रोहित सड़क पर बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ तड़प रहा था. सिर से खून की धार बह रही थी. उस का स्कूटर नजदीक ही गिरा पड़ा था.
कानूनी पचड़े में फंसने के चलते कोई भी आदमी उस की मदद के लिए आगे नहीं आया. लोग एक नजर उस पर डालते और फिर आगे बढ़ जाते.
गायत्री का रिकशा जैसे ही उधर से गुजरने लगा, उस की नजर तड़पते हुए रोहित पर पड़ी. उसे देखते ही उस के चेहरे पर घबराहट छा गई. अगले ही पल उस ने रिकशे वाले को रुकने के लिए कहा. रिकशा रुकते ही उतर कर उस ने रोहित को टटोल कर देखा. उस की सांस चल रही थी.
‘‘बहनजी, छोडि़ए. क्यों इस लफड़े में पड़ती हैं आप? पुलिस आ कर अपनेआप संभाल लेगी,’’ रिकशे वाले ने बला टालने के लिए कहा. वह बुरी तरह डरा हुआ था.
‘‘चुप करो. शर्म नहीं आती तुम्हें... एक आदमी तड़पतड़प कर अपनी जान दे रहा है और तुम्हें यह लफड़ा लग रहा है,’’ कहते हुए गायत्री ने अपना रूमाल बेहोश रोहित के सिर पर बांध दिया.
‘‘इधर आओ, थोड़ी मदद करो,’’ रिकशे वाले से कहते हुए गायत्री ने रोहित को उठाने की कोशिश की.
गायत्री को यह सब करते देख डर की वजह से दूर खड़े लोग भी पास आ गए थे. गायत्री ने उन की मदद से रोहित को रिकशे में डाला. उस के बाद वह अस्पताल की ओर चल दी.
जल्दी ही वे अस्पताल पहुंच गए. ज्यों ही रिकशा गेट के अंदर पहुंचा, वैसे ही अस्पताल से बाहर निकल रहे एक नौजवान की नजर रोहित पर पड़ी.
‘‘अरे, यह तो हमारे रोहित साहब हैं,’’ कहते हुए वह रिकशे के साथ हो लिया.
‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’ गायत्री ने उस से पूछा.
‘‘जी हां. यह हमारे इंजीनियर साहब हैं. मैं इन्हीं के दफ्तर में काम करता हूं,’’ नौजवान ने जल्दी से कहा.
डाक्टरों ने रोहित की हालत को देखते हुए तुरंत ही उस के इलाज का इंतजाम किया.
गायत्री बाहर बरामदे में बैठ गई. उस ने उस नौजवान को रोहित के घर खबर देने के लिए भेज दिया.
थोड़ी देर बाद एक डाक्टर बाहर आया, तो गायत्री ने उस से रोहित के बारे में पूछा.
‘‘वह अब ठीक है. अच्छा हुआ, आप उन्हें वक्त पर ले आई. अगर देर हो जाती, तो बचना मुश्किल था,’’ डाक्टर ने उसे बताया.
इस के बाद यह सोच कर कि अब रोहित के घर वाले आ ही जाएंगे, गायत्री अपने घर की ओर चल दी.
‘‘क्या हुआ बेटी?’’ गायत्री की खून से सनी साड़ी देख कर मां ने घबराई हुई आवाज में पूछा और लपक कर उसे दोनों हाथों से थाम लिया.
‘‘कुछ नहीं मां,’’ गायत्री ने सोफे पर बैठते हुए कहा.
‘‘पर बेटी, यह खून?’’ मां ने उस की साड़ी की ओर इशारा करते हुए पूछा.
मां जल्दी से पानी का गिलास ले आई. पानी पीने के बाद गायत्री ने उन को सारी बात बता दी. तब कहीं जा कर मां को चैन मिला.
वक्त के साथ हर वारदात कहीं दफन सी हो जाती है. इस वारदात को घटे भी 15-20 दिन गुजर गए थे. गायत्री भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में खो सी गई थी. पिता की मौत के बाद उस ने मेहनत से पढ़ाई कर अच्छे नंबरों से एमए पास किया था. इस वजह से सीधे ही उसे कालेज में नौकरी मिल गई थी.
नौकरी मिलने के बाद उन की माली हालत भी सुधर गई थी. दोनों मांबेटी अपनी छोटी सी दुनिया में खुश भी थीं. लेकिन मां को गायत्री की शादी की चिंता अंदर ही अंदर परेशान किए रहती थी. कितने ही मिलने वालों व रिश्तेदारों से इस बारे में कह रखा था, मगर अभी तक कहीं बात नहीं बनी थी.
एक दिन शाम के वक्त गायत्री बाजार जाने की तैयारी कर रही थी कि किसी ने घंटी बजाई. उस ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने रोहित को खड़ा पाया. वह एक ही नजर में उसे पहचान गई.
रोहित दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते,’’ गायत्री ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘मुझे गायत्रीजी से मिलना है,’’ रोहित ने कुछ झिझक के साथ कहा.
‘‘जी, मैं ही गायत्री हूं. अंदर आइए,’’ गायत्री ने अंदर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘अब आप कैसे हैं?’’
‘‘बिलकुल ठीक हूं... वह भी आप की वजह से,’’ रोहित ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘उस दिन अगर आप ने मुझे वक्त पर अस्पताल न पहुंचाया होता तो आज...’’
‘‘छोडि़ए भी... बीती बातों को याद करने से क्या फायदा?’’
इसी बीच मां भी कमरे में चली आईं.
‘‘ये मेरी मां हैं,’’ गायत्री ने मां का परिचय कराते हुए कहा.
‘‘नमस्ते माताजी,’’ रोहित ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा.
‘‘मां, ये वही हैं, जिन का कुछ दिन पहले ऐक्सीडैंट हुआ था और जिन्हें मैं अस्पताल ले कर गई थी,’’ गायत्री ने मां को बताया.
‘‘अच्छाअच्छा, जीते रहो बेटा, मैं तो उस दिन घबरा ही गई थी, जब यह खून से सने कपड़ों में घर आई.’’
इसी बीच गायत्री उठ कर रसोई में चली गई और जल्दी से शरबत बना कर ले आई. फिर बोली, ‘‘घर का पता ढूंढ़ने में तो परेशानी नहीं हुई आप को?’’
‘‘बिलकुल नहीं, आप का पता अस्पताल के रजिस्टर में लिखा हुआ था. जब मुझे मेरे दफ्तर के एक नौजवान ने बताया कि एक लड़की मुझे अस्पताल पहुंचा कर गई थी, तो मैं ने उसी वक्त सोच लिया था आप से तो मैं जरूर मिलूंगा.
‘‘देखिए, ज्यादा तो मैं क्या कहूं... बस इतना ही कहूंगा कि आप का यह कर्ज मैं कभी नहीं उतार सकूंगा. मेरी यह जिंदगी आप की ही अमानत है,’’ रोहित ने भरी आंखों से कहा.
‘‘अब आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रहे हैं.’’
यह सुन कर रोहित मुसकरा दिया. फिर उस ने ब्रीफकेस से शादी का कार्ड निकाल कर गायत्री की मां की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘यह मेरी बहन की शादी का कार्ड है. आप को इस शादी में हर हालत में शामिल होना है.’’
‘‘क्यों नहीं, हम जरूर आएंगे. इस बहाने भाभीजी से भी मुलाकात हो जाएगी,’’ गायत्री ने कहा.
‘‘भाभीजी? भई, कौन सी भाभी?’’ रोहित चौंकते हुए बोला.
‘‘अरे, तुम्हारी पत्नी के लिए बोल रही है,’’ मां ने हंसते हुए कहा.
‘‘पर, मैं तो अभी कुंआरा हूं.’’
यह सुन कर गायत्री एकदम झेंप गई. उस ने शर्म से चेहरा झुका लिया. पूरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई थी. अचानक ऐसा क्यों हो रहा था कि वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी.
‘‘अच्छा माताजी, अब मैं चलता हूं,’’ रोहित ने उठते हुए हाथ जोड़ कर कहा.
‘‘ठीक है, बेटा,’’ मां ने कहा.
गायत्री बाहर दरवाजे तक रोहित को छोड़ने आई. वह जाते हुए रोहित को एकदम देखे जा रही थी. उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे इन 15-20 मिनटों में ही रोहित ने उस का सबकुछ चुरा लिया हो.
उधर गायत्री से मिलने के बाद रोहित भी बेचैन रहने लगा था. उसे ऐसा महसूस हो रहा था, मानो उस के सीने में से कुछ निकल कर खो गया है. बारबार गायत्री का मासूम चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता. उस की आवाज उस के कानों में गूंजती हुई सुनाई देती.
इस तरह दोनों ही तरफ चाहत की चिनगारी सुलग चुकी थी. गायत्री जानेअनजाने रोहित के प्यार में डूब तो गई, मगर अंदर ही अंदर वह एक बात को ले कर परेशान भी थी. वह छोटी जाति की थी और रोहित ऊंची जाति का था. उसे डर था कि रोहित उस की जाति से अनजान है और जिस दिन उसे मालूम पड़ेगा, तो वह उस से प्यार की जगह नफरत करने लगेगा.
अगर रोहित को प्यार में किसी तरह मना भी लिया, तो उस के घर वाले इस रिश्ते को कभी मंजूर नहीं करेंगे.
कई बार गायत्री ने चाहा कि वह रोहित से इस बारे में खुल कर बात कर ले. लेकिन इस के लिए वह हिम्मत नहीं जुटा पाती. बस, सोच कर ही रह जाती.
उधर गायत्री का प्यार पा कर रोहित फूला नहीं समा रहा था. उसे गायत्री
की परेशानी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था.
गायत्री की मां से दोनों का प्यार छिपा नहीं था. गायत्री ने भी एक दिन झिझकते हुए मां को बता दिया था कि वह रोहित को पसंद करती है और वह भी उसे चाहता है.
मां ने बेटी का दिल न तोड़ने के लिए कुछ कहा तो नहीं, पर वह भी अंदर ही अंदर उसी डर से परेशान थीं, जिस से गायत्री थी. उन्होंने एक दिन गायत्री को इस बारे में बोल भी दिया कि वह रोहित से इस बारे में खुल कर बात क्यों नहीं कर लेती.
मां के समझाने पर गायत्री में थोड़ी हिम्मत आ गई. उस ने पक्का फैसला कर लिया कि अब जब भी रोहित मिलेगा, उस से साफ बात करेगी.
वह छुट्टी का दिन था. मां किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी... इधर रोहित से कई दिनों से मुलाकात नहीं हो पाई थी. इस वजह से गायत्री परेशान थी. समय काटने के लिए सोफे पर लेटे हुए ही वह किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी किसी ने घंटी बजाई.
गायत्री ने जा कर दरवाजा खोला, तो सामने रोहित को खड़े पाया, जो हलकी मुसकान लिए हुए बाहर खड़ा था.
रोहित को देखते ही उस का रोमरोम खिल उठा. वह धीरे से बोली, ‘‘अब अंदर भी आएंगे या जनाब यहीं खड़े रहेंगे,’’ गायत्री ने कुछ अदा के साथ रोहित को देखते हुए कहा.
‘‘लीजिए... आप का हुक्म सिरआंखों पर,’’ कहते हुए रोहित भी शान के साथ अंदर चला आया.
‘‘आज हुजूर अचानक यहां कैसे टपक पड़े?’’ गायत्री ने रोहित को बैठने का इशारा करते हुए कहा.
‘‘लो, आप को यहां आना अच्छा नहीं लगा तो अभी चले जाते हैं,’’ रोहित ने उठने का नाटक करते हुए कहा.
‘‘खैर, छोडि़ए... यह बताइए कि क्या लेंगे, ठंडा या गरम?’’ गायत्री ने बात के रुख को मोड़ते हुए कहा.
‘‘जो आप पिलाएंगी.’’
गायत्री लजाती हुई उठ कर चली गई और जल्दी ही शरबत के 2 गिलास बना कर ले आई.
‘‘अरे, आज माताजी दिखाई नहीं दे रही हैं,’’ रोहित ने ट्रे से गिलास उठाते हुए पूछा.
‘‘आज वह एक रिश्तेदार के यहां गई हुई हैं.’’
‘‘तुम नहीं गए?’’
‘‘जी नहीं, मेरा मन नहीं था.’’
‘‘क्या हुआ तुम्हारे मन को?’’ रोहित ने उसे छेड़ते हुए कहा.
‘‘बता दूं...?’’ गायत्री ने मौका देख कर अपनी बात पर आते हुए कहा.
‘‘हांहां, जरा हम भी तो सुनें कि हमारी महारानीजी का इरादा क्या है?’’
‘‘रोहित, आज मेरा मूड सचमुच हंसीमजाक का नहीं है. मैं आप से एक खास बात करना चाहती हूं,’’ गायत्री ने कुछ झिझकते हुए कहा.
‘‘खास बात?’’ रोहित कुछ चौंकते हुए बोला.
‘‘हां, इस बात को ले कर मैं कुछ दिनों से परेशान हूं. पहले भी कई बार मैं ने इस बारे में आप से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’
‘‘चलो, आज तो तुम ने हिम्मत जुटा ली है. अब अपनी बात कह भी डालो, जिसे ले कर तुम इतनी परेशान दिखाई दे रही हो.’’
‘‘रोहित, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’
‘‘लो, यह भी कोई पूछने की बात है. भला मुझ से ज्यादा तुम्हें और कौन जानेगा?’’ रोहित ने धीरे से कहा.
‘‘बात को टालो मत.’’
‘‘ठीक है, तो फिर सुनो. तुम एक प्यारी सी सुंदर लड़की हो. कालेज में पढ़ाती हो और अपने सामने बैठे इस नालायक आदमी से बेपनाह मुहब्बत करती हो,’’ रोहित ने गायत्री को छेड़ते हुए कहा.
‘‘रोहित, मेरा यह मतलब नहीं है. मेरा मतलब मेरे परिवार से है, जिस में मैं ने जन्म लिया है,’’ गायत्री ने असली बात पर आते हुए कहा.
‘‘ओह... आखिर वही बात सामने आ गई, जिस का मुझे डर था. मैं ने बहुत दिन पहले ही सोच लिया था कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है.’’
‘‘कौन सी बात?’’ गायत्री ने हैरानी से पूछा.
‘‘हूं... तो सुनिए जनाब, तुम यही कहना चाहती हो न कि देखो रोहित तुम एक ऊंची जाति के हो और मैं छोटी जाति की हूं, इसलिए हमारा रिश्ता समाज और तुम्हारे घर वालों को कभी पसंद नहीं होगा. इसलिए बेहतर यही है कि हम अपने कदम वापस खींच लें और एक सपना समझ कर सबकुछ भूल जाएं. क्यों ठीक है न?’’ कह कर रोहित चुप हो गया और गायत्री की आंखों में देखने लगा, जहां से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.
‘‘रोहित,’’ गायत्री सुबक पड़ी और अपना चेहरा रोहित की गोद में छिपा लिया.
‘‘अरे पगली, एक बेतुकी बात के लिए अपने सीने पर इतना भारी बोझ ले कर बैठी थीं. मैं ने तुम से मुहब्बत अपना दिल बहलाने या ऐयाशी के लिए नहीं की है, बल्कि अपना जीवनसाथी बनाने के लिए तुम से यह रिश्ता जोड़ा है. मुझे तुम से बेपनाह मुहब्बत है. फिर हमारे बीच यह जाति वाली बात कहां से आ गई?’’
रोहित की बात सुन कर गायत्री उसे ऐसे देखने लगी, जैसे कोई सपना देख रही हो.
‘‘देखो गायत्री, आज मुझे बहुत अफसोस हो रहा है कि इतने दिन मेरे साथ रह कर भी तुम मुझे पहचान नहीं पाई. तुम नहीं जानतीं, मेरे घर वाले कितने खुले विचारों के हैं. वह इस जातबिरादरी को बिलकुल नहीं मानते.
‘‘अपने घर वालों को मैं ने शुरू में ही तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दिया था. तुम्हारे ही महल्ले के एक आदमी से, जो हमारे ही दफ्तर में काम करता है, तुम्हारे बारे में मुझे सारी जानकारी मिल गई थी. मेरे घर वालों को सिर्फ एक गुणी
और सुशील बहू चाहिए, जो उन के परिवार की शोभा बढ़ा सके. ये सब
गुण तुम्हारे अंदर हैं, इसलिए मैं ने तुम्हें चुन कर कोई गलती नहीं की है.
‘‘मैं तो खुद ही ऐसा मौका तलाश रहा था, ताकि तुम से शादी की बात कर सकूं... आज वह मौका तुम ने खुद ही दे दिया.’’
‘‘रोहित, मैं यह सब क्या सुन रही हूं?’’ गायत्री ने उस के कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा.
‘‘रानीजी, आप जो सुन रही हैं, वही सच है. अब तो आप अपना फैसला सुनाइए,’’ रोहित ने उस का चेहरा अपने सामने करते हुए कहा.
‘‘मैं ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि मुझे तुम्हारे जैसा सच्चा इनसान इस तरह मिल जाएगा. क्या तुम्हारा वह ऐक्सीडैंट कुदरत ने इसीलिए करवाया था कि हमें मिलना था?’’
‘‘शायद, अगर वह सब नहीं होता, तो हम मिलते कैसे? खैर, बाकी सब बातें छोड़ो और यह बताओ कि मेरे मांबाप की बहू बन कर मेरा और उन का सपना कब पूरा करोगी?’’
‘‘जब आप का हुक्म होगा मेरे साजन,’’ कह कर गायत्री अदा से उठी और उस ने सिर पर चुन्नी रख कर रोहित के पैर छू लिए.
रोहित जोर से हंस पड़ा. उस ने गायत्री को उठा कर अपने सीने से लगा लिया. दोनों ने अपनेआप को एक गहरे रिश्ते में बांध लिया था.

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