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Writer- Rajesh Kumar Ranga

‘‘नारियल पानी पीना है?’’ तनु ने जोर से कहा.

‘‘पूछ रही हैं या कह रही हैं?’’

‘‘कह रही हूं... तुम्हें पीना हो तो पी सकते हो...’’

अंबर ने फौरन मोटरसाइकिल घुमा दी. विपरीत दिशा से आती गाडि़यों के बीच मोटरसाइकिल को कुशलता से निकालते हुए दोनों नारियल पानी वाले के पास पहुंय गए.

अंबर ने एक ही सांस में नारियल पानी खत्म कर दिया और नारियल को एक ओर उछाल कर जेब से पर्स निकाल कर पैसे दे कर बोला, ‘‘मैं ने अपने नारियल के पैसे दे दिए, आप अपने नारियल के पैसे दे दीजिए.’’

तनु अवाक हो कर अंबर को ताकने लगी.

‘‘बुरा मत मानिएगा तनुजी, आप का और मेरा अभी कोई रिश्ता नहीं है, मैं क्यों आप पर खर्च करूं?’’

तनु हार मानने वालों में से नहीं थी. बोली, ‘‘और जो आप के मातापिता हमारे घर पर काजू, किशमिश और चायकाफी उड़ा रहे हैं उस का क्या?

‘‘बात तो सही है, हम दिल्ली वाले हैं. मुफ्त का माल पर हाथ साफ करना हमें खूब आता है...’’

अंबर ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता न करें मैं दोनों के पैसे दे चुका हूं, नारियल वाला छुट्टा करवाने गया है.’’

यह सुन कर तनु भी हंसे बगैर नहीं रह पाई.

अंबर के जूते मिट्टी से सन गए थे. उस ने पौलिश वाले बच्चे से जूते पौलिश करवाए, तब तक नारियल वाला भी आ चुका था.

‘‘आप ने देशविदेश में कहां की सैर की है,’’ तनु ने पूछा.

अंबर के पास जवाबहाजिर था, ‘‘यह पूछिए कहां नहीं गया, नौकरी ही ऐसी है पूरा एशिया और यूरोप का कुछ हिस्सा मेरे पास है... आनाजाना लगा ही रहता है...’’

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