यह सीधासीधा नस्लवाद था. लेकिन कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं था. इस मकान की लोकेशन भी सुविधाजनक थी, इसलिए सौदा मंजूर कर लिया गया. दिल्ली में नईनई आई एंड्रिया की अपनी अलग परेशानियां थीं. क्लास में सभी उसे पार्टीगर्ल और पियक्कड़ समझते थे और मना करने पर भी बारबार नाइटक्लब में पार्टी के लिए चलने को कहते. मिजोरम की खूबसूरत फिजाओं को छोड़ कर दिल्ली के प्रदूषित, गरम मौसम में उस का मन वैसे ही उचाट रहता था, ऊपर से ऐसी बातें मानसिक तनाव को और भी ईंधन दे रही थीं.
उस का दिल करता कि वह रोज आराम से बैठ कर वौयलिन बजाए मगर मेनलैंड का भयंकर कंपीटिशन उसे किताबों में सिर खपाने को मजबूर करता. मिजोरम की नैसर्गिक सुंदर वादियों में बिताए, नदियों की कलकल से संगीतमय, दिन अब दूर की याद बन कर रह गए थे. जरूरतें उसे प्रकृति की गोद के सुरम्य, कोमल एहसास से निकल कर महानगर की कठोरता से जूझने को मजबूर कर रही थीं.
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‘क्यों आते हम यहां दिल्ली में, अगर सरकार ने वक्त रहते हमारे इलाके में भी शिक्षा के विकास पर ध्यान दिया होता. क्या जरूरत थी हमें. और आए भी हैं तो क्या हुआ, अपने देश में ही तो हैं. फिर सब को हम से इतना परहेज क्यों है? क्यों सब के सब यहां हमारे एल्कोहलिक और लूज कैरक्टर होने का पूर्वाग्रह पाल कर बैठे हैं?’ एंड्रिया अकसर अलाना से शिकायत करती.
‘एंड्रिया माई स्वीट, यह सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा बल्कि हमजैसे हरेक के साथ यही होता है. हर जगह पक्षपात है. ऐसा लगता है कि हमारे अस्तित्व की किसी के लिए कोई अहमियत ही नहीं है. फिर वह चाहे सरकार हो या मीडिया या मुख्य भूभाग के वासी, सभी खुलेआम नकारते हैं हमारे भारतीय होने को. न्यूजचैनल वाले मुख्यभूभाग के छोटे से छोटे, पिछड़े हुए गांव में पहुंच जाते हैं खबरों के लिए मगर नौर्थईस्ट इंडिया के प्रदेशों में जाने से उन्हें भी बड़ा परहेज है,’ अलाना ने कहा.