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लेखक - आरती लोहानी 

दरवाजे की कुंडी खड़कने की आवाज सुन कर निम्मी ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए...‘‘ निम्मी ने बाहर खड़े 2 लड़कों को अभिवादन करते हुए कहा.

‘‘जी, हम आप के महल्ले से ही हैं... आप को राशन की जरूरत तो नहीं... यही पूछने आए हैं,‘‘ उन में से एक व्यक्ति ने निम्मी से कहा.

‘‘जी धन्यवाद, अभी घर में पर्याप्त राशन है...‘‘ निम्मी ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है... जब भी जरूरत हो, तो इस मोबाइल नंबर पर फोन करना...‘‘ उन में से एक बड़ी मूंछों वाले लड़के ने निम्मी को एक कागज पर मोबाइल नंबर लिख कर देते हुए कहा.

लौकडाउन का तीसरा दिन था. पूरा शहर एक अंतहीन उदासी और सन्नाटे की ओर बढ़ रहा था. किसी को नहीं पता था कि कब बाजार खुलेगा, कब घर से बाहर निकल सकेंगे और कब हालात सामान्य होंगे. सब अपनेअपने घरों में कैद परिवारों के साथ समय बिता रहे थे.

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निम्मी का पति अमर किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था कि अचानक से ही कर्फ्यू जैसे हालात बन गए. निम्मी का विवाह हुए अभी सालभर भी नहीं हुआ था. निम्मी बहुत खूबसूरत थी और उस की सुंदरता के किस्से पूरे इलाके में हो रहे थे. कितने नौजवानों को अमर की किस्मत से रश्क था और कितने आदमी निम्मी को किसी न किसी तरह पाना चाहते थे, पर समाज का डर भी था. इस वक्त कइयों को पता था कि अमर घर पर नहीं है, इसलिए कई नएनए तरीकों से महल्ले के मर्द उस के घर के चक्कर काटने में लग गए.

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