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अनुपम को हैरानी हुई कि उस के नाम किसी ने चिट्ठी लिखी है. जेल में आने वाली चिट्ठियों को जेलर के पास से हो कर गुजरना पड़ता था. उसे पहले खोल कर पढ़ा जाता, फिर चिट्ठी दी जाती. चिट्ठी खुली थी. जेल के गार्ड ने चिट्ठी ला कर अनुपम को दी.

अनुपम ने चिट्ठी खोल कर पढ़ी:

‘प्रिय पतिदेव,

‘चरण स्पर्श,

‘पता चला है कि आप आतंकवाद के आरोप में दिल्ली जेल में हैं. सो, चिट्ठी लिखने का सौभाग्य मिला. मैं ठीक हूं. दोनों बेटियां साथ में?हैं. हम इस समय जम्मू शरणार्थी शिविर में हैं. कुछ समय बाद ही कश्मीर में आतंकवादियों ने फिर से पैर पसार लिए थे. उन का खुला आदेश?था कि हिंदू घाटी छोड़ दें, वरना मारे जाएंगे.

‘जब हिंदुओं की दिनदहाड़े हत्याएं होने लगीं, तो सभी हिंदू मौका मिलते ही अपना घर छोड़ कर भाग गए. आसपड़ोस के मुसलिम परिवारों ने कहा भी कि आप लोग मत जाइए. लेकिन बंदूक के सामने किस का जोर चलता?है. बाद में उन्होंने ही कहा कि अभी आप लोग चले जाइए. माहौल ठीक होते ही आ जाना.

‘काफी समय बीत गया, लेकिन कोई भी जाने को तैयार नहीं है. राहत केंद्रों से ही लोग दिल्ली जैसे शहरों की तरफ बढ़ने लगे हैं, रोजगार की तलाश में. नए मकान की तलाश में.

‘मैं जम्मू में ही रह कर दूसरों के घरों में बरतनझाड़ू का काम कर के जैसेतैसे दोनों बेटियों की खातिर जी रही हूं. आप से मिलने दिल्ली आना नहीं हो पा रहा है.

‘मैं ने एक वकील से बात की है. वह आप का केस लड़ने को तैयार है. वह भी कश्मीरी पंडित?है. हमारे दर्द को समझता है. बिना पैसे के इनसानियत के नाम पर वह केस लड़ने को राजी है. हम जल्दी मिलेंगे.

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