Writer -हरीश जायसवाल
रात के 11 बज चुके थे और बाती अपने बैडरूम में चहलकदमी कर रही थी. बैड पर उस का 2 साल का बेटा ऊष्मित सो रहा था. इस तरह से चहलकदमी करते हुए दीपक का इंतजार करना पिछले 6 महीनों से बाती की आदत बन चुका था. उसे पता था कि आजकल दीपक के आने का यही समय है... बाती सोच ही रही थी कि सन्नाटे को चीरती हुई डोरबैल बजी.
"आखिर यह कब तक चलेगा दीपक?" बाती ने कहा, "आज ऊष्मित को अचानक हलका बुखार आ गया था. सोचा कि तुम्हारे साथ जा कर डाक्टर को दिखा दूंगी. इसी वजह से शाम को तकरीबन साढ़े 6 बजे तुम्हें फोन लगाया था, मगर तुम्हारा फोन स्विच औफ आ रहा था.
"तब मैं ने तुम्हारे औफिस फोन लगाया तो पता चला कि तुम तो औफिस से 6 बजे ही निकल गए हो और पिछले दिनों कभी भी 6 बजे से ज्यादा नहीं रुके हो."
"चलो अच्छा ही हुआ जो तुम्हें पता चल गया. वैसे मैं खुद ही बताने वाला था. अब हम साथ में नहीं रह सकते," दीपक का जवाब भी नपातुला था.
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"साथ में नहीं रह सकते? क्या मतलब है तुम्हारा? क्या कोई दूसरा अफेयर है तुम्हारा?" बाती की आवाज अभी भी संयमित ही थी. शायद दीपक के औफिस से सूचना मिलने के बाद वह समझ गई थी कि ऐसा ही कुछ होने वाला है.
"हां, मेरा ज्योति के साथ कालेज के दिनों से ही अफेयर है. उस की और मेरी सरकारी नौकरी भी एक ही साथ लगी थी. पर दोनों के महकमे अलगअलग थे. उस की पोस्टिंग 400 किलोमीटर दूर शहर में हो गई थी.अभी 8 महीने पहले ही उस का ट्रांसफर यहां हुआ है. कलक्टर औफिस में मीटिंग के दौरान ही उस से मुलाकात हुई थी.
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