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अब सोचने वाली बात यह थी कि अगर घर में हलवा नहीं बना तो सरदारी को हलवे में जहर किस ने दिया? सरदारी बेगम के नाम कोई जायदाद भी नहीं थी और न ही वह सुंदर थी, जिस की वजह से उसे जहर दे कर मार दिया गया हो. मैं ने शादो से पूछा कि उस का किसी से कोई लड़ाईझगड़ा तो नहीं था.

उस ने कहा, ‘‘नहीं जी, मेरी सौतन तो बहुत भली औरत थी. कभी किसी से न झगड़ने वाली. मैं ने उसे कभी गुस्से में नहीं देखा. मैं खुद सोच रही हूं कि उसे जहर कौन दे सकता है?’’

केस मेरी समझ से बाहर था. मैं ने सरदारी बेगम के दोनों बेटों को बुला कर जांच करने का मन बनाया. शादो से मैं ने पूछा कि उसे किसी पर शक तो नहीं, उस ने कहा नहीं.

मैं ने शादो से बहुत से सवाल किए और कुरेदकुरेद कर पूछा कि कोई काम की बात पता चल सके, लेकिन उस से कुछ पता नहीं लग सका. अगले दिन तो वे लोग सरदारी बेगम के अंतिम संस्कार में लगे रहे. इस के तीसरे दिन मैं ने उस के दोनों बेटों को थाने बुलवाने का प्रोग्राम बनाया.

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थाने बुला कर मैं ने शरीफ और उस के छोटे भाई इदरीस से पूछताछ की. लेकिन उन से भी कोई बात पता नहीं लगी. इदरीस कम बोलता था, मेरे हर सवाल का संक्षेप में जवाब देता था. उस ने अधिकतर सवालों के जवाब हां या ना में दिए थे. मैं ने दोनों भाइयों को यह कह कर भेज दिया कि जरूरत पड़ी तो फिर बुला लूंगा.

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