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निनाद को चादर उढ़ा वह दूसरे बेडरूम में अपने पलंग पर लेट गई. पिछले दिन से अम्बा गंभीर सोचविचार में मग्न थी. निनाद को लेकर वह कुछ फैसला नहीं कर पा रही थी. निनाद के रवैये से स्पष्ट था, वह अब समझौते के मूड में था, लेकिन क्या वह पिछले तीन वर्षों तक उसके दिये घावों को भुला कर उसकी इच्छानुसार उसके साथ एक बार फिर जिंदगी की नई शुरुआत कर पाएगी.वह घोर द्विविधा में थी. निनाद के बंधन को काट फेंके या फिर गुजरे दिनों को भुला कर एक नया आगाज़ करे? एक ओर उसका मन कहता, इंसान की फितरत कभी नहीं बदलती. उसने उसके साथ एक नई शुरुआत कर भी ली तो क्या गारंटी है कि वह उसे दोबारा तंग नहीं करेगा? तभी दूसरी ओर वह सोचती, जब निनाद ने अपनी गलती मान ली है तो एक मौका तो उसे देना ही चाहिए.अनायास उसके कानों में माँ के धीर गंभीर शब्द गूंज उठे, “रिश्तों की खूबसूरती उन्हें बनाए रखने में होती है, ना की उन्हें तोड़ने में.“

जिंदगी के इस मोड पर वह स्पष्टता से कुछ सोच नहीं पा रही थी, कि क्या करे.

बीमारी के इस दौर में निनाद एक दम बदला बदला नज़र आ रहा था. वह   बेहद डर गया था. वह एक बेहद डरपोक किस्म का, कमज़ोर दिल का इंसान था.उसे लगता वह कोरोना से मर जाएगा. ठीक नहीं होगा. वह बेहद कमज़ोरी फील कर रहा था. अम्बा  को यूं दिन रात अपनी देखभाल करते देख मन ही मन उसने न जाने कितनी बार अपने आप से दोहराया, "इस बार बस मैं ठीक हो जाऊं, अम्बा  को बिल्कुल तंग नहीं करूंगा. उसे पूरा प्यार और मान दूंगा. अब उसपर बिलकुल नहीं चिल्लाऊंगा." अम्बा को इस तरह समर्पित भाव से अपनी सेवा करते देख वह गुजरे दिनों में उसके प्रति अपने दुर्व्यवहार को लेकर घोर  पछतावे से भर उठा. साथ ही कोरोना से मौत के खौफ ने उसे बहुत हद तक  बदल दिया था.

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