दोनों जब खुले मैदान में पहुंचे, तो नजारा और भी खूबसूरत हो उठा. साफ नीला आसमान, टिमटिमाते तारे और बड़ा गोल सा चांदी जैसा चमकता चांद, जिस की बरसती चांदनी में पूरी धरती जैसे स्नान कर रही थी और मंदमंद बहती हवा मन को जैसे मदहोश किए जा रही थी.
अचानक बेखुदी में दोनों के कदम तेज हो गए और एकदूसरे का हाथ पकड़, मैदान में दौड़ने लगे. अब टुंगरी भी बिलकुल पास ही थी. वह निशाचर चिडि़या नजदीक ही कहीं आवाज दे रही थी. तभी उस के पंख फड़फड़ाए और वह उड़ती नजर आई. मेरा दिल एक बार फिर से धक रह गया.
‘‘प्रीति, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब हकीकत है. कहीं यह ख्वाब तो नहीं,‘‘ मैं ने प्रीति की नाजुक हथेली को जोर से भींच कर कहा. अपने बहकते जज्बातों को मैं जैसे रोक नहीं पा रहा था.
‘‘ख्वाब ही तो है, जो हम दोनों हमेशा से देखते रहे थे. ऐसी चांदनी रात में एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले, कुदरत के ऐसे खूबसूरत नजारे को निहारते, एकदूसरे में खोए, जब सारी दुनिया सो रही हो, हम जागते रहें…‘‘
‘‘सच कहा तुम ने, मैं ने ऐसी ही रात की कल्पना की थी.‘‘
‘‘तो फिर अब मुझे वह गाना सुनाओ, मोहम्मद रफी वाला, जो तुम हमेशा गुनगुनाते रहते हो.‘‘
‘‘कौन सा खोयाखोया चांद वाला…‘‘ मैं ने मजाकिया लहजे में कहा.
‘‘हां, गाओ न,‘‘ प्रीति खुशी से मुसकराते हुए आग्रहपूर्वक बोली.
‘‘एक शर्त पर,‘‘ मैं ने रुक कर कहा.
‘‘क्या,‘‘ कह कर प्रीति मुझे घूरने लगी.
‘‘तुम्हें भी उस फिल्म का गाना सुनाना होगा, जो मैं ने तुम्हें नैट से डाउनलोड कर के दिया था,‘‘ मैं ने मुसकरा कर कहा.
‘‘फिल्म ‘पाकीजा‘ का ‘मौसम है आशिकाना…‘‘ प्रीति मुसकराते हुए बोली.
‘‘हां,‘‘ कह कर मैं फिर से मुसकराया.
‘‘हमें मंजूर है, हुजूरेआला,‘‘ प्रीति भी जैसे चहक उठी.
उस चांदनी रात में गुनगुनाते हुए दोनों एकदूसरे के हाथों में हाथ डाले आगे बढ़ते जा रहे थे. कुछ देर बाद दोनों टुंगरी के ऊपर थे. जहां से चांदनी रात की खूबसूरती अपने पूरे शबाब में दिख रही थी. चारों तरफ पूनम की चांदनी दूर तक बिखरी हुई थी. आसमान अब भी साफ था, लेकिन कहीं से आए छोटेछोटे आवारा बादल चांद से जैसे जबरदस्ती आंखमिचौली का खेल रहे थे.
उस दिलकश खेल को देख कर दोनों के आनंद की सीमा न रही, मन नाच उठा. फिर उस जगह की खामोशी में, रात के उस सन्नाटे में एकदूसरे के धड़कते हुए दिल की आवाज सुन कर अंगड़ाइयां लेते मीठे एहसासों से, अंदर कहां से यह आवाज आ रही थी… जैसे यह चांद कभी डूबे नहीं, यह वक्त यहीं रुक जाए, यह रात कभी खत्म न हो. काश, यह दुनिया इतनी ही सुंदर होती, जहां कोईर् पाबंदी, कोई रोकटोक नहीं होती. सभी एकदूसरे से यों प्रेम करते. इस रात में जो शांति, जो संतोष का एहसास है, ऐसा ही सब के दिलों में होता. किसी को किसी से कोई बैर नहीं होता.
‘‘प्रीति, तुम्हें नहीं लगता हम दोनों जैसा सोचते हैं, ऐसा काम तो कवि या लेखक लोग करते हैं यानी कल्पना की दुनिया में जीना. वे ऐसी दुनिया या माहौल का सृजन करते हैं, जो आज के दौर में संभव ही नहीं है.‘‘
‘‘संभव है, चाहे नहीं, पर सचाई तो सचाई होती है. जिंदगी इस चांदनी रात के समान ही होनी चाहिए, शीतल, बिलकुल स्निग्ध, एकदम तृप्त. फिर सकारात्मक सोच ही जीवन को गति प्रदान करती है. जहां उम्मीद है, जिंदगी भी वहीं है.‘‘
‘‘अरे वाह, तुम्हारी इन्हीं बातों से तो मैं तुम्हारा इतना दीवाना हूं. तुम इतनी गहराई की बातें सोच कैसे लेती हो?‘‘
‘‘जब जिंदगी में किसी से सच्चा प्यार होता है, तो मन गहराई में उतरने की कला अपनेआप सीख लेता है. फिर जिसे साहित्य से भी प्यार हो, उसे सीखने में अधिक समय नहीं लगता.‘‘
‘‘प्रीति, अगर तुम मेरी जिंदगी में न आती, तो शायद मैं आज गलत रास्ते में भटक गया होता. मुझे अधिक हुड़दंगबाजी तो कभी पसंद नहीं थी. मगर आधुनिकता के नाम पर अपने दोस्तों के साथ, पौप अंगरेजी गाने सुनना और इंटरनैट पर गंदी फिल्में देखने का नशा तो चढ़ ही चुका था. अगर इस बार परीक्षाओं में मेरा बढि़या रिजल्ट आया है, तो सिर्फ तुम्हारी वजह से. अब मैं अपने उन दोस्तों से भी शान से कहता हूं कि क्लासिकल गाने एक बार दिल से सुन कर देखो, उस के रस में, उस के जज्बातों में डूब कर देखो, तुम्हें भी मेरी तरह किसी न किसी प्रीति से जरूर प्यार हो जाएगा.‘‘
‘‘तुम अब वे फिल्में तो कभी नहीं देखते न?‘‘ प्रीति ने अचानक इस तरह से प्रश्न किया, जैसे कोई अच्छी शिक्षिका अपने छात्र को उस का सबक फिर से याद दिला रही हो.
मैं ने भी डरने का नाटक करते, उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘अरे नहीं, कभी नहीं… अब देखूंगा भी तो तुम्हारे साथ शादी के बाद ही.‘‘
‘‘तो अभी से मन में सब सोच कर रखा है?‘‘ शिक्षिका के होंठों पर मुसकान थी, लेकिन नाराजगी स्पष्ट झलक रही थी.
‘मुझे कहीं डांट न पड़ जाए‘ यह सोच कर मैं ने झट से अपने दोनों कान पकड़ कर कहा, ‘‘अरे, नहीं बाबा, जिंदगी में कभी नहीं देखूंगा. मैं तो बस, यों ही मजाक कर रहा था पर तुम से एक बात कहने की इच्छा हो रही है.‘‘
‘‘क्या…‘‘ अपनी आंखें फिर बड़ी कर प्रीति मुझे घूरने लगी.
उसे गुस्साते देख कर, मैं ने मुसकरा कर कहा, ‘‘यही कि तुम अभी और भी खूबसूरत लग रही हो. सच कहता हूं, उस चांद से भी खूबसूरत…‘‘
‘‘अच्छा जी, तो अब मुझे बहकाने की कोशिश हो रही है,‘‘ प्रीति फिर मुंह बना कर बोली पर चेहरे पर मुसकान थी.
‘‘सच कहता हूं, जब भी तुम्हारी ये झील जैसी आंखें और गुलाब की पंखडि़यों जैसे होंठों को देखता हूं, तो अपने दिल को समझा नहीं पाता हूं. कम से कम एक किस तो दे दो,‘‘ मैं याचना कर बैठा.