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लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

रिनी की इस बात को दारा टाल नहीं सका और वह उस के साथ उस के घर चला गया.

रिनी के घर में एक ही छोटा सा कमरा था. एक कोने में रिनी की बीमार मां लेटी हुई थीं. दारा ने उन्हें नमस्ते किया और उन का हालचाल पूछा.

पहले तो रिनी की मां की आंखों में दारा की तलवारकट मूंछों को देख कर कई सवाल आए, पर जब रिनी ने बताया कि दारा भी उस के साथ ही काम करता है, तो उन की आंखों में निश्चिंतता के भाव आए.

दारा एक बार रिनी के घर क्या गया, फिर तो दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं. रिनी दारा के लिए अच्छा खाना बना कर लाती, तो कभी दारा अपना लंच भी रिनी के साथ शेयर करता.

एक दिन दारा रिनी के लिए बाटीचोखा बना कर लाया, जो उस ने अपने मामा से बनाना सीखा था.रिनी अपनी उंगलियां चाटती रह  गई थी.

‘‘अरे, कैसे बना लिया तुम ने इतना टेस्टी खाना... मुझे भी इस की रेसिपी जाननी है,’’ रिनी ने चहकते हुए कहा.

‘‘क्या है मैडम कि इस को बनाने में कई छोटीछोटी चीजों की जरूरत पड़ती है और अगर आप को सच में ही इसे बनाना सीखना है, तो आप को इसे बनता

हुआ देखना होगा और उस के लिए आप को हमारे घर चलना होगा और तब ही आप इस को बनाना सीख पाएंगी.’’

दारा पहले से ही रिनी का यकीन जीत चुका था, इसलिए रिनी को उस के साथ जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई.

एक दिन काम के बाद दोनों आटोरिकशा में बैठ कर दारा के घर की तरफ निकल लिए, पर रास्ते में तेज बारिश शुरू हो गई और पूरे रास्ते बारिश होती रही.

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