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अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.

कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की  तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.

रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.

रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.

‘‘अरे... अरे भाभीजी... आज हमारे दरवाजे पर आई हैं... अरे, धन्य भाग्य हमारे... बताइए, हमारे लिए क्या

आदेश है?’’

‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है... मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं... मुझे इंसाफ मिलना चाहिए... अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं... तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’

‘‘सही कहा आप ने भाभीजी...  मैं इस गांव का प्रधान हूं... और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी... पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं

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