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‘‘अब खत्म हुई कहानी,’’ उस ने कुछ चुप रह कर कहा, ‘‘मेरी एक बेटी है और एक बेटा. उस के पढ़नेलिखने और बड़ा होने तक मैं नौकरी करूंगी, उस के बाद मेरा बेटा संभाल लेगा,’’ उस की आंखों में एक अजीब सी चमक थी, मानो कह रही थी, ‘मैं गम की मारी नहीं, चिंता की वजह जा चुका है.’

मैटल फोर्जिंग का बस स्टौप आ गया था. रैडलाइट से बाईं ओर मुड़ कर दीपक ने उसे उतार दिया और बोला, ‘‘अच्छा तो मैं चलता हूं, कल तो आएंगी ही आप?’’

दीपक ने गौर से उस का चेहरा देखा. वह शांत थी. उस के चेहरे पर गम की कोई शिकन नहीं थी, सिर्फ माथे की गोल बिंदी गुम थी.

‘‘मैं रोजाना आऊंगी. आप जैसे नेक इनसान मु  झे मिल गए, अब मेरे अंदर

डर की भावना खत्म हो गई. दुखसुख में सहारा ढूंढूंगी आप में,’’ कह कर वह मुसकरा दी.

दीपक ने कहा, ‘‘दुख हो या सुख, आप मु  झे जब भी याद करोगी, सेवा में हाजिर रहूंगा.’’

उस की आंखों में खुशी के आंसू तैर आए, ‘‘आप इनसान नहीं...’’ कह कर उस ने हाथ से उमड़ते आंसुओं को रोकने की नाकाम कोशिश की.

‘‘आप मु  झे इतना बड़ा मत बनाइए, इनसान ही रहूं तो अच्छा है,’’ कह

कर दीपक ने अपना हाथ हिलाया और मोटरसाइकिल को गियर में डाल दिया.

उस ने शीशे में देखा कि वह पीठ फेर कर जा रही थी. कुछ कदम चलने के बाद उस ने एक बार फिर पीछे मुड़ कर जरूर देखा था. ऊंचे पेड़ों के पत्ते फड़फड़ा रहे थे, मानो खुशी मना रहे हों.

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