Writer- रितु वर्मा
सलोनी मोबाइल को हाथ मे पकड़े एकटक शून्य में ताक रही थी. अभी अभी औफिस से फोन आया
था कि मार्च माह की सैलरी आधी ही मिलेगी.
आज 5 अप्रैल था और मकान का किराया, मोबाइल का बिल, राशन आदि जरूरी काम वह कैसे कर पाएगी, वह भी मात्र ₹25 हजार में?
घर का किराया ही ₹15 हजार है और अब गरमी के दिनों में तो एअर कंडीशनर न चाहते हुए भी चलाना
पड़ेगा. कैसे कर पाएगी वह?
लौकडाउन के कारण घर भी नहीं जा सकती है. घर से पैसे अवश्य
मंगवा सकती है पर सलोनी को मम्मीपापा के लैक्चर नहीं सुनने थे. अगर वह कुछ हैल्प मांगेगी तो मम्मीपापा कर देंगे पर इतना जलील करेंगे कि सलोनी हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी.
सलोनी 26 वर्षीय युवती थी. वह नजीबाबाद नाम के एक छोटे से कसबे से थी. वह जब आगे की पढ़ाई
करने ग़ाजियाबाद आई तो फिर वह कभी वापिस नहीं जा पाई.
इंजीनियरिंग करने के बाद उसे नौकरी मिल गई थी. उस ने ₹30 हजार से नौकरी की शुरुआत की थी मगर 3 साल के भीतर ही उस की सैलरी ₹50 हजार हो गई थी.
सलोनी ने जल्दी ही नोएडा में एक छोटा सा घर किराए पर ले लिया था. घर क्या बस 1 बैडरूम और 1 किचन था और आगे थी एक बरसाती.
सलोनी को यह बरसाती बेहद प्रिय थी, उस ने वहां तरहतरह के पौधे लगा रखे थे.
सलोनी के मकानमालिक नीचे रहते थे और सलोनी का उन से मतलब न के बराबर था. वे बेहद रूखे स्वभाव के थे. उन का मतलब सलोनी से बस किराए तक ही सीमित न था. मुफ्त का नैतिक ज्ञान भी उसे कभीकभी दे दिया जाता था.
कभी बोलते,”इतनी तेज आवाज में म्यूजिक मत सुनो.”
तो कभी कहते,”कल इतनी देर रात कहां से आई थी?”
वह तो शुक्र था कि सलोनी के घर जाने का रास्ता बाहर से था पर फिर भी नीचे वाले अंकलआंटी की पूछताछ चलती रहती थी.
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अभी 14 फरवरी की शाम को संस्कार उस के घर आ गया था. दोनों ने एकसाथ डिनर किया था. रात के 10 बजे ही थे कि दरवाजे पर खटखटाहट हुई. जैसे ही दरवाजा खोला सामने दोनों पतिपत्नी खड़े थे.
बोल पङे,”अकेली लङकी हो. कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो हम क्या करेंगे? अपने दोस्तों को यहां मत बुलाया करो.”
जिस लहजे से बात कही गई थी सलोनी तो शर्म से पानीपानी हो गई थी. संस्कार भी उसी समय निकल गया था.
अगले दिन आंटी ने उसे नीचे बुलाया था. इधरउधर की बात न करते हुए वे सीधे मुद्दे पर आ गईं. बोलीं,”क्या तुम उस लड़के से विवाह करने वाली हो?तुम्हारे मम्मी पापा जानते हैं क्या उसे?
“तुम पढ़ीलिखी खूबसूरत लड़की हो, इसलिए कह रही हूं, ऐसे मत भटको.”
सलोनी ने बस इतना ही कहा,”मैं अपना भलाबुरा समझती हूं.”
उके बाद संस्कार के साथ उस ने 1-2 घर भी देखे पर इतने कम किराए पर उसे कोई ऐसा हवादार घर नहीं मिल पाया. अभी घर देख ही रही थी कि लौकडाउन हो गया.
सलोनी के एकाउंट में 7 अप्रैल को सैलरी आ गयी थी. ₹25 हजार और बस ₹5 हजार पहले के पड़े हुए थे. सलोनी आजकल के युवाओं की तरह थी जो बस आज में ही जीते हैं. सारे पैसे सलोनी घूमनेफिरने और सैरसपाटे में उड़ा देती थी. कभी ऐसा भी कुछ होगा सलोनी ने सोचा भी न
था.
8 अप्रैल को नीचे सलोनी ने घर का किराया दे दिया था. अंकलआंटी आराम से बैठ कर खाना खा रहे थे. एक बार भी यह नहीं पूछा कि वह कैसी है, उसे कुछ चाहिए तो नहीं. सलोनी डबडबाई आंखे ले कर ऊपर आ गई. अब बस ₹15 हजार बचे हैं और अगले महीने का भी कोई भरोसा नहीं कि सैलरी मिलेगी भी या नहीं.
आज सलोनी को लग रहा था कि मम्मीपापा कुछ गलत नहीं कहते थे कि थोड़ीथोड़ी बचत करा करो, पर तब तो सलोनी को सब ओल्ड फैशन लगता था. हर वीकेंड का मतलब होता था, शराब और डिस्को. हर वीकेंड में बिना सोचसमझे उस के ₹2-3 हजार खर्च हो ही जाते
थे.
सलोनी एक सूची बनाने लगी कि कैसे खर्चों में कटौती करी जाए. दूध 2 दिन में 1 किलो भी बहुत है. फल नहीं खाएगी, सब्जी एक समय बना कर उसी से दोनों समय खा लेगी. नाश्ते में जो मम्मी ने घर से पोहा, चने और दलिया भेजा था, उस से ही काम चला लेगी.
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1 हफ्ता बीत गया और सलोनी अपने बजट नियंत्रण से खुश थी. उसे लग रहा था कि अगले महीने भी आधी ही सैलरी मिली तो उस में से वह बचत भी कर लेगी और आराम से काम भी चला लेगी.
अब सलोनी रोज सुबह 6 बजे उठ कर सारा काम करती और 8 बजे लैपटौप के आगे बैठ जाती
थी. दिन कहां निकल जाता था, उसे पता ही नहीं चलता था.
22 अप्रैल को अचानक से सलोनी का लैपटौप हैंग हो गया. सलोनी के तो होश उड़ गए. उस ने
अपनी बौस को फोन कर के समस्या से अवगत कराया तो उन का घिसापिटा जवाब था,”सलोनी कुछ भी कर के काम करो. वैसे भी छटनी आरंभ हो चुकी है, कुछ ऐसा मत करो कि कंपनी को कोई मौका मिल जाए…”
सलोनी ने संस्कार को फोन किया. सलोनी को पूरी उम्मीद थी कि संस्कार अवश्य उस की मदद
करेगा. पर संस्कार ने हाथ खड़े कर दिए थे. एकएक कर के सलोनी ने अपने उन सब दोस्तों को
फोन किया जिन के घर नोएडा में ही थे. लेकिन सभी दोस्तों ने अपनीअपनी मजबूरी बता दी थी.
थकहार कर सलोनी ने अपने घर फोन किया. उसे पूरी उम्मीद थी कि लैक्चर के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा. पर हुआ उस के उलटा.
सलोनी के पापा ने बहुत प्यार से बात की, उसे हौसला दिया और कहा,”बेटा मुझे तुम पर नाज है कि ऐसी विषम परिस्थितियों में भी तुम डट कर खड़ी हुई हो.
“अगर कोई समस्या है तो उस का समाधान भी अवश्य होगा, एक बार अपने नीचे वाले अंकलआंटी से बात तो कर के देखो.”
सलोनी को पता था कि कोई फायदा नहीं होगा पर आज पापा की बातों ने उस के अंदर उत्साह भर दिया था. जैसे ही वह नीचे पहुंची तो देखा अंकल लैपटौप पर कुछ काम कर रहे हैं और आंटी कोई पत्रिका पढ़ रही हैं.
उसे देखते ही आंटी बोली,”ओह, सलोनी बेटा तुम तो बेटा एकदम मुरझा गई हो. खातीपीती नहीं हो क्या ठीक से?”
अंकल बोले,”अरे बच्ची सारा दिन अकेले कामों में उलझी रहती है, क्या बनाएगी और खाएगी.”
सलोनी झिझकते हुए बोली,”अंकल, मेरा लैपटौप नहीं चल रहा हैं, क्या कुछ हो सकता है?”
इस से पहले कि अंकल कुछ बोलते, आंटी बोल पड़ी,”अरे सारा दिन तो यह लैपटौप पर खेल ही तो
खेलते हैं, अंकल तुम्हें दे देंगे.”
तब अंकल बोले,”बेटा नीचे आ कर ही काम करो, मैं ऊपर नहीं ले जाने दूंगा.”
सलोनी की समस्या हल हो गई थी. वह भाग कर अपना मोबाइल ले कर नीचे आ गई.
जैसे ही सलोनी अपने मोबाइल के हौटस्पौट से लैपटौप को कनैक्ट करने लगी, अंकल बोल पङे,”बेटा,
क्यों अपने मोबाइल का बिल बढ़ा रही हो, हमारा नैट हमेशा चालू रहता है, तुम्हे पासवर्ड बताता हूं.”
जब दोपहर हो गई तो सलोनी खाना खाने ऊपर जाने लगी. आंटी बोली,”बेटा, हम लोग सादा ही
खाना खाते हैं पर तुम्हारा खाना भी आज मैं ने बना लिया है. यहीं खा लो.”
सलोनी को आज सादा खाना भी अमृत जैसा लग रहा था.
आज का दिन तो ठीक से बीत गया था पर लैपटौप की समस्या अब भी जस की तस थी. अंकल
ने ही पहल कर के कहा,”बेटा, कल मैं ने अपनी जानपहचान का एक लड़का बुलाया है, वह तुम्हारा लैपटौप देख लेगा.”
सलोनी ने राहत की सांस ली. रात को खाना कहते हुए सलोनी सोच रही थी कि वह बेकार में ही
अंकलआंटी को दकियानूसी और न जाने क्याक्या मानती आ रही थी.
सुबह जब सलोनी अपना लैपटौप ले कर पहुंची तो देखा अंकल औनलाइन बिजली का बिल पे करने की कोशिश में लगे हुए हैं. सलोनी ने अंकल को पूरी प्रक्रिया समझाई और 2 मिनट में
काम हो गया.
अंकल खुश हो कर बोले,”सलोनी बेटा, आज भी तुम मेरे लैपटौप से काम कर लो.
“आज शायद दोपहर तक तुम्हारे लैपटौप की समस्या खत्म हो जाएगी.”
दोपहर को लैपटौप चेक कर के वह लड़का बोला,”इस की तो मदरबोर्ड में प्रौब्लम है. ₹5 हजार का खर्च है, आप पैसे पे कर दो, शाम तक लैपटौप आप के पास हाजिर होगा.”
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सलोनी का चेहरा रोआंसा सा हो गया. वह सोचने लगी कि अब अगर ₹5 हजार दे दिए तो फिर कैसे ₹10 हजार में आगे काटेगी?
अंकल ने रूखे स्वर में कहा,”इतना समय नहीं है सलोनी, अगर लैपटौप सही करवाना हो तो बोलो यह रुकेगा नहीं. मैं इसे भेज रहा हूं इसे तब…”
सलोनी परेशान स्वर में बोली,”अंकल, आप बस इस माह के लिये मुझे अपने लेपटौप पर काम करने दे दीजिए.”
अंकल बोले,”नहीं बाबा, यह लैपटौप बहुत महंगा है.”
न चाहते हुए भी सलोनी को ₹5 हजार खर्च करने पड़ गए.
उस के बाद सलोनी ने अंकल से कोई बात नहीं की और न ही खाना खाया. दरअसल, गुस्से और चिंता के कारण सलोनी की भूख गायब हो गई थी.
रात को सलोनी का लैपटौप ठीक हो कर आ गया था. जब सलोनी लैपटौप लेने पहुंची तो अंकलआंटी मिल्कशेक पी रहे थे. अंकल ने सलोनी को बैठने का इशारा किया और फिर आंटी से बोले,”सलोनी के लिए भी शेक ले आओ.”
अंकल बोले,”सलोनी मुझे पता है कि तुम्हें पैसो की तंगी हो रही होगी. अगर आज मैं तुम्हारी मदद कर देता तो तुम फिर हर बार यही सोचती कि अंकल मदद कर देंगे. आशा करता हूं कि इस लौकडाउन में तुम अपने जीवन मूल्यों को लेषकर अच्छे से मनन करोगी.
“मुझे पूरा विश्वास है कि यह लौकडाउन तुम्हें कुछ ऐसी बातें सिखा कर जाएगा जो तुम
शायद सामान्य हालातों में कभी नहीं सीख पातीं.”
सारी समस्यों से अकेले ही झूझते हुए सलोनी को लग रहा था कि जिंदगी की असली खूबसूरती तो उसे अब समझ आई है.
1 माह और बीत गया था. 7 मई को सलोनी किराया देने नीचे पहुंच
गई थी.
अंकल ने ₹5 हजार वापस करते हुए कहा,”जब तक तुम्हारी सैलरी फिर से सामान्य नहीं हो जाती तब तक हम तुम से ₹10 हजार ही किराया लेंगे.”
इस लौकडाउन ने सालोनी को पहले से अधिक जिम्मेदार बना दिया था. उसे समझ आ गया था जिंदगी का मतलब बस सैरसपाटा नही हैं.
दूसरे दिन से शराब की दुकानें खुल रही थीं. सलोनी के सभी दोस्त प्रोग्राम बना रहे थे कि सब सलोनी
के घर मिलेंगे.
सलोनी से संस्कार ने पूछा,”बेबी, तुम्हारे लिए कौन सी ब्रैंड ले कर आनी है?”
सलोनी मुसकराते हुए बोली,”देखो, मेरे पास फालतू खर्चों के लिए पैसे नही हैं. तुम लोग किसी और के घर जाने का प्रोग्राम बना लो.”
संस्कार बोला,”सलोनी डियर, आज में जियो, यह बुजुर्गों जैसी बचत की बातें कर के लाइफ को बोरिंग मत बनाओ.”
सलोनी पूरे आत्मविश्वास से बोली,”संस्कार, मेरी जिंदगी अब बोरिंग नहीं बेहद खूबसूरत हो गई है.”
सलोनी को विश्वास था कि अब चाहे सैलरी और भी कम हो जाएं वह कम में भी आराम से काम चला लेगी. उस के हाथ आत्मनिर्भरता और आत्मअनुशासन की कुंजी जो लग गई है. उस ने आगे से शराब जैसी गंदी चीज को हाथ तक न लगाने की कसम खा ली थी.
अब उस की जिंदगी पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई थी.