कर बैठे थे. मुझे देखते ही बोल पड़े, ‘‘आज तो तुम बड़ी सुंदर लग रही हो.’’

मैं उन की बात सुन कर सकपका गई, लेकिन बोलने का टोन समझ गई थी कि वह क्या कहना चाहते हैं. मैं जल्दीजल्दी बोली, ‘‘सर, चार्जशीट तैयार कर ली है, इसे देख कर साइन कर दीजिए.’’

‘‘इतना सारा पढ़ने में समय लगेगा. तू फाइल टेबल पर रख दे और मेरे सामने कुरसी पर बैठ जा. तुझे देखता रहूंगा और पढ़ता भी रहूंगा.’’ इस बात पर मैं चुप रही.

थानाप्रभारी ने दोबारा कहा, ‘‘तेरे से एक बात पूछना चाहता हूं. मैं तुझे बहुत चाहता हूं. काम भी बहुत अच्छा करती हो. रातरात भर जाग कर तूने चार्जशीट लिख डाली. तुम्हारी तरक्की भी करवा दूंगा, लेकिन बदले में एक रात मेरे हवाले करनी पड़ेगी… समझ गई न?’’

अंतिम कुछ शब्द लेडी कांस्टेबल के कानों में पिघले शीशे जैसे लगे. लगा वह बहरी हो जाने वाली है. भागती हुई अपनी सीट पर आ गई. एसआई प्रेम सिंह से बोली, ‘‘मैं जा रही हूं. कल मिलूंगी.’’

उस के बाद मैं रूआंसी हो कर आधी रात को अपनी स्कूटी से घर आ गई. उस रात ठीक से सो नहीं पाई. अगले रोज जा कर मैं ने यह बात हैडकांस्टेबल तेजाराम और एएसआई प्रेमसिंह को बताई, लेकिन उन्होंने बदनामी की बात कह कर मुझे चुप करा दिया.

उस के बाद मैं ने देखा कि थानाप्रभारी साहब का मेरे प्रति रवैया काफी रूखा हो गया. मुझे दी गई कई जिम्मेदारियां छीन ली गईं. मुझे नीचा और निकम्मा दिखाने की कोशिश की जाने लगी. उस के बाद ही मैं ने आप को और डीसीपी साहब को ट्रांसफर का लेटर लिखा था. लेडी कांस्टेबल के इस बयान को लिखित ले कर एसपी साहब चले गए. एसपी हर्षवर्धन अग्रवाल ने इस मामले को गंभीरता से लिया.

अगले रोज एसपी औफिस से थाने में एक लेटर आया. लेटर क्या था वह बम से कम नहीं था. उस के खुलते ही थाने के 6 पुलिसकर्मी बुरी तरह आहत हो गए थे. दरअसल, लेडी कांस्टेबल की अश्लील हरकत करने जैसी शिकायत पर थानाप्रभारी को लाइनहाजिर का दिया गया था.

थानाप्रभारी की रंगमिजाजी का असर पूरे थाने के कामकाज पर भी पड़ा था, जिस से और 5 लोगों को वहां से हटा दिया गया था. इन में थानाप्रभारी दुलीचंद सहित एएसआई कल्याणसिंह, कांस्टेबल प्रकाश, ओमप्रकाश, रामलाल और श्रवण कुमार थे.

इस थाने के डीएसपी हीरालाल सैनी के बाद यह दूसरा मामला था, पुलिस को महिला स्टाफ के साथ अभद्र व्यवहार करने और काम की अनदेखी करने की सजा मिली थी.

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