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‘‘हां, जैसे मुझे समझ में नहीं आता कि आप क्यों उन का काम करते हैं. उन पर अच्छा प्रभाव डालने के लिए भला इस से अच्छा मौका और कहां मिलेगा आप को.’’ ‘‘अब तुम ही बताओ मम्मा, इस चुहिया की कुछ सहेलियां मेरे पास आ कर कहती हैं, प्लीज रोहन भैया, हमारा फलां काम करवा दीजिए तो मैं भला कैसे मना कर सकता हूं उन्हें? जब उन्होंने मुझे भैया कह दिया तो मेरी मुंहबोली बहनें हो गईं न और बहनों के प्रति भाई की कुछ जिम्मेदारी बनती है कि नहीं? और कुछ कहती हैं, ‘रोहनजी, प्लीज हमारा फलां काम... रोहनजी प्लीज’ कहने वालों के प्रति तो मेरी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है कि न जाने भविष्य में इन में से किस के साथ मेरा रिश्ता जुड़ जाए, इसलिए उन के काम तो मैं अपनी तथाकथित बहनों के काम से भी ज्यादा रुचि और मन से करता हूं.’’

‘‘रोहन, तू सचमुच बिगड़ रहा है, जरूरत से ज्यादा नटखटपन अच्छी बात नहीं है, सोनाली तेरी बहन है तो इस की सहेलियां भी तेरी छोटी बहन ही हुईं. तुझे हरएक के साथ तमीज से पेश आना चाहिए,’’ ताईजी उन्हें समझाते हुए बोलीं. ‘‘मम्मा, अब आप भी सोनाली की भाषा न बोलिए. जिस ने मुझे भैया कह दिया वह तो मेरे लिए सोनाली के ही समान हो जाती है पर जो खुद ही मुझे भैया न कहना चाहे, ‘रोहनजी प्लीज...’ कहे तो वहां मैं नटखट कैसे हो गया? नटखट तो वह हुई न?’’

मुझे पता था कि रोहन भैया से बहस में जीतना असंभव है. उन की वाक्पटुता ने ही तो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा कर उन्हें हमारे कालेज का हीरो बना कर मेरे लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी. कालेज में उन के चाहने वालों की एक लंबी कतार है.

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