आशीष को परेशान करने के लिए वह जल्दीजल्दी अपनी मां के पास जाने की जिद करती, परंतु वह बिना किसी नानुकुर के उस की फ्लाइट की टिकट बुक करवा देता. उस की उपेक्षा और तिरस्कार का आशीष पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता. वह तो अपनी पत्नी की सुंदरता पर मुग्धभाव से मुसकराता रहता. हर क्षण उस की प्रसन्नता के लिए प्रयास करता रहता.
वह उसे अंटशंट बोलती व प्रताडि़त करने के अवसर खोजती रहती. खाली समय में अपने एहसान के खयालों में खोई रहती. सुधाकर को मुग्धा का जल्दीजल्दी आना अच्छा नहीं लगा था. एक दिन वे पत्नी से बोले थे, ‘अपनी लाड़ली को समझाओ, पति के घर रहने की आदत डाले. ‘वह तो हम लोगों का समय अच्छा है कि हमें इतना अच्छा दामाद मिला है, जो उस की हर इच्छा को पूरी करता है.
‘मैं तो यही चाहता हूं कि वह आशीष के प्यार को समझे.’
‘आप ने अपनी बेटी के प्यार को समझा था? आप को उस की हर बात से परेशानी होती है. पहले आप ने बिना उस की रजामंदी के शादी करवा दी. अब आप चाहते हैं कि वह तुरंत उसे अपना ले जबकि आप अच्छी तरह जानते हैं कि बचपन से ही काले रंग के लोगों से वह नफरत करती है. आप को याद नहीं है, पहले मैं भी तो जल्दीजल्दी मायके जाने की जिद करती थी. उस को समय दीजिए, वह आशीष के प्यार की कद्र करने लगेगी.’
‘मैं भी तो यही चाहता हूं कि वह पति के प्यार को समझे, उसे इज्जत दे और उसे प्यार भी करे,’ वे नाराज हो उठे थे, ‘ठीक है, तुम उसे शह देती रहो. जब शादी टूट जाए और दोनों के बीच तलाक हो जाए तो मेरे कंधे पर सिर रख कर मत रोना कि अब क्या करूं? समाज में सब के सामने, मेरी इज्जत खराब हो गई. तुम्हीं तो उस दिन कह रही थीं कि गीता भाभी कह रही थीं कि क्या बात है, मुग्धा की पति से बनती नहीं है क्या?’