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मुकेश यह भी समझ रहा था कि मामाजी की नजर उस के और अंजलि के पैसों पर थी. उन्हें लग रहा था कि उन का एक बच्चा भी अगर मेरे घर आ गया तो बाकी के परिवार का मेरे घर पर अपनेआप हक हो जाएगा. उसे आज भी याद है जब मामाजी की हर चाल नाकाम रही तो खीज कर वह चिल्ला पड़े थे, ‘अपने लोगों को दौलत देते हुए एतराज है पर गैरों में बांट कर खुश हो, तो जाओ आज के बाद हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं.’

मामाजी जब अंतिम बार मिले तो बोले थे, ‘कान खोल कर तुम दोनों सुन लो, गैर गैर होते हैं, अपने अपने ही. और मैं यह साबित कर दूंगा.’

‘और आज यही साबित करने आए हैं. लगता है गगन को गैर साबित कर के ही जाएंगे, लेकिन मैं मामाजी की यह इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा,’ सोचता हुआ मुकेश करवट बदल रहा था.

इधर अंजलि की आंखों से नींद जैसे गायब थी. जब रहा नहीं गया तो उठ कर वह गगन के कमरे की तरफ चल दी. उस का अंदाजा सही था, गगन जाग रहा था. रजत भी जागा हुआ था.

‘‘तू पागल है, गगन,’’ रजत बोला, ‘‘मामाजी ने कहा और तू ने उसे सच मान लिया. मामाजी हमारे ज्यादा अपने हैं या मम्मीपापा.’’

अंजलि के पीछे मुकेश भी आ गए. दोनों गगन के कमरे में अपराधियों की तरह आ कर बैठ गए. अंजलि ने गगन को देखा. उस की आंखें भरी हुई थीं.

‘‘गगन, तू ने खाना क्यों नहीं खाया?’’

गगन कुछ बोला नहीं. बस, मां की नजरों में देखता रहा.

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