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पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- औप्शंस: भाग 1

कितने अरसे तक दिलोदिमाग में विराज को सजाने के बाद शैली को महसूस हुआ था कि भले ही विराज को उस की भावनाओं का एहसास था, प्यार के सागर में उस ने भी शैली के साथ गोते लगाए थे, मगर वह इस रिश्ते में बंधने को कतई तैयार नहीं था. तभी तो बड़ी सहजता से वह किसी और के करीब होने लगा और ठगी सी शैली सब चुपचाप देखती रही, न वह कुछ बोल सकी और न ही सवाल कर सकी. बस उदासी के साए में गुम होती गई. अंत में उस ने वह औफिस भी छोड़ दिया.

आज इस बात को कई साल बीत चुके थे, मगर शैली के मन की कसक नहीं गई थी. ऐसा नहीं था कि शैली के पास विकल्पों की कमी थी. नए औफिस में पहली मुलाकात में ही उस का इमीडिएट बौस राजन उस से प्रभावित हो गया था. हमेशा उस की आंखें शैली का पीछा करतीं. आंखों में प्रशंसा और आमंत्रण के भाव होते पर शैली सब इगनोर कर अपने काम से काम रखने का प्रयास करती. कई बार शैली को लगा जैसे वह कुछ कहना चाहता है. मगर शैली की खामोशी देख ठिठक जाता. उधर शैली का कुलीग सुधाकर भी शैली को प्रभावित करने की कोशिश में लगा रहता था. मगर दिलफेंक और बड़बोला सुधाकर उसे कभी रास नहीं आया.

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शैली के पड़ोस में रहने वाला आजाद जो विधुर था, मगर देखने में स्मार्ट लगता

था, अकसर शैली से मिलने के बहाने ढूंढ़ता. कभी भाई की बच्ची को साथ ले कर घर आ धमकता तो कभी औफिस तक लिफ्ट देने का आग्रह करता. एक दिन जब शैली उस के घर गईं तो संयोगवश वह अकेला था. उसे मौका मिल गया और उस ने शैली से अपनी भावनाओं का इजहार कर दिया.

शैली कुछ कह नहीं सकी. आजाद की कई बातें वैसे भी शैली को पसंद नहीं थीं. उस पर विराज को भूल कर आजाद को अपनाने का हौसला उस में बिलकुल भी नहीं था. मन का वह कोना अब भी किसी गैर को स्वीकारने को तैयार नहीं था. शैली कुछ बोली नहीं, मगर उस दिन के बाद वह आजाद के सामने पड़ने से बचने का प्रयास जरूर करने लगी.

वक्त ऐसे ही गुजरता जा रहा था. शैली कभी आकर्षण की

नजरों से तो कभी ललचाई नजरों से पीछा छुड़ाने का प्रयास करती रहती.

कुछ दिन बाद जब राजन ने उस से 2 दिनों के बिजनैस ट्रिप पर साथ चलने को कहा तो शैली असमंजस में पड़ गई. वैसे इनकार करने का मन वह पहले ही बना चुकी थी, पर सीनियर से साफ इनकार करते बनता नहीं. सो सोमवार तक का समय मांग लिया. वह जानती थी कि इस ट्रिप में भले ही कुछ लोग और होंगे, मगर राजन को उस के करीब आने का मौका मिल जाएगा. उसे डर था कि कहीं राजन ने भी आजाद की तरह उस का साथ मांग लिया तो वह क्या जवाब देगी?

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देर रात तक शैली पुरानी बातें सोचती रही. फिर पानी पीने उठी तो देखा बाहर बालकनी में सोनी खड़ी किसी से मोबाइल पर बातें कर रही है. थोड़ी देर तक वह उसे बातें करता देखती रही, फिर आ कर सो गई.

अगली रात फिर शैली ने गौर किया कि

11 बजे के बाद सोनी कमरे से बाहर निकल कर बालकनी में खड़ी हो कर बातें करने लगी. शैली समझ रही थी कि ये बातें उसी खास फ्रैंड के साथ हो रही हैं.

सोनी के हावभाव और पहनावे में भी बदलाव आने लगा था. कपड़ों के मामले में वह काफी चूजी हो गई थी. अकसर मोबाइल पर लगी रहती. अकेली बैठी मुसकराती या गुनगुनाती रहती. शैली इस दौर से गुजर चुकी थी, इसलिए सब समझ रही थी.

एक दिन शाम को शैली ने देखा कि सोनी बहुत उदास सी घर लौटी और फिर कमरा बंद कर लिया. वह फोन पर किसी से जोरजोर से बातें कर रही थी. नेहा उस दिन रात में देर से घर लौटने वाली थी. शैली को बेचैनी होने लगी तो वह सोनी के कमरे में घुस गई, देखा सोनी उदास सी औंधे मुंह बैड पर पड़ी हुई है. प्यार से माथा सहलाते हुए शैली ने पूछा, ‘‘क्या हुआ डियर, परेशान हो क्या?’’

सोनी ने उठते हुए न में सिर हिलाया.

शैली ने देखा कि उस की आंखें आंसुओं से

भरी है. अत: शैली ने उसे सीने से लगाते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ, किसी फ्रैंड से झगड़ा हो गया है क्या?’’

सोनी ने हां में सिर हिलाया.

‘‘उसी खास फ्रैंड से?’’

‘‘हां. सिर्फ झगड़ा नहीं आंटी, हमारा ब्रेकअप भी हो गया है, फौरएवर. उस ने मुझे

डंप किया… कोई और उस की जिंदगी में आ गई और मैं…’’

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‘‘आई नो बेटा, प्यार का अकसर ऐसा ही सिला मिलता है. अब तुझ से कैसे

कहूं कि उसे भूल जा? यह भी मुमकिन कहां

हो पाता है? यह कसक तो हमेशा के लिए रह जाती है.’’

‘‘नो वे आंटी, ऐसा नहीं हो सकता. उसे मेरे बजाय कोई और अच्छी लगने लगी है, तो क्या मेरे पास औप्शंस की कमी है? बस आंटी, आज के बाद मैं दोबारा उसे याद भी नहीं करूंगी. हिज चैप्टर हैज बीन क्लोज्ड इन माई लाइफ. आप ही बताओ आंटी, यदि वह मेरे बगैर रह सकता है तो क्या मैं किसी और के साथ खुश नहीं रह सकती?’’

शैली एकटक सोनी को देखती रही. अचानक लगा जैसे उसे अपने सवाल का

जवाब मिल गया है, मन की कशमकश समाप्त हो गई है.

अगले दिन उस का मन काफी हलका था. वह जिंदगी का एक बड़ा फैसला ले चुकी थी. उसे अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना था. औफिस पहुंचते ही राजन ने उसे बुलाया. शैली को जैसे इसी पल का इंतजार था.

राजन की आंखों में सवाल था. उस ने पूछा, ‘‘फिर क्या फैसला है तुम्हारा?’’

शैली ने सहजता से मुसकरा कर जवाब दिया, ‘‘हां, मैं चलूंगी.’’

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