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‘इतना सबकुछ? अंकल, आप को इतनी औपचारिकता की क्या आवश्यकता थी,’ युवक मेज पर फैली सामग्री को देख कर चौंक गया था.

‘‘बेटे, ये सब हमारे शहर की विशेष मिठाइयां हैं. ये खास कचौडि़यां हमारे शहर की विशेषता है,’’ मानिनी प्लेट में ढेर सी सामग्री डालते हुए बोली थीं.

‘‘मेरी मां ठीक ही कहती हैं, हम दोनों परिवारों के बीच जो प्यार है वह शायद ही कहीं देखने को मिले,’’ युवक प्लेट थामते हुए बोला. मानिनी उलझन में पड़ गईं पर शीघ्र ही उन्होंने संशय को दूर झटका और घर आए अतिथि पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

‘‘अच्छा, आंटी, अब मैं चलूंगा. आप दोनों से मिल कर बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, हम ने मुग्धा को फोन किया है, वह आती ही होगी. उस से मिले बिना तुम कैसे जा सकते हो?’’

‘‘उस की क्या आवश्यकता थी? आप ने व्यर्थ ही मुग्धाजी को परेशान किया.’’

‘‘इस में कैसी परेशानी? तुम कौन सा रोज आते हो,’’ राजवंशीजी मुसकराए.

तभी मुग्धा की कार आ कर रुकी. मानिनी और राजवंशीजी लपक कर बाहर पहुंचे. मानिनी उसे पीछे के द्वार से अंदर ले गईं.

‘‘जल्दी से तैयार हो जा. यह जींस टौप बदल कर अच्छा सा सूट पहन ले, बाल खुले छोड़ दे.’’

‘‘क्या कह रही हो मम्मी. किसी से मिलने के लिए इतना सजनेसंवरने की क्या आवश्यकता है?’’

‘‘किसी से नहीं जनार्दन से मिलना है. तू क्या सोचती है बिना बताए वह तुझ से मिलने क्यों आया है?’’

‘‘मुझे क्या पता, मम्मी. मैं आप का फोन मिलते ही दौड़ी चली आई. मुझे लगा किसी की तबीयत अचानक बिगड़ गई है.’’

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