‘‘अशीम केवल मित्र है, दीदी? मैं तो सोचती थी कि आप उस के प्रेम में आकंठ डूबी हुई हैं और किसी और के बारे में सोचेंगी भी नहीं. पर आप तो प्रशांत बाबू की मर्सीडीज देख कर सबकुछ भूल गईं.’’
‘‘कालिज का प्रेम समय बिताने के लिए होता है. मैं इस बारे में पूर्णतया व्यावहारिक हूं. अशीम अभी पीएच.डी. कर रहा है. 4-5 वर्ष बाद कहीं नौकरी करेगा. उस की प्रतीक्षा करते हुए मेरी तो आंखें पथरा जाएंगी. घर ढंग से चलाने के लिए मुझे भी 9 से 5 की चक्की में पिसना पड़ेगा. मैं उन भावुक मूर्खों में से नहीं हूं जो प्रेम के नाम पर अपना जीवन बरबाद कर देते हैं.’’
‘‘आप का हर तर्क सिरमाथे पर, लेकिन आप से इतनी अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि आप अशीम को सब साफसाफ बता दें और उस के साथ प्यार की पींगें बढ़ाना बंद कर दें. फिर प्रशांतजी का परिवार इसी शहर में रहता है. किसी को भनक लग गई तो...’’
‘‘किसी को भनक नहीं लगने वाली. तुम्हीं बताओ, मांपापा को आज तक कुछ पता चला क्या? हां, इस के लिए मैं तुम्हारी आभारी हूं. पर मैं इस उपकार का बदला अवश्य चुकाऊंगी.’’
‘‘अंशुल दीदी, तुम इस सीमा तक गिर जाओगी मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ पारुल बोझिल स्वर में बोली.
‘‘यदि अपने हितों की रक्षा करने को नीचे गिरना कहते हैं तो मैं पाताल तक भी जाने को तैयार हूं. तुम चाहती हो कि मैं अशीम को सब साफसाफ बता दूं, पर जरा सोचो कि जब सारे शहर को मेरे विवाह के संबंध में पता है पर केवल अशीम अनभिज्ञ है तो क्या यह मेरा दोष है?’’
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